BA 3rd Semester History Major 3 Unit 4 Short Question Answer PDF Download
Q.24. कनिष्क के उपलब्धियाँ
Ans. कनिष्क कुषाण वंश का सबसे महानतम् शासक था, जो 78 ई. में सम्राट बना एवं 101 ई. तक शासन किया। कनिष्क के सम्राट बनने की तिथि से ही उपलब्धियों का दौर शुरू हो जाता है। शक् संवत की शुरुआत उसके गद्दी पर बैठने की तिथि (78 ई.) से ही भानी जाती है। कनिष्क भारत का पहला शासक था जिसने चीन पर आक्रमण करके उसके आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र सिल्क रूट पर कब्जा किया था। कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था । उसने अशोक की तरह ही एशिया एवं चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार करवाया। कनिष्क के संरक्षण में ही कश्मीर के कुण्डलवन विहार में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया था।
Q.25. सातवाहन राज्य
Ans. लगभग 60 ई.पू. में सातवाहन राज्य की नींव सिमुक ने रखी थी। यह गोदावरी तथा कृष्णा नदी के बीच का क्षेत्र था, जिसको अब आंध्र कहा जाता है। शातकर्णि प्रथम सातवाहन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसने अश्वमेघ यज्ञ किया और पूरे दक्कन पर अपनी प्रभुसत्ता की घोषणा की। इस वंश का एक और प्रसिद्ध राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी था, जिसने दूसरी शताब्दी ई. के आरंभिक काल में शासन किया। सातवाहन शासक अपने आपको ब्राह्मण कहते थे और विष्णुमत के अनुयायी थे। वे ब्राह्मणों को खुले दिल से दान देते थे। उन्होंने बौद्धमत को भी संरक्षण दिया । अमरावती के स्तूप तथा कार्ले के चैत्य इसी काल में बनवाये गये। साहित्यक दृष्टि से इस काल में प्राकृत भाषा का उदय हुआ । इस काल के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में है।
Q.26. श्रीमद्भगवद्गीता
Ans. भगवद्गीता महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश है। भगवद्गीता का शाब्दिक अर्थ है : भगवान् का गीत। वास्तव में यह भगवान् का गीत ही है। लगभग सभी हिन्दू परिवारों में इसका पाठ किया जाता है। इस ग्रंथ में 18 अध्याय हैं। इसकी मूल भाषा संस्कृत है । परन्तु आज इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी (रथवान) बने थे। कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कौरवों तथा पांडवों की सेनाएँ युद्ध लड़ने के लिए आमने-सामने खड़ी थी। अर्जुन ने कौरवों की सेना में अपने सगे-संबंधियों को देखकर युद्ध करने से इंकार कर दिया। वह अपने हाथों से अपने भाइयों तथा अन्य संबंधियों को नहीं मारना चाहता था। ऐसे अवसर पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म करने का उपदेश दिया। यही उपदेश इतिहास में ‘गीता’ के नाम से प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण का उपदेश सुनकर अर्जुन ने अपना धनुषवाणं उठा लिया। युद्ध आरंभ हो गया जिसमें पांडव विजयी हुए। भगवद्गीता से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को फल की चिन्ता किए बिना अपना कर्म करना चाहिए ।
Q.27. जैन धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ
Ans. (i) जैन धर्म की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा या अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(ii) जीवों के प्रति अहिंसा खासकर इंसानों, जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े-मकोड़ों को न मारना जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। वस्तुत: जैन अहिंसा के सिद्धांत ने सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन परम्परा को प्रभावित किया है।
(iii) जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है। कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही संभव हो पाता है । इसीलिए मुक्ति के लिए विहारों में निवास करना एक अनिवार्य नियम बन गया ।
(iv) जैन साधु और साध्वी पाँच व्रत करते थे- हत्या न करना, चोरी नहीं करना, झूठ न बोलना और धन संग्रह न करना, अचार्य (अमृषा) और धन संग्रह न करना ।
Q.28. श्वेताम्बर तथा दिगम्बर में अन्तर
Ans. महावीर स्वामी की 468 ई.पू. मृत्यु के पश्चात् लगभग 200 वर्षों बाद मगध में भीषण अकला पड़ा। भद्रबाहु के नेतृत्व में कुछ जैन दक्षिण भारत चले गये ।
स्थूलभद्र के नेतृत्व में कुछ लोग मगध में ही रह गये । .
