प्रश्न- गुप्त वंश की जानकारी के विभिन्न स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
गुप्त वंश की जानकारी के विभिन्न स्त्रोत
(Different sources of Information of Gupta Dynasty)
साहित्यिक और पुरातात्त्विक, इन दोनों ही साक्ष्यों से गुप्त वंश के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
1. साहित्यिक साक्ष्य : साहित्यिक साक्ष्यों में पुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। पुराणों में विष्णु, वायु और ब्रह्माण्ड पुराणों से गुप्त इतिहास को जानने में सहायता मिलती है। इनसे गुप्तवंश के प्रारम्भिक इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है। विशाखदत्तकृत ‘देवीचन्द्रगुप्तम्’ नाटक से गुप्तवंशी नरेश रामगुप्त एवं चन्द्रगुप्त द्वितीय के विषय में सूचना मिलती है। अधिकांश विद्वानों द्वारा महाकवि कालिदास को गुप्तकालीन विभूति माना गया है। कालिदास की अनेकानेक रचनाओं से गुप्तकालीन समाज एवं संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है। शूद्रककृत ‘मृच्छकटिक’ एवं वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ से गुप्तकालीन शासन व्यवस्था एवं नगर जीवन के विषय में सामग्री प्राप्त होती है । विदेशी यात्रियों का विवरण भी गुप्त इतिहास की जानकारी में सहायक हुआ है। विदेशी यात्रियों में चीन यात्री फाह्यान का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। फाह्यान गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय (374-415 ई०) के शासन काल में भारत आया। उसने मध्यदेश की जनता का सम्यक् वर्णन किया है। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण से भी गुप्त इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
2. पुरातात्त्विक साक्ष्य : गुप्तवंश की जानकारी के पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अन्तर्गत अभिलेख, सिक्के और स्मारक सम्मिलित हैं, जिसका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है–
(i) अभिलेख : गुप्तकालीन अभिलेखों में समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भलेख का सर्वप्रथम स्थान है। यह एक प्रशस्ति है, जिससे समुद्रगुप्त के राज्याभिषेक, दिग्विजय और उसके व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि से प्राप्त गुहालेख से उसकी दिग्विजय की सूचना मिलती है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक अभिलेख एवं दानपात्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे गुप्त काल की अनेक महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी होती है। इन समस्त अभिलेखों में प्रयुक्त भाषा विशुद्ध संस्कृत है तथा इनकी तिथियाँ ‘गुप्त संवत्’ की हैं। इतिहास के साथ-ही-साथ साहित्य की दृष्टि से भी गुप्त अभिलेखों का अत्यधिक महत्त्व है। इनसे संस्कृत भाषा और साहित्य के विकसित होने का प्रमाण मिलता है। हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति एक चरित-काव्य ही है।
(ii) सिक्के : गुप्तवंशी राजाओं के स्वर्ण, रजत व ताब के बहुत-से सिक्के मिले हैं। गुप्तकाल के सिक्कों का सबसे बड़ा भण्डार राजस्थान प्रान्त के बयाना से मिला है। अनेक सिक्कों पर तिथियाँ भी उत्कीर्ण हैं जिनके आधार पर तत्सम्बन्धी शासकों का तिथि निर्धारण किया जा सकता है। कुछ सिक्कों से कुछ विशिष्ट घटनाओं की सूचना मिलती है, यथा एक प्रकार के स्वर्ण सिक्के के मुखभाग पर चन्द्रगुप्त एवं कुमारदेवी की आकृति तथा पृष्ठभाग पर ‘लिच्छवयः’ उत्कीर्ण हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि चन्द्रगुप्त ने लिच्छवि राजकन्या कुमारदेवी से विवाह किया था। समुद्रगुप्त के अश्वमेध प्रकार के सिक्कों से उसके अश्वमेध यज्ञ की सूचना तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय के व्याघ्र – हनन प्रकार के सिक्कों से उसकी पश्चिमी भारत (शक-प्रदेश) के विजय की सूचना प्राप्त होती है
(iii) स्मारक : गुप्तकाल से सम्बन्धित अनेक मन्दिर, स्तम्भ, मूर्तियाँ और चैत्य-गृह ( गुहा – मन्दिर) मिले हैं जिनसे तत्कालीन कला तथा स्थापत्य की उत्कृष्टता ज्ञात होती है। इनसे तत्कालीन सम्राटों एवं जनता के धार्मिक विश्वास को भली-भाँति समझने में सहायता मिलती है। मन्दिरों में भूमरा का शिव मन्दिर, तिगवाँ (जबलपुर) का विष्णु मन्दिर, देवगढ़ (झाँसी) का दशावतार मन्दिर, भितरगाँव (कानपुर) का मन्दिर तथा लाड़खान ( ऐहोल के पास) के मन्दिर मत्त्वपूर्ण हैं। ये सभी मन्दिर निर्माण शैली, आकार-प्रकार एवं सुदृढ़ता के लिए जाने जाते हैं तथा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।
मन्दिरों के अतिरिक्त, सारनाथ, मथुरा, सुल्तानगंज, करमदण्डा, खोह, देवगढ़ जैसे स्थानों से बुद्ध, शिव, विष्णु आदि देवताओं की मूर्तियाँ मिली हैं। इन मूर्तियों में गुप्त नरेशों की धार्मिक सहिष्णुता भी सूचित होती है। बाघ (जिला धार, म०प्र०) और अजन्ता की कुछ गुफाओं (16वीं और 17वीं) के चित्र भी गुप्तकाल के माने जाते हैं। बाघ की गुफाओं के चित्र लौकिक जीवन से सम्बद्ध हैं जबकि अजन्ता के चित्रों की विषय-वस्तु धार्मिक है। इन चित्रों से गुप्तकालीन समाज की वेश-भूषा, शृंगार-प्रसाधन और धार्मिक विश्वास को समझा जा सकता है। इनसे गुप्तयुगीन चित्रकला के विकसित होने का भी प्रमाण प्राप्त होता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि गुप्तवंश को जानने-समझने हेतु पर्याप्त साहित्यिक व पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं।