BA 3rd Semester History Major 3 Unit 3 Short Question Answer PDF Download
Q.13. चन्द्रगुप्त के मौर्य का जीवन वृतांत
Ans. चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रारम्भिक जीवन की जानकारी हेतु हमें बौद्ध स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। चन्द्रगुप्त मौर्य साधारण कुल में उत्पन्न हुआ था फिर भी बचपन से ही उसमें उज्जवल भविष्य के सभी लक्षण विद्यमान थे। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार चन्द्रगुप्त का पिता मोरियनगर का प्रमुख था। जब वह अपनी माता के गर्भ में था तभी उसके पिता की किसी सीमान्त युद्ध में मृत्यु हो गई। जन्म होने के बाद वह एक गोपालक को दे दिया गया। गोपालक ने गोशाला में अपने पुत्र की भाँति उसका लालन-पालन किया। कुछ बड़ा होने पर उसे एक शिकारी के हाथों बेच दिया गया। शिकारी के ग्राम में वह बड़ा हुआ । अपनी प्रतिभा के कारण चन्द्रगुप्त शीघ्र ही अपने समवयस्क बालकों में अग्रणी हो गया। वह बालकों की मण्डली का राजा बनकर उसके आपसी झगड़ों का निर्णय किया करता था ।
एक दिन जब ‘राजकीलम्’ नामक खेल में व्यस्त था, चाणक्य उधर से जा रहा था। अपनी सूक्ष्मदृष्टि से उसने इस बालक के भावी गुणों का सूक्ष्म अनुमान लगा लिया। उसने शिकारी को 1,000 कार्षापण देकर चन्द्रगुप्त को खरीद लिया। यही चन्द्रगुप्त आगे चलकर मौर्य साम्राज्य का संस्थापक बना।
Q.14. कलिंग युद्ध का अशोक पर प्रभाव
Ans. अशोक ने अपने शासन के आठवें वर्ष 261 ई० पू० में कलिंग के राजा के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और घायल हुए। इस युद्ध की विभीषिका ने अशोक को आन्दोलित कर दिया। फलतः उन्होंने अब युद्ध न करने की शपथ खाई । उसने भेरी घोष के स्थान पर ‘धम्म घोष’ की नीति अपनाई । यही ‘धम्मघोष’ अशोक को प्राचीन इतिहास का महानतम शासक बनाया।
कलिंग युद्ध के निम्नलिखित प्रभाव अशोक पर पड़े-
1. धर्म विजय : अशोक ने अपने कदम विश्व विजय के स्वप्न को तोड़कर धर्म विजय की ओर बढ़ाये। उसे अब प्रतीत हुआ कि विश्व की सबसे बड़ी विजय मानव-हृदय पर विजय प्राप्त करना है।
2. बौद्ध धर्म ग्रहण करना : कलिंग युद्ध ने अशोक की आँखें खोल दी। उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। यह भी संभव था कि यदि कलिंग युद्ध न होता तो वह बौद्ध धर्म ग्रहण न करता।
3. जीवन शैली में परिवर्तन : कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक ने अपने पूर्वजों की भाँति युद्ध लड़े, शिकार खेले, माँसाहार खाया और विलासिता का जीवन बिताया परंतु इस युद्ध ने उसकी जीवन धारा को ही बदल दिया। वह अहिंसा का पुजारी और दीन-दुखियों का रक्षक बन गया।
4. निर्बल सैनिक संगठन : युद्ध नीति का त्याग करने के साथ ही सेना का मनोबल गिर गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिये सम्भवतः सेना काफी हद तक उत्तरदायी थी।
Q.15. महाजनपद
Ans. उत्तर-वैदिक काल में जिन क्षेत्रीय राज्यों के उदय की प्रक्रियां आरम्भ हुई थी वह छठी सदी ई. पू. तक आते-आते बड़े राज्यों में बदल गई । इन्हीं प्रभुता सम्पन्न राज्य को महाजनपद कहा गया है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुतर निकाय के अनुसार 16 महाजनपद थे जो निम्नलिखित हैं— (i) काशी (ii) कोशल (iii) अंग (iv) मगध (v) वज्जि (vi) मल्ल (vii) चेदि (viii) वत्स (ix) कुरूं (x) पांचाल (xi) मत्स्य (xii) शूरसेन (xiii) अश्मक (xiv) अवन्ति (xv) गांधार (xvi) कम्बोज ।
इन महाजनपदों में वज्जि और मल्ल गणराज्य थे और शेष में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। इन महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली मगध था।
अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा या राजन कहलाता था।
Q.16. कौटिल्य का अर्थशास्त्र
