BA 2nd Semester History important question answer in Hindi
लघु प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 : सम्राट हम्मूराबी पर संक्षिप्त टिप्पणी |
उत्तर : सम्राट हम्मूराबी प्राचीन मेसोपोटामिया की बेबिलोनिया सभ्यता का एक महान शासक था, जिसने लगभग 1792 ई.पू. से 1750 ई.पू. तक शासन किया। वह बेबिलोन शहर को एक शक्तिशाली साम्राज्य का केंद्र बनाने में सफल हुआ। हम्मूराबी की सबसे बड़ी उपलब्धि उसका “हम्मूराबी संहिता” (Code of Hammurabi) है, जो विश्व का सबसे प्राचीन और सुव्यवस्थित लिखित विधि संग्रह माना जाता है।
इस संहिता में कुल 282 कानून शामिल थे, जो न्याय, व्यापार, विवाह, अपराध और दंड जैसे सामाजिक विषयों को कवर करते थे। इन कानूनों का उद्देश्य समाज में व्यवस्था और न्याय स्थापित करना था। इसमें “आंख के बदले आंख” जैसी सजा की नीति अपनाई गई थी, यानी अपराध के अनुसार दंड का निर्धारण।
हम्मूराबी एक कुशल प्रशासक और सेनानायक था। उसने अपने साम्राज्य में नहरों, सिंचाई व्यवस्था और धार्मिक मंदिरों का निर्माण करवाया। उसके शासनकाल में कृषि, व्यापार और कानून व्यवस्था में सुधार हुआ।
सम्राट हम्मूराबी ने कानून और शासन की जो नींव रखी, उसका प्रभाव आने वाली सभ्यताओं पर भी पड़ा। इसलिए वह इतिहास में एक न्यायप्रिय और दूरदर्शी शासक के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 2 : होमर युग के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी |
उत्तर : होमर युग (800–700 ई.पू.) प्राचीन यूनान के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय था। यह समय अंधकार युग के बाद आया, जब यूनानी समाज फिर से उन्नति की ओर बढ़ने लगा। इस युग का नाम प्रसिद्ध कवि होमर के नाम पर पड़ा, जिन्होंने दो महान ग्रंथ “इलियड” और “ओडिसी” की रचना की। इन रचनाओं में यूनान के वीर योद्धाओं, युद्धों और देवताओं की कथाएँ हैं, जो उस समय की सोच, संस्कृति और जीवनशैली को दर्शाती हैं।
इस समय यूनान में नगर-राज्य (पोलिस) का विकास शुरू हुआ। लोग छोटे-छोटे गांवों से संगठित होकर शहरों में बसने लगे। लोहे के उपयोग से खेती और हथियार बनाना आसान हुआ, जिससे उत्पादन और रक्षा दोनों में सुधार हुआ। व्यापार भी बढ़ा और समुद्री यात्रा आम होने लगी।
होमर युग में लोग शिक्षा, साहित्य, संगीत और धर्म की ओर आकर्षित हुए। देवताओं की पूजा और धार्मिक रीति-रिवाजों ने समाज में एकता और पहचान बनाई। इस युग ने यूनानी सभ्यता को नई दिशा दी और आगे चलकर यूनान के स्वर्ण युग की नींव रखी।
यह युग ज्ञान, वीरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 3 : सामंतवाद पर टिप्पणी लिखें |
उत्तर : सामंतवाद एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था थी, जो मुख्यतः मध्यकालीन यूरोप में प्रचलित थी। यह व्यवस्था ज़मीन पर आधारित थी, जिसमें राजा या उच्च वर्ग के लोग ज़मीन के बड़े हिस्सों के मालिक होते थे और वे उसे अपने अधीनस्थ सामंतों को सुरक्षा व सेवाओं के बदले दे देते थे। सामंत उस ज़मीन पर किसानों से काम करवाते थे और बदले में उन्हें सुरक्षा प्रदान करते थे।
इस व्यवस्था में समाज को वर्गों में बाँटा गया था — राजा, सामंत, योद्धा, चर्च के लोग और किसान। किसान सबसे निचले स्तर पर होते थे, जिन्हें अक्सर “सर्फ” या “दास किसान” कहा जाता था। उन्हें ज़मीन पर काम करना होता था लेकिन ज़मीन की कोई अधिकारिक मिल्कियत नहीं होती थी।
सामंतवाद में राजनीतिक शक्ति विकेन्द्रित थी। राजा के पास नाम मात्र का अधिकार होता था और असली सत्ता सामंतों के हाथों में रहती थी। इस प्रणाली में शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक उन्नति की संभावना बहुत कम थी।
हालांकि यह व्यवस्था कुछ समय तक स्थिरता लाई, लेकिन आगे चलकर इसने सामाजिक असमानता और शोषण को जन्म दिया, जिससे इसके पतन की शुरुआत हुई।
प्रश्न 4 : मिस्र को नील नदी की देन क्यों कहा जाता था ?
