अर्थशास्त्र को परिभाषित करें |

उत्तर : अर्थशास्त्र की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रियों के विचारों में भिन्नता है । विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया है ।

अर्थशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं को निम्नांकित पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है—

  • धन सम्बन्धी परिभाषाएँ ( एडम स्मिथ ),
  • कल्याण सम्बन्धी परिभाषाएँ ( मार्शल ),
  • दुर्लभता या सीमित साधन सम्बन्धी परिभाषा ( रॉबिन्स),
  • आवश्यकता – विहीनता सम्बन्धी परिभाषा (जे. के. मेहता),
  • आधुनिक या विकास – केन्द्रित परिभाषा (सैम्युलसन) ।

इस वर्ग की सभी परिभाषाएँ अर्थशास्त्र को “धन का विज्ञान” मानती हैं । इस वर्ग के अर्थशास्त्रियों का नेतृत्व एडम स्मिथ ने किया और उनके इस विचार का समर्थन वाकर, सीनियर, जे. एस. मिल आदि अर्थशास्त्रियों ने किया । एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक (1776) का शीर्षक राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज (An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations)  रखा जो स्वयं एक परिभाषा का निर्माण करता है । अतः स्मिथ के अनुसार, अर्थशास्त्र वह अध्ययन है जो राष्ट्रों के धन के स्वभाव एवं इसके कारणों की जाँच करता है ।

धन- केन्द्रित परिभाषाओं के फलस्वरूप जब अर्थशास्त्र को ‘घृणित विज्ञान’ समझा जाने लगा था, अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के स्वरूप को नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना उचित समझा । मार्शल ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Economics’ में धनोपार्जन को अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु न मानकर मानव कल्याण को सर्वोपरि माना । मार्शल के विचार में धन साध्य न होकर केवल साधन मात्र है । पीगू, कैनन, विवरेज आदि अर्थशास्त्रियों ने मार्शल के विचार का समर्थन किया ।

मार्शल की परिभाषा (Marshall’s Definition ) – अर्थशास्त्री मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए लिखा है, “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय में मनुष्य मात्र का अध्ययन करता है। वह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्य के उस अंश की परीक्षा करता है जो कल्याण के भैतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । “

लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स के सुविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. लिओनल रॉबिन्स (Lionel Robbins) ने अपनी पुस्तक ‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’ में अर्थशास्त्र को पूर्णतया नया दृष्टिकोण प्रदान किया ।

रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में बताया कि ” अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो लक्ष्यों और वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है ।

प्रो. जे. के. मेहता ने अर्थशास्त्र की परिभाषा पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों से बिल्कुल भिन्न आधार पर दी । इनकी परिभाषा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मवाद के विचार पर आधारित है। प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा विचारकों ने आवश्यकताओं को न्यूनतम करने पर बल दिया है। इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होकर प्रो. मेहता अर्थशास्त्र की आवश्यकताओं को सन्तुष्टि के बजाय उनके अन्त करने से जोड़ते हैं |

       प्रो. जे. के. मेहता की परिभाषा ( Definition of J. K. Mehata ) — “अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जिसमें मानव के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिससे आवश्यकता – विहीनता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।’

नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सैम्युलसन के अनुसार, “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन है कि व्यक्ति और समाज मुद्रा की सहायता से अथवा मुद्रा की सहायता के बिना, किसी प्रकार अनेक प्रयोग में आ सकने वाले उत्पादन के सीमित संसाधनों का चुनाव, एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में और इनको समाज के विभिन्न व्यक्तियों और समूह में उपभोग हेतु वर्तमान या भविष्य में बाँटने के लिए करते हैं । ” 

          सैल्युलसन ने अपनी परिभाषा में विकासवादी दृष्टिकोण अपनाकर अर्थशास्त्र को स्थैतिक (Static) के स्थान पर गत्यात्मक (Dynamic) स्वरूप प्रदान किया है।


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