आर्य कौन थे? इनके मूल निवास के बारे में कौन-कौन से सर्वाधिक विश्वसनीय सिद्धान्त हैं और क्यों ? स्पष्ट करें।

सिंधुघाटी की सभ्यता के पतन के पश्चात भारत के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का उदय हुआ । इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण आर्यों की सभ्यता है। इस सभ्यता की जानकारी मुख्यतया वैदिक साहित्य से ही होती है; पुरातात्त्विक स्रोत नहीं के बराबर हैं। 

आर्य कौन थे (Who Were the Aryans) : वैदिक सभ्यता या आर्यों की सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने के पहले मूल प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि आर्य कौन थे ? साधारणतः ‘आर्य’ शब्द से एक जातिविशेष को समझा जाता है। आरंभिक भारतीय विद्वानों ने इस शब्द का यही अर्थ लगाया। आर्यों को ही भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का संस्थापक माना गया। यह विचार अंततोगत्वा भ्रामक सिद्ध हुआ। वस्तुतः, ऐतिहासिक दृष्टि से किसी भी जाति (race) विशेष के साथ आर्यों को जोड़ना कठिन प्रतीत होता है। ‘आर्य’ शब्द संस्कृत- भाषा का है, जिसका अर्थ उत्तम या श्रेष्ठ या उच्च कुल में उत्पन्न माना जाता है। अतः, यह कहना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है कि ‘आर्य’ शब्द जातीयता को इंगित न कर भाषायी समूह को इंगित करता है। 2000 ई० र्पू० के आसपास अनेक जनसमुदाय ऐसे थे, जो संस्कृत, लैटिन, ग्रीक, श्लाव इत्यादि भाषाएँ बोलते थे। ये सभी भाषाएँ एक-दूसरे से संबद्ध थीं। इन्हें भारोपीय भाषा (Indo-European language) कहा जाता है। इन भाषाओं को बोलनेवाले सभी व्यक्तियों को ‘आर्य’ कहा गया। आरंभ में ये सभी व्यक्ति एक ही जगह रहते थे, परंतु बाद में एशिया और यूरोप के विभिन्न भागों में जाकर वे बस गए और उन्होंने विभिन्न सभ्यताओं को विकसित किया । इन्हीं की एक शाखा भारत भी आई, जो संस्कृत भाषा बोलती थी। अतः, यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्य शब्द किसी जातिविशेष का सूचक नहीं, बल्कि भाषायी वर्ग का सूचक है। 

आर्यों का मूल निवास 

(The Original Homeland of the Aryans) 

आर्यों से संबद्ध दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या है उनका मूल निवासस्थान निश्चित करना। अनेक विद्वान भारत को ही आर्यों का आदि निवासस्थान मानते हैं; परंतु कुछ विद्वाबों की ऐसी धारणा है कि आर्य विदेशी थे, अर्थात् बाहर से आकर वे भारत में बसे । भाषाविज्ञान, इतिहास, पुरातत्त्व, शरीर रचनाशास्त्र और शब्दार्थ-विकास- शास्त्र के आधार पर आर्यों के मूल देश से संबद्ध अनेक मत प्रतिपादित किए गए हैं। 

(1) भारतीय सिद्धान्त (Indus Origin Theory) : बहुत से भारतीय इतिहासकार जिनमें डॉ॰ अविनाशचन्द्र दास अधिक प्रसिद्ध हैं। ऋग्वेद के भौगोलिक अध्ययन के आधार पर सप्त सिन्धु (पंजाब और उत्तरी सीमा प्रान्त) को आर्यों का मूल निवास स्थान बताते हैं । उनका विचार है कि आर्य कोई बाहर से आने वाले आक्रमणकारी नहीं थे, बल्कि वे भारत में ही रहने वाले थे। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद तथा अन्य प्राचीन पुस्तकों में बहुत से पशुओं और पौधों आदि के जो नाम दिए गए हैं, वे उन दिनों पंजाब में ही पाये जाते थे। 

परन्तु कुछ इतिहासकार सप्त सिन्धु के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते। उनका कहना है कि एक तो पंजाब कोई मध्यवर्ती प्रदेश नहीं था, दूसरे आर्यों ने ओक जैसे वृक्षों तथा हाथी जैसे पशुओं का वर्णन किया है। वे पंजाब आदि में नहीं होते थे। तीसरे, उन्हें अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में जाने की क्या आवश्यकता थी ? 

