संगम साहित्य में वर्णित राज्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। PDF DOWNLOAD

दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप के राज्य (Kingdom of South Indian Peninsula) : संगम साहित्य से तीन राज्यों चोल, चेर और पाण्ड्य के विषय में जानकारी मिलती है। ये सभी राज्य कृष्ण नदी के दक्षिण में स्थित थे। संगम कवियों ने इन राज्यों का सम्बन्ध महाभारत के पाण्डवों से जोड़ा है। अधिकांश इतिहासकार इसे स्वीकार नहीं करते। वस्तुतः संगम साहित्य के कवियों ने इनकी प्राचीनता सिद्ध करने और इन्हें सम्मानित बनाने के लिए ऐसा किया है। इन राज्यों के विषय में यूनानी यात्री मैगस्थनीज ने लिखा है। कलिंग राज्य, खारवेल हाथीगुम्फा अभिलेख में भी इनका विवरण मिलता है। यहाँ के राजाओं ने अपने राजा की भूमि को सामन्तों में विभाजित कर दिया था जिन्होंने कला व साहित्य को बहुत अधिक संरक्षण दिया। 

चोलों की उत्पत्ति 

(Origin of Cholas) 

चोल वंश भारत का एक अति प्राचीन वंश प्रतीत होता है। इसका उल्लेख भारतीय और विदेशी दोनों साहित्य में मिलता है । महाभारत में चोलों का उल्लेख मिलता है। मैगस्थनीज ने इसका उल्लेख किया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार बिन्दुसार ने चोलों को जीतने का प्रयास किया था, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली थी। कलिंग राज्य की सहायता से चोलों ने बिन्दुसार के विरुद्ध अपनी स्वतंत्रता कायम रखी। तत्पश्चात् जब अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया जो चोलों ने कलिंग की सहायता की थी, इस बात का निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। अशोक के अभिलेखों में चोडों (चोलों) का उल्लेख अन्तराज्यों (सीमान्त राज्यों) में किया गया है। वहाँ चोलों का उल्लेख बहुवचन में किया गया है। विद्वानों का विचार है कि चोलों के दो राज्य थे। इसकी पुष्टि टालमी से भी होती है। उसके अनुसार एक राज्य सोरमाग़ों (चील-नागों) का था। इनकी राजधानी ओर्थोरा थी । कनिंघम ने ओर्थोरा का समीकरण (उरइयूर (त्रिचनापली) के साथ किया है। टालमी के अनुसार सोरों (चोलों) के दूसरे राज्य की राजधानी अर्कटोज थी। काल्डवेल के अनुसार अर्कटोज आधुनिक आकीत था। पेरिप्लस ने भी चोल प्रदेश के बंदरगाहों का उल्लेख किया है। अशोक अभिलेखों में चोल राजा के साथ-साथ ताम्रपर्णि (लंका) का भी नाम लिया गया है। इनसे अनुमान होता है कि चोल राज्य और लंका में घनिष्ठता रही होगी । इस कथन की पुष्टि महावंश से भी होती है। इस सिंहली ग्रंथ से प्रकट होता है कि सिंहल (लंका) के राजाओं और चोलों के मध्य सम्पर्क था । कात्यायन भी चोलों से परिचित था। दक्षिण राजवंशों के लेखों एवं तत्कालीन साहित्य में चोलों का बार-बार उल्लेख हुआ है। चोल राज्य में कावेरी नदी बहती थी और उसमें त्रिचनापली तथा तंजौर से किले. शामिल थे। आगे चलकर इस चोल राज्य ने दक्षिण भारत में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। 

करिकाल (Karikal) : चोलों का सर्वप्रथम राजा करिकाल था । इसका उदय द्वितीय शताब्दी में हुआ था। तमिल साहित्य में इसके पिता का नाम इलंजेर्केलि बताया गया है और उसे एक वीर योद्धा कहा गया है । करिकाल अपने पिता से भी अधिक वीर और महत्त्वाकांक्षी सिद्ध हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी बढ़ती हुई शक्ति को देखकर पाण्डयों, चेरों आदि जातियों ने उसके विरूद्ध एक संघ बना लिया था । करिकाल ने वेष्णि के प्रसिद्ध युद्ध में उन सबको पराजित किया। शिलप्पादिकारम् की एक कथा के अनुसार करिकाल ने अपनी पुत्री अदिनन्दि का विवाह एक चेर राजकुमार अत्ति के साथ कर दिया। इस प्रकार चेर राज्य के साथ उनका अच्छा सम्बन्ध स्थापित हो गया था। पट्टिनप्पालई नामक एक तमिल कविता से ज्ञात होता है कि कारिकाल ने ओलियर, अरूबाहर और इरूगोवेल वंश के विरूद्ध भी सफलता प्राप्त की। उसने लंका पर भी आक्रमण किया और यहाँ से वह 12,000 मनुष्यों को अपने राज्य में ले आया। अपनी इन विजयों के परिणामस्वरूप करिकाल ने तमिल प्रदेश में अपनी धाक जमा ली। 

