BA 3rd Semester History Major 3 Unit 1 Short Question Answer PDF Download

Q.1. पूर्व ऐतिहासिक युग या पाषाणकालीन संस्कृति का संक्षिप्त परिचय 

Ans. इतिहास के पूर्व ऐतिहासिक गुम से तात्पर्य उस काल से है, जिसके सम्बन्ध में कोई लिखित सामण नहीं मिलता है। 

भारत में पाषाणकालीन संस्कृति का अन्वेषण सर्वप्रथम सन् 1863 में प्रारम्भ हुआ जब भारतीय तत्त्व सर्वेक्षण विभाग के विद्रान रॉबर्ट बुरा पुट द्वारा गद्वारा के पास स्थित पल्लवरग नामक स्थान से पूर्व पाषाण काल का एक पाषाण उपकरण प्राप्त किया गया। इसके बाद विलियम किंग, बाउन, काकबर्न, सी०एल० कार्लाइल आदि विज्ञानी द्वारा अपनी खोजी के परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों से कई पूर्व पाषाण काल के उपकरण प्राप्त किए गए। सबसे महत्त्वपूर्ण अनुसन्धान सन् 1935 में डी० टेरा व पीटरसन द्वारा किया गया। इन दोनों विद्वानी के दिशा निर्देशन में गेल कैम्बीज अभियान दल ने शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बरो हुए पोतवार के पठारी भाग का व्यापक सर्वेक्षण किया। इन अनुसन्धानी से भारत की पूर्वपाषाणकालीन सभ्यता के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी हमारे सामने आई। विद्वानों की दृष्टि से इस सभ्यता का उदय और विकास प्रातिनूतन काल (प्लाइस्टोसीन युग) में हुआ। इस काल की अवधि आज से लगभग पाँच लाख वर्ष पूर्व मानी जाती है। 


Q.2. निम्न पुरापाषाण काल 

Ans. पुरापाषाण काल को पत्थर से निर्मित उपकरणों के आधार पर विभिन्न कालों में विभक्त किया गया है, निम्न पुरा पाषाण काल इन्हीं में से एक है। इसके उपकरण सर्वप्रथम सोहन नदी (सिन्धु नदी की छोटी सहायक नदी घाटी से प्राप्त हुए, इसी कारण इसे ‘सोहन संस्कृति’ भी कहा जाता है। इस काल में पेबुल, चॉपर तथा चॉपिंग उपकरणों के साक्ष्य मिलते हैं। पेबुल, पत्थर के वे उपकरण होते थे, जो पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाते थे। चॉपर, बड़े आकार वाला उपकरण है, जो पेबुल से बनाया जाता था। चॉपिंग उपकरण द्विधारी होते हैं अर्थात् पेबुल के ऊपर दोनों किनारों को छीलकर उनमें धार बनाई जाती थी । 


Q.3. मध्य पुरा पाषाण काल 

Ans. मध्य पुरापाषाण काल में बहुसंख्यक कोर, पलेक व ब्लेड उपकरण प्राप्त हुए हैं । फलकों की अधिकता के कारण मध्य पुरापाषाण काल को ‘फलक संस्कृति’ भी कहा जाता है। मध्य पुरापाषाण काल के औजारों का निर्माण अच्छे प्रकार के क्वार्टजाइट पत्थर से किया गया है। इस काल के उपकरण महाराष्ट्र में नेवासा, झारखण्ड में सिंहभूमि, उत्तर प्रदेश में चकिया (वाराणसी)), बेलन घाटी ( प्रयागराज ), मध्य प्रदेश के भीमबेटका गुफाओं तथा सोन घाटी, गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र, हिमाचल में व्यास, बानगंगा तथा सिरसा घाटियों आदि विविध पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। 

भारत में इस काल के उपकरण सोन घाटी (मध्य प्रदेश), सिंहभूम (झारखण्ड), जागदहा, भीमबेटका, रामपुर बघेलान, बाघोर (मध्य प्रदेश), पटणे, भदणे व इनामगाँव (महाराष्ट्र), रेनीगुंटा, वेमुला, कुर्नूल गुफाएँ (आन्ध्र प्रदेश), शोरापुर दोआब (कर्नाटक) तथा बूढ़ा, पुष्कर (राजस्थान) स्थानों से मिले हैं। 


