BA Semester 1 Music Important Short Question Answer
प्रश्न- संगीत की परिभाषा लिखें |
उत्तर- संगीत वह मधुर कला है जिसमें ध्वनियाँ सुयोग्य ढंग से व्यवस्थित होती हैं और मन को आनंद व शांति प्रदान करती हैं। जब कोई ध्वनि सुनने में मीठी लगे, भावों को व्यक्त करे और मनुष्य के हृदय को स्पर्श करे, तो वही संगीत कहलाता है। संगीत का आधार स्वर, ताल और लय जैसे तत्वों पर टिका होता है। स्वर वह मीठी ध्वनि है जो कानों को अच्छी लगती है, ताल समय का नियमित क्रम है और लय इन दोनों का सुंदर प्रवाह बनाती है। संगीत मानव जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारी भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करता है। खुशी, दुख, प्रेम, भक्ति—हर भावना को संगीत के माध्यम से सहज रूप में व्यक्त किया जा सकता है। संगीत न केवल मनोरंजन देता है बल्कि मन को शांत भी करता है और तनाव को दूर करता है। यह आत्मा को छू लेने वाली कला है, इसलिए इसे भावों की भाषा भी कहा जाता है। इस प्रकार संगीत मानव सभ्यता की सबसे सुंदर और प्रभावशाली कलाओं में से एक है।
प्रश्न- श्रुति से आप क्या समझते है? श्रुतियां कितनी है?
उत्तर- संगीत में श्रुति उस सबसे सूक्ष्म ध्वनि को कहा जाता है जिसे मानव कान साफ–साफ पहचान सकता है। यह ध्वनि का इतना महीन रूप होता है कि इसे सामान्य व्यक्ति तुरंत नहीं पकड़ पाता, लेकिन अच्छा गायक या वादक इसे आसानी से समझ लेता है। श्रुति ही यह तय करती है कि कोई स्वर ठीक अपनी जगह पर है या नहीं। जब गायक बिल्कुल सही सुर में गाता है, तो कहा जाता है कि वह “श्रुति में” गा रहा है। इसलिए श्रुति संगीत की नींव मानी जाती है। अगर श्रुति ठीक न हो तो संगीत मधुर नहीं लगता। भारतीय संगीत में कुल 22 श्रुतियाँ मानी गई हैं। इन्हीं 22 सूक्ष्म ध्वनियों के आधार पर हमारे सात मुख्य स्वर—सा, रे, ग, म, प, ध, नि—बनते हैं। हर स्वर की अपनी कुछ श्रुतियाँ होती हैं जिनसे वह स्वर शुद्ध और मधुर बनता है। इस प्रकार, श्रुति संगीत का सबसे छोटा लेकिन सबसे आवश्यक हिस्सा है, जो सुर की सुंदरता और शुद्धता को तय करता है।
प्रश्न- नाद किसे कहते हैं? नाद के कितने प्रकार हैं?
