प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगर योजना की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें ।
1920 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा में तथा 1922 ई. में राखलदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य आरंभ किया गया। 1923 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से सर जान मार्शल के नेतृत्व में खुदाई का कार्य बड़े पैमाने पर किया गया। इसके अतिरिक्त मैके, एन जी मजूमदार, सर आरेलस्टाइन, एच हारग्रीब्ज, स्टुअर्ट पिग्गट, व्हीलर, रंगनाथ राव, ए घोष, सांकलिया आदि ने खोज के काम को आगे बढ़ाया। इसके परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई ।
1. हड़प्पा सभ्यता का विस्तार- क्षेत्र : हड़प्पा सभ्यता के अवशेष केवल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से ही नहीं, अपितु अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल निम्नलिखित प्रांतों से प्राप्त हुए हैं-
(i) बलूचिस्तान: सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डाबरकोट ।
(ii) सिंध : मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, कोटदीजी, अलीमुरीद ।
(ii) पंजाब (पाकिस्तान) : हड़प्पा, जलीलपुर, रहमानढेरी, सरायखोला, गनेरीवाला
(iv) पंजाब (भारत) : रोपड़, संघोल, बाड़ा, कोटलानिहंग खान ।
(v) हरियाणा: बणावली, मीताथल, राखीगढ़ी।
(vi) जम्मू-कश्मीर: माण्डा ।
(vii) राजस्थान : कालीबंगा ।
(viii) उत्तर प्रदेश : आलमगीरपुर (मेरठ), अम्बाखेड़ी (सहारनपुर), कौशाम्बी।
(ix) गुजरात: रंगपुर, लोथल, रोजदी, सुरकोटड़ा, मालवण, भगवतराव, धौलाविरा |
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का विस्तार अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान, सिंध, पंजाब (पाकिस्तान), पंजाब (भारत), हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तर भारत में गंगाघाटी तक व्याप्त था । डॉ विमल चन्द्र पाण्डेय का कथन है कि “हड़प्पा सभ्यता एकमात्र सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित न थी वरन् उसका क्षेत्र और अधिक सुविस्तृत था । आधुनिक भौगोलिक नामों में इस क्षेत्र के अंतर्गत ब्लूचिस्तान, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब, सिंध, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगा घाटी का उत्तरी भाग शामिल था । ”
प्रो आर. एन. राव के अनुसार, “हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था । ” डॉ राजबली पाण्डेय के अनुसार “हड़प्पा सभ्यता पूर्व में काठियावाड़ से प्रारंभ होकर पश्चिम में मकरान तक फैली हुई थी।” प्रो. गार्डन चाइल्ड का कथन है कि “हड़प्पा की सभ्यता मिस्त्र से भी अधिक विस्तृत क्षेत्र को अपने आंचल में समेटे हुई थी । ” हड़प्पा की सभ्यता का वर्तमान में ज्ञात भौगोलिक विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर है।
2. नगर- नियोजन : हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
(i) नगर: हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। हड़प्पा निवासी नगर निर्माण में बड़े कुशल थे। प्रमुख नगरों का निर्माण बड़े वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित ढंग से किया गया था। इन नगरों की आधार योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास-व्यवस्था में आश्यचर्यजनक समानता एवं एकरुपता दिखाई देती है। इससे यह ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी नगरों का निर्माण योजना बनाकर करते थे तथा इन नगरों एवं भवनों की योजना बनाने वाले तथा उनका निर्माण करने वाले कुशल इंजीनियर थे। डॉ. मैके के अनुसार उन अवशेषों को देखकर व्यक्ति यह अनुभव करता है कि वे लंकाशायर के किसी आधुनिक नगर के अवशेष हैं।
