BA 1st Semester Indian Ancient History MJC Unit 5 Short Question Answer PDF Download
Q.49. पश्चिमी क्षत्रप (Western Kshatrapas ) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
Ans. पश्चिमी क्षत्रप अनेक स्थानों के क्षत्रपों से प्रसिद्ध थे। इस वंश के दो प्रसिद्ध शासक भूमक और महपान थे । वे अपने को क्षहरात क्षत्रप कहते थे । भूमक के सिक्कों पर उसकी उपाधि ‘क्षत्रप’ मिलती है। उसने सौराष्ट्र (गुजरात) पर अधिकार कर लिया था। उसके सिक्कों पर सिंह शीर्ष और धर्मचक्र अंकित है, जो उसका सम्बन्ध शक क्षत्रपों से जोड़ते हैं।
नहपान (Nahapan) : इस वंश का प्रसिद्ध शासक नहपान था। उसके अभिलेखों में 41 से 46 तक तिथियाँ हैं। अधिकांश विद्वानों का विचार है किं वे तिथियाँ शक् सम्वत् में है। इस आधार पर नहपान की तिथि 119 ई. से 124 ई. तक है । नहपान ने अपने सिक्कों में अपने को ‘राजा’ लिखा है। उसके आरम्भिक सिक्कों में उसकी उपाधि ‘राजा’ है। वर्ष 46 के अभिलेख में उसकी उपाधि ‘महाक्षत्रप’ है। उसके अभिलेखों में उसके साम्राज्य विस्तार पर भी प्रकाश डाला गया है। उसके गोवर्धन, नामात, कापूर प्रभास, भृगु, कच्छ, दशपुर, शर्पारक, पुष्कर आदि जिले शामिल थे। इस आधार पर उसका राज्य उत्तर में अजमेर और राजपूताना तक विस्तृत था। उसके राज्य में काठियावाड़, दक्षिण गुजरात, पश्चिम मालवा, उत्तरी कोंकण, नासिक और पूना जिले शामिल थे।
Q.50. रुद्रदामन प्रथम ( Rudradaman I) (130-150 ई.) कौन थे?
Ans. रूद्रदामन् या रूद्रदामा शकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध था। इसका साम्राज्य बहुत अधिक विस्तृत था। जूना नगर अभिलेख के अनुसार उसके साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी मालवा, महेश्वर, द्वारका, सौराष्ट्र, साबरमती के तट का प्रदेश, मारवाड़, कच्छ, उत्तरी कोंकण आदि प्रदेश उसके राज्य में शामिल थे। निश्चित ही उसे सातवाहनों से संघर्ष करना पड़ा। उसने अपने समकालीन शासक शातकर्णी को पराजित किया।
रूद्रदामा की रूचि प्रशासनिक कार्यों में भी थी। उसने अपने शासनकाल में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित सुदर्शन की झील की मरम्मत करवाई। उसके प्रदेश राज्यपालों के अधीन होते थे। सौराष्ट्र में एक पल्लव अमात्य सुविशाख था। उसने दो प्रकार के मंत्रियों की नियुक्ति की । सलाह देने वाले मंत्रियों को ‘मति सचिव’ और कार्यपालिका के मन्त्रियों को ‘कर्म सचिव’ कहा जाता था । उसने अपनी प्रजा पर कोई बेकार कर नहीं लगाया था। वह अपनी जनता से बलि, भाग और शुल्क नामक कर वसूल करता था। वह प्रजा के हित की ओर बहुत अधिक ध्यान रखता था ।
रूद्रदामन स्वयं विद्वान व्यक्ति भी था । वह व्याकरण, राजनीति, संगीत, तर्कशास्त्र का ज्ञाता था। जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत में लिखा है। इससे स्पष्ट है कि उस काल में संस्कृत की बहुत अधिक उन्नति हुई।
Q.51. डेमेट्रियस I ( Demetrius I) का परिचय दें।
Ans. लगभग 190 ई. पू. में पिता की मृत्यु के पश्चात् डेमेट्रियास बैक्ट्रिया की गद्दी पर आसीन हुआ। उसने अपने पिता के समान साम्राज्य विस्तार की नीति का अनुसरण किया। लगभग 183 ई. पू. में उसने हिन्दूकुश पार करके पंजाब का एक बड़ा भांग जीत लिया। महाभाष्य और युग पुराण का यवन सेनापति सम्भवतः यही है। इसी ने पांचाल को आक्रमण करके चित्तौड़ और साकेत घेर लिया था। स्ट्रैबो के अनुसार एरियाना तथा भारत में राज्य विस्तार का श्रेय डेमेट्रियस तथा मिनेण्डर को है । इधर जब डेमेट्रियस अपनी भारतीय विजयों में व्यस्त था तो यूक्रेटाइड्स नामक साहसी व्यक्ति बैक्ट्रिया की गद्दी का स्वामी बन बैठा। यह घटना 175 ई. पू. के लगभग घटित हुई। जस्टिन ने लिखा है कि जब बैक्ट्रिया पर यूकेटाइड्स का अधिकार था, तब भारत में डेमेट्रियस शासन कर रहा था। टार्न का विचार है कि यूकेटाइडस सम्भवतः एन्टियोकस चतुर्थ का भाई और सेनापति था। डेमेट्रियस प्रथम ग्रीक राजा था जिसने द्विभाषीय सिक्के चलाये।
