BA 1st Semester Indian Ancient History MJC Unit 1 Short Question Answer PDF Download

Table of Contents

Q.1. प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के स्रोतों का वर्णन करें। 

Ans. प्राचीन भारतीय इतिहास के विविध स्रोत हैं। यद्यपि प्राचीन भारतीयों में इतिहास – लेखन की वैसी श्रृंखलाबद्ध परम्परा नहीं थी, जैसा हम प्राचीन यूनान या रोम में पाते हैं, तथापि प्राचीन भारत में विभिन्न विषयों से संबद्ध अनेक ऐसे ग्रन्थों की रचना हुई, जो प्राचीन इतिहास की जानकारी उपलब्ध कराते हैं। इन ग्रंथों की विषयवस्तु, धर्म, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन और प्रशासनिक व्यवस्था आदि नीतिशास्त्र से संबद्ध है। अनेक काव्यों, महाकाव्यों और नाटकों की भी रचना प्राचीन भारत में हुई, जो तत्कालीन अवस्था की जानकारी प्रदान करते हैं। साहित्यिक स्रोतों के अतिरिक्त पुरातात्विक साधनों से भी हमें प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है। 

प्राचीन भारत के प्राप्य साधनों को सुविधा के लिए दो भागों में बाँटा जा सकता है – साहित्य और पुरातात्विक । साहित्यिक साधन के भी भेद हैं- धार्मिक तथा लौकिक । धार्मिक साहित्य को ब्राह्मण और अब्राह्मण ग्रंथ में बाँट सकते हैं। इसी प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थ के भी दो भेद हैं श्रुति और स्मृति । 


Q.2. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों के रूप में सिक्कों का महत्व लिखें। 

Ans. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में, सिक्कों का अपना विशेष महत्व है। प्राचीन काल के बहुत से सिक्के मिले हैं। ये सिक्के कई राजवंशों की तिथियाँ स्पष्ट करने में केवल हमारी सहायता नहीं करते, बल्कि कई प्रकार के इतिहासकार को जानने में भी हमारी सहायता करते हैं। हिन्द बैक्ट्रिया (Indo-Bactrian ) और हिन्द यूनानी (Indo-Greek) काल का इतिहास बताने वाले तो केवल सिक्के ही हैं। इसी प्रकार समुद्रगुप्त के समय के सिक्के हमें बताते हैं वह विष्णु का पुजारी था। सिक्कों पर वीणा का चित्र यह सिद्ध करता है कि समुद्रगुप्त गायन विद्या का प्रेमी थी। इसी प्रकार शक राजाओं (The Saka Rulers) के विषय में भी सिक्के हमारी बड़ी सहायता करते हैं। ये सिक्के हमें उस समय की आर्थिक दशा और राजाओं के राज्य विस्तार आदि के बारे में हमारी सहायता करते हैं। 


Q.3. पुरात्तत्व (Archaeology) से आप क्या समझते हैं ? 

Ans. पुरातत्व इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कसौटी है । जिस ऐतिहासिक तथ्य को पुरातत्व का समर्थन प्राप्त नहीं है, उसकी नींव बालू पर टिकी है। समकालीन अर्थात् प्रत्यक्षदर्शी सामग्री ही पुरातात्विक सामग्री कहलाती है। हमारा वही इतिहास प्रामाणिक है जो ऐसी सामग्री को आधार बनाकर लिखा जाता है । विभिन्न स्थानों पर उत्खनन कर पुरातात्विक समाग्री की खोज करने वाले विद्वान पुरातत्ववेत्ता अथवा पुराविद् कहलाते हैं। पुरातत्वविद् धरती के भीतर छिपी हुई पुरातात्विक सामग्री द्वारा किसी भी देश के इतिहास की सीमा को पीछे ढकेल सकते हैं। पुरातत्वविदों ने सिन्धु घाटी के समीप उत्खनन कर जो पुरातात्विक सामग्री प्राप्त की, उसी सामग्री के आधार पर हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक नगरों की कहानी लिखी गई । इतिहास और पुरातत्व का घनिष्ठ सम्बन्ध है। 


Q.4. सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ बताइए । 

Ans. सिन्धु सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, विश्व की प्राचीन एवं महत्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक है। यह 2500 ई.पू. में विकसित हुई थी । 

सिन्धु घाटी सभ्यता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- 

(i) यह एक विकसित नगरीय सभ्यता थी । इस सभ्यता की नगर-योजना अत्यन्त सुनियोजित थी। नगरों में जल निकास का समुचित प्रबंध होता था, सड़कों के किनारे नालियाँ होती थीं, जो पक्की एवं ढंकी हुई थीं। 

