BA 3rd Semester Political Science Major 3 Unit 3 Short Question Answer PDF Download

Q.1. समानता (Equality)

Ans. समानता प्रजातन्त्रीय प्राणाली के स्तम्भों में से एक है । समानता का अर्थ विशेषाधिकारों की समाप्ति तथा राज्य में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति हेतु विकास के लिए समानता प्रदान किया जाना है। जिस समाज में जाति, धर्म, रंग तथा नस्ल इत्यादि के आधार पर अन्तर किये जाते हैं तथा किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त हैं, उस समाज में समानता की कल्पना भी नहीं की जा सकती । समानता को परिभाषित करते हुए बार्कर ने कहा है कि, ‘समानता के सिद्धान्त का अर्थ है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएँ मुझे प्राप्त हैं, वह उसी रूप में दूसरों को भी प्राप्त होंगी तथा जो अधिकार दूसरों को दिये गये हैं, वह मुझे भी दिये जायेंगे।” 


Q.2. राजनीतिक समानता (Political Equality) 

Ans. राजनीतिक समानता का अर्थ यह है कि राजनीतिक प्रक्रियाओ को प्रभावित करने के अवसर सभी नागरिको की समान रूप से प्राप्त होने चाहिए। राजतंत्र, कुलिनतंत्र या  तानाशाही व्यवस्था राजनीतिक समानता के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करती। इस व्यवस्था में जन्म या वंश के आधार पर भेदभाव एक सामान्य स्थिति है, लेकिन लकवा राजनीतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित होती है। राजनीतिक समानता के अन्तरीत सामान्य रूप से निम्नलिखित समानताएँ आती है : 

1. मतदान का अधिकार : मतदान का अधिकार राजनीतिक समता की म स्थिति है। इसका आशय यह है कि धर्म, जाति, सम्मति, शिक्षा या लिंग के 

के बिना सभी व्यक्तियों को मत देने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए | अवयस्क व्यक्तियों, पागल, दिवालिये या संविधान द्वारा मान्य अन्य किसी किन्हीं व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। 

2. चुनाव में उम्मीदवार बनने का अधिकार : नागरिकों को ताव में उम्मीदवार होने का अधिकार समान रूप से प्राप्त होना चाहिए। इससे यह बात निहित है कि संविधान में उल्लेखित किन्हीं 

सेोषित किया जा सकता है। भारत में, ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में ऐसी सोग्यताओं का निर्धारण किया गया है और यह राजनीतिक समानता के विरुद्ध नहीं है। 

3. प्रार्थना-पत्र का अधिकार : नागरिको को प्राथना पत्र देने और इस माध्यम से अपनी शिकायतें सरकार तक पहुंचाने का अधिकार समान रूप से होना चाहिए। 

4. राजकीय नियुक्तियों तथा सम्मान प्राप्त करने का अधिकार : राजकीय नियुक्तियाँ तथा राजकीय सम्मान प्राप्त करने के लिए सभी को समान रूप से अनुकारी समझा जाना चाहिए। केवल शिक्षा, सेवा या किसी विशेष योग्यता के आधार पर ही इस सम्बन्ध में भेदभाव किया जा सकता है। 

5. विचारों की अभिव्यक्ति तथा दलीय संगठनों के निर्माण का अधिकार भी सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होना चाहिए। 


Q.3. नकारात्मक एवं सकारात्मक समानता (Positive and Negative Equality) 

Ans. नकारात्मक समानता : सामान्य रूप में इसका अर्थ है, विशेषाधिकारों का अन्त’। समाज के किसी वर्ग-विशेष को जन्म, धर्म, जाति आदि के आधार पर किसी प्रकार के fat after प्रदान न किए जाएँ, तो यह नकारात्मक समानता का द्योतक है। राज्य को चाहिए कि वह बिना भेदभाव के नागरिकों को समान अवसर प्रदान करे। लोगों में प्राकृतिक कारणों से अर्थात् जन्मजात असमानता हो सकती है, परन्तु अप्राकृतिक कारणों से अर्थात् पैतृक परिस्थितियों अथवा राज्य द्वारा किए गए, भेदभाव के परिणामस्वरूप किसी प्रकार की असमानता नहीं होनी चाहिए। छुआछूत का अन्त व सबको शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश का अधिकार नकारात्मक समानता के उदाहरण है। 

