प्रश्न- संगम साहित्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
संगम साहित्य (Sangam Literature) : तीसरी चौथी ई० में तमिल साहित्य का संकलन किया गया । इसी को संगम साहित्य के नाम से जाना जाता है। इस साहित्य का संकलन राजाओं के संरक्षण में कवियों द्वारा सभाओं में किया गया। इन सभाओं को संगम कहते थे। इसलिए इस सम्पूर्ण साहित्य को संगम साहित्य कहा गया । विद्वानों का अनुमान है किं कवियों को रचनाओं का संकलन करने में ईसा की तीन-चार शताब्दियाँ लगीं परन्तु अन्तिम संकलन छठी शताब्दी का प्रतीत होता है। पांड्य राजाओं के संरक्षण में तीन संगम हुए थे। इस काल में तामिल काव्य की रचना हुई और साहित्य के प्रायः सभी रूपों पर महान रचनायें लिखी गयीं। इनमें से अधिकांश रचनायें अतीत के गर्भ में समा गई हैं, फिर भी कुछ सुलभ हैं। साहित्य के साथ इस काल में कला और विज्ञान की भी उन्नति हुई। व्यापार के विकसित होने के कारण संगम साहित्य को बढ़ावा मिला।
संगमों का विवरण (Description of Sangamas) : कुल तीन संगम हुए थे जिनमें विभिन्न प्रकार के साहित्य की रचना की गयी ।
प्रथम संगम (Description of Sangamas) : प्रथम संगम प्राचीन मदुरा में स्थित था। प्राचीन मदुरा सागर के गर्त में समा गया है। अगस्त्य ऋषि इस संगम के सभापति थे। इसके अन्य सदस्य शिवर सुब्राह्मनीय और आदिशेष थे। इसके कुछ सदस्यों की संख्या 549 थी। इस संगम के 89 पाण्डय शासक संरक्षक थे। इनमें से सात कवि थे। इसमें 4499 लेखकों ने अपने लेख प्रस्तुत किए और स्वीकृति प्राप्त की ।
इस संगम की मुख्य रचनाएं अगस्त्यम्, परिपादल सुदुनाराय, मुदुकरुकु तथा कालरिअविराम आदि थीं। यह संगम 4400 वर्षों तक चलता रहा।
द्वितीय संगम (The Second Sangam ) : यह संगम वटटपूरम् में स्थित था। इनके सदस्यों की संख्या 49 थी। इस संगम में 3700 कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की और उन्हें स्वीकृति प्राप्त हुई।
तृतीय संगम (The Third Sangam ) : यह संगम आधुनिक मदुरा में स्थित था। इसकी भी सदस्यों की संख्या 49 थी, परन्तु 449 कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं, जिनको स्वीकृति दी गयी। इस संगम का संरक्षण 49 पाण्ड्य शासकों ने किया। यह संगम 850 वर्ष तक चलता रहा। इसके सभापति नकीराद थे तथा पांड्य शासक उग्र भी इसके सदस्य थे।
इस संगम की प्रमुख रचनाएँ नेदुलपोकाई, कुरुथोकाई । नयानाई, पदिमुपट्टु, परिपादल, कूथू, वारी आदि थीं। इनमें से अनेक रचनाएँ खो चुकी हैं।
संगम साहित्य का महत्त्व
(Importance of Sangam Literature).
संगम साहित्य कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है, जो निम्नलिखित हैं-
(1) ये दक्षिण भारत के प्राचीन ग्रंथ हैं, जो 500 ई० पू० से 500 ई० के मध्य लिखे गये।
(2) संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखे गये हैं और इनकी रचनाएँ साहित्यिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
(3) इस साहित्य में बहुत अधिक शब्द संस्कृत के शामिल किए गए हैं। इस प्रकार भाषाओं का सुन्दर समन्वय मिलता है।
(4) इस साहित्य में तत्कालीन समाज का सुन्दर चित्रण किया गया है।
(5) इनमें उत्तर तथा दक्षिण भारत की संस्कृतियों के सफल समन्वय का स्पष्ट चित्र प्राप्त होता है।
(6) यह साहित्य सुदूर दक्षिण के इतिहास का प्रमुख स्रोत माना गया है। इससे दक्षिण के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
(7) इसके दक्षिण भारत के विदेशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
(8) पांड्य राजाओं का विस्तृत इतिहास ज्ञात होता है।