(ii) इस सभ्यता की मिली हुई वस्तुओं से ज्ञात होता है कि इस सभ्यता का समाज ‘मातृसत्तात्मक’ था। 

(iii) इस सभ्यता के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ये लोग मातृदेवी पूजा, शिव-पूजा, लिंग एवं योनि पूजा, वृक्ष पूजा, पशु-पूजा तथा नाग-पूजा करते थे । 

(iv) सिन्धु सभ्यता में उन्नत कृषि व्यवस्था थी। जौ, गेहूँ, मटर, कपास आदि प्रमुख फसलें थीं। 

(v) सिन्धु सभ्यता में चित्रात्मक लिपि प्रचलित थी। . 


Q.5. सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी क्यों कहा जाता है? 

Ans. इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र सिन्धुघाटी था । इसके आरंभिक अवशेष यहीं से प्राप्त हुए थे। किन्तु बाद में इस सभ्यता का विस्तृत क्षेत्र हड़प्पा में पाया गया तथा सभ्यता के अवशेष बडे पैमाने में चहाँ पाए गए। हड़प्पा के सांस्कृतिक तत्व भी अनेक स्थलों में पाए गए थे। इन समानताओं के कारण पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया। 


Q.6. हड़प्पा सभ्यता के विस्तार पर प्रकाश डालें। 

Ans. हड़प्पा संस्कृति का विस्तार बहुत अधिक था। यह लगभग 12,99,600 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी। इसमें पंजाब, सिन्धु, राजस्थान, गुजरात तथा बिलोचिस्तान के कुछ भाग और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भाग सम्मिलित थे। इस प्रकार इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में ब्लूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। इसके मुख्य केन्द्र हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, लोथल, कोटदीजी, चाहुँदड़ों, आलमगीरपुर आदि थे। उस समय कोई अन्य संस्कृति इतने बड़े-क्षेत्र में विकसित नहीं थी । 

इस संस्कृति को हड़प्पाई संस्कृति का नाम इसलिए कहा गया है, क्योंकि सर्वप्रथम इस सभ्यता से संबंधित जिस स्थान की खोज हुई, वह हड़प्पाई था। यह स्थान अब पाकिस्तान में है। 


Q.7. सिन्धुघाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की नगर-निर्माण योजना का विवरण दें। 

Ans. सिंधु घाटी के लोग नगरों में रहने वाले थे। वे नगर स्थापना में बड़े कुशल थे। उन्होंने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन लोथल, रोपड़ जैसे अनेक नगरों का निर्माण किया। उनकी नगर व्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं- 

1. हड़प्पा संस्कृति के नगर एक विशेष योजना के अनुसार बनाये गये थे। इन लोगों ने बिल्कुल सीधी ( 90° के कोण पर काटती हुई) सड़कों व गलियों का निर्माण किया था, ताकि डॉ. मैके के अनुसार—“चलने वाली वायु उन्हें अपने आप ही साफ कर दें। ” 

2. उनकी जल निकासी की व्यवस्था बड़ी शानदार थी। नालियाँ बड़ी सरलता से साफ हो सकती थी । 

3. किसी भी भवन को अपनी सीमा से आगे कभी नहीं बढ़ने दिया जाता था और न ही बर्तन पकाने वाली किसी भी भट्टी को नगर के अन्दर बनने दिया जाता था । अर्थात् अनाधिकृत निर्माण (unauthorised constructions) नहीं किया जाता था। 


Q.8. हड़प्पा संस्कृति की जानकारी के स्रोत का वर्णन करें। 

Ans. हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी कराने वाले अनेक स्रोत उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो जैसे विभिन्न नगरों की खुदाई से प्राप्त विभिन्न भवनों, गलियों, बाजारों, स्नानागारों आदि के अवशेष हड़प्पा संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं। इन अवशेषों से हड़प्पा संस्कृति के नगर निर्माण एवं नागरिक प्रबन्ध के विषय में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। 

दूसरे, कला के विभिन्न नमूनों से जैसे मिट्टी के खिलौनों, धातुओं की मूर्तियों (विशेषकर नाचती हुई लड़की की ताँबे की प्रतिमा) आदि से हड़प्पा के लोगों की कला एवं कारीगरी पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। 

मोहरों (Seals) से भी हड़प्पा संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर काफी जानकारी प्राप्त होती है। इससे हड़प्पा संस्कृति से संबंधित लोगों के धर्म, पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों तथा उस समय की लिपि से यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पाई लोग पढ़े-लिखे थे। इस लिपि के पढ़े जाने के बाद उनके संबंध में कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होंगी। 


