अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा
प्रस्तावना
अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जो मानव जीवन की आवश्यकताओं तथा उनकी पूर्ति के साधनों का अध्ययन करता है। मानव की इच्छाएँ असीमित हैं, परंतु उन्हें पूरा करने वाले साधन सीमित और दुर्लभ होते हैं। इस कारण साधनों का उचित एवं सर्वोत्तम उपयोग करना आवश्यक हो जाता है। यही अध्ययन अर्थशास्त्र का मुख्य विषय है।
प्राचीन काल में अर्थशास्त्र को केवल धन-संपत्ति के अध्ययन तक सीमित माना गया था, किंतु समय के साथ इसकी परिभाषा और क्षेत्र का विस्तार हुआ। अब अर्थशास्त्र केवल धन का अध्ययन नहीं करता, बल्कि यह देखता है कि मनुष्य किस प्रकार उत्पादन करता है, वस्तुओं और सेवाओं का वितरण कैसे होता है, तथा उन वस्तुओं का उपभोग किस तरह किया जाता है।
अर्थशास्त्र न केवल व्यक्ति और समाज की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने का मार्ग दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संरक्षण और उपयोग किस प्रकार किया जाए। इस प्रकार अर्थशास्त्र मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक तथा विकासात्मक पक्षों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
✍️ अर्थशास्त्र की प्रमुख परिभाषाएँ
अर्थशास्त्र की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रियों के विचारों में भिन्नता है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया है । अर्थशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं को निम्नांकित पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है—
- धन सम्बन्धी परिभाषाएँ ( एडम स्मिथ ),
- कल्याण सम्बन्धी परिभाषाएँ ( मार्शल ),
- दुर्लभता या सीमित साधन सम्बन्धी परिभाषा ( रॉबिन्स),
- आवश्यकता – विहीनता सम्बन्धी परिभाषा (जे. के. मेहता),
- आधुनिक या विकास – केन्द्रित परिभाषा (सैम्युलसन) ।
1. धन सम्बन्धी परिभाषाएँ ( Wealth related Definitions )
इस वर्ग की सभी परिभाषाएँ अर्थशास्त्र को “धन का विज्ञान” मानती हैं । इस वर्ग के अर्थशास्त्रियों का नेतृत्व एडम स्मिथ ने किया और उनके इस विचार का समर्थन वाकर, सीनियर, जे. एस. मिल आदि अर्थशास्त्रियों ने किया । एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक (1776) का शीर्षक ‘राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज’ (An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations) रखा जो स्वयं एक परिभाषा का निर्माण करता है । अतः स्मिथ के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह अध्ययन है जो राष्ट्रों के धन के स्वभाव एवं इसके कारणों की जाँच करता है ।“
स्मिथ की परिभाषा में निम्न विशेषताएँ निहित हैं-
- एक ऐसे आर्थिक मनुष्य की कल्पना की जो केवल ‘स्वहित’ से प्रेरित होकर आर्थिक क्रियाएँ करता रहता है । प्रत्येक क्रिया का उद्देश्य धनोपार्जन है।
- धन ही अर्थशास्त्र की विषय – सामग्री का केन्द्र बिन्दु है, मनुष्य का गौण स्थान है।
- व्यक्तिगत समृद्धि से ही राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति में वृद्धि सम्भव है।
- मानवीय सुखों का एकमात्र आधार धन है।
आलोचना (Criticism) – यह एक उचित परिभाषा नहीं है क्योंकि इस परिभाषा में मानव कल्याण के स्थान पर धन को अधिक महत्व दिया गया है । धन एक साधन है, साध्य नहीं ।
2. कल्याण सम्बन्धी परिभाषाएँ ( Welfare related Definitions)
धन- केन्द्रित परिभाषाओं के फलस्वरूप जब अर्थशास्त्र को ‘घृणित विज्ञान’ समझा जाने लगा था, अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के स्वरूप को नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना उचित समझा । मार्शल ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Economics’ में धनोपार्जन को अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु न मानकर ‘मानव कल्याण’ को सर्वोपरि माना । मार्शल के विचार में धन साध्य न होकर केवल साधन मात्र है । पीगू, कैनन, विवरेज आदि अर्थशास्त्रियों ने मार्शल के विचार का समर्थन किया।
