हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन का वर्णन कीजिये । 

1920 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़णा में तथा 1922 ई. में राखलदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो में खुदाई का कार्य आरम्भ किया गया। 1923 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से सर जान मार्शल के नेतृत्व में खुदाई का कार्य बड़े पैमाने पर किया गया। इसके अतिरिक्त मैके, एन. जी. मजूमदार, सर आरेलस्टाइन, एच. हारग्रीव्ज, स्टुअर्ट पिग्गट, ह्वीलर, रंगनाथ राव, ए. घोष, सांकलिया आदि ने खोज के काम को आगे बढ़ाया। इसके परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई । 

नगर – नियोजन 

हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- 

1. नगर : हड़प्पा के नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया गया था। हड़प्पा निवासी नगर निर्माण में बड़े कुशल थे। प्रमुख नगरों का निर्माण बड़े वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित ढंग से किया गया था। इन नगरों की आधार योजना, निर्माण शैली तथा नगरों की आवास-व्यवस्था में आश्चर्यजनक समानता एवं एकरूपता दिखाई देती है। इससे यह ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासी नगरों का निर्माण योजना बनाकर करते थे तथा इन नगरों एवं भवनों की योजना बनाने वाले तथा उनका निर्माण करने वाले कुशल इंजीनियर थे। डॉ. मैके के अनुसार उन अवशेषों को देखकर व्यक्ति यह अनुभव करता है कि वे लंकाशायर के किसी आधुनिक नगर के अवशेष हैं। 

प्राय: प्रत्येक नगर के पश्चिम में एक ‘दुर्ग’ का भाग बना मिलता है और इसके पूर्व में निचले स्तर पर ‘नगर भाग’ प्राप्त होता है जहाँ सामान्य लोग रहते थे। दुर्ग में प्रमुख अधिकारी रहते थे। इस भाग में सार्वजनिक महत्व के भवन मिले हैं। दुर्ग के चारों ओर ईटों से बनी हुई एक दीवार मिलती है। 

2. सड़कें : हड़प्पा के नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई गई थीं। ये सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। इस प्रकार इन सड़कों द्वारा प्रत्येक नगर कई खण्डों में बँट जाता था। प्रत्येक खण्ड की माप प्राय: 800 1200 होती थी। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 33 फुट चौड़ी थी । अन्य सड़कें भी इतनी चौड़ी होती थीं कि उन पर भी सामान्यतया गाड़ियाँ सरलता से आ-जा सकती थीं । यद्यपि समस्त सड़कें मिट्टी की बनी हुई होती थीं, परन्तु फिर भी उनकी सफाई का बड़ा ध्यान रखा जाता था। इन पर स्थान-स्थान पर कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करने की व्यवस्था थी । कूड़ा-कर्कट फेंकने के लिए सड़कों के किनारे बड़े-बड़े बर्तन रखे होते थे अथवा गड्ढे बने होते थे। सड़कों की सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता था। डॉ. मैके का कथन है कि “सड़कों का विन्यास कुछ इस प्रकार से था कि हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे । ” इन सड़कों को गलियों से मिलाया गया था। 

नगर की गलियाँ 4 फुट से 9 फुट तक चौड़ी थीं । गलियाँ भी सीधी हैं और निश्चय ही उनका निर्माण योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। मोहनजोदड़ो की एक सड़क के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे चबूतरे बने हुए मिले हैं। सम्भवतः दुकानदार इन पर बै कर अपनी वस्तुए बेचते होंगे। कहीं-कहीं सड़कों के किनारे भोजनालय बने हुए थे। सड़कों के दोनों किनारों पर मकान बने हुए थे तथा वे सारे मकान एक से थे। 

3. नालियाँ : नगरों में नालियों का जाल बिछा हुआ था । वर्षा और मकानों के पानी को निकालने के लिए सड़कों में नालियाँ बनी हुई थीं और प्रत्येक घर की नाली वहाँ आकर मिलती थी। हर गली-कूंचे में गन्दे पानी के निष्कासन के लिए पक्की नालियाँ बनाई गई थीं जो ईट अथवा पत्थर से ढकी रहती थीं। नालियों की जुड़ाई और प्लास्टर में मिट्टी, चूने तथा जिप्सम का प्रयोग किया गया था। मकानों से आने वाली नालियाँ अथवा परनाले सड़क, गली की नालियों में मिल जाते थे। इसी प्रकार नगर की छोटी-छोटी नालियाँ बड़ी तथा प्रमुख नालियों में मिल जाती थीं। इस योजना के द्वारा घरों, गलियों और सड़कों का गन्दा पानी नगर के बाहर निकाल दिया जाता था । समय-समय पर इन नालियों को साफ करने की भी व्यवस्था थी। नालियों के किनारे कहीं-कहीं गड्ढे बने हुए मिलते हैं। अनुमानत: नालियों को साफ करने के बाद उनसे निकला हुआ कूड़ा-कर्कट रेत और कीचड़ इन्हीं गड्ढों में जमा कर दिया जाता था। कहीं-कहीं लम्बी नालियों के बीच में गड्ढे (Soak-Pit) बना दिये जाते थे। इनमें कूड़ा-करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अबाध रहता था। 