उत्तर- नाद वह ध्वनि है जो किसी वस्तु में कंपन होने पर उत्पन्न होती है और जिसे हमारे कान साफ-साफ सुन सकते हैं। जब कोई तार, वाद्य या हवा भी हल्का सा कंपन करती है, तो जो ध्वनि निकलती है, वही नाद कहलाती है। संगीत की शुरुआत नाद से ही होती है, इसलिए इसे संगीत का सबसे मूल तत्व माना जाता है। नाद से आगे चलकर स्वर, ताल और लय का निर्माण होता है। यदि नाद शुद्ध और स्पष्ट न हो, तो संगीत भी मधुर नहीं लगता। नाद के दो प्रकार बताए गए हैं। पहला वह नाद है जो बाहर सुनाई देता है और किसी वस्तु को बजाने, छूने या टकराने पर उत्पन्न होता है। यह ध्वनि हम अपने दैनिक जीवन में हर जगह सुनते हैं—जैसे वाद्ययंत्रों की आवाज, बोलने की ध्वनि या तालियों की आवाज। दूसरा नाद शरीर के भीतर पैदा होने वाला अत्यंत सूक्ष्म कंपन है, जिसे बाहरी कान से नहीं सुना जाता, बल्कि ध्यान और साधना की अवस्था में महसूस किया जाता है। इस प्रकार नाद संगीत की मूल ध्वनि है और उसके दो रूप बाहरी तथा आंतरिक रूप में समझे जाते हैं।
प्रश्न- तान क्या है? इसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर- तान संगीत में तेज गति से गाए या बजाए जाने वाले स्वरों की ऐसी क्रमबद्ध चाल है, जिसमें स्वर बहुत तेजी से ऊपर-नीचे चलते हैं और एक मधुर प्रवाह बनाते हैं। तान गायक या वादक की कुशलता, अभ्यास और स्वरों पर पकड़ को दर्शाती है। जब कोई कलाकार राग को सुंदर और तेज गति में विस्तार देता है, तो उसे तान कहा जाता है। तान राग की शोभा बढ़ाती है और प्रस्तुति में चमक लाती है। तान के मुख्य रूप से चार प्रकार माने जाते हैं—
- सरगम तान – जिसमें सा, रे, ग, म आदि स्वरों को बोलकर गाया जाता है।
- आकार तान – जिसमें तान को “आ” की ध्वनि में गाया जाता है।
- सुर्खाब तान (लड़न्त तान) – जिसमें स्वर बहुत तेज, तीखे और लगातार दौड़ते हुए चलते हैं।
- गमक तान – जिसमें स्वर तेज लय में गमक के साथ कंपन करते हुए गाए जाते हैं।
प्रश्न- अलंकार क्या है?
उत्तर- संगीत में अलंकार वह कला है जिसमें स्वरों को सुंदर, आकर्षक और मधुर बनाया जाता है। जैसे कविता में शब्दों को सजाने के लिए अलंकारों का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार संगीत में स्वरों को सजाने और उनमें सुंदरता लाने के लिए अलंकारों का प्रयोग होता है। अलंकार स्वरों की ऐसी विशेष शैली है, जिसमें गायक स्वरों को अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत करता है—कभी धीमे, कभी तेज, कभी हिलाते हुए, तो कभी एक स्वर से दूसरे स्वर तक कोमलता से ले जाते हुए। इन सभी तरीकों से संगीत सुनने में अधिक मनभावन और प्रभावशाली बन जाता है। अलंकार गायक के अभ्यास, कौशल और स्वरों पर नियंत्रण को भी दिखाते हैं। जो गायक जितना अधिक अलंकारों में निपुण होता है, उसका गायन उतना ही मधुर और आकर्षक लगता है। रागों को समझने और गाने में भी अलंकार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे स्वरों को सटीक रूप से सीखने में मदद करते हैं। इस प्रकार अलंकार संगीत की वह प्रक्रिया है जो स्वरों को सजाकर गायन को सुंदर और मनोहर बनाती है।
प्रश्न- नाद और श्रुति में अंतर स्पष्ट करें?
उत्तर- नाद और श्रुति दोनों संगीत के महत्वपूर्ण तत्व हैं, लेकिन इनका अर्थ और भूमिका अलग होती है। नाद ध्वनि का मूल रूप है। जब किसी वस्तु में कंपन होता है और उससे ध्वनि निकलती है, तो वही नाद कहलाता है। नाद किसी भी प्रकार की ध्वनि हो सकता है—संगीतमय भी और साधारण भी। यह संगीत की शुरुआत है, क्योंकि नाद के बिना कोई स्वर या संगीत नहीं बन सकता। इसके विपरीत, श्रुति नाद का बहुत ही सूक्ष्म और मधुर रूप है। यह वह छोटी से छोटी ध्वनि है जिसे कान स्पष्ट रूप से पहचान सकता है। भारतीय संगीत में कुल 22 श्रुतियाँ मानी गई हैं। इन्हीं श्रुतियों से आगे चलकर सात स्वर बनते हैं। सरल शब्दों में, नाद ध्वनि है, जबकि श्रुति वही ध्वनि है जो संगीत के लिए उपयोगी और निश्चित ऊँचाई वाली होती है। नाद व्यापक है, और श्रुति उसका संगीतात्मक और सूक्ष्म रूप है।
प्रश्न- धमार क्या है?