सकारात्मक समानता : सामान्यतया इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके विकास हेतु पर्याप्त अवसर मिले तथा राज्य के द्वारा कोई बाधा उत्पन्न न की जाए। यदि सभी को समान अवसर न मिले तो मनुष्य का सर्वागीण विकास नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता व प्रतिभा विकसित करने का अवसर प्राप्त होना चाहिए। तारकी के अनुसार, “समानता का तात्पर्य एक-सा व्यवहार करना नहीं, इसका तो आम्ह इस बात के लिए है कि मनुष्यों को सुख का समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। उनके after में किसी प्रकार का आधारभूत अन्तर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। समानता मूलतः समाजीकरण की एक प्रक्रिया है- प्रथमतः इसका अभिप्राय विशेषाधिकारों की समाप्ति है… और दूसरे व्यक्तियों का विकास के पर्याप्त एवं समान अवसर उपलब्ध कराने से है । ” 

इस प्रकार राजनीति विज्ञान में समानता का तात्पर्य ऐसी परिस्थितियों के अस्तित्व से होता है कि व्यक्तियों को अपने विकास के समान अवसर मिलें, जिससे असमानता का अन्त हो जाए, जिसका मूल सामाजिक वैषम्य है।. 


Q.4. समानता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण 

Ans. समानता के सन्दर्भ में मार्क्सवादी दृष्टिकोण इस बात का प्रतिपादन करता है कि जब तक समाज में विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहेगा तब तक किसी भी रूप में समानता की स्थापना नहीं की जा सकती। आर्थिक समानता को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित व्यक्तिगत पूँजी को समाप्त करके उत्पादन, वितरण तथा विनिमय के साधनों को समाज के सभी वर्गों में विभक्त न कर दिया जाए। अतः मार्क्सवाद आर्थिक असमानता को भी समाज में एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण एवं उत्पीड़न के लिए उत्तरदायी मानता है। मार्क्स का यह भी मत है कि पूँजीवादी राज्यों में राजनीतिक एवं सामाजिक समानता का जो आडम्बर रचा जा रहा है उसने पूर्णतया भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है क्योंकि आर्थिक समानता के अभाव में किसी प्रकार की भी समानता स्थापित नहीं की जा सकती है। अतः समानता की स्थापना के लिए राज्य को भी समाप्त करना होगा तथा सच्चे साम्यवाद की स्थापना करना व्यक्तियों का लक्ष्य होना चाहिए, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करेगा तथा अपनी आवश्यकतानुसार समाज से ग्रहण करेगा। सामाजिक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को कार्य का समान अवसर प्राप्त हो। जब तक उत्पादन के साधनों पर प्रत्येक व्यक्ति का आधिपत्य स्थापित नहीं हो जाता, तब तक न शोषण का अन्त होगा और न प्रत्येक व्यक्ति को उसके कार्यानुसार वेतन मिल सकेगा। 


Q.5. प्राकृतिक समानता (Natural Equality) 

Ans. प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि ज़न्म से सभी व्यक्ति समान होते हैं तथा उनमें कोई असमानता नहीं की जानी चाहिए। ‘सामाजिक समझौता सिद्धान्त’ के प्रवर्त्तकों ने इस प्रकार की समानता पर विशेष बल दिया है। लेकिन आधुनिक युग में प्राकृतिक समानता की धारणा सिर्फ कल्पना ही समझी जाती है। हालांकि, यह ठीक है कि व्यक्तियों में परस्पर स्वामी अथवा दास का सम्बन्ध स्वीकार नहीं किया जाता, फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि ईश्वर ने सभी लोगों को एक समान पैदा नहीं किया है। लोगों में बुद्धि, प्रतिभा तथा बल इत्यादि के आधार पर अन्तर स्वीकारना ही पड़ेगा। 