उत्तर : प्राचीन मिस्र को “नील नदी की देन” कहा जाता है क्योंकि इस नदी ने ही वहाँ सभ्यता के विकास को संभव बनाया। महान इतिहासकार हेरोडोटस ने कहा था – “Egypt is the gift of the Nile.” इसका अर्थ है कि यदि नील नदी न होती, तो मिस्र एक रेगिस्तान ही रहता।
नील नदी हर साल बाढ़ लाती थी, जिससे आसपास की जमीन उपजाऊ हो जाती थी। इसी उपजाऊ मिट्टी पर मिस्रवासियों ने खेती करना शुरू किया, जिससे अन्न उत्पादन हुआ और जीवन चल सका। गेहूँ, जौ, और फल-सब्जियाँ इसी के कारण उगाए जा सके।
इसके अलावा, नील नदी परिवहन और व्यापार का भी प्रमुख साधन थी। लोग नावों से एक जगह से दूसरी जगह जाते थे और व्यापार करते थे। नदी के जल का उपयोग पीने, नहाने और पशुओं को पानी पिलाने में भी होता था।
नील ने मिस्र को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत किया, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में भी इसका महत्व था। मिस्रवासी नील को एक देवी के रूप में पूजते थे।
इस प्रकार, नील नदी ने मिस्र की जीवनरेखा की भूमिका निभाई, इसलिए उसे “मिस्र की देन” कहा गया।
प्रश्न 5 : पिरामिड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखे |
उत्तर : पिरामिड प्राचीन मिस्र की अद्भुत स्थापत्य कला के प्रतीक हैं। ये विशाल त्रिभुजाकार संरचनाएं मुख्यतः फिरऔनों (मिस्र के राजा) के शवों को सुरक्षित रखने के लिए बनाई जाती थीं। मिस्रवासियों का विश्वास था कि मृत्यु के बाद आत्मा जीवित रहती है और शरीर की सुरक्षा आवश्यक है, इसलिए पिरामिडों में मृत राजा का शव (ममी) एवं कीमती वस्तुएं रखी जाती थीं।
सबसे प्रसिद्ध पिरामिड गीज़ा (Giza) में स्थित हैं। इनमें सबसे बड़ा “खुफु का पिरामिड” है, जिसे विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। यह लगभग 481 फीट ऊँचा है और इसके निर्माण में 20 लाख से अधिक पत्थरों का प्रयोग हुआ था।
पिरामिड केवल कब्र नहीं थे, बल्कि धार्मिक एवं खगोलीय महत्व भी रखते थे। इनकी दिशा और संरचना सूर्य के उदय और अस्त के साथ मेल खाती है, जो मिस्रवासियों की खगोल संबंधी ज्ञान को दर्शाती है। पिरामिडों से मिस्र की वैज्ञानिक, धार्मिक और तकनीकी उन्नति का ज्ञान होता है। ये आज भी विश्व को प्राचीन मिस्र की समृद्ध संस्कृति, आस्था और कौशल का सजीव प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 6 : कीलाकार लिपि पर एक संक्षिप्त नोट लिखे |
उत्तर : कीलाकार लिपि (Cuneiform Script) संसार की प्राचीनतम लिखावटों में से एक मानी जाती है। इसका विकास लगभग 3200 ईसा पूर्व सुमेरियों द्वारा मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) में हुआ था। यह लिपि मिट्टी की तख्तियों पर लकड़ी या हड्डी की नुकीली कलम से लिखी जाती थी। लेखन की प्रक्रिया में तिरछे और सीधे कीलों जैसी आकृतियाँ बनती थीं, जिससे इसे “कीलाकार” कहा गया।
इस लिपि का उपयोग सुमेर, अक्कद, बेबिलोन और असीरिया की सभ्यताओं में किया गया। प्रारंभ में इसका प्रयोग व्यापारिक लेखा-जोखा और प्रशासनिक दस्तावेजों के लिए होता था, परंतु बाद में इसका उपयोग धार्मिक ग्रंथों, साहित्य, विज्ञान और कानून (जैसे हम्मुराबी संहिता) के लेखन में भी होने लगा।
कीलाकार लिपि चित्रलिपि से ध्वन्यात्मक लिपि की ओर बढ़ने की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी थी। यह लिपि लगभग 3000 वर्षों तक प्रचलित रही। इसके हजारों अभिलेख पुरातत्वविदों द्वारा खोजे जा चुके हैं, जो प्राचीन मेसोपोटामियाई समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थव्यवस्था की जानकारी प्रदान करते हैं।
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Ye kya hai sir kuch smajh nhi aa rha hi