भारतीय यवन कौन थे ? उनका संक्षिप्त इतिहास बताइए तथा भारत पर उनके प्रभाव का वर्णन कीजिए ।

भारतीय यवन (Indo-Greeks ) : सिकन्दर ने यूनान लौटते समय अपना सम्पूर्ण साम्राज्य अपने सेनापतियों में विभाजित कर दिया था। इन्होंने विभिन्न भागों में अपने साम्राज्य स्थापित किये। इन्हीं में से बैक्ट्रिया के यूनानी इण्डो-ग्रीक या भारतीय यवन कहलाये। सीरिया के शासक सैल्युकस का समकालीन बैक्ट्रिया का शासक डायोडोटस था। वह महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने बैक्ट्रिया को सीरिया साम्राज्य के चंगुल से मुक्त कर लिया। डायडोटस प्रथम के पश्चात् उनका पुत्र डायोडोट्स द्वितीय गद्दी पर बैठा । ई० पू० तृतीय शताब्दी के अन्त में डायोडोट्स द्वितीय का एक अन्य यूनानी सेनापति यूथिडेमस द्वारा मारा गया। जब सीरिया साम्राज्य के शासक ऐन्टियोकस तृतीय ने 212 ई० पू० के लगभग अपने विद्रोही प्रान्तों को फिर से विजित करना चाहा तो बैक्ट्रिया के शासक यूथिडेमस से उठाना पड़ा। दोनों में सन्धि हो गयी और सीरिया के शासक ने बैक्ट्रिया की स्वतन्त्रता स्वीकार कर ली। इस मैत्री को स्थाई बनाने के लिए ऐन्टियोकस तृतीय ने अपनी पुत्री का विवाह यूथिडेमस के पुत्र डेमोट्रियस. से किया। टार्न का कहना है कि यूथिडेमस ने चाहे जिससे भी विवाह किया हो वह एन्टियोकस तृतीय की पुत्री नहीं थी। फिर भी इसमें कोई सन्देह नहीं कि डेमेट्रियस के व्यक्तित्व का ऐन्टियोकम के ऊपर काफी प्रभाव पड़ा था। 206 ई० पू० ने लगभग बैक्ट्रिया से मुक्त होकर ऐन्ट्रियोकस ने हिन्दुकुश धार लिया। सुभागसेन ने आत्म समर्पण कर दिया। इसके बाद ऐन्ट्रियोकस आगे नहीं बढ़ सका। उसके राज्य में विद्रोही शक्तियाँ प्रबल हो गई। तत्पश्चात् बैक्ट्रिया के ग्रीक राजाओं ने भारत में साम्राज्य विस्तार के लिए काफी प्रयास किये। 

डेमेट्रियस 1. (Demetrius 1) : लगभग 190 ई० पू० में पिता की मृत्यु के पश्चात् डेमेट्रियास बैक्ट्रिया की गद्दी पर आसीन हुआ । उसने अपने पिता के समान साम्राज्य विस्तार की नीति का अनुसरण किया। लगभग 183 ई० पू० में उसने हिन्दूकुश पार करके पंजाब का एक बड़ा भाग जीत लिया। महाभाष्य और युग पुराण का यवन सेनापति सम्भवतः यही है। इसी ने पांचाल को आक्रमण करके चित्तौड़ और साकेत को घेर लिया था। स्ट्रैबो के अनुसार एरियाना तथा भारत में राज्य विस्तार का श्रेय डेमेट्रियस तथा मिनेण्डर को है। इधर जब डेमेट्रियस अपनी भारतीय विजयों में व्यस्त था तो यूक्रेटाइड्स नामक साहसी व्यक्ति बैक्ट्रिया की गद्दी का स्वामी बन बैठा। यह घटना 175 ई० पू० के लगभग घटित हुई । जस्टिन ने लिखा है कि जब बैक्ट्रिया पर यूक्रेटाइड्स का अधिकार था, तब भारत में डेमेट्रियस शासन कर रहा था। टार्न का विचार है कि यूक्रेटाइड्स सम्भवतः एन्टियोकस चतुर्थ का भाई और सेनापति था। डेमेट्रियस प्रथम ग्रीक राजा या जिसने द्विभाषीय सिक्के चलाये। 

