प्रश्न- पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की संगीत के प्रति देन का उल्लेख करें ?
उत्तर- पंडित विष्णु नारायण भातखंडे भारतीय शास्त्रीय संगीत के उन महान विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने संगीत को एक नई दिशा, वैज्ञानिक आधार और व्यवस्थित रूप प्रदान किया। उन्हें आधुनिक हिंदुस्तानी संगीत–शास्त्र का जनक माना जाता है। भातखंडे जी का जन्म 1860 में हुआ और उन्होंने अपने अध्ययन, यात्राओं व संगीत–साधना के माध्यम से भारतीय संगीत को ऐसी व्यवस्था दी जो आज भी देशभर में मानक के रूप में स्वीकार की जाती है।
भातखंडे जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान संगीत के वैज्ञानिक वर्गीकरण में माना जाता है। उन्होंने विभिन्न घरानों और परंपराओं से रागों की विविध शैलियाँ एकत्रित कीं और उनमें उपस्थित असंगतियों को दूर करके एक सुव्यवस्थित रूप तैयार किया। उन्होंने रागों के लिए ठाठ–पद्धति का निर्माण किया जो आज दुनिया भर की संगीत संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और परीक्षाओं में पढ़ाई और अपनाई जाती है। इस पद्धति ने राग–परंपरा को सरल, स्पष्ट और समझने योग्य बनाया।
उन्होंने रागों के स्वर–विन्यास, आरोह–अवरोह, वादी–सम्वादी, स्वर–पकड़ और विस्तार का बहुत व्यवस्थित वर्णन किया। उनके द्वारा लिखी गई पद्धति से विद्यार्थियों को राग सीखने में आसानी हुई और संगीत में व्याप्त भ्रम और मतभेद कम हुए। भातखंडे जी ने संगीत को लिखित रूप देने के लिए एक सरल और स्पष्ट नोटेशन प्रणाली भी विकसित की। इस प्रणाली के माध्यम से रागों, तालों और बंदिशों को सुरक्षित रूप में संरक्षित किया जा सका। आज भी संगीत की पुस्तकों, पाठ्यक्रमों और परीक्षाओं में इसी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
संगीत शिक्षा को संस्थागत रूप देने में भी भातखंडे जी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने लखनऊ में माधव संगीत महाविद्यालय की स्थापना की और बाद में अन्य स्थानों पर भी संगीत विद्यालयों की नींव डाली। इन संस्थाओं ने गुरु–शिष्य परंपरा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षण विधियों को जोड़कर संगीत को व्यापक रूप से फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भातखंडे जी ने अपने जीवन में महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें “हिंदुस्तानी संगीत पद्धति”, “कर्मिक पुस्तकों की श्रृंखला” और “थियरी ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक” प्रमुख हैं। इन ग्रंथों में उन्होंने संगीत को तर्कसंगत, शोध–आधारित और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। ये ग्रंथ आज भी संगीत के विद्वानों, शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए अमूल्य स्रोत हैं। उन्होंने भारत के विभिन्न घरानों की यात्रा कर उनके संगीत को संग्रहित और सुरक्षित किया, जिससे भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रह सकी।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की देन अमूल्य है। उन्होंने भारतीय संगीत को वैज्ञानिक रूप, व्यवस्थित पहचान और आधुनिक आधार दिया। संगीत–जगत में उनका स्थान सदैव सर्वोच्च और प्रेरणादायी रहेगा।