कानून (विधि) क्या है ? इसके विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए । 

राज्य की व्यवस्था मुख्यतः शान्ति व व्यवस्था की स्थापना के लिए की गयी है ताकि व्यक्ति शान्तिपूर्ण वातावरण में रहकर अपना विकास कर सकें। इसके लिए राज्य कुछ नियम बनाता है जिन्हें कानून कहते हैं। इन नियमों को भंग करने वालों को राज्य दण्ड देता है। ये नियम उन सामाजिक प्रथाओं, रीति-रिवाजों, धार्मिक परम्पराओं, सामाजिक न्याय आदि पर आधारित होते हैं जिनको समय के बीतते-बीतते लाभदायक पाया गया है। यदि कोई नियम पुराने पड़ जाते हैं या प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बुराइयाँ नजर आने लगती हैं तो राज्य अपनी ओर से नये नियम बनाता है। ये सब कानून कहलाते हैं। 

इस प्रकार कानून का तात्पर्य उन नियमों से है जो राज्य द्वारा सामाजिक हितं के लिए बनाये जाते हैं और जिनके उल्लंघनकर्ताओं को राज्य द्वारा दण्डित किया जाता है 

1. आस्टिन (Austin) के अनुसार, “कानून सम्प्रभु की आज्ञा है । 

2. ग्रीन (Green) के अनुसार, “कानून अधिकारों और कर्तव्यों की वह पद्धति है जिसे राज्य लागू करता है । ” 

3. डिग्विट (Duguit) के शब्दों में, “कानून मुख्यतः आचरण के उन नियमों के समूह को कहते हैं, जिनका पालन साधारण मनुष्य सामाजिक जीवन से प्राप्त सुविधाओं के संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए करते हैं । ” 

4. हॉलैण्ड (Holland) के अनुसार, “कानून मनुष्य के बाह्य आचरण का वह सामान्य नियम है जो प्रभुत्वसम्पन्न राजनीतिक सत्ता द्वारा लागू किया जाता है। 

5. सामण्ड (Salmond) के शब्दों में, “कानून नियमों का वह पुंज है जिनको न्याय के प्रशासन में राज्य द्वारा मान्यता दी जाती है और कानून लागू किया जाता है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कानून व्यक्ति के बाह्य आचरण के नियमों के निकाय को कहते हैं, जिन्हें वैधानिक मान्यता प्राप्त हो जिनका निर्माण परम्पराओं की अनुकूलता का ध्यान रखकर किया गया हो, जिनमें परिस्थितियों के अनुकूल विकसित होने की क्षमता हो तथा समाज कल्याणकारी हो । 

कानून का वर्गीकरण / प्रकार 

(Classification of Laws) 

1. राष्ट्रीय कानून (National or Municipal Law) : यह वह कानून है जो राज्य की सीमा के अन्तर्गत व्यक्तियों, समुदायों तथा संगठनों के आचरण का नियमन करने के लिए होता है। ये कानून एक राज्य की सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकते। 

2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Law) : विश्व के राष्ट्रों के आपसी संबंधों को नियमित करने वाले कानून को अन्तर्राष्ट्रीय कानून कहते हैं। ओपेनहीम के शब्दों में, “अन्तर्राष्ट्रीय कानून उन निर्मित व परम्परागत नियमों का संग्रह है, जिनसे सभ्य राज्य अपने पारस्परिक संबंधों में कानूनी तौर से बाध्य समझते हैं। ‘ 

3. संवैधानिक कानून (Constitutional Law) : किसी देश के राजनीतिक संविधान में दिये और सरकार के विभिन्न अंगों के संबंधों का नियमन करने वाले कानूनों को संवैधानिक कानून कहा जाता है। संवैधानिक कानून इतिहास की उपज़, रीतियों और न्यायाधीशों द्वारा दिये गये निर्णयों का समूह मात्र भी हो सकते हैं। 

4. साधारण कानून (Ordinary Law) : नागरिकों, समुदायों तथा संगठनों के पारस्परिक संबंधों का नियमन करने वाले कानून को साधारण नियम कहते हैं। संवैधानिक कानून संवैधानिक सभा (Constituent Assembly) द्वारा पारित किया जाता है । साधारण कानून संसद द्वारा पारित किया जाता है। 

