BA 3rd Semester Political Science Major 3 Unit 1 Short Question Answer PDF Download

Q.1. स्वतन्त्रता (Liberty) का अर्थ 

Ans. स्वतन्त्रता का अंग्रेजी शब्द ‘लिबर्टी’, लैटिन भाषी ‘लिवर’ शब्द से बना है। लिवर शब्द का अभिप्राय बन्धनों का अभाव है। लेकिन स्वतन्त्रता केवल बन्धनों का अभाव न होकर व्यक्तित्व के लिए उचित परिस्थितियों की प्राप्ति है । स्वतन्त्रता व्यक्तित्व के विकास के लिए उचित अवसर हैं। आत्म-विकास का अवसर ही स्वतन्त्रता है। इस प्रकार की उचित परिस्थितियाँ तथा अवसर राज्य के जन-कल्याणकारी तथा विवेकशील कानून ही उत्पन्न करते हैं। अतः स्वतन्त्रता राज्य में ही सम्भव है। राज्य का कर्त्तव्य है कि व्यक्ति के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर कर व्यक्ति के विकास के लिए अधिकतम अवसर प्रदान 

करे । जब व्यक्ति इस प्रकार राज्य द्वारा प्रदान किये गये अवसर का समुचित लाभ उठाकर अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करते हुए वैयक्तिक और सामाजिक हित में योगदान देता है तो समाज में स्वतन्त्रता की स्थापना होती है। प्रसिद्ध विद्वान् टी. एच. ग्रीन ने स्वतन्त्रता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “स्वतन्त्रता उन कार्यों को करने अथवा उन वस्तुओं का उपभोग करने की शक्ति है जो करने योग्य हैं।” 


Q.2. “समानता के बिना स्वतन्त्रता अधूरी है। 

Ans. समानता तथा स्वतन्त्रता एक-दूसरे के विरोधी नहीं, अपितु सहयोगी हैं तथा जो लोग इन दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध मानते हैं वे इनका उचित अर्थ नहीं जानते। जे. पोलार्ड के शब्दों में, “स्वतन्त्रता की समस्या एकमात्र समानता में हैं।” प्रो. आर. एच. टोनी के अनुसार, “समानता की एक बड़ी मात्रा स्वतन्त्रता की विरोधी नहीं, बल्कि इसके लिए आवश्यक है।” 

” समानता के बिना स्वतन्त्रता अधूरी है।” कथन को सिद्ध करने के लिए निम्न तर्क दिए जा सकते हैं- 

(1) ऐतिहासिक दृष्टि से कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता एवं समानता का विकास साथ-साथ हुआ है। 

(2) स्वतन्त्रता एवं समानता के उद्देश्य एक ही है। अर्थात् दोनों व्यक्ति के विकास हेतु उचित वातावरण निर्मित करते हैं। 

(3) स्वतन्त्रता का उपभोग करने के लिए समानता आवश्यक है। अर्थात् समानता के अभाव में स्वतन्त्रता की कल्पना नहीं नहीं की जा सकती। 

(4) स्वतन्त्रता एवं समानता में किसी एक के भी अभाव में प्रजातन्त्र अर्थहीन हो जाता है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि, “समानता एवं स्वतन्त्रता प्रजातन्त्र के स्तम्भ हैं। ” 


Q.3. स्वतन्त्रता का महत्त्व 

Ans. स्वतन्त्रता मानव समाज के सर्वश्रेष्ठ मूल्यों में से एक है। यह मानव को मानव होने की पहचान कराती है । स्वतन्त्रता मानव के व्यक्तित्व विकास के लिए अनिवार्य तत्व है। इसके बिना समाज एवं मानव दोनों का विकास अवरुद्ध हो जायेगा। मानव का सम्पूर्ण भौतिक, मानसिक एवं नैतिक विकास स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है । स्वतन्त्रता मानव विकास की एक आवश्यक शर्त है जो उनके सम्पूर्ण गुणों को विकसित कर उसे सही रूप में मनुष्य बनाती है। इसीलिए कहा जाता है कि, “विश्व इतिहास स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष का इतिहास है ।” स्वतन्त्रता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए ब्राइस ने उचित ही कहा है कि, “स्वतन्त्रता मानवमात्र के स्वाभिमानी जीवन हेतु परमावश्यक है। यह उसके शुष्क एवं निम्सार जीवन को प्राणवान बनाती है तथा मानव मस्तिष्क की चिन्तन प्रक्रिया को सजग करती है । ” 


Q.4. स्वतन्त्रता की नकारात्मक अवधारणा.. 