Q.6. आर्थिक समानता (Economic Equality) 

Ans. आर्थिक समानता का व्यावहारिक अर्थ यह है कि जब तक सभी नागरिकों के जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी न हों तब तक कुछ लोगों को विलासिता का जीवन- बिताने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अतः आर्थिक जीवन का संगठन इस प्रकार से होना चाहिए कि सर्वप्रथम प्रत्येक मनुष्य को मनुष्य की भाँति रहने के लिए आर्थिक साधन उपलब्ध हो सकें। 

प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिश्रम का उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए। लॉस्की कहता है, “जब मेरे पड़ौसी को रोटी प्राप्त नहीं होती तो मुझे केक खाने का अधिकार नहीं हैं।” पूँजीवादी देशों में आर्थिक समानता का लोप पाया जाता है तथा इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपनी राजनीतिक समानता का उपभोग नहीं कर पाते हैं।उपर्युक्त के आधार पर हम कह सकते हैं की आर्थिक समानता का लोप होने पर व्यक्ति अपनी राजनीतिक समानता का उपयोग नहीं कर पाते हैं। 


Q.7. समानता के विविध रूप 

Ans. आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक समानता अधूरी अथवा निरर्थक है क्योंकि- 

(1) निर्धन व्यक्ति अपने मत का उचित प्रकार से प्रयोग नहीं कर सकता है। 

(2) निर्धन व्यक्ति लालच में आकर अपने मत को बेच सकता है। 

(3) साधारणतया यह भी देखने में आया है कि निर्धन व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं। 

(4) चूँकि निर्धन व्यक्ति के पास चुनाव लड़ने हेतु साधनों की कमी होती है। अतः वह अपने इस राजनीतिक अधिकार को आर्थिक समानता के अभाव में त्याग देता है । 

(5) साधारणतया राजनीतिक दलों एवं प्रेस पर निर्धनों की अपेक्षा पूँजीपतियों का ही नियन्त्रण होता है। 

उपर्युक्त के आधार पर हम कह सकते हैं की आर्थिक समानता का लोप होने पर व्यक्ति अपनी राजनीतिक समानता का उपयोग नहीं कर पाते हैं। 


Q.8. राजनीतिक समानता आर्थिक समानता के बिना अधूरी है। 

Ans. समानता के निम्नलिखित तीन प्रमुख रूप हैं- 

(1) नागरिक समानता : नागरिक समानता का अर्थ यह है कि सभी लोगों को समान रूप से नागरिक अधिकार तथा स्वतन्त्रताएँ मिलनी चाहिए। कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति बराबर होने चाहिए और सभी को कानून का समान संरक्षण मिलना चाहिए। 

(2) सामाजिक समानता : सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि सामाजिक दृष्टि से सभी व्यक्ति समान हैं। जाति, धर्म, वंश तथा सम्पत्ति इत्यादि के आधार पर व्यक्ति व्यक्ति में अन्तर नहीं किया जाना चाहिए। सभी व्यक्तियों को सामाजिक प्रगति के समान अवसर मिलने चाहिए। 

(3) आर्थिक समानता : आर्थिक समानता का अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक विषमताओं की चौड़ी खाइयों को समाप्त किया जाए। आर्थिक समानता का यह अर्थ तो नहीं हैं कि समान वेतन एवं रहन-सहन की सुविधाएँ मिलें लेकिन इसका यह अर्घ अवश्य है कि सभी व्यक्तियों को आजीविका प्राप्त करने के साधन प्रदान किये जायें। प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिश्रम का उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए। 


Q.9. ‘सकारात्मक कार्रवाई’ (Affirmative Action) 

