प्रश्न- उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से बलित पर्वत-निर्माण सम्बन्धी होम्स के विचारों की आलोचनात्मक विवेचना करें |
उत्तर- जर्मन भूविज्ञानी आर्थर होम्स ने 1930 के दशक में पर्वत निर्माण की प्रक्रिया को समझाने के लिए अपना ‘संवहन तरंग सिद्धांत‘ (Convection Current Theory) प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत पृथ्वी के आंतरिक भाग में उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं को वलित पर्वतों के निर्माण के लिए मुख्य बल मानता है, जो उस समय प्रचलित संकुचन-आधारित सिद्धांतों (जैसे कोबर का सिद्धांत) से भिन्न था।
होम्स के अनुसार पृथ्वी का आंतरिक भाग पूरी तरह ठोस नहीं है। इसमें अत्यधिक तापमान और दबाव के कारण शैल अर्द्धद्रव अवस्था में होती हैं। इस परत में तापमान के अंतर के कारण संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं।
इन संवहन धाराओं की गति ऊपर-नीचे और तिरछी दिशा में होती है —
- जहाँ धाराएँ ऊपर उठती हैं, वहाँ पृथ्वी की पर्पटी ऊपर की ओर खिंचती या फैलती है।
- जहाँ धाराएँ नीचे जाती हैं, वहाँ पर्पटी सिकुड़ती और नीचे धँसती है।
1. भूसन्नति निर्माण की अवस्था (Geosyncline Formation)
- जब संवहन धाराएँ ऊपर उठकर क्षैतिज रूप से विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होती हैं, तो वे महाद्वीपीय पपड़ी को खींचती हैं (तनाव बल)।
- इससे महाद्वीपीय किनारों पर भूसन्नति नामक लंबे, संकरे और उथले समुद्री गर्तों का निर्माण होता है।
- नदियों द्वारा लाए गए तलछट इन भूसन्नतियों में जमा होते जाते हैं, जिससे भूसन्नति की तली अवसाद के भार से नीचे धंसती जाती है।
2. पर्वतोत्पत्ति की अवस्था (Orogenesis)
- जब संवहन धाराएँ नीचे की ओर मुड़कर विपरीत दिशाओं से एक-दूसरे की ओर प्रवाहित होती हैं (अभिसरण), तो वे महाद्वीपीय पपड़ी को एक-दूसरे की ओर धकेलती हैं (संपीडन बल)।
- यह तीव्र संपीडन बल भूसन्नति में जमा अवसादों को निचोड़ता है, जिससे उनमें वलन और भ्रंशन होता है।
- ये वलित अवसाद ऊपर उठकर वलित पर्वतों (जैसे हिमालय, आल्प्स, रॉकी) का रूप ले लेते हैं।
3. पर्वतों के क्षय की अवस्था (Glyptogenesis)
- पर्वत निर्माण के बाद, संवहन धाराओं की गति कम होने या समाप्त होने पर भू-संतुलन की प्रक्रिया शुरू होती है।
- अपक्षय और अपरदन की शक्तियाँ इन पर्वतों को नष्ट करने लगती हैं।
| पक्ष (सकारात्मक) | विपक्ष (नकारात्मक/आलोचना) |
| गतिशील बल की व्याख्या : यह पहला सिद्धांत था जिसने पर्वत निर्माण के लिए क्षैतिज गति और बल का एक विश्वसनीय स्रोत (संवहन धाराएँ) प्रस्तुत किया। | संवहन धाराओं की अस्पष्टता : होम्स ने संवहन धाराओं के स्वरूप, गति और स्थायित्व की स्पष्ट व्याख्या नहीं की। यह नहीं बताया गया कि धाराएँ कब शुरू होती हैं और कब रुकती हैं। |
| महाद्वीपों की गति : यह सिद्धांत परोक्ष रूप से महाद्वीपीय विस्थापन की अवधारणा का समर्थन करता है, जो प्लेट विवर्तनिकी के विकास के लिए आधार बना। | क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर बल का संतुलन : संवहन धाराओं का बल कब क्षैतिज (पर्वत निर्माण) होगा और कब ऊर्ध्वाधर (दरार/भ्रंश) होगा, इसका सटीक तंत्र स्पष्ट नहीं है। |
| भूसन्नति की क्रियाविधि : भूसन्नति के निर्माण, अवतलन और वलन की प्रक्रिया को तार्किक रूप से संवहन धाराओं से जोड़ा गया। | पपड़ी का लचीलापन : सिद्धांत में माना गया कि पृथ्वी की पपड़ी इतनी नरम है कि संवहन धाराएँ उसे आसानी से मोड़ सकती हैं, जो पृथ्वी के आंतरिक संरचना के कुछ प्रमाणों के विपरीत है। |
प्रश्न उत्तर समाप्त