प्रायः प्रत्येक नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग’ का भाग बना मिलता है और इसके पूर्व में निचले स्तर पर ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है जहां सामान्य लोग रहते थे। दुर्ग में प्रमुख अधिकारी रहते थे। इस भाग में सार्वजनिक महत्व के भवन मिले हैं। दुर्ग के चारों ओर ईंटों से बनी हुई एक दीवार मिलती है।
(ii) सड़कें : हड़प्पा के नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं। ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थी। इस प्रकार इन सड़कों द्वारा प्रत्येक नगर कई खंडों में बंट जाता था । प्रत्येक खंड की माप प्रायः 800 × 1200 होती थी। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़कें 33 फुट चौड़ी थीं। अन्य सड़कें भी इतनी चौड़ी होती थीं कि उन पर भी सामान्यतया गाड़ियां सरलता से आ-जा सकती थी । यद्यपि समस्त सड़कें मिट्टी की बनी हुई होती थीं, परन्तु फिर भी उनकी सफाई का बड़ा ध्यान रखा जाता था। इन पर स्थान-स्थान पर कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करने की व्यवस्था थी। कूड़ा-कर्कट फेंकने के लिए सड़कों के किनारे बड़े- बड़े बर्तन रखे होते थे अथवा गड्ढे बने होते थे। सड़कों की सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता था। डॉ. मैके का कथन है कि “सड़कों का विन्यास कुछ इस प्रकार से था कि हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे। इन सड़कों को गलियों से मिलाया गया था।
नगर की गलियां 4 फुट से 9 फुट तक चौड़ी थीं। गलियां भी सीधी हैं और निश्नय श्री उनका निर्माण योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। मोहनजोदड़ो की एक सड़क के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे चबूतरे बने हुए मिले हैं। संभवतः दुकानदार इन पर बैठकर अपनी वस्तुयं बेचते होंगे। कहीं-कहीं सड़कों के किनारे भोजनालय बने हुए थे। सड़कों के दोनों किनारों पर मकान बने हुए थे तथा वे सारे मकान एक से थे।
(iii) नालियाँ : नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था । वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में नालियां बनी हुई थीं और प्रत्येक घर की नाली वहां आकर मिलती थी। हर गली-कूंचे में गंदे पानी के निष्कासन के लिए पक्की नालियां बनाई गई थीं जो ईट अथवा पत्थर से ढकी रहती थी। नालियों की जुड़ाई और प्लास्टर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियां अथवा पर नालें सड़क, की नालियों में मिल जाते थे। इसी प्रकार नगर की छोटी-छोटी नालियां बड़ी तथा प्रमुख नालियों में मिल जाती थीं। इस योजना के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गंदा पानी नगर के बाहर निकाल दिया जाता था । समय-समय पर इन नालियों को साफ करने की भी व्यवस्था थी। नालियों के किनारे कहीं-कहीं गड्ढे बने हुए मिलते हैं। अनुमानतः नालियों को साफ करने के बाद उनसे निकला हुआ कूड़ा-कर्कट रेत और कीचड़ इन्हीं गड्ढों में जमा कर दिया जाता था। कहीं-कहीं लंबी नालियों के बीच में गड्ढे (Soak-Pit) बना दिये जाते थे। इनमें कूड़ा-करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अबाध रहता था।
हड़प्पा सभ्यता की ये नालियां विश्व के लोगों के लिए आश्चर्य की वस्तु बनी हुई है, क्योंकि यूरोपीय देशों में इनका प्रचलन अठारहवीं शताब्दी के आस-पास हुआ था। सर जान मार्शल के अनुसार “नालियों की इतनी सुव्यवस्थित योजना उस समय किसी भी सभ्यता के अंतर्गत नहीं थी । ”
(iv) कुएँ : हड़प्पा के प्रायः प्रत्येक घर में एक कुआं होता था। खुदाई में ऐसे कुएँ मिले हैं जिनकी चौड़ाई 2 फुट से 7 फुट है। हड़प्पा के समस्त कुएँ प्रायः अण्डाकार होते थे और इनके मुंह के चारों ओर एक दीवार बनी रहती थी। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था। कुछ कुओं के अंदर सीढ़ियां बनी थीं। इनकी सहायता से कुओं के भीतर घुसकर उनकी सफाई की जाती थी।
