प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों का वर्णन कीजिए | BA Notes Pdf

प्राचीन भारतीय इतिहास की सही और वैज्ञानिक समझ के लिए पुरातात्त्विक (Archaeological) स्रोत अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये स्रोत प्रत्यक्ष प्रमाण प्रदान करते हैं, क्योंकि इनमें प्राचीन काल की वस्तुएँ, मूर्तियाँ, भवन, सिक्के, अवशेष और लिखित अभिलेख शामिल होते हैं। साहित्यिक स्रोतों की तरह इनमें कल्पना का समावेश नहीं होता, इसलिए ये इतिहास लेखन के लिए अधिक विश्वसनीय माने जाते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किए गए उत्खनन और खोजों से प्राचीन भारत के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की विस्तृत जानकारी मिलती है। पुरातात्त्विक स्रोत मुख्यतः निम्न प्रकार के होते हैं—



उत्खनन पुरातात्त्विक स्रोतों का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। भूमि के नीचे दबे प्राचीन अवशेषों को वैज्ञानिक पद्धति से निकालकर उनका अध्ययन किया जाता है।
भारत में प्रमुख उत्खनन स्थल—

  • सिन्धु घाटी सभ्यता: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगन
  • महाजनपद काल: राजगीर, वैशाली, हस्तिनापुर
  • मौर्य एवं शुंग काल: पाटलिपुत्र, भरहुत, सांची
  • गुप्तकाल: मौखराई, उjjain आदि

उत्खनन से प्राप्त नगर-योजना, अनाज भंडार, मकान निर्माण शैली, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, तांबे-पत्थर के औज़ार, और मुहरें प्राचीन जीवन की विस्तृत झलक देती हैं।

प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले स्रोतों में सर्वाधिक महत्व के एवं प्रामाणिक स्रोत अभिलेख हैं क्योंकि अभिलेख समकालीन होते हैं । जिस राजा अथवा राज्य के विषय में अभिलेख पर लिखा होता है, अभिलेख की रचना भी उसी राजा के शासनकाल के समय की गयी होती है । अतः उस तथ्य के सत्य होने की सम्भावना अधिक होती है । अभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति पर विशेष रूप से प्रकाश पड़ता है। इसके अतिरिक्त राज्य की सीमाओं का निर्धारण, राजाओं के चरित्र एवं व्यक्तित्व के विषय में भी ये जानकारी उपलब्ध कराते हैं। अभिलेख तत्कालीन कला को भी प्रदर्शित करते हैं ।

अभिलेख विभिन्न रूपों में प्राप्त हुए हैं । उदाहरणार्थ, शिलाओं पर, स्तम्भों, धातु-पत्रों पर, प्रस्तर पट्टों पर, स्तूपों अथवा मन्दिरों की दीवारों, आदि पर । शिला पर लिखे अभिलेख को शिलालेख । इसी प्रकार अन्य को स्तम्भ लेख, ताम्र पत्र लेख, भोज पत्र लेख, मूर्ति – लेख आदि कहा जाता है । प्राचीन भारत पर प्रकाश डालने वाले अभिलेख मुख्यतया पाली, प्राकृत और संस्कृत में मिलते हैं । कुछ अभिलेख तमिल, मलयालम, कन्नड़ व तेलुगू भाषाओं में भी मिलते हैं । अधिकांश अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है जो बायीं से दायीं ओर को लिखी जाती थी । कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए भी प्राप्त हुए हैं । कुछ विदेशी अभिलेखों से भी प्राचीन भारत पर प्रकाश पड़ता है ।

प्राचीन भवनों, मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का भी भारतीय इतिहास में विशेष महत्व है । यद्यपि स्मारक राजनीतिक स्थिति पर तो विशेष प्रकाश नहीं डालते, किन्तु इनसे सांस्कृतिक क्षेत्र में अत्यधिक जानकारी प्राप्त होती है । मन्दिर, स्तूप व अन्य स्मारक तत्कालीन धर्म एवं आध्यात्मिक भावना के साथ-साथ कला की भी जानकारी देते हैं । मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में हुए उत्खननों से सम्भवतः विश्व की प्राचीनतम् सभ्यता ‘सिन्धु सभ्यता’ का पता चला । तक्षशिला में हुए उत्खननों से पता चला कि यह नगरी कम से कम तीन बार बनी व नष्ट हुई । पाटलिपुत्र में हुई खुदाई से मौर्यों के विषय में अनेक नवीन तथ्य प्रकाश में आये, आदि ।



प्राचीन भारत पर प्रकाश डालने वाले पुरातात्विक स्रोतों में मुद्राओं का विशिष्ट स्थान है । मुद्राएं तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक स्थिति एवं कला पर विशेष रूप से प्रकाश डालती हैं । मुद्राओं से निम्नलिखित जानकारी मिलती है :

  1. आर्थिक स्थिति पर प्रकाश मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । स्वर्ण, अथवा तांबे के सिक्के आर्थिक स्थिति के स्वयं ही मापदण्ड बन जाते हैं । प्रायः वैभवशाली राज्य में सोने के सिक्के ही ढलवाये जाते थे व आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर ही क्रमश: चांदी व तांबे अथवा मिश्रित धातु के सिक्कों का प्रचलन किया जाता था ।
  2. तिथिक्रम का निर्धारण – मुद्राओं पर अंकित तिथि में उन मुद्राओं को जारी करने वाले शासक की तिथि के विषय में पता चल जाता है ।
  3. धार्मिक स्थिति का ज्ञान – मुद्राओं पर उत्कीर्ण विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों से तत्कालीन धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।
  4. कला पर प्रकाश – मुद्राओं पर उत्कीर्ण विभिन्न चित्रों व संगीत वाद्यों से तत्कालीन कला एवं संगीत पर प्रकाश पड़ता है।
  5. शासकों की व्यक्तिगत रुचियों की जानकारी – मुद्राओं पर अंकित चित्रों से राजाओं की व्यक्तिगत रुचियों पर भी प्रकाश पड़ता है। समुद्रगुप्त की एक मुद्रा में उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है, जिससे समुद्रगुप्त की संगीत के प्रति रुचि प्रदर्शित होती है।



विभिन्न स्थानों पर किये गये उत्खननों से मिट्टी की बनी हुई अनेक मूर्तियां व बर्तन प्राप्त होते हैं । इन बर्तनों व मूर्तियों का भी अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि इनसे तत्कालीन लोककला, धर्म एवं सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है ।

पुरातात्त्विक स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास के वैज्ञानिक व प्रामाणिक प्रमाण हैं। उत्खनन, अभिलेख, सिक्के, मूर्तियाँ, भवन, स्तंभ और मंदिरों के आधार पर इतिहासकार उस समय की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक परिस्थितियों का वास्तविक मूल्यांकन कर सकते हैं। इसलिए प्राचीन इतिहास लेखन में पुरातत्त्व का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


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