- मार्शल की परिभाषा (Marshall’s Definition ) – अर्थशास्त्री मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए लिखा है, “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय में मनुष्य मात्र का अध्ययन करता है। वह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्य के उस अंश की परीक्षा करता है जो कल्याण के भैतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । “
- मार्शल की परिभाषा की विशेषताएँ (Features of Marshall’s Definition) –
- अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है— अर्थशास्त्र ऐसे ही मनुष्य का अध्ययन करता है जो समाज में रहता है । समाज में न रहने वाले मनुष्यों, जैसे— जंगलों या गुफाओं में एकान्त वास करने वाले मनुष्यों का अर्थशास्त्र विचार नहीं करता ।
- अर्थशास्त्र साधारण मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन है— अर्थशास्त्र में जिन मनुष्यों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, वे साधारण व्यक्ति होते हैं । पागल, शराबी, कंजूस आदि साधारण व्यक्ति की श्रेणी में नहीं आते । अत: इनकी क्रियाएँ अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री के बाहर हैं ।
- अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मानव के भौतिक कल्याण (Material Welfare) में वृद्धि के उपायों से है । मार्शल के अनुसार, “मानव के भौतिक कल्याण में वृद्धि साधनों की प्राप्ति एवं उपायों से होती है
आलोचना (Criticism ) — रॉबिन्स ने इस परिभाषा की कई कारणों से आलोचना की है. जैसे—
- अर्थशास्त्र में सभी प्रकार के आर्थिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है, चाहे उनसे कल्याण में वृद्धि हो अथवा न हो ।
- अर्थशास्त्र में सभी मनुष्यों के आर्थिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है, चाहे वे समाज में रहते हों अथवा समाज से बाहर एकान्त में रहते हों ।
- अर्थशास्त्र में सभी प्रकार के सीमित साधनों से सम्बन्धित आर्थिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है, चाहे वे भौतिक हों अथवा अभौतिक ।
3. दुर्लभता अथवा सीमित साधन सम्बन्धी परिभाषा (Scarcity related Definition)
लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स के सुविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. लिओनल रॉबिन्स (Lionel Robbins) ने अपनी पुस्तक ‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’ में अर्धशास्त्र को पूर्णतया नया दृष्टिकोण प्रदान किया । रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में बताया कि ” अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो लक्ष्यों और वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। ‘
- रॉबिन्स की परिभाषा की विशेषताएँ (Features of Robbins’ Definition ) –
- मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं (Ends are Unlimited) – मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं । एक आवश्यकता की सन्तुष्टि करते ही दूसरी आवश्यकता पैदा हो जाती है और यह क्रम कभी समाप्त नहीं होता ।
- साधन सीमित हैं ( Means are Scarce ) — आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करने वाले साधन सीमित होते हैं । मनुष्य के पास धन तथा समय की कमी होती है । परिणामतः मनुष्य अपनी सभी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं कर पाता ।
- साधनों के वैकल्पिक प्रयोग होते हैं (Alternative Use of Means) — व्यक्ति के साधन केवल सीमित ही नहीं होते अपितु उन साधनों के विभिन्न वैकल्पिक प्रयोग होते हैं, जैसे- भूमि पर खेती भी की जा सकती है और मकान का निर्माण भी कराया जा सकता है।
- आवश्यकताओं की तीव्रता में भी अन्तर होता है (Wants Vary in Intensity ) — मनुष्य की आवश्यकताएँ एक समान नहीं होतीं । कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र या आग्रहपूर्ण होती हैं और कुछ कम । साधन सीमित होने के कारण व्यक्ति अधिक तीव्रता वाली आवश्यकता की पूर्ति पहले करता है |
- आर्थिक समस्या (Economic Problem ) — आवश्यकताओं के अनन्त होने व साधनों के सीमित होने के कारण व्यक्ति के सामने हमेशा चुनाव या निर्णय की समस्या रहती है। यही समस्या आर्थिक समस्या (Economic Problem) है।