उत्तर- धमार भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक पारंपरिक शैली है, जिसे मुख्य रूप से होली के अवसर पर गाया जाता है। इस शैली में गायन का रूप हल्का, आनंदपूर्ण और उत्सवमय होता है। धमार के बोल प्रायः प्रेम, रंग, हास्य, चंचलता और होली की खिलवाड़ भरी भावनाओं पर आधारित होते हैं। इसलिए इसे सुनने पर वातावरण में खुशी और उमंग का भाव सहज ही उत्पन्न हो जाता है। धमार प्रायः धमार ताल में प्रस्तुत की जाती है, जिसकी कुल 14 मात्राएँ होती हैं। इस ताल की विशिष्ट लय गायन को आकर्षक बनाती है और कलाकार को राग को विस्तार देने में अच्छी सुविधा देती है। धमार में स्वरों की मधुरता, लय का खेल और भावों की प्रस्तुति तीनों का सुंदर मेल दिखाई देता है। गायक बीच-बीच में तानों, लयकारी और भावप्रदर्शन का उपयोग कर गायन को और मनोहारी बना देता है। धमार भारतीय संगीत की वह शैली है जो राग की मर्यादा के साथ उत्सव और उमंग के रंगों को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है।
प्रश्न- ठाट क्या होता है?
उत्तर- ठाट भारतीय शास्त्रीय संगीत में स्वरों का एक व्यवस्थित समूह होता है। इसे रागों का आधार या ढाँचा भी कहा जाता है। जिस तरह किसी इमारत को बनाने के लिए पहले उसका ढाँचा तैयार किया जाता है, उसी तरह राग बनाने के लिए पहले ठाट की आवश्यकता होती है। ठाट में सातों स्वर—सा, रे, ग, म, प, ध, नि—किस रूप में प्रयोग होंगे, उसी के अनुसार राग की संरचना तय होती है। ठाट में सभी स्वर क्रम से एक ही दिशा में लगाए जाते हैं, यानी आरोह की तरह। इसमें स्वर दो प्रकार के होते हैं—शुद्ध और विकृत (कोमल या तीव्र)। इन स्वरों के अलग-अलग संयोजन से विभिन्न ठाट बनते हैं। भारतीय संगीत में कुल दस प्रमुख ठाट माने गए हैं, जैसे—कल्याण, भैरव, भैरवी, खमाज, आसावरी, काफी, पूरिया, मारवा, तोड़ी और बिलावल। प्रत्येक राग इन ठाटों में से किसी एक का रूप लेकर तैयार होता है।
प्रश्न- वादी या अंश और संवादी स्वर की परिभाषा दें |
उत्तर- वादी या अंश स्वर- संगीत में वादी या अंश स्वर किसी राग का सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रमुख स्वर होता है। इसे राग का आधार या मुख्य स्वर कहा जाता है। जब कोई कलाकार राग गाता या बजाता है, तो वादी स्वर पर अधिक ठहराव, जोर और विस्तार देता है। राग की पहचान, उसका भाव और उसकी विशेषता सबसे पहले इसी स्वर से सामने आती है। इसलिए वादी स्वर को राग का जीवन माना जाता है, क्योंकि राग का रंग और प्रभाव अधिकतर इसी पर निर्भर करता है।
संवादी स्वर- संवादी स्वर वह स्वर है जो वादी स्वर का सहायक या पूरक माना जाता है। यह वादी स्वर के साथ स्वाभाविक तालमेल बनाता है और राग की मधुरता को बढ़ाता है। संवादी स्वर वादी स्वर से प्रायः पंचम या चतुर्थ की दूरी पर होता है, इसलिए दोनों के बीच मीठा और संतुलित संबंध बनता है। संवादी स्वर के बिना राग का स्वरुप अधूरा लगता है।
प्रश्न- राग किसे कहते हैं? राग की कितनी जातियां हैं?