5. सार्वजनिक कानून (Public Law) : राज्य और व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों और नागरिकों के सार्वजनिक क्रियाकलापों का नियमन करने वाले कानून इस श्रेणी में आते हैं। चोरी, डकैती, हत्या आदि से संबंधित कानून इस श्रेणी में रखे जाते हैं। 

6. व्यक्तिगत कानून (Private Law) : व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों का नियमन करने वाले कानून इस श्रेणी में आते हैं। इन कानूनों का संबंध नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन से होता है। सम्पत्ति का क्रय तथा विक्रय, ऋण संबंधी कानून, विवाह तथा तलाक संबंधी कानून आदि इस कोटि में आते हैं। 

7. प्रशासकीय कानून (Administrative Law) : यह कानून यूरोप के कुछ देशों, मुख्यत: फ्रांस में पाया जाता है। सरकारी कर्मचारी सरकारी हैसियत से जो अपराध करते हैं उनका निर्णय साधारण न्यायालयों द्वारा न किया जाकर प्रशासकीय न्यायालयों (Administrative Courts) द्वारा किया जाता है। इन न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने वाले कानूनों को प्रशासकीय कानून (Administrative Law) कहते हैं। 

8. सामान्य कानून (General Law) : ये कानून सार्वजनिक कानूनों (Public Laws) के अन्तर्गत आते हैं। इनके भेद अग्रांकित प्रकार हैं- 

(क) संविधि (Statutes) : संसद या व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित या पारित कानून इस कोटि में आते हैं। 

(ख) अध्यादेश (Ordinance): व्यवस्थापिका के अधिवेशन न होने की अवधि में मुख्य कार्यपालिका अध्यक्ष (Chief Executive) द्वारा जारी किये गये आदेश इस श्रेणी में आते हैं। भारत में राष्ट्रपति व राज्यपाल अध्यादेश जारी करते हैं। 

(ग) वाद कानून (Case Law) : देश में बहुत से अवसरों पर ऐसी स्थिति आती है जबकि न्यायाधीशों को लागू करने के लिए कोई स्पष्ट कानून नजर नहीं आता। ऐसी स्थिति में वे अपने विवेकानुसार निर्णय देते हैं । वे निर्णय भविष्य में उसी प्रकार के मुकदमों के लिए दृष्टान्त या पूर्वोदाहरण (Precedents) बन जाते हैं और कानून का रूप धारण कर लेते हैं। इस ढंग से निर्मित कानून को बाद कानून (Case Law) या न्यायाधीश निर्मित कानून (Judge-Made Law) कहते हैं। 

(घ) सामान्य कानून या ‘कॉमन लॉ’ (Common Law) : ये कानून देश प्रचलित रीति-रिवाजों, परम्पराओं पर आधारित होते हैं। समय के बीतते इनको राज्य स्वीकार कर लेता है । इंग्लैण्ड का कॉमन लॉ इस प्रकार के कानूनों का सर्वोत्तम उदाहरण है। इन कानूनों को न्यायालयों द्वारा संविधियों के समान मान्यता दी जाती है। 

कानून के स्रोत 

(Sources of Law) 

समस्त कानूनों का निर्माण संवैधानिक दृष्टि से राज्य ही करता है। लेकिन कानून एक विकासपूर्ण इतिहास की उपज है। कानून का विकास प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनेक परिस्थितियों में से हुआ है और उसे अपने विकास में अनेक साधनों का योग प्राप्त हुआ। इन्हीं साधनों को कानून के स्रोत कहा जाता है। 

कानून के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं- 

1. रीति-रिवाज तथा परम्पराएँ (Customs and Traditions ) : रीति-रिवाज और परम्पराएँ कानून का सबसे पुराना स्रोत है। आरम्भ में जब राज्य निर्मित कानून नहीं थे, तब रीति-रिवाजों और परम्पराओं के आधार पर आपस के संबंध नियमित होते थे। इनके पीछे समाज का नैतिक बल होता था। कालान्तर में इन प्रथाओं और रीति-रिवाजों को मान्यता देकर कानून का रूप प्रदान किया गया। इस प्रकार भारत में ‘मनुस्मृति’, इंग्लैण्ड में ‘कॉमन लॉ’, रोम में ‘ट्वेल्स टेबुल्स’ इस स्रोत के उत्तम उदाहरण हैं। 

