प्रश्न : संस्कृत एवं परम्परा से आप क्या समझते हैं ? भारत की प्रमुख परम्पराओं का वर्णन कीजिए |
संस्कृति से तात्पर्य : मानव की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसकी संस्कृति है। संस्कृति वह माध्यम है जिसमें रहकर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी बनता है और प्राकृतिक दशाओं को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता प्राप्त करता है। संस्कृति के आधार पर किसी समाज की सामाजिक संरचना, व्यवहार के नियम, और मूल्यों की पहचान की जा सकती है। बीरस्टीड के अनुसार – “यह संस्कृति ही है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्तियों से, एक समूह को अन्य समूहों से और एक समाज को दूसरे समाजों से पृथक करती है।” इस प्रकार संस्कृति व्यक्ति और समाज के जीवन का मार्गदर्शन करती है तथा उसे सभ्य और सुसंस्कृत बनाती है।
परम्परा से तात्पर्य: : ‘परम्परा’ का अर्थ है — हस्तान्तरण या सौंपना। अंग्रेजी में इसे Tradition कहते हैं, जो लैटिन शब्द ‘ट्रेडर’ से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘संचार करना’। जब एक पीढ़ी की संस्कृति, मूल्य, विचार और मान्यताएँ दूसरी पीढ़ी को सौंप दी जाती हैं, तो वह परम्परा कहलाती है। यह सामाजिक विरासत का अभौतिक अंग है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है। परम्परा अतीत और वर्तमान के बीच सेतु का कार्य करती है तथा समाज को उसकी जड़ों से जोड़े रखती है।
भारत की प्रमुख परम्पराएँ:
- वसुधैव कुटुम्बकम : यह विचार महाउपनिषद से लिया गया है, जिसका अर्थ है – “संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है।” भारतीय संस्कृति केवल अपने देशवासियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने विश्व बंधुत्व और सर्वभौमिक प्रेम का संदेश दिया। स्वामी विवेकानन्द ने जब शिकागो में “मेरे प्रिय भाइयों एवं बहनों” कहकर संबोधित किया, तो यह भावना विश्वभर में भारतीय परम्परा का परिचायक बनी।
- अतिथि देवो भवः : भारत में अतिथि को भगवान का रूप माना गया है। “मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव” — यह वाक्य हमारे शास्त्रों में निहित है। इसका अर्थ है कि हमें माता, पिता, गुरु और अतिथि सभी का आदर उसी प्रकार करना चाहिए जैसे हम भगवान का करते हैं।
- अहिंसा परमो धर्मः : अहिंसा भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत है। वैदिक काल से लेकर महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी तक सभी ने अहिंसा को सर्वोच्च धर्म माना। गांधीजी ने इसे सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में सत्य के साथ जोड़कर मानवता की दिशा बदल दी।
- सर्वमत समभाव : भारत में सभी मतों और धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखा गया है। यहाँ विभिन्न सम्प्रदाय, पंथ और मत होने के बावजूद आपसी सद्भाव बना हुआ है। सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में कहा था — “मनुष्य को अपने धर्म का आदर करना चाहिए और दूसरे धर्म की निन्दा नहीं करनी चाहिए।” यह भारतीय सहिष्णुता का उत्तम उदाहरण है।
- महिलाओं का सम्मान: भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:” — अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। नारी त्याग, सहनशीलता, करुणा और शक्ति की प्रतीक मानी गई है। वह मातृशक्ति और सृष्टि की आधारशिला है।
निष्कर्ष: संस्कृति और परम्परा भारतीय समाज की आत्मा हैं। इनसे ही भारत की पहचान और गौरव बना हुआ है। वसुधैव कुटुम्बकम, अतिथि देवो भव, अहिंसा और सर्वमत समभाव जैसी परम्पराएँ आज भी हमें मानवता, प्रेम और समानता का संदेश देती हैं। इसलिए इनका संरक्षण और पालन करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।