उत्तर- राग भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐसा मधुर रूप है, जिसमें स्वरों को एक निश्चित नियम, क्रम और भाव के साथ गाया या बजाया जाता है। राग केवल स्वरों का समूह नहीं होता, बल्कि उन स्वरों के माध्यम से विशेष भाव, रंग और मनोभावना को व्यक्त करने की कला है। हर राग का अपना चलन, अपना समय और अपना विशिष्ट माहौल होता है। जब गायक राग प्रस्तुत करता है, तो श्रोता को उसमें शांति, भक्ति, खुशी, करुणा या वीरता जैसे भाव महसूस होते हैं। इसी विशेष भाव और नियमबद्ध संरचना के कारण उसे राग कहा जाता है। रागों की जातियाँ उनके आरोह और अवरोह में प्रयुक्त स्वरों की संख्या से निर्धारित होती हैं। भारतीय संगीत में राग की तीन जातियाँ मानी जाती हैं—
औड़व – पाँच स्वरों वाला राग
षाड़व – छह स्वरों वाला राग
सम्पूर्ण – सात स्वरों वाला राग
प्रश्न- अवरोह पर टिप्पणी लिखें ?
उत्तर- अवरोह किसी भी राग में स्वरों की वह क्रमबद्ध चलन है, जिसमें स्वर ऊँचे से नीचले की ओर आते हैं। जैसे आरोह में स्वर क्रमशः ऊपर चढ़ते हैं, उसी प्रकार अवरोह में वे नीचे उतरते हैं। अवरोह राग की पहचान का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इससे राग का असली रूप, उसका प्रवाह और उसका सही चलन स्पष्ट होता है। अवरोह यह बताता है कि राग गाते समय कौन–कौन से स्वर किस क्रम में नीचे की ओर लिए जाते हैं और किन स्वरों को छोड़ना है या किसे विशेष रूप से स्पर्श करना है। अवरोह का क्रम राग की मर्यादा को बनाए रखता है और कलाकार को यह निर्देश देता है कि नीचे उतरते समय राग का स्वरूप न बिगड़े। अवरोह राग की पूर्णता, उसकी मधुरता और उसकी पहचान को स्पष्ट करने वाला आवश्यक तत्व है। इसे जाने बिना राग की सही प्रस्तुति संभव नहीं होती।
प्रश्न- आरोह क्या है?
उत्तर- आरोह किसी भी राग में स्वरों की वह क्रमबद्ध चाल है, जिसमें स्वर नीचे के स्थान से ऊपर की ओर क्रमशः बढ़ते हैं। जैसे कोई व्यक्ति सीढ़ियाँ चढ़ते समय एक-एक कदम ऊपर जाता है, उसी प्रकार आरोह में स्वरों का क्रम नीचे से ऊपर की दिशा में चलता है। यह राग की संरचना का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि राग में कौन–कौन से स्वर ऊपर चढ़ते समय उपयोग किए जाएंगे और किस क्रम में उनका प्रयोग होगा। आरोह यह भी बताता है कि राग में कोई स्वर छोड़ा गया है या किसी स्वर का विशेष रूप से इस्तेमाल किया गया है। कई रागों में कुछ स्वरों को आरोह में नहीं लिया जाता, जिससे राग की विशेष पहचान बनती है। कलाकार जब राग प्रस्तुत करता है, तो आरोह उसे सही दिशा देता है, ताकि राग का रूप और उसकी मर्यादा बनी रहे।
प्रश्न- ख्याल किसे कहते है? इसके प्रकारों की चर्चा करें |
