BA 1st Semester Indian Ancient History MJC Unit 3 Short Question Answer PDF Download
Q.32. मौर्य कला की क्या विशेषता थी ?
Ans. मौर्यो के दीर्घकालीन शासन काल में भारत में जिस सुख शांति का वातावरण बना उसके परिणामस्वरूप कला का विकास हुआ। इस समय कला के रूप तथा विषयों को बहुमुखी प्रतिभा प्राप्त हुई और आगामी युग की कला पर इसका प्रभाव पड़ा। इस काल की कला की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
इस युग के स्मारकों, स्तूपों आदि पर जो लेप (ओप) किया गया है वह आज भी यथावत है। भाव प्रकाशन तथा प्रदर्शन में पूर्ण समर्थता है। कठोर पापाण को काटकर छाँटकर बनाये गये स्तम्भों की निर्माण शैली मौलिक है और इनके प्रतीक तथा अन्य चिह्न कलात्मक यथार्थता से ओत-प्रोत हैं। लोक कला की शैली प्रभावशाली, अभूतपूर्व और मौलिक है।
Q.33. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
Ans. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:-
■ मेगास्थनीज की इंडिका : मौर्यकालीन भारत के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिये मेगास्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’ (Indica) एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें तत्कालीन शासन व्यवस्था, समाज, राजनैतिक व आर्थिक अवस्था पर महत्त्वपूर्ण विवरण मिलता है।
■ कौटिल्य का अर्थशास्त्र : कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी तत्कालीन भारत के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है जिससे मौर्यों के बारे में पता चलता है।
■ विशाखदत्त मुद्राराक्षस : इस प्रमुख ग्रंथ में नन्द वंश का चन्द्रगुप्त द्वारा नाश का वर्णन है।
■ जैन और बौद्ध साहित्य : जैन और बौद्ध दोनों धर्मों के साहित्य में तत्कालीन समाज, राजनीति आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
■ अशोक के शिलालेख (Inscription of Ashoka) : स्थान-स्थान पर लगे अशोक शिलालेखों से भी मौर्यकालीन प्रशासन, धर्म, समाज, अर्थव्यवस्था आदि पर प्रकाश पड़ता है।
Q.34. मौर्यकालीन कला एवं स्थापत्य का वर्णन करें ।
Ans. राजप्रासाद : पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त मौर्य का राजप्रासाद वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण था। मगर ह्वेनसांग ने 80 स्तूपों को स्वयं अपनी आँखों से देखा था। साँची का स्तूप मौर्य वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्तूप : बौद्ध परम्परा के अनुसार अशोक ने 84,000 स्तूप बनवाये थे। यह अतिशयोक्ति हो सकती है मगर ह्वेनसांग ने 80 स्तूपों को स्वयं अपनी आँखों से देखा था। साँची का स्तूप मौर्य वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
लोककला : मौर्ययुगीन लोककला का सर्वोत्तम उदाहरण विशाल यक्ष-यक्षणी की प्रतिमाएँ हैं। इनमें मथुरा जिले के परखम ग्राम से प्राप्त यक्ष मूर्ति मणिभद्र’ एवं पटना के दीदारगंज से प्राप्त चवरधारिणी की यक्ष प्रतिमा महत्वपूर्ण है।
Q.35. चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण दें।
Ans. चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई० पू० में मौर्य वंश के क्षत्रीय कुल में हुआ था । जब उसका बचपन समाप्त हुआ तो वह सर्वप्रथम नन्द राजा की सेना में भर्ती हो गया । नन्द वंश को नष्ट करने में चन्द्रगुप्त को चाणक्य से सबसे अधिक मदद मिली। सन् 321 ई०पू० में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठा दिया। चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार लगभग सम्पूर्ण भारत में किया। इस तरह से उसका राज्य पश्चिम में काबुल, कंधार, हैरात और हिन्दुकुश पर्वत से लेकर पूरब में कामरूप (असम) तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक फैला हुआ था।
Q.36. समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। क्यों ?