Ans. सकारात्मक कार्रवाई वंचित समुदायों के सशक्तिकरण के लिए एक रणनीति है। यह समुदाय वर्तमान में पीड़ित और ऐतिहासिक रूप से एक संस्कृति के अंदर भेदभाव से ग्रस्त रहे हैं। प्रायः यह समुदाय उत्पीड़न या बंधन जैसे ऐतिहासिक कारणों से समाज की मूलधारा से नहीं जुड़ पाए थे। सकारात्मक कार्रवाई की अवधारणा का विचार सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में 1961 में लाया गया था जिसमें यह प्रावधान निर्धारित किया गया कि आवेदक कार्यरत को सरकारी कर्मचारी बनते समय रंग, पंथ, राष्ट्रीय मूल आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। सामान्य शब्दों में समाज के वंचित समुदाय को बढ़ावा देने के लिए और समाज की मूलधारा में लाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान लाया गया। सकारात्मक कार्रवाई उन नियमों और कानूनों को परिलक्षित करती है, जो भेदभाव का अंत और समान अवसरों को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। सकारात्मक कार्रवाई सकारात्मक भेदभाव से संचालित होती है, जिसमें वंचित समुदायों को विशेषाधिकार और अवसर प्रदान किए जाते हैं। 


Q.10. ‘भेदमूलक व्यवहार’ (Differential Treatment) 

Ans. समानता लाने का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भेदमूलक व्यवहार है। इसका अर्थ है कि समाज इस प्रकार के प्रबंध करे जिसके माध्यम से कुछ लोगों को अन्य से अधिक शक्ति, आय तथा आदर मिले। उदाहरण के लिए प्रबन्धकों, इंजीनियरों, विशेषज्ञों को निम्नस्तर पर कार्य करने वाले कर्मचारियों से अधिक वेतन मिले। लेकिन इसके साथ दो शर्तें जोड़ी गई हैं। पहली, किए गए प्रबंध उन लोगों के जीवन को भी ऊपर उठाएँ जो अभी निम्न स्तर पर हैं। दूसरा, समाज के विशेषाधिकारी पदों तक पहुँच को कुछ असंगत मानदण्डों पर आधारित भेदभावों द्वारा प्रतिबंधित न किया जाये। 

इस सिद्धान्त के संदर्भ में जॉन रॉल्से के भेदमूलक सिद्धांत की व्याख्या करना अनिवार्य, है। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘The Theory of Justice’ में ‘अज्ञानता के पर्दे’ का सिद्धान्त दिया है जिसके आधार पर हम भेदमूलक सिद्धान्त को समझने का प्रयास करेंगे। रॉल्स के अनुसार सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं को इस प्रकार प्रबंधित किया जाये कि वे पदों तथा स्थितियों के साथ जुड़ी हों जो अवसर की उचित समानता की शर्तों पर सभी के लिए खुली हों, तथा समाज के निम्नतम व्यक्तियों को अधिकतम लाभ पहुँचाएँ। रॉल्स के अनुसार, मूल पदार्थों के संदर्भ में सभी व्यक्तियों की प्रारम्भिक अपेक्षाएँ समान होनी चाहिए। इन मूल पदार्थों से रॉल्स का अर्थ है सामान्य आवश्यकताओं वाले पदार्थों जैसे अधिकार, स्वतंत्रतायें, शक्ति एवं अवसर, आय, धन आदि। प्रारम्भिक वितरण में सभी लोगों को इन प्राथमिक वस्तुओं का समान हिस्सा मिलना चाहिए। इसके बाद लोगों के अपने व्यक्तिगत आर्थिक निर्णयों एवं कार्यों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली भिन्नता को नहीं रोका जा सकता है। एक बार समानता के महत्त्व को पूरा करने के बाद असमानताओं को न्यायोचित ठहराया जा सकता है, यदि वे निम्न दो शर्तों को पूरा करें। पहली, वे पदों व स्थितियों में उचित अवसर की समानता को सुनिश्चित करें तथा दूसरी ओर, वे ‘भेदमूलक सिद्धांत’ को परिलक्षित करें अर्थात् समाज के निम्नतम लोगों को अधिकतम लाभ मिल सकें। भेदमूलक सिद्धांत वस्तुओं के वितरण में असमानताओं को इस आधार पर आज्ञा देता है कि ये असमानतायें समाज के निम्नतम वर्ग का भला करें। भेदमूलक सिद्धांत की एक अन्य प्रेरणा मूल स्थिति की धारणा की स्थापना से पैदा होने वाले खतरे को कम से कम करना है। अज्ञानता के पर्दे के अन्तर्गत, सभी प्रतिनिधित्व के लिए हीनतम स्थिति पर वि र करना आवश्यक है, जहाँ इन ‘अज्ञानता के पर्दे’ के उठने के बाद उन्हें पता चलेगा कि वे समाज के निम्नतम स्तर पर हैं। रॉल्स के अनुसार यदि इस सम्भावना पर विचार किया जाये तो सभी प्रतिनिधि यह आश्वस्त करने के लिए चिन्तित होंगे कि समाज के निम्नतम लोगों को उत्तम सम्भव अवसर दिए जाएँ।