Q.9. हड़प्पा सभ्यता की सड़क-व्यवस्था पर प्रकाश डालें। 

Ans. हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थीं। यहाँ की प्रमुख सड़क 9.15 मीटर चौड़ी थी जिसे पुरातत्वविदों ने राजपथ कहा है। इस सभ्यता की अन्य सड़कों की चौड़ाई 2.75 से 3.66 मीटर तक भी । गलियाँ 4 फीट तक चौड़ी होती थी । 

सड़कें सीधी दिशा में एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई नगर को अनेक वर्गाकार अथवा चतुर्भुजाकार खण्डों में विभाजित करती थीं। इस पद्धति को ‘ऑक्सफोर्ड-सर्कस’ नाम दिया गया। सड़कें मिट्टी की बनी थीं किन्तु इनकी सफाई की अच्छी व्यवस्था थी। इस प्रकार कूड़ा-कड़कट एकत्रित करने के लिए स्थान-स्थान पर गड्ढे खोदे जाते अथवा कूड़ा पात्र रखे जाते थे। मोहनजोदड़ों की एक सड़क के दोनों किनारों पर चबूतरे बने हुए मिलते हैं। सम्भवतः इन पर बैठकर दुकानदार वस्तुओं की बिक्री किया करते थे। 


Q.10. हड़प्पावासियों द्वारा व्यवहत सिंचाई के साधनों का उल्लेख करें। 

Ans. हड़प्पावासियों द्वारा मुख्यतः नहरें, कुएँ और जल संग्रह करने वाले स्थानों को सिंचाई के रूप में प्रयोग में लाया जाता था। 

• अफगानिस्तान में सौतुगईं नामक स्थल से हड़प्पा नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं। 

• हड़प्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था। 

• गुजरात के धोलाबीरा नामक स्थान से पानी की बावली (तालाब) मिला है। इसे कृषि की सिंचाई के लिए पानी देने के लिए जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था। 


Q.11. हड़प्पा सभ्यता की मुहरों के विषय में आप क्या जानते हैं? 

Ans. मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए होता था। कल्पना कीजिए कि सामान से भरा एक थैला एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा गया। उसका मुख रस्सी से बाँधा गया और गाँठ पर थोड़ी गीली मिट्टी जमा कर, एक या अधिक मुहरों से दबाया गया, जिससे मिट्टी मुहरों की छाप पड़ गई। यदि इस थैले के अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने तक मुद्रांकन अक्षुण्ण रहा तो इसका अर्थ था कि थैले के किसी प्रकार की छेड़-छाड़ नहीं की गई थी। मुद्रांकन से प्रेषक की पहचान का भी पता चलता था। 


Q.12. हड़प्पा लिपि की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना करें। 

Ans. सामान्यतः हड़प्पाई मुहरों पर एक पंक्ति में कुछ लिखा है जो संभवतः मालिक के नाम व पदवी को दर्शाता है। विद्वानों ने यह सुझाव भी दिया है कि इन पर चित्र (आम तौर पर एक जानवर) अनपढ़ लोगों को सांकेतिक रूप से इसका अर्थ बताता था। 

अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं; सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 6 चिह्न हैं। हालाँकि यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है, पर निश्चित रूप से यह वर्णमालीय (जहाँ प्रत्येक चिह्न एक स्वर अथवा व्यंजन को दर्शाता है) नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है-लगभग 375 से 400 के बीच। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी, क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौड़ा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है, जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरम्भ किया और बाद में बाईं ओर स्थान कम पड़ गया। 


Q.13. मोहनजोदड़ों के विशाल स्नानागार का वर्णन करें। 

Ans. सिन्धु घाटी के लोगों ने अनेक प्रकार रहने के मकानों के अतिरिक्त अनेक सार्वजनिक भवनों का निर्माण किया। इन सार्वजनिक भवनों में सबसे मुख्य मोहनजोदड़ों का स्नानागार था जिसका बाहरी घेरा (180×180) फीट है। इस तालाब की आन्तरिक लंबाई 39 फीट, चौड़ाई 23 फीट और गहराई 8 फीट है। इसके चारों ओर काफी बरामदे बने हुए हैं। इस तालाब के पास एक कुँआ है जिसका पानी इस तालाब को भरने के लिए प्रयोग में लाया जाता था। तालाब पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। गन्दे पानी को निकालने के लिए तालाब में अलग रास्ता था। अनुमान लगाया जाता है। कि यह तालाब धार्मिक अवसरों पर नहाने के लिए बनाया गया था । इस तालाब की मजबूती का आधार यह है कि हजारों वर्षो से बिना नष्ट हुए यह लगभग वैसा का वैसा ही बचा है। 


