BA 3rd Semester Geography Minor 3 Unit 2 Short Question Answer PDF Download

Q.12. वान थ्यूनेन के सिद्धान्त को समझाएँ । 

Ans. वान थ्यूनेन का सिद्धान्त : कृषि के लिए किसी क्षेत्र – विशेष में उत्पन्न होने वाली विभिन्न सम्भावित फसलों में कौन-सी फसल उगाई जाए, इसका निर्णय करना पड़ता है। इसके निर्णय में कृषि के स्थानीयकरण का सिद्धान्त सहायक होता है। कृषि स्थानीयकरण का सिद्धान्त जर्मनी के प्रख्यात विद्वान वान थ्यूनेन (Von Thunen) ने 1926 में प्रतिपादित किया था। इस सिद्धान्त से कृषि के स्थानीयकरण की विशद व्याख्या होती है तथा नगर की स्थिति पर भी प्रकाश पड़ता है। कृषि स्थानीयकरण सिद्धान्त का मौलिक आधार दो क्षेत्रों के तुलनात्मक लाभ (Comparative Advantage) का सिद्धान्त है। 


Q.13. निर्वाहन खेती ( Subsistance farming) से आप क्या समझते हैं? 

Ans. यह एक प्रकार की खेती की पद्धति है जिसमें स्थानीय उपभोग के लिए खाद्य फसलों (Food grains) का उत्पादन किया जाता है। इस खेती से संसार की 1/3 जनसंख्या अपना जीवन निर्वाह करती है। यह खेती प्रधानत: मानसून एशिया के क्षेत्र में केन्द्रित है। 

निर्वाहन खेती उस प्रकार की खेती करने की पद्धति है जिसमें प्रधानतः स्थानीय उपयोग (use) के लिए खाद्य फसलों का उत्पादन किया जाता है। 

निर्वाहन खेती भारत, चीन, जापान, इन्डोनेशिया, वर्मा एवं बंगलादेश आदि देशों में होती है। इस खेती में चावल, गेहूँ की खेती होती है। 


Q.14. व्यापारिक खेती (Commercial Agriculture) से आप क्या समझते हैं ? 

Ans. व्यापारिक अन्न की खेती में केवल एक फसल का ही विशेषीकरण होता हैं। इस खेती की प्रधान फसल गेहूँ एवं चावल होती हैं। खेती का सम्पूर्ण कार्य वैज्ञानिक ढंग (scientific method) से किया जाता है। इसमें रासायनिकीकरण की पूरी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। यह खेती विशाल समतल मैदानी प्रदेशों में होती है। 


Q.15. बागाती कृषि से (Plantation Agriculture) आप क्या समझते हैं? 

Ans. बागाती कृषि एक प्रकार का कृषि करने का तरीका है जिसमें एक बार फसल उगा लेने के बाद कई वर्ष तक उत्पादन प्राप्त किया जाता है। 

इसकी मुख्य फसलें चाय, रबर एवं कहवा होता है। कुछ वैज्ञानिकों ने गन्ने को भी बागाती कृषि माना है क्योंकि एक बार बोने पर दो से दस वर्ष तक उत्पादन होता है। 


Q.16. बागाती कृषि विशेषताओं का वर्णन करें। 

Ans. इस खेती की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं जो इसप्रकार है- 

1. इसमें फसलें प्राय: पेड़ों और झाड़ियों में, जैसे- रबड़, वाय एवं कहवा के रूप में होती हैं। इन सभी को एक बार उगा देने पर कई वर्षो तक उत्पादन होता रहता है। 

2. यह कृषि क्षेत्र के एक छोटे भाग पर होती है। 

3. इसमें विशिष्टीकरण पाया जाता है जिसमें एक क्षेत्र में एक-दो फसलों का ही उत्पादन किया जाता है। 

4. यह खेती बड़े फार्मों (Farms) पर होती है। इसमें कार्यालय, निवास गृह, कच्चे माल से पक्का माल बनाने के कारखाने, जैसे- रबड़ जमाने के संयंत्र, कॉफी पीसने के संयंत्र तथा पैकिंग के कारखाने लगे होते हैं। 

5. इसका उत्पादन मुख्य रूप से निर्यात के लिए होता है। 

6. इसमें पर्याप्त पूँजी तथा कुशल एवं अधिसंख्य श्रमिकों (workers) की जरूरत होती है। 

7. इसकी खेती ऊष्ण तथा उपोष्ण प्रदेशों में होती है जबकि इसकी खपत के अधिकांश क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध में स्थित होते हैं। 

8. इस खेती के लिए विकसित परिवहन की जरूरत होती है। 


Q.17. अलफ्रेड वेबर के औद्योगिक स्थानीयकरण के सिद्धान्त के बारे में समझाएँ । 

Ans. जर्मन अर्धशास्त्री अल्फ्रेड वेबर (Alfred Weber) ने न्यूनतम लागत औद्योगिक स्थानीयकरण के सिद्धान्त का प्रतिपादन 1909 ई० में किया। वेबर ने अपने सिद्धान्त को समझाने के लिए कुछ परिकल्पनाएँ की हैं, जो निम्नांकित हैं 

(1) कच्चा माल ( raw material) कुछ स्थानों में ही पाया जाता है। 

(2) बाजार कुछ खास स्थितियों पर ही स्थित होता है। 

(3) श्रमिकों की आपूर्ति स्थिर (Gimmobile) होती है। श्रमिकों की उपलब्धता सभी जगह पर न होकर कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही रहती है। ये क्षेत्र विशिष्ट मजदूरी स्तर पर (specific wage level) असीमित श्रम की आपूर्ति करने में सक्षम होते हैं। 

(4) जिस क्षेत्र में उद्योग की स्थापना करनी है, वह एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में होता है, जहाँ जलवायु, तकनीक तथा जनसंख्या की दशाएँ समान पाई जाती हैं। 

(5) कुछ कच्चे माल कुछ स्थानों पर ही निर्मित होते हैं, उनको स्थानीय पदार्थ (localised material) तथा जो सभी जगह उपलब्ध होते हैं उनको सर्वत्र सुलभ (ubiquitous material) कहा जाता है। 

(6) परिवहन का भाड़ा दूरी एवं भार के अनुपात में बढ़ता है। 


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