उत्तर- ख्याल भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय और प्रमुख गायन शैली है। शब्द “ख्याल” का अर्थ होता है विचारया कल्पना। इस शैली में गायक को स्वरों, लय और भावों को अपनी कल्पना के अनुसार विस्तार देने की पूरी स्वतंत्रता होती है। ख्याल का गायन राग की सुंदरता, भाव, तान, आलाप और लय के विविध रूपों को खुलकर प्रस्तुत करने की कला है। इसमें गायन हल्का, कोमल और मधुर होता है, इसलिए यह आधुनिक हिंदुस्तानी संगीत की सबसे प्रमुख शैली मानी जाती है। ख्याल के मुख्यतः दो प्रकार माने जाते हैं। पहला बड़ा ख्याल, जो धीमी लय में गाया जाता है। इसमें आलाप, बोल-आलाप, तानें और राग का गहरा विस्तार किया जाता है। यह अधिक गंभीर और विस्तृत रूप होता है। दूसरा छोटा ख्याल, जो तेज लय में गाया जाता है। इसमें तानों और लयकारी का प्रयोग अधिक होता है और प्रस्तुति थोड़ी चंचल और आकर्षक होती है।
प्रश्न- पकड़ की परिभाषा दें |
उत्तर- संगीत में पकड़ उस खास पहचान या विशिष्ट स्वर-समूह को कहते हैं, जिसके कारण किसी राग को तुरंत पहचाना जा सके। हर राग का अपना एक निश्चित स्वभाव और भाव होता है। इस स्वभाव को सबसे सरल और प्रभावी तरीके से दिखाने वाला जो मुख्य स्वर-चलन होता है, वही पकड़ कहलाता है। इसे राग की “पहचान” या “Signature Phrase” भी कहा जाता है। पकड़ में वही स्वर आते हैं जिन्हें गायक या वादक सबसे पहले और सबसे अधिक महत्व देकर प्रस्तुत करता है। पकड़ का उद्देश्य यह बताना है कि राग को किस तरह गाया या बजाया जाता है ताकि श्रोता बिना पूरे आलाप या बंदिश सुने राग को पहचान सके। उदाहरण के लिए, राग यमन की पकड़ – नि रे ग म ग रे| सुनते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि यह राग यमन है। पकड़ गायक को सही मार्गदर्शन देती है, राग की मर्यादा तय करती है और किसी भी राग को उसके अन्य समान रागों से अलग पहचान दिलाती है। इसलिए पकड़ को राग की आत्मा भी कहा जाता है।
प्रश्न- ताली एवं खाली क्या है?
उत्तर- संगीत में ताल को समझने के लिए ताली और खाली बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। किसी भी ताल के भीतर कुछ स्थान ऐसे होते हैं जहाँ हाथ से ताली बजाई जाती है। इन स्थानों को ताली कहा जाता है। ताली ताल के मजबूत हिस्सों को दिखाती है और यह बताती है कि ताल के कौन से भाग पर अधिक महत्व दिया जाता है। ताली से कलाकार को ताल पकड़ने में आसानी होती है और लय की सटीकता बनी रहती है। इसके विपरीत, ताल में कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जहाँ हाथ नहीं बजाया जाता, बल्कि हल्का सा इशारा किया जाता है। इसे खाली कहते हैं। खाली ताल के हल्के या कम ज़ोर वाले हिस्से को दर्शाती है। यह ताल की संरचना में संतुलन बनाती है और बताती है कि कहाँ संगीत को थोड़ा नरम तरीके से प्रस्तुत करना है। उदाहरण के रूप में तीनताल में 1, 5 और 13 पर ताली होती है तथा 9 पर खाली होती है।
प्रश्न- अनुवादि स्वर से आप क्या समझते है?