(v) सार्वजनिक स्नानागार : मोहनजोदड़ों की सर्वप्रमुख विशेषता यहां से प्राप्त हुआ एक विशाल स्नानागार है । यह 180 फीट लंबा और 108 फीट चौड़ा है और इसकी बाहर की दीवार 8 फीट मोटी है। इसमें एक स्नान कुण्ड बना हुआ है जो 39 फुट लंबा; 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईंटों की सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसकी दीवारें बड़ी सुदृढ़ हैं। इसकी दीवार और फर्श पक्की ईंटों के बने हैं। फर्श और दीवारों की ईंटों को जिप्सम से जोड़ा गया है। स्नानकुण्ड के चारों ओर गैलरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुण्ड के पानी को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था की गई थी। इसका गंदा पानी निकालने के लिए इसके दक्षिण-पश्चिम में एक नाली बनी हुई थी। इससे पता चलता है कि समय-समय पर स्नानकुण्ड की सफाई की जाती थी। स्नानकुण्ड के निकट ही एक कुआं हैं जिससे स्नानकुण्ड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुण्ड के पास ही एक हमाम भी बना हुआ है जिसमें शायद स्नान के लिए गर्म पानी की व्यवस्था की जाती थी । स्नानकुण्ड के चारों ओर बरामदें बने थे तथा इनके पीछे अनेक कमरे थे। संभवतः ये छोटे स्नानागार थे।
इस स्नानागार के निर्माण के लिए तत्कालीन इंजीनियर निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इतना भव्य एवं सुदृढ़ जलाशय बनाया है कि लगभग 5000 वर्षों के बाद भी यह भली प्रकार सुरक्षित है।
(vi) भवन-निर्माण : हड़प्पा के निवासी भवन निर्माण कला में निपुण थे। यहां के नगरों में मकानों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार हुआ था। हड़प्पा के लोगों के मकान प्रायः ईंटों के बने होते थे। हड़प्पा की खुदाई में छोटे-बड़े, कच्चे-पक्के हर प्रकार के मकानों के भग्नावशेष मिले हैं। छोटे मकानों में चार-पांच कमरे होते थे तथा बड़े मकानों में अनेक कमरे होते थे। मकानों के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था । पक्की छोटी ईंटों का माप 5.50 × 2.25 x 2.75 है तथा बड़ी ईंटों का माप 115.50×3.75 है। कभी-कभी बड़ी ईंटों की माप 20.25 × 8.50 x 2.25 होती थी ।
प्रायः मकान नींव डालकर बनाये जाते थे। सीलन अथवा बाढ़ से रक्षा करने के लिए कभी-कभी मकान ऊंचे-ऊंचे चबूतरों पर बनाये जाते थे। ईंटों के चिनने में प्रायः मिट्टी के गारे का प्रयोग किया जाता था। दीवारों पर मिट्टी का प्लास्टर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्टर भी किया जाता था। मकानों की फर्शे तथा छतें कभी मिट्टी की, कभी कच्ची ईंटों की तथा कभी पक्की ईंटों की बनाई जाती थी । छतों के ऊपर का पानी निकालने के लिए मिट्टी अथवा लकड़ी के परनाले बने होते थे। ये छतों से निकलकर सड़क पर बनी हुई नालियों से मिल जाते थे। इसी प्रकार मकान के भीतर का पानी निकालने के लिए नालियों की व्यवस्था थी। ये नालियां बाहर जाकर सड़क की नालियों से मिल जाती थी।
मकानों का निर्माण करते समय हवा व प्रकाश का पूर्ण ध्यान रखा जाता था। मकानों में ऑगन, रसोईघर, स्नान-घर, शौचालय, दरवाजों, खिड़कियों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था. रहती थी। प्रवेश-द्वार के पास वाले कोने में स्नानघर तथा शौचालय होते थे। मकानों के दरवाजे और खिड़कियां मुख्य सड़कों की ओर न होकर गलियों की ओर ही होते थे । दरवाजे व छत लकड़ी के बने होते थे। मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छतों अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियां होती थीं। ये पक्की ईंटों की बनती थीं। प्रायः सभी मकानों में कुएँ होते थे।