Q.14. विशाल अन्नागार पर संक्षिप्त विवरण दें। 

Ans. हड़प्पा में सबसे प्रसिद्ध इमारत विशाल अन्नागार है। यह 169 फीट लम्बा 133 फीट चौड़ा हैं इसे राजकीय अन्नभंडार कहा गया है। विशाल गोदाम में बारह-बारह दीवारों के दो समूह है। एक पूर्व की ओर और दूसरा पश्चिम की ओर। इन दोनों की बीच लगभग 5 मीटर का अंतर है। प्रत्येक गोदाम का मुख नदी की ओर है। इसका कारण यह है कि इन गोदामों में नदी के मार्ग से सामान आता होगा। इन गोदामों के समीप छोटी-छोटी इमारतें बनी हैं। गोदाम में लगभग 85 मीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में ईंटों से बने हुए अनेक गोलाकार चबूतरे बने हुए हैं तथा प्रत्येक चबूतरे का व्यास 31⁄2 मीटर के लगभग है। इस चबूतरे के बीच में एक छेद बना हुआ है। जिनका प्रयोग शायद अनाज पीसने के लिए किया जाता था। इसके पास ही छोटे-छोटे भंडार थे तथा अनाज पीसने का फर्श तथा मजदूरों के रहने के बहुत से मकान पाए गए हैं। 


Q.15. सिन्धु घाटी सभ्यता की जल निकास प्रणाली का वर्णन करें। 

Ans. मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी । यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार होते थे। भवन . के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नालों को मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी पक्की नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढँक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मोखे (मेन होल) भी बनाये गये थे। नालियों की इस प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती। 


Q.16. हड़प्पा सभ्यता के प्रशासन के बारे में लिखें। 

Ans. यद्यपि हड़प्पा प्रशासन की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है, परन्तु प्राप्त एक मूर्ति से अनुमान लगाया गया कि पुरोहित राजा होता होगा। कुछ विद्वानों ने इस समय जनतांत्रिक व्यवस्था का अनुमान लगाया है। प्रतिनिधि शासन करते थे। कुछ अन्य के मतानुसार कई शासक होते थे। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दो राज्य थे । आधुनिक विद्वानों के मतानुसार नगरीय व्यवस्था के परिणामस्वरूप शिल्पकार तथा व्यापारी वर्गों का यहाँ प्रशासन में विशेष प्रभाव रहा होगा तथा प्रशासन के कई केन्द्र रहे होंगे। 


Q.17. उत्खनन (Excavation) से क्या समझते हैं ? 

Ans. उत्खनन को हिन्दी भाषा में ‘खुदाई’ और अंग्रेजी भाषा में ‘Excavation’ कहा जाता है। आजकल मुख्य रूप से जमीन खोदने की वह क्रिया है, जो गहराई में दबे हुए प्राचीन अवशेषों, इमारती पत्थरों का पता लगाने के लिए की जाती है उसे उत्खनन कहा जाता है। उत्खनन की तकनीकों का विकास खजाने खोजने के समय से ही होता आ रहा है, उत्खनन के प्रयोग में बहुत सी विशिष्ट तकनीकें उपलब्ध है, तथा इनमें से प्रत्येक खुदाई के अपने गुण है, तथा इनसे पुरातत्वविद की शैली का पता चलता है। 


Q.18. हड़प्पा सभ्यता के पतन (विनाश) के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। 

Ans. मेसोपोटामिया की पुरानी सभ्यता 1750 ई० पूर्व तक बनी रही मगर तब तक हड़प्पा की सभ्यता लुप्त हो चुकी थी। हड़प्पा जैसी महान संस्कृति का विनाश रहस्यमयी है। निश्चित प्रमाण के अभाव में विभिन्न विद्वानों द्वारा अनेक तर्क दिए गए हैं- 

(i) विद्वानों का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण संभवतः भौगोलिक परिवर्तन के कारण जलवायु का प्रतिकूल होना रहा होगा और वहां के निवासी उसे सहन न कर सके होंगे। 

(ii) कुछ विद्वान सिंधु घाटी के विनाश का कारण वहाँ की भीषण बाढ़ को मानते हैं। मोहनजोदड़ो नगर की सात सतहें मिली हैं जो सिद्ध करती है यह नगर सात बार बसा और सात बार नष्ट हुआ। 

