वैदिक धर्म एवं दर्शन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व का वर्णन कीजिए ।

आर्य सभ्यता के विकास और उसमें वैदिक धर्म और दर्शन का विशेष महत्व है। वैदिक धर्म और दर्शन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे, बल्कि उन्होंने समाज, संस्कृति और नैतिकता के मूलभूत सिद्धांतों को भी स्थापित किया। यहाँ वैदिक धर्म और दर्शन के महत्व को इसके प्रमुख तत्वों का विस्तार से वर्णन किया गया है। वैदिक धर्म और दर्शन के प्रमुख तत्व 

1. वेद : वैदिक धर्म और दर्शन का आधार वेद थे। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद–इन चार वेदों में धर्म और दर्शन के मूल सिद्धांत वर्णित हैं। वेदों को दिव्य ज्ञान माना जाता था और इन्हें उच्चारित करने के लिए विशेष विधि और नियम बनाए गए थे। 

2. यज्ञ और हवन : यज्ञ और हवन वैदिक अनुष्ठानों के प्रमुख अंग थे। इनका उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना और विश्व कल्याण की कामना करना था। यज्ञ में अग्नि को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया, जो देवताओं तक संदेश पहुँचाने का माध्यम माना जाता था। 

3. देवता और प्राकृतिक शक्तियाँ : वैदिक धर्म में अनेक देवताओं की पूजा होती थी, जो प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे। इंद्र, अग्नि, वरुण और सोम जैसे देवता प्राकृतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करते थे और उनके माध्यम से मनुष्य और प्रकृति के बीच संबंध स्थापित होता था । 

4. आत्मा और ब्रह्म : वैदिक दर्शन में आत्मा (आत्मन) और ब्रह्म (सर्वोच्च सत्य) की अवधारणा महत्वपूर्ण थी। आत्मा को अनंत और अविनाशी माना गया और ब्रह्म को सर्वोच्च शक्ति के रूप में पहचाना गया। उपनिषदों में यह ज्ञान और अधिक विस्तारित हुआ और आत्मा-ब्रह्म की एकता (अद्वैत) का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया। 

5. कर्म और धर्म : कर्म सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति के कर्म उसके जीवन और पुनर्जन्म को निर्धारित करते हैं। धर्म (नैतिकता) का पालन और सत्कर्मों का महत्व वैदिक जीवन का अभिन्न हिस्सा था। यह सिद्धांत न केवल धार्मिक था बल्कि सामाजिक नैतिकता को भी स्थिर करता था। 

6. पुनर्जन्म और मोक्ष : पुनर्जन्म की अवधारणा और मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति वैदिक दर्शन के मुख्य लक्ष्य थे। मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान, ध्यान और धर्मपालन को आवश्यक माना गया। यह जीवन के अंतिम लक्ष्य के रूप में देखा गया, जिसमें आत्मा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। 

वैदिक धर्म का महत्व 

1. धार्मिक संरचना : वैदिक धर्म आर्य सभ्यता का आधार था। इसमें चार प्रमुख वेदों— ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद-की शिक्षाओं को प्राथमिकता दी गई। वेदों को ‘श्रुति’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘सुनना’, अर्थात ये दिव्य ज्ञान हैं जो ऋषियों द्वारा सुने गए थे। वेदों में मंत्रों, स्त्रोतों और यज्ञों का विस्तृत विवरण मिलता है। 

2. यज्ञ और अनुष्ठान : यज्ञ वैदिक धर्म का केन्द्रीय तत्व था। यज्ञों के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करना और उनकी कृपा प्राप्त करना प्रमुख उद्देश्य था । अग्नि को माध्यम बनाकर देवताओं को आहुति दी जाती थी । यज्ञों का उद्देश्य न केवल धार्मिक था बल्कि इससे सामाजिक और सामुदायिक एकता भी स्थापित होती थी। 

3. प्राकृतिक शक्तियों की पूजा : वैदिक धर्म में अनेक देवताओं की पूजा की जाती थी, जो प्राकृतिक शक्तियों के रूप में माने जाते थे। इंद्र (वर्षा और युद्ध के देवता), अग्नि (अग्नि देव), वरुण (जल के देवता) और मोम (पौधों के देवता) प्रमुख थे। इन देवताओं की पूजा के माध्यम से आर्य लोग प्राकृतिक शक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते थे और उनसे संरक्षण की कामना करते थे। 

वैदिक दर्शन का महत्व 

1. दार्शनिक दृष्टिकोण : वैदिक दर्शन ने जीवन, अस्तित्व और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयास किया। इसमें आत्मा (आत्मन) और ब्रह्म (सर्वोच्च सत्य) की अवधारणा मुख्य थी। उपनिषदों में इन दार्शनिक चिंताओं का विस्तार से वर्णन मिलता है। अद्वैतवाद, जो आत्मा और ब्रह्म को एक मानता है, इसका प्रमुख सिद्धांत था। 

2. कर्म सिद्धांत : कर्म सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति के कर्म उसके भविष्य और पुनर्जन्म को निर्धारित करते हैं। यह सिद्धान्त न केवल धार्मिक जीवन का हिस्सा था बल्कि नैतिकता और आचार-संहिता का भी आधार था। सत्कर्म और धर्म का पालन वैदिक जीवन का अभिन्न हिस्सा था, जिससे समाज में नैतिकता और न्याय की स्थापना होती थी। 

3. पुनर्जन्म और मोक्ष : पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार, आत्मा अनंत है और जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमती रहती है। इस चक्र से मुक्त होने को मोक्ष कहा जाता है, जो वैदिक दर्शन का अंतिम लक्ष्य था। मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान (विद्या), ध्यान (मेडिटेशन), और यज्ञ (अनुष्ठान) को महत्वपूर्ण माना गया। 


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