राग से आप क्या समझते है? इसके प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें | BA Notes Pdf

उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मूलभूत अवधारणा है। राग विशेष प्रकार का संगीतात्मक ढाँचा है, जिसमें कुछ निश्चित स्वरों का प्रयोग करके एक विशिष्ट भाव, रंग या वातावरण उत्पन्न किया जाता है। राग केवल स्वरों का समूह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी कलात्मक रचना है, जो मन में विशिष्ट भावनाएँ जगाने की क्षमता रखती है। राग का उद्देश्य श्रोता के हृदय में आनंद, शांति, करुणा, भक्ति या उत्साह जैसे भाव उत्पन्न करना है।

राग की तुलना हम एक जीवित व्यक्तित्व से कर सकते हैं। जैसे किसी व्यक्ति की चाल, बोलने का ढंग, स्वभाव और पहचान होती है, वैसे ही राग के भी अपने नियम, स्वभाव, आरोह-अवरोह, वादी–संवादी स्वर और विशिष्ट पहचान होती है।

अब इसके प्रमुख लक्षणों पर विस्तार से चर्चा करें—

1. आरोह और अवरोह

राग में स्वरों के चढ़ने (आरोह) और उतरने (अवरोह) का एक निश्चित क्रम होता है। किसी राग में कौन से स्वर किस दिशा में उपयोग होंगे, यह इन्हीं से निर्धारित होता है। आरोह साधारणत: सरगम के चढ़ते क्रम पर आधारित होता है, और अवरोह उतरते क्रम पर। यह राग की संरचना का मूल आधार है।

2. वादी और संवादी स्वर

हर राग में एक स्वर सबसे अधिक प्रभावशाली होता है जिसे वादी कहा जाता है। यह राग की आत्मा माना जाता है।
इसके विपरीत, वादी के पूरक स्वर को संवादी कहा जाता है। वादी और संवादी राग को संतुलन और सौंदर्य प्रदान करते हैं।

3. पकड़ या स्वरो की पहचान

हर राग के कुछ विशिष्ट स्वर या उनका विशेष संयोजन उसकी पहचान होते हैं। इन्हें राग की पकड़ कहते हैं। पकड़ सुनते ही श्रोता अंदाज़ लगा सकता है कि कौन-सा राग चल रहा है।

4. जाति

राग में प्रयुक्त स्वरों की संख्या के आधार पर उसकी जाति तय होती है—

  • औडव (5 स्वर)
  • षाडव (6 स्वर)
  • संपूर्ण (7 स्वर)

आरोह और अवरोह में स्वर संख्या भिन्न भी हो सकती है।

5. समय और प्रहर

भारतीय संगीत में रागों को गाने का विशेष समय माना जाता है। कुछ राग सुबह प्रभावी होते हैं, कुछ शाम, कुछ रात्रि और कुछ मौसम विशेष में। सही समय पर राग गायन से उसकी भावनात्मक शक्ति बढ़ जाती है।

6. अलंकार और भाव

राग में स्वर केवल सीधे नहीं गाए जाते। उनमें मींड, कनस, गमक, खटका आदि अलंकारों का प्रयोग होता है, जो राग को सुन्दर और भावपूर्ण बनाते हैं।

7. राग की प्रकृति

हर राग की अपनी प्रकृति होती है—गंभीर, शांत, वीर, करुण, रोमांचक, भक्ति-प्रधान आदि। यही प्रकृति राग को अन्य रागों से अलग करती है।

निष्कर्ष:- राग केवल स्वरक्रम नहीं, बल्कि भाव, नियम, पहचान और कलात्मकता का सुंदर मिश्रण है। इसकी संरचना और लक्षण मिलकर संगीत को जीवन, ऊर्जा और प्रभाव प्रदान करते हैं।


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