Ans. अर्थशास्त्र नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना चाणक्य ने की थी जिन्हें कौटिल्य अथवा विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रसिद्ध ग्रन्थ में 15 खण्ड, 150 अध्याय, 180 उपविभाग तथा 6000 श्लोक हैं। इस सुप्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय विद्वान प्रारम्भ से ही न केवल आध्यात्मिक प्रश्नों पर विचार करते आये हैं बल्कि उन्होंने भौतिक विषयों पर भी विचार किया है। इस ग्रन्थ का महत्व प्लेटो और अरस्तु की महान कृतियों से कम नहीं है। विद्वानों ने इस ग्रन्थ की तुलना मैकियावेली के ग्रन्थ ‘दि प्रिंस’ से की है। कौटिल्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है।
Q.17. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्त्रोत
Ans. मौर्य वंश के इतिहास की जानकारी साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों स्रोत से होती है। साहित्यिक स्रोतों में यूनानी यात्री मेगस्थनीज द्वारा लिखा गया वृत्तांत और कौटिल्य का अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण है। इसके साथ परवर्ती जैन, बौद्ध, पौराणिक ग्रंथ तथा संस्कृत वाङमय से भी सहायता मिलती है। पुरातात्विक स्रोतों में अशोक के अभिलेख महत्वपूर्ण है। ये अभिलेख अशोक के विचारों की अच्छी जानकारी देते हैं। इसमें उसके धर्म के प्रचार का भी उल्लेख है।
Q.18. अशोक के धम्म खूब
Ans. अशोक का धर्म संकीर्णता से बहुत दूर और साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर उठा हुआ था। लेकिन अशोक के धार्मिक विचारों तथा सिद्धांतों में क्रमागत विकास हुआ था।
कलिंग युद्ध के पहले अशोक ब्राह्मण धर्म को मानने वाला था। वह माँस भी खाता था। राजमहल में असंख्य पशु-पक्षियों का प्रतिदिन वध होता था। लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उसके विचारों में महान् परिवर्तन हो गया। वह हिंसा को तिलांजलि देकर अहिंसा का सदैव के लिए अनन्य भक्त बन गया। इसके लिए उसने बाह्मण धर्म को छोड़ दिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया। अशोक ने अपने धर्म से साम्प्रदायिकता का अन्त कर अपने धर्म में विश्व के सभी धर्मों के महत्वपूर्ण तत्वों को ग्रहण किया और इसको विश्व-धर्म में स्थान देने की कोशिश की ।
धर्म की उन्नति : अशोक ने अपने धम्म की उन्नति के लिए इसका व्यापक प्रचार करवाया। इस उद्देश्य से उसने निम्नलिखित कार्य किए-
1. उसने धर्म के सिद्धांतों को शिला-लेखों पर खुदवाया।
2. उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की । ये कर्मचारी राज्य में घूम-घूमकर लोगों में धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करते थे।
3. उसने धर्म के नियमों को स्वयं अपनाया ताकि लोग उनसे प्रभावित होकर इन नियमों को अपनाएँ ।
4. उसने अपने सभी कर्मचारियों को लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया।
Q.19. मौर्यों का नगर प्रशासन
- Ans. मेगास्थनीज के वृतान्त से पता चलता है कि पाटलिपुत्र जैसे बड़े नगरों के लिए विशेष नागरिक प्रबंध की व्यवस्था की गई थी। इस नगर के लिए बीस सदस्यों की एक समिति थी, जो बोर्डो में विभक्त की गई थी। प्रत्येक बोर्ड में पाँच सदस्य होते थे। ये बोर्ड निम्नलिखित ढंग से अपना कार्य करते थे-
- पहले का कार्य कला कौशल की देखभाल करना, कारीगरों के सिर्फ वेतन नियत करना और दुःख में सहायता करना आदि था।
- दूसरे का कार्य विदेशियों की देखभाल करना, उनके लिए सुख सामग्री उपलब्ध कराना तथा उनकी निगरानी रखना आदि था।
- तीसरे बोर्ड का कार्य जन्म-मरण का हिसाब रखना था ताकि कर लगाने तथा अन्य प्रबंध करने में सुविधा रहे।
- चौथे का कार्य व्यापार का प्रबंध करना ।
- पाँचवें का कार्य शिल्पालयों में बनी वस्तुओं की देखभाल करना ।
- छठे बोर्ड का कार्य वस्तुओं की बिक्री पर लगे हुए विक्रय कर को एकत्र करना था ।
Q.20. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियाँ
Ans. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की गिनती भारत के योग्य सम्राटों में की जाती है। अपने बाहुबल से गुप्त साम्राज्य का विस्तार कर उसकी अनन्त सेवा की जिसके फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य की नींव कभी कमजोर नहीं हुई। वह एक बेजोड़ सेनानायक था। वह अपने देश में विदेशियों को देखना नहीं चाहता था । इसलिए उसने उनको यहाँ से खदेड़ दिया था।