Ans. समुद्रगुप्त ने मगध राज्य को शक्तिशाली बनाया तथा छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर देश में राजनैतिक एकता की स्थापना की। समुद्रगुप्त की महान् सैनिक सफलताओं के कारण डॉ वी. ए. स्मिथ ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है। नेपोलियन ने लगभग सारे यूरोप को जीता था और समुद्रगुप्त ने भी सारे भारत को जीता था। भारत में कोई भी शासक उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला न था।
Q.37. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें।
Ans. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की गिनती भारत के योग्य सम्राटों में की जाती है। वह एक सफल तथा महान विजेता था। वह साहसी व्यक्ति था । वह कठिन परिस्थितियों में भी अपने धैर्य को नहीं खोता था । उसने अपने बाहुबल से गुप्त साम्राज्य का विस्तार कर उसकी अनन्त सेवा की जिसके फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य की नींव कभी कमजोर नहीं हुई। वह एक बेजोड़ सेनानायक था। वह अपने देश में विदेशियों को देखना नहीं चाहता था । इसलिए उसने उनको यहाँ से खदेड़ दिया था।
उसकी शासन व्यवस्था बहुत अच्छी थी। वह न्याय प्रिय व्यक्ति था जिसके फलस्वरूप उसके साम्राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था थी । उसके शासन काल में अपराध बहुत कम होता था। धर्म के क्षेत्र में वह उदार था। स्वयं तो वह ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था लेकिन अन्य धर्मो से उसको घृणा नहीं थी । उसने दरबार में सभी तरह के धर्मावलम्बियों को भी प्रश्रय दे रखा था क्योंकि उसका एक सेनापति बौद्ध था तो उसका संधि विग्रह मंत्री शिव भक्त था।
उसको साहित्य तथा साहित्यकारों से विशेष प्रेम था। उसका राज दरबार विद्वानों से खचाखच भरा रहता था । विद्वानों और कलाकारों को वह हर तरह से मदद किया करता था। उसके नवरत्नों में भी कालीदास, भवभूति और धन्वन्तरी आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। उनके शासन काल में संस्कृत भाषा की बहुत उन्नति हुई।
अतः उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर यह कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य कुशल तथा ख्यातिप्राप्त सम्राट था।
Q.38. अशोक के धम्म पर टिप्पणी लिखें।
Ans. अशोक का धर्म संकीर्णता से बहुत दूर और साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर उठा हुआ था। लेकिन अशोक के धार्मिक विचारों तथा सिद्धान्तों में क्रमागत विकास हुआ था। कलिंग युद्ध के पहले अशोक ब्राह्मण धर्म को मानने वाला था। वह माँस भी खूब खाता था । राजमहल में असंख्या पशु-पक्षियों का प्रतिदिन वध होता था। लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उसके विचारों में महान् परिवर्तन हो गया। वह हिंसा को तिलांजलि देकर अहिंसा का सदैव के लिए अनन्य भक्त बन गया। इसके लिए उसने ब्राह्मण धर्म को छोड़ दिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया। अशोक ने अपने धर्म से साम्प्रदायिकता का अन्त कर अपने धर्म में विश्व के सभी धर्मों के महत्वपूर्ण तत्वों को ग्रहण किया और इसको विश्व-धर्म में स्थान देने की कोशिश की।
धर्म की उन्नति : अशोक ने अपने धर्म की उन्नति के लिए इसका व्यापक प्रचार करवाया। इस उद्देश्य से उसने निम्नलिखित कार्य किए – • उसने धर्म के सिद्धान्तों को शिलालेखों पर खुदवाया । • उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की । ये कर्मचारी राज्य में घूम – घूमकर लोगों में धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करते थे। • उसने धर्म के नियमों को स्वयं अपनाया ताकि लोग उससे प्रभावित होकर इन नियमों को अपनाएँ ।
Q.39. समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में लिखें।
Ans, समुद्रगुप्त ने उत्तरी भारत के नौ राजाओं पर विजय प्राप्त की और उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उन राजाओं के नाम निम्नलिखित है-रुद्रदेव, मातिल, नागदत्त, चन्द्रवर्धन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नन्दी तथा बलवर्धन ।
Q.40. मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट करें।