उत्तर- अनुवादी स्वर वह स्वर होता है जो किसी राग में वादी और संवादी स्वरों के बाद महत्व रखता है। इसे राग का तीसरा महत्वपूर्ण स्वर भी कहा जा सकता है। किसी भी राग की भाव-व्यंजना, पहचान और मधुरता को मजबूत बनाने में अनुवादी स्वर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राग के अंदर स्थिरता और संतुलन बनाकर रखता है ताकि गायक या वादक राग को सहज रूप से प्रस्तुत कर सके। वादी स्वर राग का प्रमुख और सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला स्वर होता है, जबकि संवादी स्वर उसका सहायक स्वर है। इन दोनों के बाद जो स्वर राग की प्रस्तुति में विशेष रूप से उपयोगी होता है और जिसे कई जगहों पर राग का आधार या सहारा माना जाता है, उसे अनुवादी स्वर कहा जाता है। यह राग की चढ़त-उतरत, आलाप तथा बंदिश में विशेष स्थान रखता है। अनुवादी स्वर का सही उपयोग राग को सुंदर, स्पष्ट और प्रभावशाली बनाता है। इसलिए राग सीखते समय अनुवादी स्वर को पहचानना और उसका ठीक प्रकार से अभ्यास करना बहुत आवश्यक माना जाता है।
प्रश्न- ठाह किसे कहते हैं?
उत्तर- ठाह भारतीय शास्त्रीय संगीत में ताल का एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। जब कोई गायक या वादक ताल को बहुत धीमी गति यानी विलंबित लय में प्रस्तुत करता है, तो उसे ठाह कहा जाता है। ठाह में ताल की प्रत्येक मात्रा को स्पष्ट रूप से निभाया जाता है, ताकि हर बीट साफ सुनाई दे और लय का पूरा ढांचा समझ में आए। ठाह का उपयोग विशेष रूप से जब खयाल, ध्रुपद या आलाप की प्रस्तुति की जाती है, तब अधिक किया जाता है। ठाह में गति धीमी होने के कारण कलाकार को राग के भाव, स्वर और आलंकारिक सुंदरता को अच्छी तरह दिखाने का अवसर मिलता है। इस गति में गायक या वादक राग की सूक्ष्मताओं को विस्तार से प्रस्तुत कर सकता है। ठाह का मुख्य उद्देश्य लय को स्थिर और गम्भीर बनाना है। इससे श्रोता भी राग की गरिमा और उसकी गहराई को अनुभव कर पाता है। इसलिए ठाह को संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह ताल, लय और राग—तीनों के संतुलन को स्पष्ट रूप से सामने लाता है।
प्रश्न- राग के प्रकार बताये |
उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों को उनकी संरचना, स्वरों की संख्या और उनके स्वरूप के आधार पर कई प्रकारों में बाँटा गया है। सबसे प्रमुख वर्गीकरण जाति पर आधारित है। जाति के अनुसार राग तीन प्रकार के होते हैं— औडव, षाडव और सम्पूर्ण। औडव राग में पाँच स्वर होते हैं, जैसे भूपाली। षाडव राग में छह स्वर होते हैं, जैसे आसावरी। सम्पूर्ण राग में सातों स्वर उपयोग होते हैं, जैसे यमन या काफी। इसी तरह रागों को समय के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। कुछ राग सुबह गाए जाते हैं, जैसे भैरव; कुछ संध्या समय, जैसे यमन; और कुछ रात में, जैसे दरबारी। इसके अतिरिक्त रागों को उनकी प्रकृति के आधार पर श्रृंगार, शांत, वीर या करुण रस से भी जोड़ा जाता है। कई रागों को जनक (मूल) और कई को जन्य (उपजाए गए) राग माना जाता है। जनक राग से कई छोटे राग बनाए जाते हैं।
प्रश्न- पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की जीवनी प्रस्तुत करें?