यूक्रेटाइडस ने डेमेट्रियस का पीछा भारत में भी किया और उससे अथवा उत्तराधिकारियों से सिन्ध तथा पश्चिमी पंजाब जीत लिया। इससे यूथिडेमस वंश वालों को पंजाब के पूर्वी से ही संतोष नहीं करना पड़ा। इस प्रकार डेमेट्रियस जिन भारतीय प्रदेशों को जीता था वह इण्डो- बैक्ट्रियन शासकों के दो प्रतिद्वन्द्वी कुल में विभाजित हो गया। इन दोनों कुलों में छोटे बड़े बहुत से राजा हुए जिनके संबंध में सिक्कों से जानकारी होती है।
Q.52. मिनेण्डर (Meanander) कौन थे ?
Ans. भारतीय यवन (Indo-Greek ) शासकों में मिनेण्डर सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था। इसकी राजधानी साकेत में थी । यह शक्तिशाली शासक था और इसने सिकन्दर से भी अधिक देशों को जीता। अधिकांश इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग के काल में यवन आक्रमण का नेता मिनेण्डर को मानते हैं। हाल में प्राप्त रेह (इलाहाबाद) अभिलेख से इसकी पुष्टि होती है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि मिनेण्डर ने भारत में सुदूर पूर्व आक्रमण किया। उसके सिक्के भारत के अलावा काबुल मशीन और ब्रोच से भी प्राप्त हुए हैं। भारत में उसके आक्रमण के पुरातात्विक अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
मिनेण्डर सम्भवतः बौद्ध धर्मावलम्बी था। बौद्ध ग्रन्थ ‘मिलिन्द – यञ्हो’ में उसका नाम मिलिन्दर मिलता है। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार चारों दिशाओं में किया। वह भारत में तेजी से बढ़ते हुए मगध पहुँच गया था। जहाँ उसे पुष्यमित्र शुंग से युद्ध करना पड़ा। इसकी पुष्टि एक मुद्रा से होती है जिसमें एक भारतीय और एक यवन की आकृति बनी है। लेख के अभाव में युद्ध के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी नहीं होती। सम्भवतः विजय की स्मृति में पुष्यमित्र ने इसका प्रचलन किया होगा।
Q.53. सातवाहन काल में साहित्य का परिचय दें।
Ans. साहित्यिक दृष्टि से यह काल प्राकृत भाषा व उसके साहित्य के विकास का काल था। सातवाहन शासकों के समस्त अभिलेख इसी भाषा में प्राप्त हुए हैं। इस वंश का हाल नामक राजा उच्च कोटि का कवि और साहित्यकार था। उसने प्राकृत भाषा में “गाथा. सप्तशती” नामक एक काव्य ग्रन्थ की रचना की थी, जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता है। राजदरबार द्वारा लेखकों, कवियों और विद्वानों को संरक्षण दिया जाता था। इसी युग में गुणाढ्य ने ‘वृहत् कथा’ की रचना की । ‘सर्व वर्मन’ नामक एक विद्वान् के द्वारा एक व्याकरण ग्रन्थ ‘कातन्त्र’ की रचना भी इस युग में हुई । महाभारत के कुछ अंश और व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक आदि के कुछ ग्रन्थ इसी युग में लिखे गये।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सातवाहन युग में सभ्यता और संस्कृति का पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के बारे में अधिक ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी प्राप्त प्रमाणों के आधार पर इसे एक उन्नत युग कहा जायेगा।
Q.54. कुषाण कौन थे ?