Ans. अशोक के बाद उसके अयोग्य तथा दुर्बल उत्तराधिकारियों के कारण मौर्य साम्राज्य का विघटन आरंभ हुआ था । कमजोर केन्द्रीय शासन व्यवस्था के कारण मगथ के अधीन अनेक राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता स्थापित कर ली थी। शक्तिशाली राजतंत्र के अभाव में कई विदेशी शक्तियों ने साम्राज्य के कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था। अंतिम सम्राट बृहद्रथ की सेनापति द्वारा हत्या से मौर्यवंश का अंत हुआ।
मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक द्वारा युद्ध का त्यागना भी एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। सेना कमजोर हो गई। बौद्ध धर्म के प्रसार नीति से ब्राह्मण वर्ग उसके विरोधी हो गए थे। उसके दान देने की नीति से साम्राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी।
Q. 41. अशोक के अभिलेख
Ans. अशोक के अभिलेख जनता की पालि और प्राकृत भाषाओं में लिखे हुए होते थे। इनमें ब्रह्मी-खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग हुआ था। इन अभिलेखों में अशोक का जीवन- वृत्त, उसकी आंतरिक तथा बाहरी नीति एवं उसके राज्य के विस्तार संबंधी जानकारी हैं।
इन अभिलेखों में सम्राट अशोक के आदेश अंकित होते थे।
अशोक के अभिलेख इतिहासकारों के लिए अमूल्य निधि है। इन स्तम्भों पर तीन प्रकार के राज्यादेश मिले हैं-
(i) इनमें सबसे प्रसिद्ध सात स्तम्भ राज्यादेश (The Seven Pillars Edicts) है जो दिल्ली, मेरठ, इलाहाबाद, राजपुरवा (बिहार), लोरिया ऐराज (बिहार) आदि स्थानों पर पाए गये हैं। इनमें अशोक के धर्म व नीति का वर्णन है।
(ii) दूसरी प्रकार के लेख लघु स्तम्भ राज्यादेश (The Minor Pillar Edicts) के नाम से प्रसिद्ध है। ये सारनाथ (बनारस), साँची (भोपाल), इलाहाबाद आदि स्थानों पर मिले हैं।
(iii) तीसरी प्रकार के तराई के स्तम्भ लेख (The Tarai Pillar Edicts) है जो रूमिन्दी और निगलिवा (नेपाल की तराई) में पाये गये हैं। इनमें अशोक द्वारा महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि देखने हेतु यात्रा का वर्णन है।
Q.42. गौतमीपुत्र शातकर्णि और उसकी उपलब्धियाँ का वर्णन करें ।
Ans. प्रारम्भिक जीवन: गौतमीपुत्र शातकर्णि के प्रारम्भिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है । नासिक में उसका एक उत्कीर्ण लेख मिला है, जिसमें उसकी विजयों का वर्णन मिलता है, लेकिन उसके जीवन के संबंध में कोई सूचना नहीं है । उपलब्ध सामग्री के जिसने आधार पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि वह एक महान् और पराक्रमी सम्राट था, सातवाहनों के खोये हुए वैभव को पुनः प्राप्त कर उसे नवजीवन प्रदान किया। वह सातवाहन वंश का सबसे शक्तिशाली तथा पराक्रमी शासक था। उसने सातवाहन वंश की शक्ति तथा गौरव को चरम सीमा पर पहुँचा दिया। उसने लगभग 24 वर्ष (106 ई. से 130 ई.) तक राज किया।
नासिक के अभिलेख से पता चलता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णि ने शक, यवन व पल्लव राजाओं को पराजित किया। उसने क्षत्रियों का नाश किया और अपने वंश की कीर्ति को पुनः स्थापित किया । उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्षत्रप नहपान को परास्त कर उसे समूल नष्ट करना था । उसे नष्ट कर गौतमीपुत्र ने शकों की क्षहराट शाखा का अन्त कर दिया, जो उसके सम्राज्य के लिए सदा एक खतरा थी ।
Q.43. मौर्य के नगर प्रशासन के विषय में संक्षिप्त विवरण दें।
Ans. मेगास्थनीज के वृतान्त से पता चलता है कि पाटलिपुत्र जैसे बड़े नगरों के लिए विशेष नागरिक प्रबंध की व्यवस्था की गई थी। इस नगर के लिए बीस सदस्यों की एक समिति थी, जो बोर्डों में विभक्त की गई थी । प्रत्येक बोर्ड में पाँच सदस्य होते थे। ये बोर्ड निम्नलिखित ढंग से अपना कार्य करते थे-
• पहले का कार्य कला कौशल की देखभाल करना, कारीगरों के सिर्फ वेतन नियत करना और दुःख में सहायता करना आदि था।
• दूसरे का कार्य विदेशियों की देखभाल करना, उनके लिए सुख सामग्री उपलब्ध कराना तथा उनकी निगरानी रखना आदि था ।
• तीसरे बोर्ड का कार्य जन्म-मरण का हिसाब रखना था ताकि कर लगाने तथा अन्य प्रबंध करने में सुविधा रहे।
• चौथे का कार्य व्यापार का प्रबंध करना ।
• पाँचवें का कार्य शिल्पालयों में बनी वस्तुओं की देखभाल करना ।
• छठे बोर्ड का कार्य वस्तुओं की बिक्री पर लगे हुए विक्रय कर को एकत्र करना था।