Ans. स्वतन्त्रता के नकारात्मक पहलू का अर्थ यह है कि व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होना चाहिए। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि नियन्त्रण का अभाव ही स्वतन्त्रता है। सीले का मत भी इसी प्रकार का है, वह कहता है कि, “प्रतिबन्धों की अनुपस्थिति में ही स्वतन्त्रता है । ” हरबर्ट स्पेन्सर तथा जे. एस. मिल ने उचित ही कहा है कि राज्य को जहाँ तक सम्भव हो, व्यक्ति के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, इन विचारकों के मतानुसार, “वह सरकार सबसे अच्छी है, जो सबसे कम शासन करे । “


Q.5. ‘स्वतंत्रता’ (Liberty) और ‘कानून’ (Law) के बीच सम्बन्ध 

Ans. ‘स्वतन्त्रता’ एवं ‘कानून’ के सम्बन्धों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है— 

(1) कानून (विधि) स्वतन्त्रता का विरोधी हैं : व्यक्तिवादियों के अनुसार, स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति के आचरण पर किसी प्रकार का नियन्त्रण न हो। विधि व्यक्ति के कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाती है और उसकी इच्छानुसार कार्य करने में बाधक होती है। अतः उनके मतानुसार स्वतन्त्रता की विरोधी है। 

(2) कानून (विधि) स्वतन्त्रता का पूरक है : विधि स्वतन्त्रता की विरोधी नहीं पूरक है। विधि स्वतन्त्रता की रक्षक है। व्यक्ति जितना अधिक स्वतन्त्र होना चाहता है एवं अपना जितना अधिक विकास करना चाहता है, उसके लिए उसे उतना ही अधिक नियन्त्रण में रहना आवश्यक है। 

परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि राज्य की प्रत्येक विधि स्वतन्त्रता की पोषक है। कोई राज्य किसी सीमा तक ही अपने नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। निरंकुशतन्त्रीय राज्यों में व्यक्ति की स्वतन्त्रता का कोई प्रश्न नहीं उठता। 


Q.6.  स्वतन्त्रता (Liberty) की आवश्यक शर्तें 

Ans. (1) सतत् जागरूकता : सतत् जागरूकता स्वतन्त्रता हेतु सर्वाधिकं आवश्यक शर्त है। यदि लोग अपनी स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक हैं तो निरंकुश शासन भी उन्हें उनकी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं कर सकता। यहाँ वापरन का यह कथन उल्लेखनीय है कि, ‘‘सतत् जागरूकता स्वतन्त्रता की कीमत है । 

(2) प्रजातान्त्रिक शासन : स्वतन्त्रता हेतु प्रजातान्त्रिक शासन अनिवार्य है तथा सर्वसत्तावादी अथवा अधिनाकवादी शासन स्वतन्त्रता के कट्टर दुश्मन हैं। प्रजातान्त्रिक शासन जनसाधारण की इच्छा एवं सहमति पर आधारित होता है। अतः वह जन – स्वतन्त्रता का पोषण करता है। 

(3) संविधानवाद : संविधानवाद को स्वतन्त्रता की आत्मा की संज्ञा दी जाती है। किसी राज्य में संविधानवाद की भावना जितनी अधिक सुदृढ़ होगी, वहाँ स्वतन्त्रता उतनी ही समुचित होगी। 

(4) आर्थिक समानता : स्वतन्त्रता न्यूनतम आर्थिक समानता की माँग करती है। यदि समाज में घोर विषमताएँ विद्यमान हैं तो स्वतन्त्रता पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह जायेगी। स्वतन्त्रता समान अवसर की माँग करती है। 


Q.7. स्वतन्त्रता (Liberty) की परिभाषा 

Ans. स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करने के प्रयास में विभिन्न विद्वानों ने जो स्वतंत्रता की परिभाषाएँ दी हैं, उनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं- 

मैकनी : “स्वतंत्रता सभी प्रकार की पाबंदियों का नाम नहीं, बल्कि अनुचित के स्थान पर उचित पाबंदियों की स्थापना है ।” (“Freedom is not the absence of all restraints, but rather the substitution of rational ones for the irrational”. ) 