यूक्रेट्राइडस ने डेमेट्रियस का पीछा भारत में भी किया और उससे अथवा उत्तराधिकारियों से सिन्ध तथा पश्चिमी पंजाब जीत लिया। इससे यूथिडेमस वंश वालों को पंजाब के पूर्वी भाग से ही संतोष करना पड़ा। इस प्रकार डेमेट्रियस जिन भारतीय प्रदेशों को जीता था। वह sush – बैक्ट्रियन शासकों के दो प्रतिद्वन्द्वी कुल में विभाजित हो गया। इन दोनों कुलों में छोटे बड़े बहुत से राजा हुए जिनके सम्बन्ध में सिक्कों से जानकारी होती है। 

मिनेंडर (Menander) : भारतीय यवन शासकों में मिनेण्डर सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था । इसकी राजधानी साकेत में थी। यह शक्तिशाली शासक था और इसने सिकन्दर से भी अधिक देशों को जीता। अधिकांश इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग के काल में यवन आक्रमण का नेता मिनेण्डर को मानते हैं। हाल में प्राप्त (इलाहाबाद) अभिलेख से इसकी पुष्टि होती है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि मिनेण्डर ने भारत में सुदूर पूर्व आक्रमण किया। उसके सिक्के भारत के अलावा काबुल मशीन और ब्रोच से भी प्राप्त हुए हैं। भारत में उसके आक्रमण के पुरातात्विक अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। 

मिनेण्डर सम्भवतः बौद्ध धर्मावलम्बी था। बौद्ध ग्रन्थ ‘मिलिन्द – यञ्हो’ में उसका नाम मिलिन्द मिलता है। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार चारों दिशाओं में किया। वह भारत में तेजी से बढ़ते हुए मगध पहुँच गया था। जहाँ उसे पुश्यमित्र शुंग से युद्ध करना पड़ा। इसकी पुष्टि एक मुद्रा से होती है जिसमें एक भारतीय और एक यवन की आकृति बनी है । लेख के अभाव में युद्ध के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी नहीं होती । सम्भवतः विजय की स्मृति में पुष्यमित्र ने इसका प्रचलन किया होगा। 

मिनेण्डर की रुचि निर्माण कार्यों में थी। उसकी राजधानी साकेत (स्याल-कोट) सुन्दर. थी। उसमें अनेक पार्क, बाग, तालाब और सुन्दर भवन बने हुए थे। प्लूटार्क के विवरण से इसकी पुष्टि होती है। वह एक न्यायप्रिय शासक था। अपने इन कार्यों के कारण वह बहुत प्रसिद्ध हो गया था। प्लूटार्क ने लिखा है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके अस्थिवशेष के लिए प्रजा में झगड़ा हो गया। विद्वान टार्न के अनुसार मिनेण्डर की मृत्यु 50-45 ई० पू० में हुई। मिनेण्डर के उत्तराधिकारियों के विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती। 

यूक्रेटाइड्स का राजवंश (Dynasty of Ucratides) : प्राप्त प्रमाणों से पता चलता है कि यूक्रेटाइड्स बहुत दिन तक शासन नहीं कर सका। प्रसिद्ध इतिहासकार जस्टिन के अनुसार जब वह अपने भारतीय आक्रमणों से वापस लौट रहा था। उसी समय उसके पुत्र हेलियोक्लीज ने उसकी हत्या कर दी। टार्न इससे सहमत नहीं है । उनके अनुसार यह हत्या सम्भवतः यूथिडेमस कुल के किसी व्यक्ति ने की होगी। इसके विपरीत स्मिथ का कहना है कि पितृहन्ता एपोडोट्स था । हेलियोक्लीज बैक्ट्रिया का अन्तिम यवन शासक था। इसके बाद बैक्ट्रिया पर सम्भवतः शकों का अधिकार हो गया। 

हेलियोक्लीज के कुछ उत्तराधिकारियों ने अफगानिस्तान की घाटी तथा भारतीय सीमा प्रान्त पर शासन किया। इनके विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती। इनमें अंतलिकित सर्वाधिक प्रसिद्ध था। बेसनगर अभिलेख से इसके विषय में जानकारी मिलती है। उसने अपने दूत हेलिपोडोरस के काशीपुम भागभद्र के राजदरबार में भेजा था। उसने तक्षशिला में अपनी राजधानी स्थापित की। उसने अपने शासन काल में अनेक प्रकार के सिक्के चलाये ! 