कुटनीतिज्ञता के क्षेत्र में भी वह अद्वितीय था। वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सुकर्म और कुकर्म कुछ भी नहीं समझता था। उसने एक नारी का वेश धारण कर शंक राजा की हत्या की और अपने ज्येष्ठ भ्राता रामगुप्त का वध कर मगध की गद्दी को प्राप्त किया तथा ध्रुवदेवी को अपनी पत्नी बनाया। उसने अन्य देशों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ किया। उसके इन सभी कार्यों से यह पता चलता है कि वह उच्च कोटि का कूटनीतिज्ञ था। उसने एक अच्छे शासक के सभी गुण वर्त्तमान थे। उसकी शासन व्यवस्था बहुत अच्छी थी। वह न्याय प्रिय व्यक्ति था जिसके फलस्वरूप उसके साम्राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था थी।
उसकी साहित्य तथा साहित्यकारों से विशेष प्रेम था। उसका राज दरबार विद्वानों से खचाखच भरा रहा था। विद्वानों और कलाकारों को वह हर तरह से मदद किया करता था । उसके नवरत्नों में भी कालीदास, भवभूति और धन्वन्तरी आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध थे। उनके शासन काल में संस्कृत भाषा की बहुत उन्नति हुई ।
Q.21. चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियाँ
Ans. चन्द्रगुप्त मौर्य ने चौथी शताब्दी ई० पू० में नन्द वंश के शासन का अंत कर मौर्य वंश की स्थापना की। यूनानी शासक सेल्यूकस को परास्त कर चंद्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों को साम्राज्य में मिलाया जो सिकन्दर द्वारा जीते गये थे। सेल्यूकस का दूत मेगास्थनीज लम्बे समय तक मौर्य दरबार में रहा । उसकी पुस्तक इण्डिका में तत्कालीन जीवन का समग्र चित्रण है। लगभग 218 ई० पू० में मैसूर के श्रवणबेलगोला में इसने अंतिम सांस ली।
चंद्रगुप्त मौर्य की सफल विजय
1. पंजाब विजय (Victory of the Punjab): चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् पंजाब को जीत लिया।
2. मगध की विजय (Victory of Magadh) : चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मगध के अंतिम राजा घनानंद की हत्या करके मगध को जीत लिया।
3. बंगाल विजय (Victory of Bengal) : चंद्रगुप्त मौर्य ने पूर्वी भारत में बंगाल को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया।
4. दक्षिणी भारत पर विजय (Victory on South) : जैन साहित्य के अनुसार आधुनिक कर्नाटक तक उसने अपनी विजय पताका फहराई थी।
Q.22. छठी शताब्दी ई० पू० भारत की राजनीतिक स्थिति
Ans. छठी शताब्दी ई० पू० में भारत में कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं थी। सोलह बड़े-बड़े महाजनपद थे। इनके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे राज्य थे, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। आर्य जनों या कबीलों के आधार पर संगठित थे। धीरे-धीरे वे कुछ निश्चित स्थानों पर बस गए। जिन क्षेत्र में जन बस गए, वे जनपद कहलाने लगे। छोटे-छोटे जनपदों को मिलाकर महाजनपदों का निर्माण हुआ और ऐसे 16 महाजनपदों का उल्लेख हमें बौद्ध साहित्य अंगुत्तरनिकाय में मिलता है। अधिकांश महाजनपदों में राजतंत्र था। बाद में, मगध- सबसे शक्तिशाली राज्य हो गया।
Q.23. अशोक के अभिलेख
Ans. अशोक के अभिलेख जनता की पालि और प्राकृत भाषाओं में लिखे हुए थे। इनमें ब्रह्मी-खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग हुआ था। इन अभिलेखों में अशोक का जीवन- वृत्तं, उसकी आंतरिक तथा बाहरी नीति एवं उसके राज्य के विस्तार संबंधी जानकारी हैं।
इन अभिलेखों में सम्राट अशोक के आदेश अंकित होते थे।
अशोक के अभिलेख इतिहासकारों के लिए अमूल्य निधि है। इन स्तम्भों पर तीन प्रकार के राज्यादेश मिले हैं-
(i) इनमें सबसे प्रसिद्ध सात स्तम्भ राज्यादेश (The Seven Pillars Edicts) है जो दिल्ली, मेरठ, इलाहाबाद, राजपुरवा (बिहार), लोरिया ऐराज (बिहार) आदि स्थानों पर पाए गये हैं। इनमें अशोक के धर्म व नीति का वर्णन है।
(ii) दूसरी प्रकार के लेख लघु स्तम्भ राज्यादेश (The Minor Pillar Edicts) के नाम से प्रसिद्ध है। ये सारनाथ (बनारस), साँची (भोपाल), इलाहाबाद आदि स्थानों पर मिले हैं।
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