तबला के विभिन्न अंगो का संक्षिप्त वर्णन करें | BA Notes Pdf

उत्तर- तबला भारतीय शास्त्रीय संगीत का अत्यंत लोकप्रिय और महत्वपूर्ण ताल वाद्ययंत्र है, जो दो अलग-अलग ड्रमों—दयां (छोटा तबला) और बायां (बड़ा ढोलकनुमा यंत्र)—से मिलकर बनता है। दोनों मिलकर ताल की जटिलताओं को स्पष्ट, मधुर और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करते हैं। तबले को सही ढंग से समझने के लिए उसके प्रत्येक अंग की संरचना और उपयोग को समझना आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं अंगों के कारण तबला विभिन्न प्रकार की बोल, ध्वनियाँ और घनत्व उत्पन्न कर पाता है।

सबसे पहले छोटा तबला, जिसे दयां कहा जाता है, लकड़ी से बना होता है और इसकी गूँज तीखी, साफ और ऊँची होती है। इसके ऊपर खाल चढ़ाई जाती है जिसे पूरी कहा जाता है। इसी पूरी के केंद्र में काली गोल परत होती है जिसे स्याही कहते हैं। स्याही लोहे की धूल, चावल और गोंद के मिश्रण से बनाई जाती है और यह तबले को ध्वनि की शुद्धता, कंपन और स्वर की स्पष्टता प्रदान करती है। स्याही के कारण ही तबला अलग-अलग सुरों में बाँधा जा सकता है।

पूरी के चारों ओर एक गोल चमड़े का रिंगनुमा हिस्सा होता है जिसे किन्नर कहते हैं। इसके ठीक बाहरी हिस्से में बारीक चमड़े की पट्टियाँ होती हैं जिन्हें गट्टे या चट्टी कहा जाता है। इन्हीं पट्टियों के माध्यम से तबले का सुर चढ़ाया या उतारा जाता है। सुर बदलने के लिए लकड़ी के बेलननुमा टुकड़े, जिन्हें गजरा या लकड़ी के खूँटे कहा जाता है, इन पट्टियों के बीच लगाए जाते हैं। इन्हें आगे–पीछे करके तबले की तनावट और ध्वनि को बदला जा सकता है।

बायाँ तबला, जिसे ढुग्गी या बायाँ कहते हैं, धातु (पीतल, ताँबा) या मिट्टी से बनाया जाता है और यह गंभीर, गूँजदार और मधुर बास ध्वनि उत्पन्न करता है। इसका ऊपरी भाग भी पूरी और स्याही से बना होता है, परंतु बाएँ की स्याही दाएँ की स्याही की अपेक्षा पतली होती है। इसके चारों ओर भी पट्टियाँ और गट्टे होते हैं, जिनसे इसे बांधकर सुर में लाया जाता है। बाएँ तबले के किनारों पर पेस्ट (गीला आटा) लगाकर बास ध्वनि को बढ़ाया जाता है, जिसे मुँदरी लगाना कहते हैं।

तबले के अन्य महत्वपूर्ण अंगों में छोटी किन्नर, बड़ा किन्नर, छोटी पूरी, बड़ी पूरी, चौंध, किनारा और तालपाटा शामिल हैं। प्रत्येक अंग का अपना विशिष्ट योगदान है—जैसे किनारा हल्की और नाजुक ध्वनि देता है, चौंध पूरा हाथ रखने का क्षेत्र है, जबकि पट्टियाँ सुर नियंत्रण के लिए आवश्यक हैं।

इन सब अंगों के सामंजस्य से तबला न सिर्फ विभिन्न तालों का वादन संभव बनाता है, बल्कि विविध बोल जैसे “धा”, “धिन”, “ना”, “टिन”, “ते”, “के” आदि स्वच्छता से उत्पन्न करता है। प्रत्येक अंग वादक की कला को निखारता है और तबले को भारतीय संगीत में एक अद्वितीय स्थान प्रदान करता है।


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