प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें। 

प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें।

प्रश्न- प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें।  यह अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। इसके अनुसार व्यक्तियों के अधिकार प्राकृतिक और जन्मसिद्ध होते हैं। प्रो० आशीर्वादम के शब्दों में, “अधिकार उसी प्रकार मनुष्य की प्रकृति के अंग हैं, जिस प्रकार उसकी खाल का रंग। इनकी विस्तृत व्याख्या करने या औचित्य बताने की कोई आवश्यकता नहीं … Read more

अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें। 

अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें। 

प्रश्न- अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें।  आज के प्रजातंत्रात्मक युग में अधिकार और कर्तव्य को जीवन आधार के रूप में स्वीकार किया गया है। मानवीय विकास के लिए ये आज आवश्यक तत्व हो गए हैं। अधिकारों की सृष्टि समाज द्वारा होती है, राज्य द्वारा नहीं। राज्य तो सिर्फ अधिकारों … Read more

लोकतंत्र में असहमति (आलोचना ) की भूमिका पर चर्चा करें। 

लोकतंत्र में असहमति (आलोचना ) की भूमिका पर चर्चा करें। 

प्रश्न- लोकतंत्र में असहमति (आलोचना ) की भूमिका पर चर्चा करें।  लोकतंत्र का मतलब है जनता की संप्रभुता को उनके विचारों की विविधता । किसी भी लोकतांत्रिक समाज में असहमति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। असहमति का मतलब केवल विरोध करना नहीं है, बल्कि यह उस प्रक्रिया का हिस्सा है जो लोकतंत्र को जीवंत … Read more

भारतीय संविधान में प्रदत्त स्वतन्त्रता के अधिकार की विवेचना कीजिए ।

भारतीय संविधान में प्रदत्त स्वतन्त्रता के अधिकार की विवेचना कीजिए ।

प्रश्न– भारतीय संविधान में प्रदत्त स्वतन्त्रता के अधिकार की विवेचना कीजिए । स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक) : स्वतन्त्रता लोकतन्त्र का आधारभूत स्तम्भ हैं । स्वतन्त्रता के अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं हो सकता है। इसीलिए भारतीय संविधान ने नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया है।  1. … Read more

error: Content is protected !!