अन्तिम यवन शासन हर्मियस था। यह भारतीय सीमा- प्रान्त और काबुल की घाटी में शासन करता था। सम्भवतः कदफिस ने इनकी सत्ता को प्रथम शताब्दी ई० पू० उत्तरार्द्ध में समाप्त कर दिया। 

भारतीय यवन सम्पर्क का प्रभाव 

(Effects of Indo-Greek Contact) 

यवनों ने विशेष रूप से डेमेट्रियस और मिनेण्डर आदि ने काफी समय तक शासन किया जिसका भारत पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा। परन्तु इस बात को लेकर विद्वानों में मतभेद है। बी० ए० स्मिथ, डब्ल्यू टार्न आदि इसका विरोध करते हैं। उनके अनुसार यवनों का आक्रमण क्षणिक था । भारतीय संस्कृति पर उनके आक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा इस सम्बन्ध में वे सिक्कों का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । यवनों के सिक्कों पर एक ओर जहाँ ग्रीक भाषा का अंकन है वहाँ दूसरी ओर भारतीय भाषाओं में भी लेख अंकित है। निश्चित रूप से उनका बहुत अधिक प्रभाव नहीं था । परन्तु इन विद्वानों की बातों को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनका प्रभाव निम्नलिखित क्षेत्रों में दिखाई देता है- 

(1) साहित्य पर प्रभाव (Effects on literature) : भारतीय साहित्य पर यवनों पर प्रभाव पड़ा, जिसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई देता है। विद्वानों का विचार है कि नाटकों का ‘वनिका’ (पटाक्षेप) शब्द यवन प्रभाव की ही देन है। इस प्रकार यूनानी संस्कृति ने सुखान्त नाटकों की परम्परा का विकास किया। 

(2) सिक्कों पर प्रभाव (Effect on literature) : भारतीय सिक्कों पर यवन प्रभाव दिखाई देते हैं। प्राचीन भारतीय आहत सिक्कों के स्थान पर अब सुन्दर सिक्के बनने लगे जिनका आकार निश्चित होता था। इनके आक्रमण के पश्चात् लिखित और निश्चित चिह्न वाले सिक्के बनने लगे। मुद्राशास्त्रियों का विचार है कि भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के यवनों ने ही चलाये । इन सिक्कों पर एक ओर राजा की आकृति और दूसरी ओर देवता की आकृति मिलती है। इन्हीं के सिक्कों के अनुरूप आगे चलकर शक, पल्लव और कुषाण राजाओं ने भी सिक्के जारी किये। 

(3) विज्ञान पर प्रभाव (Effects on Science) : विज्ञान के क्षेत्र में भी यवनों से भारतीयों को जानकारी प्राप्त हुई। यूनानी चिकित्सकों से भारतीय बहुत अधिक प्रभावित थे। उन्होंने यूनानियों से विज्ञान की अनेक बातें सीखी। 

(4) पंचांग की खोज ( Search of Calender) : भारतीयों ने यूनानियों से कैलेंडर बनाना सीखा। इसमें सप्ताह को सात दिनों में विभाजित किया गया। उन्होंने विभिन्न ग्रहों के नाम भी दिये। 

(5) ज्योतिष का ज्ञान (Knowledge of Astronomy) : नक्षत्रों को देखकर भविष्य बताने की कला भारतीयों ने यूनानियों से ही सीखी। ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में भारत यूनान के प्रति ऋणी है। इसकी पुष्टि गार्गी संहिता और वराह मिहिर के विवरण से होती है। इसमें यवनों को दुष्ट बताया गया है, परन्तु ज्योतिष की दृष्टि में उनकी प्रशंसा की गयी है। 

