प्रश्न- अशोक के धम्म की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
कलिंग विजय के पश्चात् अशोक का जीवन ही बदल गया। बौद्ध धर्म स्वीकार कर उसने भेरिघोष के स्थान पर धम्म-घोष और बिहार यात्रा के स्थान पर धम्म यात्रा के मार्गों को उत्तम समझा। अशोक के अभिलेखों का प्रधान विषय ‘धम्म’ प्रचार है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने ‘धम्म’ शब्द का प्रयोग बौद्ध धर्म के लिए नहीं किया है जो उसका व्यक्तिगत धर्म था। बौद्ध धर्म के लिए सधर्म (Good faith orthodox Buddhism) अथवा संघ (Buddhist church) शब्द का प्रयोग किया है। इसमें निर्वाण, चार आर्त्य सत्य (Four Noble truths) और अष्टांगिक मार्ग (Eight-fold path) का उल्लेख नहीं जो बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धान्त हैं। अतः उसका व्यक्तिगत धर्म उस धर्म से अलग था जिनका उसने अपने अभिलेखों के माध्यम से प्रचार किया। कल्हण के अनुसार अशोक शिव का उपासक था। कलिंग युद्ध के बाद वह बौद्ध धर्मका अनुयायी हो गया। शुरू से ढ़ाई वर्षों तक तो वह उपासक रहा, किन्तु बाद में बौद्ध संघ के अधिक निकट आ गया। उसने बिहार यात्रा का स्थान धम्म यात्रा को दे दिया। बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित पवित्र स्थान सम्बोधि, लुम्बिनी आदि की यात्रा अशोक ने स्वयं की। इसके अतिरिक्त, निगलीवा सागर आदि पवित्र स्थानों का नवीकरण भी उसने किया। भबरू शिलालेख में अशोक ने बुद्ध, धर्म और संघ में अपना विश्वास प्रकट कर बुद्ध को भगवान तथा बौद्ध-धर्म को सद्धर्म कहा है। भिक्षु भिक्षुणियों तथा उपासकों-उपासिकाओं को सुनने एवं मनन करने के लिए प्रसिद्ध सात बौद्ध ग्रन्थों का नाम भी इसमें दिया गया है। बौद्ध धर्म और संघ में फैली हुई आपसी फूट को दूर करने के लिए अशोक सदा बेचैन रहता था। अभिलेखों में अशोक अपने बौद्ध धर्म के प्रतिरक्षक के रूप में दिखलाता है। इसमें फूट डालने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था भी थी। उसने बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही पाटलिपुत्र में बौद्ध संगीति का आयोजन किया ताकि धार्मिक पुस्तकों की प्रमाणित प्रतियाँ तैयार की जा सकें। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उसने 84000 स्तूप बनवाये तथा अनेक देशों में बौद्ध स्थावर भेजे। बौद्ध होते हुए भी अशोक ने दूसरे सम्प्रदायों के प्रति धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया। उसने अपना व्यक्तिगत धर्म किसी के सिर पर कभी नहीं थोपा । आजीवकों के रहने के लिए उसने गुफाएँ बनवाई। ब्राह्मणों, बौद्धों, जैनों और आजीवकों के प्रति उसने समान व्यवहार का परिचय दिया । अशोक का धम्म व्यक्ति और परिवार की पवित्रता से शुरू होता है। धर्मोन्नति के लिए वह नैतिक आदर्शों के पालन का आदेश देता है। परिवार एवं घरेलू जीवन के पश्चात् पूरे समुदाय की धर्मोन्नति होनी चाहिये।
अशोक का धर्म : अशोक का धर्म क्या है ? इसकी जानकारी दिव्यावदान, महावंश, अशोकावदान आदि ग्रंथों एवं उसके लेखों से मिलती है। अशोक ने स्वतः धम्म (धर्म) की व्याख्या की है। उसके अनुसार, “पापहीनता, बहुकल्याण, दया, दान, सत्यता और शुद्धि ही धर्म है । ” फ्लीट के अनुसार, “अशोक का धर्म राजधर्म के रूप में मानव धर्म था । ” भंडारकर की दृष्टि में अशोक का धर्म सभी धर्मों की सार्वजनिक संपत्ति थी। डॉ. त्रिपाठी ने उसके धर्म को सुखी और स्वच्छ जीवन के निर्माण हेतु एक आधार -पद्धति माना है।