Ans. चीनी इतिहासकारों के अनुसार कुषाण यूची जाति की शाखा के थे। यूची लोग मूलतः उत्तरी-पश्चिमी चीन के कानसू नामक प्रान्त में रहते थे। पहली शताब्दी के उत्तरार्द्ध और दूसरी शताब्दी के उत्तर-पश्चिमी भारत में भारत की विदेशी आक्रान्ता जातियों में कुपाण सबसे अधिक प्रभावशाली जाति थी ।
प्रथम शासक कुजूल कदफिसेज : यह कुषाण वंश का प्रथम शासक था। उसके साम्राज्य में वैक्ट्रिया, अफगानिस्तान, ईरान का पूर्वी भाग तथा भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा के कुछ प्रदेश शामिल थे। वह कुषाण वंश का संस्थापक था।
बीम कदफिसेज : कुजूल कदफिसेज के बाद उसका पुत्र बीम कदफिसेज या कदफिसेज द्वितीय कुषाण साम्राज्य का सबसे योग्य और शक्तिशाली सम्राट था । कनिष्क कौन था ? इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है। वह किस तरह राजसिंहासन पर बैठा इस संबंध में भी मतभेद हैं। प्रो. रैप्सन तथा डॉ. राय चौधरी के अनुसार कनिष्क 78 ई. में ही राजसिंहासन पर बैठा और उसी ने शक संवत् चलाया।
Q.55. पल्लवों की शासन पद्धति को स्पष्ट कीजिए ।
Ans. भारत के प्राचीन इतिहास में काँची के पल्लवों का युग चिरस्मरणीय है । पल्लव राजाओं ने पेनंग और तुगभद्रा के दक्षिण में सबसे प्रथम विशाल राज्य की स्थापना की और लंका तक अपने प्रभाव का विस्तार किया। उनके समय में दक्षिण भारत की बड़ी उन्नति हुई ।
पल्लवों के अनेक ताम्रपत्रों से उनकी शासन-पद्धति पर प्रचुर प्रकाश पड़ता है । हिरहदगल्ली ताम्रपात्र से यह स्पष्ट सूचित होता है कि तीसरी शताब्दी के मध्य में ही पल्लव शासकों ने एक सुव्यवस्थित शासन प्रणाली को जन्म दिया था, जिसका प्रधान स्वयं राजा था। इस शासन-प्रणाली के अन्य स्तम्भ थे – प्रान्तीय गवर्नर तथा विभागीय अमात्यगण। कुछ मंत्रियों को सार्वजनिक उद्यानों, स्नानागारों तथा अरण्यों से संबंधित विभाग का काम सौंपा जाता था। गोपालन की सम्मति में पल्लवों की शासन व्यवस्था कुछ बातों में मौर्यों और कुछ विषयों में गुप्तों की शासन-प्रणाली का स्मरण दिलाती है।
Q.56. कमिष्क (78-123 ई०) का परिचय दीजिए।
Ans. राजा वीम कदफिसेज के बाद कनिष्क कुषाण साम्राज्य का राजा हुआ। वह शूर-वीर, योग्य शाक्तिशाली और प्रतापी शासक था बल्कि कुछ प्रमाणों से ऐसा जाहिर होता है कि सोटर मेगास (Soter Megas) नामक व्यक्ति वीम कदफिसेज के बाद अल्प समय के लिए सम्राट हुआ था। मार्शल महोदय की भी यह उक्ति है कि तक्षशिला में सोटर – मेगास नाम के कुछ सिक्के मिले हैं जिनका समय प्रथम सदी माना जाता है। उसके मरने के बाद कनिष्क राजा हुआ था।
गद्दी पर बैठ जाने के बाद उसने एक सफल शासक के रुप में शासन किया। वास्तव में कनिष्क एक महान शूर, वीर, प्रतापी और कुशल शासक था। वह केवल कुषाण वंश का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत का शासक था। उसका जीवन चरित्र महान था। उसके जीवन- चरित्र की महानता निम्नलिखित बातों से सिद्ध हो जाती है।
Q.57. कनिष्क के उपलब्धियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans. कनिष्क कुषाण वंश का सबसे महानतम् शासक था, जो 78 ई. में सम्राट बना एवं 101 ई. तक शासन किया। कनिष्क के सम्राट बनने की तिथि से ही उपलब्धियों का दौर शुरू हो जाता है । शक् संवत की शुरुआत उसके गद्दी पर बैठने की तिथि (78 ई.) से हो मानी जाती है। कनिष्क भारत का पहला शासक था जिसने चीन पर आक्रमण करके उसके आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र सिल्क रूट पर कब्जा किया था। कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने अशोक की तरह ही एशिया एवं चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार करवाया । कनिष्क के संरक्षण में ही कश्मीर के कुण्डलवन विहार में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया था।