प्रश्न- वाद्ययंत्र तबला का वर्णन करें |
उत्तर- तबला भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अत्यंत लोकप्रिय, आकर्षक और महत्वपूर्ण तालवाद्य यंत्र है। यह उत्तर भारतीय संगीत परंपरा का प्रमुख वाद्य है जिसका प्रयोग शास्त्रीय गायन, वादन, नृत्य, भजन, लोकसंगीत और फिल्म संगीत तक में किया जाता है। तबला दो भागों से मिलकर बना होता है—दाएँ हाथ वाला छोटा ड्रम जिसे “तबला” कहा जाता है तथा बाएँ हाथ वाला बड़ा ड्रम जिसे “बयाँ” या “डग्गा” कहा जाता है। दोनों मिलकर इसकी सम्पूर्ण संरचना बनाते हैं।
तबला लकड़ी, धातु या मिट्टी के खोल से बनाया जाता है और ऊपर बकरी या भैंस की खाल चढ़ाई जाती है। उस खाल के केंद्र में काली गोल परत होती है जिसे “स्याही” कहते हैं। यह स्याही विशेष प्रकार के चावल के लेप, गोंद और लोहे के चूरे से मिलाकर बनाई जाती है। इसी स्याही के कारण तबले से विभिन्न प्रकार की स्पष्ट ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। तबला आकार में छोटा और बेलनाकार होता है, जबकि बयाँ आकार में बड़ा, गोल और धातु से बना होता है जिससे गहरी, गंभीर ध्वनि मिलती है।
तबले की ध्वनि–उत्पत्ति उसकी विशेष संरचना और उँगलियों की तकनीक पर आधारित होती है। वादक अपनी हथेली, उंगलियों, अंगूठे और कलाई की हल्की–भारी गतियों का प्रयोग करके अलग–अलग बोल निकालता है। “धा”, “धिन”, “टिन”, “ना”, “गे”, “के”, “धा”, “तत”, “किट” जैसे स्पष्ट और मधुर बोलों के द्वारा ताल का निर्माण होता है। वादन में उँगलियों की स्वच्छता, गति और वजन का संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। तबला केवल ताल देने वाला वाद्य नहीं है, बल्कि स्वयं एक स्वतंत्र वादन–शैली भी है जिसमें कायदे, रेला, परन, तिहाई और चक्करदार प्रस्तुतियाँ शामिल हैं।
तबला अनेक घरानों में विकसित हुआ है, जैसे—दिल्ली, लखनऊ, अजरड़ा, फर्रुखाबाद और पंजाब घराना। प्रत्येक घराने की अपनी विशिष्ट शैली, ध्वनि और बोलों की परंपरा होती है। इस विविधता के कारण तबला भारतीय संगीत में अत्यंत समृद्ध और बहुआयामी माना जाता है।
तबले का उपयोग अधिकांश संगीत विधाओं में किया जाता है। शास्त्रीय संगीत में यह विलंबित और द्रुत दोनों प्रकार की बंदिशों में ताल को स्थिरता और सौंदर्य प्रदान करता है। नृत्य में कथक जैसी शैलियों में यह गति, लय और भाव को मजबूत बनाता है। भजन, कीर्तन और लोक–संगीत में तबला मधुर, सरल और आकर्षक संगति प्रदान करता है।
आज के समय में तबला भारतीय संगीत का पहचान–चिह्न बन चुका है। इसकी ध्वनि में लय, ताल और भाव का अद्भुत सम्मिश्रण पाया जाता है। यह वाद्य केवल ताल देने का साधन नहीं, बल्कि एक कला है जो कठिन साधना, अभ्यास और समर्पण से विकसित होती है। तबला भारतीय संगीत की परंपरा और संस्कृति का एक अनमोल अंग है, जिसकी लोकप्रियता और महत्ता हर युग में बनी रही है और आगे भी बनी रहेगी।