Q.11. समतावाद (Egalitarianism) 

Ans. समतावाद, जिसे अंग्रेजी में “Egalitarianism” कहा जाता है, एक ऐसी सामाजिक और राजनीतिक अवधारणा है जो सभी व्यक्तियों के साथ समानता और निष्पक्षता की वकालत करती है। यह सिद्धांत मानता है कि सभी लोग समान अधिकार, अवसर और संसाधन पाने के हकदार हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग, आर्थिक स्थिति, या किसी अन्य आधार पर भिन्नता क्यों न हो। समतावाद का उद्देश्य समाज में व्याप्त असमानताओं और भिन्नतापूर्ण व्यवहार को समाप्त करना है और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करना है। समतावाद विभिन्न क्षेत्रों में लागू हो सकता है, जैसे कि आर्थिक समता, सामाजिक समता और राजनीतिक समता। समतावाद का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ हर व्यक्ति को उसकी योग्यता और जरूरत के आधार पर समान अवसर और संसाधन मिल सकें। 


Q.12. असमानता (विषमता ) ( Inequality) 

Ans. समता के विपरीत विषमता ( Inequality) का अर्थ है – व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास का समान अवसर प्राप्त नहीं होना, समाज में विशेषाधिकारी का पाया जाना, जन्म, जाति, प्रजाति, व्यवसाय, धर्म, भाषा, आय व सम्पत्ति के आधार पर अन्तर पाया जाना तथा इन आधारों पर व्यक्ति-व्यक्ति तथा समूह समूह के बीच ऊँच नीच का भेद मानना एवं सामाजिक दूरी बरतना । शक्ति, सत्ता व प्रभुत्व का असमान वितरण, सामाजिक विभेद तथा उत्पादन के साधनों पर असमान अधिकार विषमता को व्यक्त करते हैं। 

विषमता का तात्पर्य एक समाज के लोगों के जीवन अवसर तथा जीवन शैली की भिन्नताओं से है जो सामाजिक परिस्थितियों में इनकी विषम स्थिति में रहने के कारण होती है। उदाहरण के रूप में भूस्वामी तथा भूमिहीन श्रमिक ब्राह्मण व हरिजन की सामाजिक परिस्थितियों में पाये जाने वाले अन्तर के कारण उन्हें प्राप्त जीवन-अवसरों तथा जीवन- शैलियों में भी अन्तर देखने को मिलता है। आन्द्रे बिताई ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि बिना परम्पराओं तथा नियमों के समाज की कल्पना नहीं की जा सकती और ये भी सामाजिक असमानताओं को जन्म देते हैं । प्रकृति द्वारा निर्मित असमानताओं में रूसो – आयु, स्वास्थ्य, शारीरिक शक्ति तथा मस्तिष्क के गुणों को सम्मिलित करते हैं। इनको प्रत्येक समाज में समान महत्व नहीं दिया जाता। यदि हम इस बात को स्वीकार कर लें कि प्रकृति में सर्वत्र अन्तर पाये जाते हैं तो भी यह मानकर चलना पड़ेगा कि अन्तर केवल मूल्यांकन की प्रक्रिया के माध्यम से ही विषमताओं में परिवर्तित होते हैं। 

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