उत्तर- पंडित विष्णु नारायण भातखंडे भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे महान विद्वानों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 10 अगस्त 1860 को महाराष्ट्र के ठाणे में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत में गहरी रुचि थी, परंतु उन्होंने पहले कानून की पढ़ाई की और कुछ समय तक वकालत भी की। बाद में संगीत के प्रति उनका प्रेम इतना बढ़ गया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इसी क्षेत्र को समर्पित कर दिया। भातखंडे जी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने भारतीय रागों को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप दिया। उन्होंने संगीत को चार प्रमुख ठाट-प्रणालियों में बाँटकर रागों को समझना आसान बनाया। आज भी संगीत की शिक्षा में भातखंडे ठाट-प्रणाली का प्रयोग बहुत व्यापक है। उन्होंने देशभर में घूमकर विभिन्न घरानों और गुरुओं से संगीत की परंपराएँ एकत्र कीं और उन्हें लिखित रूप दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हिंदुस्तानी संगीत पद्धति और कायदे-रचनाएँ आज भी संगीत के विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। पंडित भातखंडे ने संगीत शिक्षा के लिए अनेक संस्थाएँ भी स्थापित कीं। 19 सितंबर 1936 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी संगीत जगत में अमर है।
प्रश्न- तबला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें |
उत्तर- तबला भारत का एक प्रसिद्ध तालवाद्य यंत्र है, जिसका उपयोग शास्त्रीय संगीत, हल्का संगीत, भजन, लोकगीत और नृत्य-संगीत में किया जाता है। यह दो भागों से मिलकर बनता है—दायाँ और बाँया। दायाँ छोटा और धातु या लकड़ी का होता है, जिसे “तबला” कहा जाता है। बाँया बड़ा और मिट्टी या धातु का होता है, जिसे “बाया” कहते हैं। दोनों के ऊपर खाल चढ़ी होती है, जिस पर काला भाग ‘स्याही’ लगाया जाता है। स्याही की वजह से तबले से शुद्ध और गूँजदार ध्वनि निकलती है। तबला उँगलियों और हथेली की सहायता से बजाया जाता है। इसके बोल जैसे–धा, धिन, ना, तिन, गे आदि अलग-अलग ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं। तबला किसी भी संगीत प्रस्तुति में ताल बनाए रखने और लय को सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। यह एकल वादन के रूप में भी बजाया जाता है, जिसमें कलाकार विविध ताल, कायदे, परन और रेला प्रस्तुत करता है। तबला न केवल भारतीय संगीत की धरोहर है बल्कि विश्वभर में लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है।
प्रश्न- राग यमन पर टिप्पणी लिखें |
उत्तर- राग यमन हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का अत्यंत मधुर, आकर्षक और शांति प्रदान करने वाला राग है। यह कल्याण थाट पर आधारित है और इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग इसकी सबसे खास पहचान है। यमन मुख्यतः शाम के समय, विशेषकर सूर्यास्त के बाद गाया-बजाया जाता है। इसका भाव शांत, पवित्र, प्रेमपूर्ण और सौम्य होता है, इसलिए इसे श्रृंगार औरभक्ति दोनों की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है।
यमन का स्वर-समूह बहुत खुला और विस्तार वाला है। कलाकार इसमें मींड, गमक और आलाप के माध्यम से राग की गहराई को सुंदरता से व्यक्त करता है। राग की विशेष पकड़—“नि रे गा, रे गा रे” और “पा, नि धा, नि सा”—इसे आसानी से पहचाने योग्य बनाती है। खयाल, बंदिश, तराना और सुगम संगीत में भी यमन का प्रयोग व्यापक रूप से होता है। इसकी मधुरता के कारण इसे सीखना और सुनना दोनों ही बेहद आनंददायक होता है।
राग यमन का आरोह–अवरोह
आरोह: नि रे गा मा(तीव्र) धा नि सा’
अवरोह: सा’ नि धा पा मा(तीव्र) गा रे सा
प्रश्न- राग देश के आरोह, अवरोह एवं पकड़ लिखें ?