इस क्रम में विद्वानों में अनेक विचारधाराएँ हैं, फिर भी इतना मान्य है कि अशोक का धर्म बौद्धधर्म नहीं था, अपितु स्मिथ के अनुसार अशोक का धर्म सभी धर्मों का सार है। वह केवल बौद्धधर्म का उपासक न होकर सभी धर्मों के पुजारी था। उसके अभिलेखों में बौद्धधर्म के चार आर्यसत्यों, अष्टांगिक मार्गों का न तो उल्लेख है और निर्वाण की व्याख्या की गई है। अशोक ने धर्म को व्यक्तिगत धर्म न मानते हुए इसे सम्पूर्ण मानव का धर्म माना। राजनीति के घेरे से दूर इसने हर धर्म के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।
अपने बारहवें शिलालेख में अशोक ने स्पष्ट कहा है- धर्म राष्ट्रीय संपत्ति है। इसके माध्यम से लोगों में चित्तशुद्धि, संयम, कृतज्ञता तथा दृढ़ भक्ति की भावना आती है तथा राष्ट्रीयता की भावना को जाग्रत करने की प्रेरणा मिलती है। वस्तुतः, अशोक धर्मसहिष्णु था और धर्म से मानवतां का कल्याण चाहता था। उसने जिन धार्मिक सिद्धांतों का उल्लेख अपने अभिलेखों में किया है वे मानव धर्म के सार्वभौम सिद्धांत हैं। अशोक ने आचारणशुद्धता, अहिंसा, दया, दान, सत्य, संयम, माधुर्य आदि पर जोर दिया तथा क्रोध, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष आदि दुर्गुणों से दूर रहने की शिक्षा दी। अशोक के धर्म में गृहस्थों एवं भिक्षुओं के लिए अलंग-अलग व्यवस्थाएँ थीं। अशोक के धर्म की मुख्य बातें थीं :-
(i) माता-पिता, गुरुजनों तथा वृद्धों की सेवा करना
(ii) सत्य बोलना
(iii) सभी प्राणियों पर दया करना,
(iv) दान, दया, सत्य, संयम, कृतज्ञता, दृढ़ भक्ति, माधुर्य आदि का आचरण
(v) अल्पव्यय और अल्पसंग्रह करना
(vi) सेवकों और श्रमिकों के साथ सद्व्यवहार करना आदि।
इस प्रकार, अशोक का धर्म सिद्धांत नहीं, अपितु एक व्यवहारपरक तथ्य है। अर्थात् धर्म का अस्तित्व मानव के लिए है। अशोक ने धर्म को सत्कर्मों से संबद्ध किया है।
अशोक के धर्म (धम्म) का स्वरूप एवं विशेषता
(Nature of Ashoka’s Dhamma) :
विवादास्पद प्रश्न : अशोक के धर्म का वास्तविक स्वरूप क्या था, एक विवादास्पद प्रश्न है। यह बौद्ध धर्म से सम्बद्ध नहीं था, क्योंकि इसमें चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और निर्वाण का उल्लेख नहीं है जो बौद्ध धर्म के विशेष सिद्धान्त हैं। कुछ मतों को हम निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं:-
(i) राजधर्म : फ्लीट ने अशोक के धर्म को राजधर्म बताया है जिसमें राजनीतिक एवं नैतिक सिद्धान्तों का ही समावेश हुआ।
(ii) सामान्य नैतिक आदेश : स्मिथ के विचार से अशोक के धम्म को किसी सम्प्रदाय – विशेष से सम्बद्ध नहीं किया जा सकता, ये सिद्धान्त तो प्रत्येक भारतीय धर्म में सामान्य है।
(iii) व्यावहारिक बौद्ध धर्म : भण्डारकर के अनुसार अशोक का धम्म व्यावहारिक बौद्ध धर्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। बौद्ध सूत्रों के मूल रूप में बौद्ध धर्म के दो पहलुओं का उल्लेख है- भिक्षुओं के लिए और गृहस्थों के लिए अशोक का धम्म गृहणी धर्म है। इसलिए उसके सम्म में हम कोई विशेषता का उल्लेख नहीं पाते हैं।
(iv) धम्म का अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप : नीलकण्ड शास्त्री ने ठीक ही कहा है कि अशोक का धम्म सामाजिक नीतिशास्त्र की एक व्यावहारिक संहिता था। धर्म अथवा दर्शन से उसका कोई मतलब नहीं था। इसमें भौतिक आदर्शों की प्रधानता थी। अतः इसे हम तमाम धर्मो का सार कह सकते हैं।