Q.4. उत्तर अथवा नवपाषाण काल का संक्षिप्त परिचय 

Ans. भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वाधिक प्राचीन नवपाषाणिक बस्ती मेहरगढ़ (पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित ) है, जिसका काल 7000 ई० पू० माना गया है। इस काल के प्रमुख केन्द्र बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश), रेनीगुंटा (आन्ध्र प्रदेश), सोन घाटी (मध्य प्रदेश), सिंहभग (झारखण्ड) इत्यादि हैं। नवपाषाणकालीन स्थल बुर्जहोम एवं गुटकराल से अनेक गर्तावास गृद्भाण्ड एवं हड्डी के औजार प्राप्त हुए हैं। निरौद (बिहार) से प्रचुर मात्रा में के उपकरण पाए गए हैं जो मुख्य रूप से हिरण के सींगों के हैं। कोल्डिहवा (प्रयागराज) मे चावल का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। 

नवपाषाण काल की संस्कृति अपनी पूर्वगामी संस्कृतियों की तुलना में अधिक विकसित थी । इस काल का मानव न केवल खाद्य पदार्थों का उपभोक्ता था, वरन उत्पादक भी था। वह कृषिकार्य और पशुपालन से पूणतः परिचित हो चुका था । यहाँ मिले उपकरणों में कुल्हाड़ी, बैंसुली, छेनी, खुरपी, कुदाल, हथौड़े आदि प्रमुख हैं। 


Q.5. महापाषाण काल 

Ans. नवपाषाण काल की समाप्ति के बाद दक्षिण में जो संस्कृति उदित हुई, उसे ‘महापाषाण काल’ कहा जाता है। पत्थर की कबों को ‘महापाषाण’ कहा जाता था। इन कबी में शवों को दफनाया जाता था । महापाषाण काल से सम्बन्धित लोग साधारणतः पहाड़ों की ढलान पर रहते थे । यहाँ की कब्रों में लोहे के औजार, घोड़े के कंकाल तथा पत्थर एवं सोने के गहने भी प्राप्त हुए हैं। महापाषाण काल में आंशिक शवाधान की पद्धति भी प्रचलित थी जिसके अन्तर्गत शवों को जंगली जानवरों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था। ब्रह्मगिरि, आदिचन्नलूर, चिंगलपत्तु, नागार्जुनकोंडा आदि इसके प्रमुख शवाधान केन्द्र थे । 

महापाषाण काल के लोग धान के अतिरिक्त रागी की खेती भी करते थे । इतिहासकारों ने महापाषाण काल का निर्धारण 1000 ई०पू० से लेकर प्रथम शताब्दी ई०पू० के मध्य तक किया। 


Q.6. सिन्धु घाटी सभ्यता की देन 

Ans. सिन्धु घाटी सभ्यता की देन के सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं 

(1) भारतीय (हिन्दू) सभ्यता के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, कलात्मक पक्षों का आदि रूप हमें सैन्धव सभ्यता में देखने को मिलता है। सामाजिक जीवन के क्षेत्र में इस चातुवर्ण व्यवस्था के बीज सैन्धव सभ्यता में पाते हैं। 

(2) आर्थिक जीवन के क्षेत्र में हम पाते हैं कि कृषि, पशुपालन, उद्योग-धन्धे, व्यापार- वाणिज्य आदि का संगठित रूप से प्रारम्भ सैन्धववासियों ने ही किया जिनका विकास बाद की सभ्यताओं में हुआ। 

(3) भारतीय कला के विभिन्न तत्त्वों का मूल रूप भी हमें सैन्धव काल में दिखाई देता है । भारतीयों को दुर्ग निर्माण तथा प्रचारों के निर्माण की प्रेरणा यहीं के कलाकारों ने दी थी। सुनियोजित ढंग से नगर बसाने का ज्ञान भी हमें सैन्धव सभ्यता से ही प्राप्त होता है। 


Q.7. हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण 

Ans. हड़प्पा सभ्यता कैसे समाप्त हुई, इसको लेकर विद्वानों में मतभेद है। फिर भी इसके पतन के निम्नलिखित कारण दिये जाते हैं- 

(i) सिन्धु क्षेत्र में आगे चलकर वर्षा कम हो गयी। फलस्वरूप कृषि और पशुपालन में कठिनाई होने लगी। 

(ii) कुछ विद्वानों के अनुसार इसके पास का रेगिस्तान बढ़ता गया । फलस्वरूप मिट्टी में लवणता बढ़ गयी और उर्वरता समाप्त हो गयी। इसके कारण सिंधु सभ्यता का पतन हो गया। 

(iii) कुछ लोगों के अनुसार यहाँ भूकंप आने से बस्तियाँ समाप्त हो गयी। 

(iv) कुछ दूसरे लोगों का कहना था कि यहाँ भीषण बाढ़ आ गयी और पानी जमा हो गया। इसके कारण लोग दूसरे स्थान पर चले गये। 

(v) एक विचार यह भी माना जाता है कि सिंधु नदी की धारा बदल गयी और सभ्यता का क्षेत्र नदी से दूर हो गया। 


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