प्राचीन भारत में शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन करें | BA Notes Pdf

उत्तर : प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे पुरानी और प्रभावशाली शिक्षा प्रणालियों में से एक मानी जाती है । इसका विकास वैदिक काल से हुआ और यह मुख्य रूप से धार्मिक, नैतिक, और आध्यात्मिक विकास पर आधारित थी । इस प्रणाली का उद्देश्य न केवल विद्वानों का निर्माण करना था, बल्कि एक संपूर्ण और नैतिक व्यक्ति का निर्माण करना था ।

  1. पवित्रता की भावना का विकास करना – प्राचीनकालीन शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य पवित्रता की भावना का विकास करना होता था, जिससे वे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर सकें । 
  2. चरित्र – निर्माण में सहायक – प्राचीन कालीन शिक्षा चरित्र – निर्माण में सहायक होती थी जिससे व्यक्ति अपने भावी जीवन में सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सके । 
  3. अच्छे नागरिक के गुणों का विकास – प्राचीनकालीन शिक्षा से व्यक्ति को स्वयं के अन्दर अच्छे नागरिक के गुणों का विकास करने में सहायता मिलती थी । 
  4. सामाजिक भावना का विकास – गुरुकुलों में परस्पर सहयोग के साथ रहन – सहन से व्यक्ति के अन्दर सामाजिक भावना का विकास होता था । 
  5. ईश्वर की भक्ति व धार्मिक भावना का विकास- प्राचीन काल में जीवन का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक विकास करना होता था । इसलिए शिक्षा के द्वारा ईश्वर की भक्ति व धार्मिक भावना के विकास पर बल दिया जाता था । शिक्षण संस्थाओं का वातावरण धार्मिकता से भरा हुआ था । 
  6. मोक्ष प्राप्त करने पर बल- प्राचीनकाल में शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य अध्ययन के द्वारा मोक्ष प्राप्त करना था । धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन द्वारा छात्रों को मोक्ष प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती थी । 
  7. भावी जीवन जीने की शिक्षा – गुरूकुल में पशुपालन तथा कृषि आदि की शिक्षा भी दी जाती थी जिससे व्यक्त्ति शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात अपने भावी जीवन में रोजगार प्राप्त करके गृहस्थ जीवन का निर्वाह कर सके । 
  8. धार्मिकता को बढ़ावा देना- इस युग में छात्रों को धार्मिक ग्रन्थ पढ़ाये जाते थे और उनका अनुसरण करने के लिए कहा जाता था जिससे छात्रों के अन्दर धार्मिक गुणों का विकास हो सके । 
  9. संस्कृति का संरक्षण करना – छात्रों को भारतीय संस्कृति का ज्ञान प्रदान किया जाता था । उन्हें अपनी संस्कृति की किस प्रकार रक्षा करके उसे बढ़ाना है, इसके विषय में ज्ञान दिया जाता था । जिससे छात्र अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकें ।
  10. नैतिक मूल्यों का ज्ञान करना – उत्तर वैदिक युग में छात्रों को नैतिक मूल्यों का ज्ञान प्रदान किया जाता था जिससे छात्रों के अन्दर दूसरों का आदर व सम्मान करने तथा दूसरों की सहायता करने का गुण उत्पन्न हो सके । 

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