तमिल साहित्य से ज्ञात होता है कि करिकाल ने सार्वजनिक सुविधा के लिए अनेक निर्माण कार्य भी किये। उसने वन्य प्रदेशों को साफ करवाकर खेती के लिए उपयोगी बनाया तथा सिचाई के लिए अनेक तालाकों और नहरों का निर्माण करवाया। बाढ़ को रोकने के लिए उसने कावेरी के तट पर बाँध बनवाये। उसने पुरानी राजधानी ओर्थोरा का परित्याग कर कावेरी षड्डिनम् नामकं नई राजधानी की स्थापना की। 

करिकाल ब्राह्मण धर्मावलम्बी था और अनेक यज्ञ किये थे। 

पाण्डय राज्य 

(Pandya’s Kingdom) 

सुदूर दक्षिण में पाण्डय राज्य भी एक प्राचीन राज्य था। इस राज्य में आधुनिक मदुरा, तिनैवली और ट्रावन कोर के प्रदेश शामिल थे। पाण्डय सम्भवतः द्राविड जाति के थे। संगम साहित्य के अनुसार उत्तरी भारत से अगरत्य ऋषि ने इस प्रदेश में आकर यहाँ के लोगों को सभ्य बनाया। पाण्डय राज्य के इतिहास के विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती। मैगस्थनीज ने अपने ग्रन्थ में पाण्डय राज्य का उल्लेख किया है। उसके अनुसार एक रानी पाण्डय राज्य में कुशलतापूर्वक शासन करती थी। उसके पास विशाल सेना थी जिसमें 13,000 पैदल, 4000. घुड़सवार तथा 500 हाथी थे । अशोक के शासन काल में पाण्डय एक स्वतन्त्र राज्य था। दूसरी शताब्दी ई० के अन्त में नेडु जेलियान में एक प्रसिद्ध पाण्ड्य राजा था। उसकी राजधानी मदुरा थी। वह एक वीर शासक था। कहा जाता है कि चेर, चोल तथा कई अन्य छोटे-छोटे राज्यों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया था, लेकिन तंजौर के समीप उसने शत्रुओं की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया। उसने अपने पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके अपने राज्य का विस्तार भी किया। वह वैदिक धर्म का अनुयायी था । उसने अनेक वैदिक यज्ञ किये थे। वह कवियों का महान संरक्षक था और स्वयं भी एक उच्च कोटि का कवि था । 

पांण्डय राज्य एक सम्पन्न राज्य था। उसका रोमन सम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध था। यूनानी लेखक स्ट्रेबों के अनुसार प्रथम और द्वितीय शताब्दी में पाण्डय राजाओं के रोम के राजाओं से व्यापारिक सम्बन्ध थे। पाण्डय राजा ने प्रथम शताब्दी ई० में रोम के शासक आगस्टस सीजर के दरबार में एक राजदूत भेजा था। 

चेर राज्य 

(Cheras Kingdom) 

दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप में एक अन्य महत्त्वपूर्ण राज्य चेर राज्य का विकास हुआ। यह आधुनिक केरल राज्य में स्थित था । इस राज्य में अनेक शासकों ने शासन किया जिनका प्रथम शासक उदीयंजीरल था। 

उदीयंजीरल (Udiyanjerale) : संगम साहित्य में इसकी उपाधि महा भोजन उदयंजीरल है। कहा जाता है कि इसने महाभारत के युद्ध में कौरवों और पाण्डवों को स्वादिष्ट भोजन कराया था। इतिहासकार इस बात को स्वीकार नहीं करते । चोल और पाण्डय राजाओं के लिए भी इस प्रकार की बात कही गयी है। 

नेदजीरल आदन (Nendujiral Adan) : यह उदयंजीरल का पुत्र था। यह एक प्रतापी शासक था। इसने समुद्र युद्ध में भाग लिया और मालाबार तट के किसी शत्रु पराजित किया। इसी युद्ध में इसने यवन व्यापारियों को भी बन्दी बना लिया था। इन्हें मुक करने के एवज में इन्हें काफी धन प्राप्त हुआ । उसने चोलों और पांड्यों के विरूद्ध भी कई युद्ध किये। उसने अधिराज और इमयवरमवन आदि उपाधियाँ धारण कीं । निश्चित ही वह एक सफल विजेता था, उसकी राजधानी मरन्दई थी। 