2. धर्म (Religion) : मनुष्य के जीवन को धर्म ने जितना प्रभावित तथा नियमित किया है उतना अन्य किसी चीज ने नहीं। प्राचीनकाल से ही मानव ईश्वर में विश्वास करता आया है और किसी न किसी धर्म में विश्वास रखता है जिसके नियमों का पालन उसने किया है। प्राचीन समाज में तो धर्म और कानून बहुत घुले-मिले थे। जैसा कि वुडरो विल्सन ने लिखा है, “रोम का प्रारम्भिक कानून शास्त्रगत धार्मिक नियमों के एक संग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं था।” अनेक देशों में धार्मिक नियमों को कानून के रूप में मान लिया गया है, जैसे- भारत का हिन्दू लॉ जो कि मनुस्मृति धर्मशास्त्र पर आधारित है, मुस्लिम लॉ जो कि हदीस और शरीअत पर आधारित है। इस प्रकार स्पष्ट है कि धर्म भी कानून का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 

3. विधानमण्डल (Legislature) : आधुनिक काल में कानून का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत देशों की अपनी-अपनी व्यवस्थापिकाएँ या विधानमण्डल हैं। प्रजातंत्रीय देशों में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि विधानमण्डल का निर्माण कर जनता के लिए लोकहित को दृष्टि में रखकर नये कानूनों का निर्माण करते रहते हैं तथा पुराने कानूनों में संशोधन करते रहते हैं। विल्सन के अनुसार, “कानून बनाने के सब स्रोत धीरे-धीरे एक महान्, गहरे तथा विस्तृत स्रोत – विधानमण्डल में विलीन होते जा रहे हैं । ” 

4. न्यायालयों के निर्णय ( Decisions of the Courts) : न्यायालयों के निर्णयों ने भी कानून के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। बहुधा बहुत से ऐसे वाद (Cases) आते हैं जिन पर कानून अस्पष्ट अथवा मौन होता है। ऐसी स्थिति में न्यायाधीश अपने विवेकानुसार निर्णय दे देते हैं। ये निर्णय भविष्य में उसी प्रकार के वादों में नजीर या पूर्वादाहरण (Procedents) बन जाते हैं। प्रारम्भ में इस प्रकार के निर्णयों का रूप मौखिक एवं अलिखित होता था और परम्परा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होते रहते थे। बाद में उन्हीं निर्णयों को लिपिबद्ध कर लिया गया और वे निर्णय कानून का अंग बन गये। अमेरिका में निहित शक्तियों के सिद्धांत (Doctrine of Implied Powers) ने इस स्रोत से कानून के विकास में बहुत योगदान दिया है। इसी कारण अमेरिका के सर्वो न्यायालय को विधानमण्डल का तृतीय सदन कहा गया है। 

5. वैधानिक टीकाएँ (Legal Commentaries): प्रसिद्ध विधि विशारद तथा न्यायशास समय-समय पर कानून की वैधानिक टीकाएँ करते हैं। वे स्वयं विधि का निर्माण नहीं करते, मिक जब ये टीकाएँ न्यायालयों द्वारा स्वीकार कर ली जाती हैं तब ये कानून का रूप धारण कर लेती हैं। भारत में मनु, यूनान में सोलन (Solon), इंग्लैण्ड में कोक, ब्लैकस्टोन तथा लिटिलटन (Littleton ), अमेरिका में केण्ट तथा हॉलैण्ड में हागो मोशस (Hugo Gortius) ऐसे ही टीकाकारों के उदाहरण हैं जिन्होंने कानून के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । भारतवर्ष में हिन्दुओं के उत्तराधिकार संबंधी कानून मिताक्षरा एवं दायभाग से प्रभावित हैं। 

6. न्याय भावना अथवा औचित्य (Equity) : अंग्रेजी के ‘Equity’ शब्द का अर्ध है—समानता। अतः न्याय के मामले में निष्पक्षता, समानता और अन्त:करण की आवाज कानून के विकास में सहायता करती है। कभी-कभी परिस्थितियों के बदल जाने से पुराना कानून असंगत हो जाता है। उसकी जगह औचित्य या न्याय भावना और अन्तःकरण जिसको ठीक कहे उसका अनुसरण किया जाता है और निर्णय दिया जाता है। ये निर्णय धीरे-धीरे करके नजीर बन जाते हैं और कानून का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार नयी विधियों की रचना होती है और पुरानी विधियों को संशोधित किया जाता है। 


About The Author

Spread the love

Leave a Comment

error: Content is protected !!