अत: मानव व्यवहार के रूप में चुनाव करने की क्रिया को रॉबिन्स ने ‘आर्थिक समस्या’ का नाम दिया है और यह अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या है।
आलोचना (Criticism ) —
- मनुष्य की समस्त क्रियाओं को अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु मानकर इसके क्षेत्र को अनावश्यक रूप से विस्तृत कर दिया है।
- यह परिभाषा अव्यावहारिक एवं जटिल है ।
- इस परिभाषा में मानव कल्याण तथा उसकी आर्थिक समस्या को सुलझने से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
4. आवश्यकता – विहीनता सम्बन्धी परिभाषा (Wantlessness based Definition)
प्रो. जे. के. मेहता ने अर्थशास्त्र की परिभाषा पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों से बिल्कुल भिन्न आधार पर दी । इनकी परिभाषा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मवाद के विचार पर आधारित है। प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा विचारकों ने आवश्यकताओं को न्यूनतम करने पर बल दिया है। इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होकर प्रो. मेहता अर्थशास्त्र की आवश्यकताओं को सन्तुष्टि के बजाय उनके अन्त करने से जोड़ते हैं |
प्रो. जे. के. मेहता की परिभाषा ( Definition of J. K. Mehata ) — “अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जिसमें मानव के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिससे आवश्यकता – विहीनता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।’ 1
विशेषताएँ (Features ) —
- आवश्यकता को कम करके अन्तत: उसे समाप्त करने पर जोर दिया गया है।
- इसमें नैतिक विचारों का समावेश किया गया है।
- अधिकतम सुख की प्राप्ति आवश्यकता – विहीनता की अवस्था में ही सम्भव है।
आलोचना (Criticism)-
- प्रो. मेहता का दृष्टिकोण अव्यावहारिक है क्योंकि सामान्य व्यक्ति जो समाज में रहता है, वह अधिक से अधिक आवश्यकता की पूर्ति करना चाहता है ।
- यदि मेहता की परिभाषा को स्वीकार कर लिया जाए तो अर्थशास्त्र का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा ।
5. आधुनिक या विकास – केन्द्रित परिभाषा (Growth centered Definition)
रॉबिन्स की परिभाषा बहुत समय तक सही मानी जाती रही परन्तु सन् 1932 के बाद से अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री में बहुत अधिक विकास हो चुका है । अतः अब यह स्वीकार किया जाता है कि रॉबिन्स की परिभाषा अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र को पूर्ण तथा सही रूप से प्रकट नहीं करती। रॉबिन्स की परिभाषा में न तो राष्ट्रीय आय व रोजगार के स्तर के निर्धारण का और न ही आर्थिक विकास के सिद्धान्त का समावेश है, इसलिए रॉबिन्स की परिभाषा अपर्याप्त हो गई है और अब एक ऐसी परिभाषा की आवश्यकता है जो सीमित साधनों का वितरण व आर्थिक विकास दोनों बातों को शामिल कर सके। ऐसी परिभाषा को ‘विकास-केन्द्रित परिभाषा’ कहा जा सकता है। नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सैम्युलसन के अनुसार, “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन है कि व्यक्ति और समाज मुद्रा की सहायता से अथवा मुद्रा की सहायता के बिना, किसी प्रकार अनेक प्रयोग में आ सकने वाले उत्पादन के सीमित संसाधनों का चुनाव, एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में और इनको समाज के विभिन्न व्यक्तियों और समूह में उपभोग हेतु वर्तमान या भविष्य में बाँटने के लिए करते हैं । ”
सैल्युलसन ने अपनी परिभाषा में विकासवादी दृष्टिकोण अपनाकर अर्थशास्त्र को स्थैतिक (Static) के स्थान पर गत्यात्मक (Dynamic) स्वरूप प्रदान किया है।
निष्कर्ष : अर्थशास्त्र केवल धन का अध्ययन नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के कल्याण, संसाधनों के उचित उपयोग और समाज के विकास से भी जुड़ा हुआ है। विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इसकी परिभाषा दी, परंतु सभी का मूल भाव यही है कि अर्थशास्त्र मानव जीवन की आवश्यकताओं और संसाधनों के बीच संतुलन बनाने की कला और विज्ञान है।
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