हड़प्पा सभ्यता की ये नालियाँ विश्व के लोगों के लिए आश्चर्य की वस्तु बनी हुई हैं, क्योंकि यूरोपीय देशों में इनका प्रचलन 18वीं शताब्दी के आस-पास हुआ था। सर जान मार्शल के अनुसार “नालियों की इतनी सुव्यवस्थित योजना उस समय किसी भी सभ्यता के अन्तर्गत नहीं थी।’ 

4. कुएँ : हड़प्पा के प्राय: प्रत्येक घर में एक कुआँ होता था। खुदाई में ऐसे कुएँ मिले हैं जिनकी चौड़ाई 2 फुट से 7 फुट है। हड़प्पा के समस्त कुएँ प्राय: अण्डाकार होते थे और इनके मुँह के चारों ओर एक दीवार बनी रहती थी। पानी रस्सी की सहायता से निकाला जाता था। कुछ कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ बनी थीं। इनकी सहायता से कुओं के भीतर घुसकर उनकी सफाई की जाती थी। 

5. सार्वजनिक स्नानागार : मोहनजोदड़ों की सर्वप्रमुख विशेषता यहाँ से प्राप्त हुआ एक विशाल स्नानागार है। यह 180 फीट लम्बा तथा 108 फीट चौड़ा है और इसकी बाहर की दीवार 8 फीट मोटी है। इसमें एक स्नान कुण्ड बना हुआ है जो 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा है। इसमें नीचे उतरने के लिए पक्की ईटों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी दीवारें बड़ी सुदृढ़ हैं। इसकी दीवार और फर्श पककी ईटों के बने हैं। फर्श और दीवारों की ईटों को जिप्सम से जोड़ा गया है। स्नानकुण्ड के चारों ओर गैलरी, बरामदा और कमरे बने हुए हैं। स्नानकुण्ड के पानी को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था की गई थी। इसका गन्दा पानी निकालने के लिए इसके दक्षिण-पश्चिम में एक नाली बनी हुई थी। इससे पता चलता है किं समय-समय पर स्नानकुण्ड की सफाई की जाती थी। स्नानकुण्ड के निकट ही एक कुआँ है जिससे स्नानकुण्ड में पानी भरा जाता होगा। स्नानकुण्ड के पास ही एक हमाम भी बना हुआ है, जिसमें शायद स्नान के लिए गर्म पानी की व्यवस्था की जाती थी। स्नानकुण्ड के चारों ओर बरामदे बने थे तथा इनके पीछे अनेक कमरे थे। सम्भवतः ये छोटे स्नानागार थे।

इस स्नानागार के निर्माण के लिए तत्कालीन इंजीनियर निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इतना भव्य एवं सुदृढ़ जलाशय बनाया कि लगभग 5000 वर्षों के बाद भी यह भली प्रकार सुरक्षित है। 

6. भवन-निर्माण : हड़प्पा के निवासी भवन निर्माण कला में निपुण थे । यहाँ के नगरों में मकानों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार हुआ था। हड़प्पा के लोगों के कान प्राय: ईटों के बने होते थे। हड़प्पा की खुदाई में छोटे-बड़े, कच्चे-पक्के हर प्रकार के मकानों के भग्नावशेष मिले हैं। छोटे मकानों में चार-पाँच कमरे होते थे तथा बड़े मकानों में अनेक कमरे होते थे। मकानों के निर्माण में पक्की ईटों का प्रयोग किया जाता था। पक्की छोटी ईटों का माप 5.50 × 2.25 x 2.75 है तथा बड़ी ईटों का माप 11 × 5.50 × 3.75 

। कभी-कभी बड़ी ईटों की माप 20.25 × 8.50 x 2.25 होती थी । 

प्रायः मकान नींव डालकर बनाए जाते थे। सीलन अथवा बाढ़ से रक्षा करने के लिए कभी-कभी मकान ऊंचे-ऊंचे चबूतरों पर बनाए जाते थे । ईटों के चिनने में प्राय: मिट्टी के ग का प्रयोग किया जाता था । दीवारों पर मिट्टी का प्लास्तर किया जाता था, कभी-कभी जिप्सम का प्लास्तर भी किया जाता था । मकानों की फ तथा छतें कभी मिट्टी की, कभी कच्ची ईटी की तथा कभी पक्की ईटों की बनाई जाती थीं । छतों के ऊपर का पानी निकालने के लिए मिट्टी अथवा लकड़ी के परनाले बने होते थे। ये छतों से निकलकर सड़क पर बनी हुई नालियों से मिल जाते थे । इसी प्रकार मकान के भीतर का पानी निकालने के लिए नालियों की व्यवस्था थी । ये नालियाँ बाहर जाकर सड़क की नालियों से मिल जाती थीं । 

मकानों का निर्माण करते समय हवा व प्रकाश का पूर्ण ध्यान रखा जाता था। मकानों में ऑगन, रसोईघर, स्नान-घर, शौचालय, दरवाजों, खिड़कियों, रोशनदानों आदि की व्यवस्था रहती थी। प्रवेश-द्वार के पास वाले कोने में स्नानघर तथा शौचालय होते थे। मकानों के दरवाजे और खिड़कियाँ मुख्य सड़कों की ओर न होकर गलियों की ओर ही होते थे। दरवाजे व छत लकड़ी के बने होते थे। मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे। छतों अथवा ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए मकानों में सीढ़ियाँ होती थीं। ये पक्की ईटों की बनती थीं। प्राय: सभी मकानों में कुऍ होते थे। 


About The Author

Spread the love

Leave a Comment

error: Content is protected !!