हर्बर्ट स्पेंसर : ‘‘प्रत्येक मनुष्य वह करने को स्वतंत्र है जिसकी वह इच्छा करता है, यदि वह किसी मनुष्य की समान स्वतंत्रता का हनन नहीं करता हो ।” (Every man is free to do that which he will provided he enfringes not equal freedom of any other man”) 

लास्की : ” आधुनिक सभ्यता में मनुष्य के व्यक्तिगत सुख की गारंटी के लिए जो सामाजिक परिस्थितियाँ आवश्यक हैं, उनके अस्तित्व में किसी प्रकार के प्रतिबंध के अभाव का नाम ही स्वतंत्रता है।” (“Liberty is the absence of restraints upon the existence of those social conditions which in modern civilisation are the necessary guarantees of new happiness”) 

बर्न्स (Burns) ‘प्राकृतिक ढंग से बढ़ने तथा अपनी योग्यताओं में वृद्धि करने की शक्ति को स्वतंत्रता कहा जाता है । ” 

लॉस्की ने स्वतंत्रता की दो परिभाषाएँ दी है- एक प्रकारात्मक दृष्टिकोण की तथा दूसरी सकारात्मक दृष्टिकोण की । 

स्वतंत्रता की विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि स्वतंत्रता के दो पहलू हैं- (i) नकारात्मक या निषेधात्मक (Negative) तथा (ii) भावात्मक या सकारात्मक (Positive) | स्वतंत्रता के सही अर्थ को समझने के लिए इन दोनों पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है। 


Q.8. निजी स्वतंत्रता (Personal Liberty) 

Ans. निजी या वैयक्तिक स्वतंत्रता का अभिप्राय व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार एक विशिष्ट ढंग से अपना जीवन चलाने की स्वतंत्रता से है बशर्ते कि उससे सामाजिक शांति एवं सुरक्षा को कोई खतरा न पहुँचे। व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए जिसका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। इसके अंतर्गत भोजन, वस्त्र, धर्म, पारिवारिक जीवन आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। लास्की ने निजी स्वतंत्रता का अर्थ ऐसे अवसरों से लगाया है जिनका प्रयोग व्यक्ति स्वेच्छा से उन क्षेत्रों में करता है जिनका प्रभाव उसी तक सीमित रहता है। फिर भी, निजी स्वतंत्रता असीमित एवं अनियंत्रित नहीं हो सकती। चूँकि व्यक्ति के सभी कार्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से समाज पर प्रभाव डालते हैं, अत: समाज के पास इन कार्यों को नियमित करने की शक्ति होनी चाहिए। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई व्यक्ति वेश्यालय चलावे या सामाजिक नियम को तोड़कर 4-5 शादी करे तो समाज या राज्य उसके इस निजी कार्य में हस्तक्षेप कर सकता है। 


Q.9. आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Liberty) 

Ans. आर्थिक स्वतंत्रता का तात्पर्य व्यक्ति की ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति अपने आर्थिक प्रयत्नों का लाभ स्वयं प्राप्त करने की स्थिति में हों तथा किसी प्रकार उसके श्रम का दूसरे द्वारा शोषण न किया जा सके। लास्की के शब्दों में “आर्थिक स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने की समुचित सुरक्षा और सुविधा प्राप्त हो।” (By economic liberty, Laski means security and the opportunity to find reasonable significance in the earning of the daily bread.”) व्यक्तिवादियों के अनुसार आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि हर एक व्यक्ति को वैयक्तिक आधार पर अनियंत्रित रूप से आर्थिक कार्यों को करने की स्वतंत्रता हो तथा उसमें राज्य की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप न हो। 


Q.10. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार 

Ans. व्यक्ति को अपने व्यक्तित्त्व के विकास के लिए अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है। व्यक्ति अपने विचार भाषण देकर, समाचार-पत्र में लेख निकलवाकर, समाचार- पत्र का संचालन कर व्यक्त कर सकता है। समाचार-पत्रों के प्रकाशन के क्षेत्र को पर्याप्त स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि जनमत (Public Opinion) के निर्माण में समाचार- पत्र बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अतः समाचार-पत्रों को प्रजातान्त्रिक देशों में पर्याप्त स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है, क्योंकि ये सरकारी नीतियों की आलोचना, समालोचना द्वारा सरकार की गलतियों को निर्देशित करते हैं और जनता को जाग्रत, चेतन और प्रबुद्ध करते हैं। 


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