उत्तर- राग देश उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग है। यह खमाज थाट पर आधारित है और इसका स्वभाव कोमल, सौम्य तथा रोमांचक होता है। देश राग विशेष रूप से वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ माना जाता है, इसलिए इसके गायन में प्रेम, विरह और प्रकृति का उल्लास झलकता है। इस राग में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है तथा पंचम को वर्ज्य माना जाता है, जिससे इसकी मधुरता और भी बढ़ जाती है। राग देश अपने सुंदर आलाप, मींड और लचीले सुरों के कारण श्रोताओं को तुरंत आकर्षित करता है। यह ठुमरी, दादरा, भजन तथा सुगम संगीत में भी व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। इसकी मुख्य विशेषता उसका सरल लेकिन भावपूर्ण स्वर-क्रम है, जो सीखने और गाने दोनों में ही सहज है।
राग देश का आरोह – अवरोह और पकड़
आरोह: सा रे मा प नि(कोमल) सा’
अवरोह: सा’ नि(कोमल) ध प मा ग रे ग सा
पकड़: ग रे ग सा, नि(कोमल) ध प, मा रे सा
प्रश्न- राग भैरव पर टिप्पणी लिखें ?
उत्तर- राग भैरव हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का अत्यंत प्राचीन, गंभीर और पूज्य राग है। इसे प्रातःकालीन राग माना जाता है और सूर्योदय के समय गाया-बजाया जाता है। भैरव का स्वभाव शांत, गंभीर, तेजस्वी तथा आध्यात्मिक होता है। इस राग में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत का विशेष प्रयोग इसकी पहचान बनाता है। इन दोनों स्वरों की कांपती हुई, धीमी और गंभीर अभिव्यक्ति राग को अत्यंत गम्भीरता प्रदान करती है। राग भैरव में आलाप धीरे-धीरे विस्तृत होता है, जिसमें मींड, गमक और भारयुक्त स्वर प्रयोग किए जाते हैं। यह राग भक्ति, ध्यान और आदर के भावों को व्यक्त करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। कई भजन, धुनें और शास्त्रीय बंदिशें इसी राग पर आधारित होती हैं। राग भैरव की पकड़ “सा रे(कोमल) सा, पा, ध(कोमल) सा” से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। राग भैरव न केवल भारतीय संगीत की परंपरा में उच्च स्थान रखता है, बल्कि इसे सभी प्रमुख गायन शैलियों—खयाल, ध्रुपद, भजन—में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। इसकी गंभीरता और पवित्रता इसे एक विशेष राग बनाती है।
प्रश्न- राग देश के आरोह, अवरोह एवं प्रकृति लिखें ?
उत्तर- राग देश उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक मधुर, आकर्षक और भावपूर्ण राग है। यह खमाज थाट से उत्पन्न होता है और इसका स्वभाव हल्का, मनोहर और रसपूर्ण होता है। राग देश मुख्यतः वर्षा ऋतु से जुड़ा माना जाता है, इसलिए इसकी धुन में वर्षा का आनंद, प्रकृति का उल्लास और रोमांच स्पष्ट झलकता है। यह राग भावनाओं को मधुरता और कोमलता के साथ व्यक्त करता है, इसी कारण इसे ठुमरी, दादरा, भजन तथा लोकगीतों में भी बहुत इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कोमल निषाद का प्रयोग राग को कोमलता देता है, जबकि पंचम अक्सर वर्ज्य या सीमित रूप से उपयोग होता है। इसके कारण राग में विशेष मिठास और नज़ाकत आती है। राग देश का चलन सरल, प्रवाहमय और कर्णप्रिय है, जो इसे सीखने-सुनने दोनों के लिए आदर्श बनाता है।
आरोह – अवरोह
आरोह: सा रे मा प नि(कोमल) सा’
अवरोह: सा’ नि(कोमल) ध प मा ग रे ग सा
राग देश की प्रकृति श्रृंगारिक और उल्लासपूर्ण है।
लघु प्रश्न उत्तर समाप्त
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