स्थूलभद्र के अनुयायियों ने श्वेत वस्त्र धारण करना आरम्भ कर दिया। कुछ उदार एवं सुधारवादी हो गये। ये पार्श्वनाथ के अनुयायी थे । यही श्वेताम्बर कहलाये ।
भद्रबाहु के अनुयायी महावीर स्वामी के कट्टर अनुयायी बने रहे। वे नग्न रहते थे। जैन धर्म के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते थे। ये लोग दिगम्बर कहलाये ।
Q.29. महावीर के उपदेशों (शिक्षाएँ)
Ans. शिक्षायें एवं सिद्धांत: जैन धर्म की शिक्षायें बड़ी सरल है। यह कर्म, उच्च आदर्शों तथा आवागमन के सिद्धांतों पर आधारित है। इनमें अहिंसा, मोक्ष, तपस्या, त्रिरत्न पर विशेष बल दिया है।
महावीर की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ (उपदेश) निम्नलिखित हैं-
(i) अहिंसा : महावीर अहिंसा में विश्वास करते थे। उनके अनुसार मनुष्य, जानवर और पेड़-पौधों को, कीड़े-मकोड़े को नहीं मारना चाहिए। वह पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन मानते हैं।
(ii) कर्म सिद्धांत : जैन धर्म के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
(iii) घोर तपस्या में विश्वास : भगवान महावीर घोर तपस्या में विश्वास करते थे। उन्हें स्वयं भी घोर तपस्या के पश्चात् ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तपस्या के द्वारा ही कर्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
(iv) यज्ञ आदि में अविश्वास : भगवान महावीर यज्ञ आदि में विश्वास नहीं करते थे।
(v) मोक्ष की प्राप्ति : मोक्ष की प्राप्ति अर्थात जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने के लिए संसार का त्याग आवश्यक है। इसलिए मुक्ति के लिए विहारों में निवास करना अनिवार्य हो गया। जैन साधु और साध्वी पाँच व्रत करते थे-हत्या न करना, चोरी न करना, झूठ न बोलना, ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा धन संग्रह न करना।
Q.30. वैदिक साहित्य
Ans. वैदिक आर्यों द्वारा रचित साहित्य का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(i) वेद : वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद चार हैं- (a) ऋग्वेद (b) सामवेद (c) यजुर्वेद (d) अथर्ववेद। इन चारों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
(ii) ब्राह्मण ग्रंथ : यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाते हैं। इनमें वैदिक मंत्रों की व्याख्या के साथ यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन किया गया है।
(iii) आरण्यक : वनों तथा अरण्यों में रहकर विभिन्न ऋषियों ने जिस साहित्य की रचना की आरण्यक कहलाते थे।
(iv) उपनिषद् : इनमें आर्यों का अध्यात्मिक और दार्शनिक चिंतन देखने को मिलता है।
Q.31. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में अन्तर / समानता
Ans. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में निम्न अंतर है-
बौद्ध धर्म, | जैन धर्म |
1. बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन है।2. पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है। | 1. जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व को बिल्कुल नहीं मानता। 2. प्रार्थना कुछ भी नहीं है, तप और व्रत ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। |
3. अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। यज्ञ आदि में इनका विश्वास नहीं हैं। | 3. अहिंसा पर अत्यधिक बल देते हैं, जड़ पदार्थों में जीवन का आभास । |
4. मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। | 4. मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिरत्न पर बल देता है। (क) सम्यक ज्ञान (ख) सम्यक कर्म तथा (ग) अहिंसा। |
5. संघ को धर्म का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य होता है। | 5. इनके संघ नहीं होते, परन्तु धर्म-प्रचार के लिए प्रचारक होते हैं । |
6. बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे। | 6. जैन धर्म केवल भारत में ही फला-फूला विदेशो में नही। |
Q.32. महायान और हीनयान के सिद्धांतों में अन्तर
Ans.
महायान और हीनयान में अन्तर :
महायान | हीनयान |
1. महायान मत के मानने वाले गौतम बुद्ध को देवता मानकर उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं। | 1. हीनयान वाले गौतम बुद्ध को आदर्श और पवित्रता का प्रतीक पुरूष मानते हैं। |
2. यह विश्वास और श्रद्धा पर अधिक बल देते हैं। | 2. किसी भी बात को तर्क की कसौटी पर कस-कर विश्वास करते हैं। |
3. महायान मत के अनुयायी संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे। | 3. हीनयान मत के मानने वालों का पूरा साहित्य पाली भाषा में था |
4. जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह धार्मिक नियमों का पालन करना आवश्यक मानते हैं। | 4. जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए शुद्ध तथा अच्छे कर्मों पर बल देते हैं। |
Q.33. गौतम बुद्ध के उपदेश (शिक्षाएँ)
Or, वौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग
Ans. बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांत थे- चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग एवं दस शील।
बुद्ध ने आचरण की शुद्धता हेतु शीलों के अनुपालन पर जोर दिया। बौद्ध धर्म एक के बुद्धिवादी धर्म था जिसमें अंधविश्वासों का स्थान नहीं था। बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है- निर्वाण प्राप्ति । बुद्ध संसार को क्षणिक मानते थे और ईश्वर की सत्ता में इनका विश्वास न था । ईश्वर और आत्मा में विश्वास न होते हुए भी पुनर्जन्म, कर्मफल में इनका विश्वास था । जाति प्रथा में भी इनका अविश्वास था।
बुद्ध के उपदेश सरल, व्यावहारिक और जनभाषा में थे, इसलिए वे शीघ्र ही लोकप्रिय हो गये। उन्होंने जीवन की सादगी पर बल दिया तथा वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध किया। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया—(i) इस संसार में दु:ख है, (ii) इस दुःख का कारण है, (iii) यह कारण इच्छा या वासना है, (iv) वासना को नष्ट करके दुःख को दूर किया जा सकता है।
अष्टांगिक मार्ग : गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित दुःख निरोध हेतु आठ मार्ग निम्न हैं-
1. सम्यक् दृष्टि : चार आर्य सत्यों की सही परख ।
2. सम्यक् वाणी : धर्मसम्मत एवं मृदु वाणी का प्रयोग ।
3. सम्यक् संकल्प : भौतिक वस्तु एवं दुर्भावना का योग ।
4. सम्यक् कर्म : सत् कर्म करना ।
5. सम्यक् आजीव : सदाचारी जीवन जीते हुए ईमानदारी से आजीविका कमान
6. सम्यक् व्यायाम : विवेकपूर्ण प्रयत्न एवं शुद्ध विचार ग्रहण करना ।
7. सम्यक् स्मृति : अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी को सदैव रखना। अर्थात् मन, वचन, कर्म की प्रत्येक क्रिया के प्रति सचेत रहना ।
8. सम्यक् समाधि : चित्त की समुचित एकाग्रता ।
बुद्ध के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति को परम शांति और सुख की प्राप्ति हो जाती है। बाद में चलकर बुद्ध के अनुयायी दो सम्प्रदायों ( हीनयान और महायान) में बँट गये।
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