BA 3rd Semester History Major 3 Unit 2 Short Question Answer PDF Download

Q.8. वैदिककालीन आर्थिक जीवन 

Ans. वैदिक काल में आर्यों की संस्कृति ग्रामीण और कबीलाई थी। पशुपालन प्राथमिक पेशा था और कृषि द्वितीयक व्यवसाय था। इस काल में ‘गाय’ को पवित्र पशु माना जाता था और यह विनिमय के साधन के रूप में प्रयुक्त होती थी । आर्यों की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर होती थीं। गाय को अघन्या (न मारे जाने योग्य पशु) माना जाता था । गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के लिए वेदों में मृत्युदण्ड अथवा देश निकाले जाने की व्यवस्था थी। पणि नामक व्यापारी पशुओं की चोरी के लिए कुख्यात थे । 

व्यापार पर पणि लोगों का अधिकार था। व्यापार मुख्यतः वस्तु विनिमय द्वारा होता था । विनिमय माध्यम के रूप में गायों व घोड़ों सहित ‘निष्क’ का भी उल्लेख मिलता है जो सम्भवतः स्वर्ण आभूषण या सोने का टुकड़ा होता था । वेकनाट सूदखोर थे, जो बहुत अधिक ब्याज लेते थे। ऋग्वेद में बढ़ई, रथकार, बुनकर, चर्मकर, कुम्हार आदि शिल्पियों का उल्लेख मिलता है। सोना के लिए हिरण्य शब्द मिलता है। कपास का उल्लेख कहीं नहीं हैं। 


Q.9. उत्तर वैदिककालीन सभ्यता 

Ans. उत्तर वैदिक काल की सभ्यता के लोगों का मुख्य केन्द्र मध्य देश था, जिसका प्रसार सरस्वती नदी से लेकर गंगा के दोआब तक था। शतपथ ब्राह्मण के विदेह माधव की कथा में उत्तर वैदिक काल में आर्यों के सदानीरा (गण्डक) के पूर्व की ओर प्रसार का उल्लेख । इस काल की सभ्यता का केन्द्र पंजाब से बढ़कर कुरुक्षेत्र (दिल्ली और गंगा-यमुना दोआब का उत्तरी भाग) तक हो गया था। 600 ई० पू० के आस-पास (उत्तर वैदिक काल के अन्तिम दौर में) आर्य लोग कोशल, विदेह एवं अंग राज्य से परिचित थे। 

शतपथ ब्राह्मण में उत्तर वैदिककालीन रेवा (नर्मदा) व सदानीरा (गण्डक) नदियों का उल्लेख है । उत्तर वैदिक साहित्य में त्रिककुद, क्रौंच, मैनाक आदि पर्वतों का उल्लेख है, जो पूर्वी हिमालय क्षेत्र में अवस्थित हैं। 


Q.10. उत्तर वैदिक काल का सामाजिक जीवन 

Ans. उत्तर वैदिक काल में सामाजिक दशा का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था ही थी, लेकिन वर्ण व्यवस्था में कठोरता आने लगी थी। वर्णों का आधार कर्म पर आधारित न होकर जाति पर आधारित होने लगा था। समाज में अनेक धार्मिक श्रेणियाँ उदित हुईं जो कठोर होकर विभिन्न जातियों में परिवर्तित होने लगीं। इस काल में व्यवसाय आनुवंशिक होने लगे थे। पारिवारिक जीवन ऋग्वेद के समान था। समाज पितृसत्तात्मक था, जिसका स्वामी पिता होता था। इस काल में स्त्रियों को पैतृक सम्बन्धी कुछ अधिकार प्राप्त थे। 

उत्तर वैदिक काल में गोत्र व्यवस्था स्थापित हुई। ‘गोत्र’ शब्द का अर्थ है- वह स्थान जहाँ कुल के सम्पूर्ण गोधन को एकसाथ रखा जाता था। बाद में इस शब्द का अर्थ एक मूल पुरुष का वंशज हो गया । जाबालोपनिषद में चारों आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थं एवं संन्यास) का उल्लेख मिलता है। इस काल में आर्यों को चावल, नमक, मछली, हाथी तथा बाघ आदि का ज्ञान हो गया था। 


Q.11. उत्तर वैदिककालीन आर्थिक जीवन 

Ans. उत्तर वैदिक काल में पशुपालन के स्थान पर कृषि प्रथम पेशा बन गया। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में कृषि से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं – जुताई, बुवाई, कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख है। इस समय आर्य सम्पूर्ण गंगा घाटी में कृषि करने लगे थे। इस काल में लोहे से बने उपकरणों के प्रयोग के कारण कृषि क्षेत्र में क्रान्ति आ गई। यजुर्वेद में लोहे के लिए ‘श्याम अयस’ एवं ‘कृष्ण अयस’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। लोहे से बने उपकरणों के प्रयोग से कृषि विस्तार के साथ-साथ फसलों की संख्या में भी वृद्धि हुई और धान प्रमुख फसल बन गई। 

उत्तर वैदिक काल में कृषि में विस्तार, शिल्पों में कुशलता, व्यापार एवं वाणिज्य में विस्तार के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई । इस काल के लोग चार प्रकार के बर्तनों (गृद्भाण्डों) से परिचित थे – काले व लाल रंग मिश्रित मृद्भाण्ड, काले रंग के मृद्भाण्ड, चित्रित धूसर मृद्भाण्ड और लाल मृद्भाण्ड । ब्राह्मण ग्रन्थों में ‘श्रेष्ठिन’ का भी उल्लेख मिलता है। ‘श्रेष्ठिन’ श्रेणी का प्रधान व्यापारी होता था । 


Q.12. उत्तर वैदिककालीन धर्म और दर्शन 

Ans. उत्तर वैदिक काल में भी कर्मकाण्डों का उद्देश्य मुख्यतः भौतिक सुखों की प्राप्ति करना था। इस काल में गंगा-यमुना दोआब आर्य संस्कृति का केन्द्रस्थल बन गया। ऐसा अनुमान है कि सम्पूर्ण उत्तर वैदिक साहित्य कुरु- पांचालों के दूसरे प्रदेशों में विकसित हुआ। यज्ञ इस संस्कृति का मूल था। यज्ञ के साथ-साथ अनेकानेक अनुष्ठान व मन्त्रविधियाँ भी प्रचलित हुई। ऋग्वैदिक काल के दो सबसे बड़े देवता इन्द्र एवं अग्नि अब उतने महत्त्वपूर्ण नहीं रहे। इन्द्र के स्थान पर प्रजापति (सृजन के देवता) को सर्वोच्च स्थान मिला। इस काल के 

दो अन्य प्रमुख देवता रूद्र (पशुओं के देवता) व विष्णु (लोगों के पालक) माने जाते हैं। इस काल में वर्ण व्यवस्था कठोर रूप ले चुकी थी अतः कुछ वर्णों के अपने अलग से देवता हो गए। पूषन जो पहले पशुओं के देवता थे अब शूद्रों के देवता हो गए। 

उत्तर वैदिक काल के दो महाकाव्य महाभारत जिसका पुराना नाम जयसंहिता था, यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है दूसरा महाकाव्य रामायण है। उत्तर वैदिक काल में ही बहुदेववाद, वासुदेव सम्प्रदाय एवं षड्दर्शनों (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त) का बीजारोपण हुआ। मीमांसा को ‘पूर्व मीमांसा’ एवं वेदान्त को ‘उत्तर मीमांसा’ के नाम से भी जाना जाता है। 


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