(2) आकर्टिक क्षेत्रीय सिद्धान्त (Arctic Region Theory) : महात्मा तिलक ने ऋग्वेद के कुछ प्राकृतिक दृश्यों जैसे छः मास के दिन-रात इत्यादि के वर्णन के आधार पर यह धारणा बनाई कि आर्य उत्तरी ध्रुव में ठंड के कारण छोटे-छोटे झुंडों में धीरे-धीरे दक्षिण की ओर आने लगे और भारत में आकर बसने लंगे। महात्मा तिलक ने बहुत सी प्राचीन पुस्तकें जैसे ऋग्वेद तथा अवस्था आदि का अच्छी प्रकार से अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला है कि इस पुस्तक में जिन प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया गया हैं वे सब उन दिनों उत्तरी ध्रुव के पास वाले भागों में थी। पहले इस सिद्धांत को बिल्कुल गलत माना जाता था, क्योंकि हम यह कभी नहीं मान सकते कि हमारे पूर्व इतने ठंडे भाग में, जहाँ नौ मास बर्फ जमी रहती है, रह सकते थे, परन्तु प्रकृति का अध्ययन करने वालों ने यह सिद्ध कर दिया है कि सबसे पहले भूखण्ड एक आग का गोला था। धीरे-धीरे वह ठंडा होना आरम्भ हुआ। फिर जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई तो उस समय सबसे पहले ठंडा होने वाला ध्रुव प्रदेश था। 

(3) तिब्बत देशीय सिद्धान्त (Tibetan Theory) : आर्य समाज के जन्मदाता स्वामी दयानन्द ने आर्यों की प्राचीन पुस्तकों को अच्छी प्रकार से अध्ययन करके अपनी सुप्रसिद्धर पुस्तक “स्त्यार्थ प्रकाश” में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत देश था। धीरे-धीरे जब उनकी संख्या बढ़ती गयी तो वे इतने छोटे देश में अपना निर्वाह नहीं कर सके, इसलिए पास आने वाले देश भारत में आ बसे। उनके अनुसार आर्य किसी निकटतम देश से ही भारत में आये न कि कहीं दूर से । उन निकटतम देशों में सबसे पास वाला देश तिब्बत ही था जहाँ वे सभी वस्तुएँ पायी जाती थीं जिनका ऋग्वेद में वर्णन है। बाद में एफ० ई० पारजीटर ने अपनी पुस्तक ‘प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक परम्परायें’ में स्वामी जी के उपयुक्त विचार का समर्थन किया। परन्तु इतिहास की एक बड़ी संख्या इस सिद्धान्त को नहीं मानती क्योंकि उनके विचार में आर्यों के फैलाव को देखते हुए तिब्बत कोई मध्यवर्ती प्रदेश नहीं माना जा सकता। 

(4) आस्ट्रिया हंगरी सिद्धान्त (Aoustro Hungarian Theory) : भारत की समानता को आधार मानकर डॉ० पी गाइल्स और प्रो० मैक्डानेल ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि आर्यों का मूल निवास स्थान आस्ट्रिया या हंगरी के आस-पास के प्रदेश में रहा होगा। यह वही आर्य जाति थी जिसकी छोटी-छोटी शाखायें भिन्न-भिन्न देशों में फैल गई। डॉ० पी० गाइल्स के तर्कों को प्रो० मैक्डानेल ने उचित सिद्ध करने का प्रयास किया है। उनका कथन कि गाय, घोड़ा और लोहा जो आर्यों के लिए आवश्यक थे और जिनसे वे भली प्रकार परिचित थे, वे उन दिनों मध्य यूरोप में ही मिलती थीं। अतः इन विद्वानों के अनुसार आर्यों का आदि वंश हंगरी का प्रदेश था । जहाँ से लोग अपनी आवश्यकता और परिस्थिति से बाध्य होकर दूसरे देशों में चले गये। लेकिन प्रो० गाइल्स के इस सिद्धान्त को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता। 

