प्रश्न : पर्यावरण संरक्षण पर भारतीय विचार की विवेचना करें | अथवा, पर्यावरण क्या है ? पर्यावरण संरक्षण पर प्राचीन भारतीय दृष्टिकोण को लिखिए |
उत्तर : भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को अत्यंत पवित्र और जीवन का आधार माना गया है। यहाँ पर्यावरण केवल प्रकृति का रूप नहीं, बल्कि ईश्वर की रचना का अभिन्न अंग समझा गया है। भारत के प्राचीन ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, पुराणों और धर्मग्रंथों में पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी अनेक शिक्षाएँ मिलती हैं, जो यह बताती हैं कि भारतीय जीवन-दर्शन में मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरा संबंध है।
ऋग्वेद में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश को ‘पंचमहाभूत’ कहा गया है। ये पाँच तत्व मिलकर सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण करते हैं। मनुष्य का शरीर भी इन्हीं तत्वों से बना है, इसलिए भारतीय विचार में प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव पाया जाता है। मनुष्य यदि इन तत्वों का दोहन करेगा तो उसका अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा। यही कारण है कि भारतीय परंपरा में जल, वायु, भूमि, वृक्ष, पशु-पक्षी और नदियों को देवता के रूप में पूजा गया है।
भारतीय ग्रंथों में कहा गया है — “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” अर्थात् पृथ्वी हमारी माता है और हम उसके पुत्र हैं। यह विचार दर्शाता है कि मनुष्य को अपनी माता के समान पृथ्वी की रक्षा करनी चाहिए। इसी प्रकार, ‘यजुर्वेद’ में कहा गया है कि “वृक्षों को काटो मत, वे जीवन का आधार हैं।” इससे स्पष्ट है कि भारत में पर्यावरण संरक्षण केवल एक कर्तव्य नहीं बल्कि धर्म माना गया है।
महात्मा गांधी ने भी प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की शिक्षा दी थी। उन्होंने कहा था कि “पृथ्वी हर व्यक्ति की जरूरत पूरी कर सकती है, लेकिन किसी एक व्यक्ति के लालच को नहीं।” यह विचार आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है, जब मानव अपने स्वार्थ के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रहा है।
भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहारों और परंपराओं के माध्यम से भी पर्यावरण की रक्षा का संदेश दिया गया है। जैसे — तुलसी, पीपल, बरगद जैसे पेड़ों की पूजा की जाती है, जिससे लोगों में वृक्षारोपण की भावना बनी रहे। नदियों की पूजा करने की परंपरा से जल संरक्षण का संदेश मिलता है।
आज के समय में जब प्रदूषण, वनों की कटाई और जल संकट जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं, तब भारतीय विचारधारा हमें यह सिखाती है कि पर्यावरण की रक्षा हमारे अस्तित्व की रक्षा है। हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए, तभी सच्चे अर्थों में विकास संभव है।
निष्कर्षतः, भारतीय विचार में पर्यावरण संरक्षण केवल वैज्ञानिक या आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी जुड़ा हुआ है। यह विचार हमें सिखाता है कि प्रकृति हमारी माँ है, उसकी रक्षा करना हमारा नैतिक और मानवीय दायित्व है। जब तक हम इस विचार को अपनाएँगे, तब तक पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित रहेगा।
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