(6) कला पर प्रभाव (Effects of Arts ) : यूनानियों ने भारतीय कला को भी प्रभावित किया। उन्हीं के प्रभाव से गांधार कला का विकास हुआ जिसमें बुद्ध के अलावा अनेक प्रकार की मूर्तियों का निर्माण किया गया। इस प्रभाव के सम्बन्ध में रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है—‘“इसमें सन्देह नहीं कि ग्रीक शैली भारत की अलंकार कला को वास्तु के क्षेत्र में दीर्घ काल तक प्रभावित करती रही । पाश्चात्य भारतीय अभिप्रायों ने कालान्तर में नितान्त भारतीय बना डाला। 

(7) व्यापार पर प्रभाव (Effects on Trade) : दोनों के सम्पर्क से व्यापार को भी बढ़ावा मिला। दोनों देशों का एक-दूसरे के साथ व्यापार होने लगा। 

(8) धर्म पर प्रभाव (Effects on Religion) : भारतीय संस्कृति ने यूनानी संस्कृति को भी पर्याप्त सीमा तक प्रभावित किया। अनेक यवन शासकों ने भारतीय धर्मों को अपना लिया। मिनेण्डर बौद्ध धर्म का और हेलियोडोरस वैष्णव धर्म का अनुयायी था । 

इंडो-ग्रीक शासन का महत्व 

(Significance of Indo-Greek Rule) 

  • इंडो-ग्रीक शासन का भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और तकनीकी क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। 
  • कला और मूर्तियों पर यूनानी प्रभाव के कारण कला की एक नई शैली अर्थात् गांधार शैली का विकास हुआ। 
  • बौद्ध विचारधारा, विशेषकर महायान बौद्ध धर्म, इंडो-ग्रीक शासन से प्रभावित था। 
  • इंडो-ग्रीक शासन महत्वपूर्ण था क्योंकि भारतीय संस्कृति पर उनका प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है। 

इंडो-ग्रीक शासन का पतन 

(Fall of Indo- Greek Rule) 

  • स्ट्रेट द्वितीय अंतिम इंडो-ग्रीक शासक (last Indo-Greek ruler) था। कुछ इतिहासकारो का मानना है कि उन्होंने 55 ईसा पूर्व तक शासन किया, जबकि अन्य का मानना है कि उन्होंने 10 ईस्वी तक शासन किया। 
  • पहली शताब्दी ईस्वी तक शासन धीरे-धीरे कम हो गया और इंडो-यूनानी भारतीय सामाजिक व्यवस्था में शामिल हो गए। 
  • पतन का एक महत्वपूर्ण कारण पड़ोसी जनजातियों और राज्यों के साथ निरंतर संघर्ष था। इससे उनकी रक्षा क्षमताएँ कमजोर हो गईं। 
  • व्यापार मार्गों के बदलाव के साथ, इंडो-ग्रीक शासकों को आर्थिक तनाव महसू हुआ। वे बड़े पैमाने पर व्यापार और वाणिज्य पर निर्भर थे। साथ ही नये प्रतिस्पर्धियों के आने से उनका संघर्ष भी बढ़ गया। 
  • आंतरिक सत्ता संघर्ष और संघर्षों ने भी इंडो-ग्रीक शासन को कमजोर कर दिया। 
  • कुषाणों जैसे बाहरी राज्यों ने कमजोर व्यवस्था का फायदा उठाया और धीरे-धीरे अपने क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। 

निष्कर्ष (Conclusion) : दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में इंडो-ग्रीक शासन (Indo-Greek rule) फला-फूला। इसका क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, धर्म और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ कला पर गहरा प्रभाव पड़ा। 

महायान बौद्ध धर्म, जो विकास की प्रक्रिया में था, इससे प्रभावित था। भारत से इंडो- ग्रीक शासन (Indo-Greek rule) के पतन के बाद भी यूनानी आबादी के छोटे हिस्से मौजूद थे। 

साम्राज्य के वस्तुतः समाप्त होने के बाद भी इंडो-ग्रीक शासन (Indo-Greek rule) की विरासत लंबे समय तक जीवित रही।


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