(5) मध्य एशिया का सिद्धान्त (Central Asiatic Theory ) : यूरोप के भाषा वैज्ञानिकों और इनके अनुयायियों ने भाषा विज्ञान के आधार पर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि हिन्दू यूरोपीयन आर्यों का मूल निवास एक था और उन्होंने बाद में पूर्व और पश्चिम की ओर प्रस्थान किया। इस दिशा में सर्वप्रथम कलौरिटाइन का व्यापारी फिलिप्पो सासिटी (Felippo Sassetti ) था जिसने यह प्रतिपादित किया कि संस्कृत और यूरोप की प्रमुख भाषाओं में निश्चित रूप से कुछ सामंजस्य है, किन्तु बाद में सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) ने इस विषय पर प्रकाश डाला कि इस सम्बन्ध का कारण उनका निवास स्थान था। विभिन्न विद्वानों ने इस विषय पर अनुसंधान किये और अन्त में यह निष्कर्ष निकाला कि इन समस्त भाषाओं का स्त्रोत एक है जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक सापेक्ष भाषा विज्ञान का जन्म हुआ। इसमें यह सिद्ध किया गया कि एक समय ऐसा अवश्य था जब हिन्दू यूरोपियन या हिन्दू जर्मन भाषायें विद्यमान थी। कुछ ऐसे शब्दों की सूची निम्नलिखित है जो कई भाषाओं में मिलते-जुलते हैं- 

संस्कृत ईरानी यूनानी लेटिन अंग्रेजी 
पितृ पितर नेटर पेटर फादर 
मात मातर मटरमेटरमदर 
भातृ भ्रातर फ्रेटरफ्रेटरब्रदर 
रक्शाखहर इयोर सोरोर सिस्टर 
गौ गौस बोसबासकाउ 
सूकर हूं हुससुस सौ 

सर्वाधिक विश्वसनीय सिद्धांत 

(Most accepted theory) 

इन सब सिद्धान्तों में सबसे अधिक विश्वसनीय सिद्धान्त प्रो० मैक्समूलर का है। सर्वाधिक सत्य क्या है, यह दावा करना कठिन है, परन्तु प्रो० मैक्समूलर के सिद्धान्त पर विश्वास करने के कई कारण हैं : 

(1) सर्वप्रथम कारण यह है कि पश्चिमी और भारतीय इतिहासकारों की एक बड़ी संख्या प्रो० मैक्स मूलर के सिद्धान्त से सहमत हैं। डॉ० · त्रिपाठी लिखते हैं—‘“यह भावना अनुचित नहीं है कि यूरोप और भारत में रहने वाले लोगों के पूर्वज एक ही मूल स्थान के रहने वाले थे और धीरे-धीरे मध्य एशिया से अन्य देशों में फैल गये । ” 

(2) इस सिद्धान्त के मान्य होने का दूसरा कारण यह है कि एशिया माइनर के बीगज कोई भी शिलालेख मिलने से यह पता चलता है कि आर्यों के देवता इन्द्र और वरुण उस देश में भी आरम्भ में भी चले जाते थे। यह शिलालेख इस बात को सिद्ध करता है कि आर्य मध्य एशिया की ओर से भारत में आये 

(3) इस सिद्धान्त को मानने का तीसरा कारण यह है कि उन दिनों मध्य एशिया का एक बड़ा भाग उपजाऊ प्रदेश था और वहाँ प्रत्येक प्रकार की उपज और घास जो पशुओं के चरने के काम आती थी, काफी होती थी। बाद में संख्या बढ़ने या आपसी झगड़ों के कारण वे और देशों में फैल गये । 

(4) अन्तिम कारण यह है कि मध्य एशिया ही एक ऐसा देश है जो यूरोप और भारत से लगभग बराबर की दूरी पर है। इसलिए कुछ आर्य पूर्व की ओर से भारत की ओर आ गये होंगे और कुछ पश्चिमी यूरोप की ओर चले गये होंगे। उन दिनों यूरोप भारत के बीच में मध्य एशिया ही इतना उपजाऊ था जहाँ आर्य सुगमता से कृषि और पशुपालन कर सकते थे। इसलिए आर्य सम्भवतः मध्य एशिया में ही रहते थे और यही उनका मूल निवास स्थान था । 


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