(iii) इस सभ्यता के कई नगर जली हुई अवस्था में मिले हैं। साथ ही मनुष्यों के अस्थि-पंजर मकानों में पड़े मिले हैं। संभव है – भूकम्प में समस्त नगर ही पृथ्वी के गर्भ में समा गया हो और कुछ भाग जल कर भस्म हो गया हो और यह संस्कृति नष्ट हो गई हो । 

(iv) अनेक विद्वान इस मत के हैं कि हड़प्पा संस्कृति के नष्ट होने में विदेशी आक्रमणकारियों का हाथ होगा। 

(v) आर्य आक्रमणकारियों के कारण यह सभ्यता नष्ट हुआ होगा, यह संदिग्ध प्रतीत होता है। 

अतः उपरोक्त तर्कों के आधार पर कहना उचित है कि हड़प्पा संस्कृति के विनाश के लिए कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं है। 


Q.19. ऋग्वैदिक कालीन सभ्यता क्या है ? 

Ans. वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्य थे। आर्य शब्द का अर्थ है-श्रेष्ठ अथवा कुलीन व्यक्ति। आर्य गोरे रंग के लम्बे-चौड़े, बलिष्ठ, वीर तथा साहसी होते थे। आर्यों ने जिस साहित्य की रचना की, वह वैदिक साहित्य के नाम से विख्यात है। इसी वैदिक साहित्य से हमें वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। वैदिक सभ्यता को दो भागों में बांटा गया है- 

(1) ऋग्वैदिक सभ्यता अथवा पूर्व वैदिक सभ्यता तथा 

(2) उत्तरवैदिक सभ्यता । 

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि ऋग्वेद के रचनाकाल तक आर्यों का विस्तार पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में गंगा के पश्चिमी तट तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्य प्रदेश की उत्तरी सीमा तक हो चुका था। 


Q.20. उत्तरवैदिक कालीन सभ्यता क्या है ? 

Ans. 1100 ई. पूर्व में ऋग्वैदिक काल की सभ्यता समाप्त हो गई। इसके बाद की सभ्यता को ‘उत्तर वैदिक काल की सभ्यता’ के नाम से पुकारा जाता है। अधिकांश इतिहासकारों ने इस सभ्यता का समय लगभग 1000 ई. पूर्व से 600 ई. पूर्व माना है । यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, उपनिषद आदि ग्रन्थों से हमें उत्तर वैदिक काल की सभ्यता के बारे में जानकारी मिलती है। उत्तर वैदिक काल में आर्यों के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन में काफी परिवर्तन हुआ। यह ऋग्वेदिक सभ्यता से काफी भिन्न थी। . 

आर्यों का भौगोलिक एवं राजनीतिक विस्तार : उत्तर वैदिक काल में आर्यों ने पूर्व तथा दक्षिण की ओर विस्तार करना शुरू कर दिया था। गंगा-यमुना के दोआब का क्षेत्र आर्यों की सभ्यता का केन्द्रीय स्थान बन गया था। मध्य देश में कुरु तथा पांचाल आर्यों के दो प्रमुख राज्य थे। पूर्व में कौशल, काशी और विदेह आर्यों के नए केन्द्र बन चुके थे। उत्तर वैदिक साहित्य में काशी, कौशल, विदेह, मगध, बंग (बंगाल) प्रदेश के राज्यों का उल्लेख किया गया है जिससे ज्ञात होता है कि मगध एवं बंगाल तक सम्पूर्ण उत्तरी भारत के क्षेत्र से आर्य लोग परिचित हो चुके थे। दक्षिण में विन्ध्याचल को पार कर गोदावरी नदी के प्रदेशों में बस गए थे। इस प्रकार आर्य लोग दक्षिण के एक बड़े भू-भाग से परिचित हो गये थे। डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय के अनुसार दक्षिण में विदर्भ तक आर्यों का विस्तार हो चुका था। 


Q.21. वैदिक साहित्य पर टिप्प्णी लिखें। 

Ans. वैदिक आर्यों द्वारा रचित साहित्य का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है। 

(i) वेद : वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद चार हैं- (a) ऋग्वेद (b) सामवेद (c) यजुर्वेद (d) अथर्ववेद। इन चारों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है। 

(ii) ब्राह्मण ग्रंथ : यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाते हैं। इनमें वैदिक मंत्रों की व्याख्या के साथ यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन किया गया है। 

(iii) आरण्यक : वनों तथा अरण्यों में रहकर विभिन्न ऋषियों ने जिस साहित्य की रचना की आरण्यक कहलाते थे। 


Q.22. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्व है ? 

Ans. अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुये लेखा-भिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसे धम्म, प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय पहलूओं आदि के विषय में सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । इतिहास लेखन में अभिलेख की महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महोदय ने अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयत्न किया है। 


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