कुट्टुवन (Kuttuwan ) : यह आदन का छोटा भाई था और इसने भी चेर राज्य का पर्याप्त विस्तार किया। इसने कौंगु राज्य पर विजय प्राप्त की। इसके पास हाथियों की विशाल सेना थी जिसकी सहायता से इसने कई सामन्तों को पराजित किया । इसने भी अधिराज की उपाधि धारण की। 

शेनगुट्टूवन (Shenguttuwan ) : यह आदन का पुत्र था। मगध साहित्य में इसकी खूब प्रशंसा की गयी है। संगम साहित्य के कवि परणर के अनुसार उसने मौहर के सामन्त पर आक्रमण किया। उसकी सेना में नौ सैनिकों का बेड़ा था। वह कला का भी संरक्षक था। उसने भी अधिराज की उपाधि धारण की । उल्लेखनीय है कि इसी के शासन काल में पत्तिनी पूजा (पत्नी पूजा) शुरू हुई। यो पत्नियाँ कन्नगी (आदर्श पत्नी) होती थीं। इनकी मूर्तियाँ बनाकर पूजा की जाती थीं। वस्तुतः दक्षिण भारत में नारी सम्मान की पुष्टि मैगस्थनीज भी करता था । उसके अनुसार पाण्ड्यों के शासन में नारी शासन था और लड़कियाँ कम उम्र में माँ बन जाती थीं। 

अन्दुंबन (Anduban) : यह एक अन्य शाखा से सम्बन्धित था। यह वीर, उदार और विद्वान व्यक्ति था। इसका पुत्र शेल्वक्डुगो वाल्ली आदन था। यह भी पिता के समान उदार और विद्वान व्यक्ति था । उसने अनेक वैदिक यज्ञ कराये। 

आय और पारी (Aya and Pari) : ये दोनों सामन्त थे । संगम साहित्य में इनकी काफी प्रशंसा की गयी है। दोनों ने ब्राह्मण कवियों को संरक्षण दिया था। आगे चलकर ये दोनों प्रसिद्ध शासक बने। आय ने तमिल प्रदेश के अनेक भागों पर शासन किया। आय को साहित्य में आन्दिकन (वीर) कहा गया है। उसका राज्य सम्पन्न था तथा उसके यहाँ अनेक हाथी थे। उसने कोंगार नामक शासक को पराजित कर दिया था। 

पारी भी एक प्रसिद्ध वीर था । उसका राज्य पाण्डय देश में कोडुंगुनरम् अथवा परिनमलाई पहाड़ी के आस-पास पड़ता था। सम्भवतः उसके साम्राज्य में 300 गाँव थे। उसका राज्य सम्पन्न तथा उर्वर था। वह दान के लिए विख्यात था। आगे चलकर उसके राज्य पर चेर, चोल तथा पाण्डयों ने अधिकार कर लिया। पारी को धोखा देकर मारा गया। 

पेरूंजीरल (Perujjral) : यह आदन का पुत्र था और इसका पूरा नाम पेरूजीरल इरूक्घोड़इ था जिसने 190 ई० के लगभग शासन किया। यह आदिम इमान, जो सामन्तों की राजधानी थी, को जीतने में सफल रहा। वीर होने के साथ धार्मिक व्यक्ति था। उसने अपने शासन काल में कई यज्ञ किये। उसके राजदरबार में विद्वान भी संरक्षण पाते थे। इनके पुत्र भी योग्य थे। उसके एक पुत्र ने दक्षिण में गन्ने की खेती करने की परम्परा शुरू की। 

कुटुक्को : इस दशक से अन्तिम चेर शासक के विषय में जानकारी मिलती है। यह पेरूजीरल का भतीजा था। इसने चोल, पाण्डय और विशी राजाओं से युद्ध किये। इनसे उसने पाँच पहाड़ी किले प्राप्त किये। कुडक्की ने मलईयान को पराजित किया तथा लूट का बहुत-सा समान प्राप्त किया। सम्भवतः वांजी उसकी राजधानी थी। 

उपर्युक्त शासकों के अलावा भी चेर शासकों का उल्लेख मिलता है। अन्त में पाण्डय राजाओं ने इनके राज्य पर अधिकार कर लिया।


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