धम्म-प्रचार के उपाय (Measures for Propogation Dharma) : सर्वसाधारण तक अपने धम्म का सन्देश पहुँचाने के लिए अशोक ने निम्नलिखित साधनों की अपनाया।
(i) धम्म यात्रा : आठवें शिलालेख के अनुसार अशोक ने आमोद-प्रमोद की यात्राएं बिहार- यात्रा छोड़ दिया और उसके स्थान पर धर्म-यात्राएँ आरम्भ किया। इन धर्म यात्राओं के दौरान उसने स्वयं बौद्ध धर्म के पवित्र स्थानों का तीर्थ और सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया। अशोक ने ब्राह्मणों, श्रमणों, वृद्धों आदि को उपहार दिए। उसने अपने शुभ-संन्देश का प्रार विभिन्न सम्प्रदायों के बीच कर धार्मिक वाद-विवाद का भी आयोजन किया।
(ii) अधिकारियों को जनकल्याण करने का आदेश : अशोक ने शीघ्र ही समझ लिया कि केवल उसके व्यक्तिगत प्रयत्नों से ही धर्म-प्रसार के कार्य का पूरा होना असम्भव है। अतः उसने अपने राज्य के प्रमुख अधिकारियों को आदेश दिया कि वे धर्म के प्रचार के लिए अपने-अपने क्षेत्रों का भ्रमण करें। ये अधिकारी थे-युक्त, राज्जुक और प्रादेशिक।
(iii) धम्म महामात्रों की नियुक्ति : सर्वसाधारण में धम्म प्रचार एवं उनके आध्यात्मिक कल्याण के लिए अशोक ने धम्म महामात्रों को नियुक्त किया। अम्भ-प्रचार और प्रजा हित का ध्यान रखने के अतिरिक्त सार वृद्धि का प्रयत्न करना और दान विभाग का प्रयत्न करना भी उनके कार्यों के अन्तर्गत आते थे।
दिव्य रूपों का प्रदर्शन : धम्म के प्रति जनता का अनुराग बढ़ाने के लिए अशोक ने सामाजिक अवसरों पर विमान दर्शन, हस्तिदर्शन, अग्निस्कंध और अन्य दिव्य रूप दिखलाने का प्रबन्ध किया।
धम्म लिपि खुदवाकर धम्म स्तम्भ खड़ा करना : श्रम्म प्रचार के लिए अशोक ने शिलाओं और स्तम्भों पर धम्म सिद्धान्त खुदवाए ताकि लोग उन्हें पढ़ सके और सुन सकें। विदेशों में धम्मदूतों का भेजना : अशोक ने अपने धम्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए विदेशों में दूत भेजे। ये दूत पश्चिमी एशिया के यूनानी राज्यों में भी गए। स्वर्णभूमि, लंका, वर्मा आदि देशों में भी दूत भेजे गए।
लोकहित के कार्य : लोकहित के कार्य अशोक के धम्म प्रचार की नीति का एक महत्वपूर्ण अंग था। विश्व के सारे प्राणियों मनुष्यों एवं पशुओं के हित के लिए उसने परोपकारी काम किये।
मनुष्य के हित का कार्य : मनुष्य के लिए हित के लिए उसने विभिन्न कार्य किए। यद्यपि मृत्युदण्ड को वह समाप्त नहीं कर सका, किन्तु उन्हें तीन दिन की छूट दी गई। राज्याभिषेक की वर्षगांठ के अवसर पर उसने कैदियों को स्वतंत्र किया। अशोक ने आवागमन की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण करवाया। सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाया, कुँआ खुदवाया तथा विश्रामालय बनवाकर प्रजा के हित का कार्य किया । निकित्सालय खोलकर औषधियों का भी प्रबंध उसने किया। मानव-हित के कार्य केवल उसके राज्य में ही सीमित न थे बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी उसने भलाई के कार्य किये।
पशुओं की भलाई का कार्य : पशुओं की भलाई के लिए अशोक ने अहिंसा का प्रचार किया। पशुओं के इलाज के लिए भी अस्पताल खोले गए। पशु-वध बंद करने के लिए अशोक ने कानून बनाया। यहाँ तक कि धार्मिक कार्यों में पशु बलि को बंद करा दिया गया।