प्रश्न . राजनीति विज्ञान की परिभाषा दें और इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र का वर्णन करें । (Define Political Science and discuss its nature and scope.)
उत्तर : विभिन्न विद्वानों ने राजनीतिशास्त्र की परिभाषा विभिन्न प्रकार से दी है । गार्नर का कहना सही है कि “राजनीतिशास्त्र की उतनी ही परिभाषाएँ हैं जितने राजनीतिशास्त्र के लेखक” । राजनीतिशास्त्र की परिभाषाओं का अध्ययन दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है – परंपरावादी एवं आधुनिक ।
पारंपरिक परिभाषाएँ : ( प्रश्न : राजनीति विज्ञान की पारंपरिक परिभाषा दे ? )
राजनीतिशास्त्र की पारंपरिक परिभाषाओं को भी कई श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, जैसे—
- व्युत्पत्ति की दृष्टि से : व्युत्पत्ति की दृष्टि से राजनीतिशास्त्र का संबंध नगर – राज्यों की राजनीतिक समस्याओं के अध्ययन से था ।
- भारतीय विद्वानों के अनुसार : भारतीय विद्वानों के अनुसार राजनीतिशास्त्र का नाम दंडनीति था । सुव्यवस्थित समाज राज्य था जिसका काम लोगों के लिए कानून बनाना और कानून तोड़नेवालों के लिए दंड की व्यवस्था करना था ।
- अन्य विद्वानों के अनुसार : भारतीय विद्वानों के अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने भी राजनीतिशास्त्र की परिभाषाएँ दी हैं । इन परिभाषाओं को भी तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है :-
प्रथम श्रेणी के लेखकों के मतानुसार राजनीतिशास्त्र का संबंध केवल राज्य के अध्ययन तक सीमित है । इस श्रेणी के लेखकों में ब्लंट्रली, गार्नर, गेरिज इत्यादि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । गार्नर का कहना है कि “राजनीतिशास्त्र का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है। ” ब्लंट्रली के विचारानुसार, “राजनीतिशास्त्र उस विज्ञान का नाम है जिसका संबंध राज्य से है और जिसमें राज्य की आधारभूत स्थितियों, उसकी मूल प्रकृति, उसके विभिन्न रूप तथा विकास का वर्णन रहता है।”
दूसरी श्रेणी में वे लेखक हैं, जिनके अनुसार राजनीतिशास्त्र केवल सरकार का अध्ययन करता है । इस श्रेणी के लेखकों में लीकॉक और सीले के नाम उल्लेखनीय हैं । लीकॉक का कहना है कि “राजनीतिशास्त्र सरकार से संबद्ध विद्या है ।” इस श्रेणी की परिभाषा में राज्य का उल्लेख नहीं है।
तीसरी श्रेणी के अंतर्गत उन विद्वानों की परिभाषाएँ हैं, जो राजनीतिशास्त्र को राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन बताते हैं। पॉल जेनेट, गेटेल, गिलक्राइस्ट इत्यादि इस श्रेणी के लेखक हैं । पॉल जेनेट के कथनानुसार, “राजनीतिशास्त्र समाजशास्त्र का वह अंग है, जो राज्य के आधार और शासन के सिद्धांतों पर विचार करता है।
आधुनिक परिभाषाएँ : ( प्रश्न : राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषा दे ? )
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में एक नई विचारधारा का जन्म हुआ है । इसके साथ ही राजनीतिशास्त्र का अर्थ भी बदल गया है । इसे व्यवहारवादी विचारधारा कहते हैं । इस विचारधारा के अनुसार राजनीतिशास्त्र का संबंध केवल राज्य और सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह मनुष्य के व्यवहार का भी अध्ययन करने लग गया है । व्यवहारवादी विद्वानों में ग्राहम वालास, बेंटले, कैटलिन, लॉसवेल, आमंड, ईस्टन, रॉबर्ट डॉल आदि के नाम आते हैं।
लॉसवेल और कॉपलान के शब्दों में, “राजनीतिविज्ञान एक अनुभववादी विज्ञान है तथा इसका मुख्य उद्देश्य शक्ति के निर्धारण एवं शक्ति की सहभागिता का अध्ययन करना है।”
राजनीतिशास्त्र की प्रकृति : ( प्रश्न : राजनीति विज्ञान की प्रकृति की विवेचना कीजिए | )
A. परम्परागत दृष्टिकोण से राजनतिक विज्ञान की प्रकृति- परम्परागत दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान की निम्न विशेषताएँ हैं—
(i) कल्पनावादी और आदर्शी – परम्परागत राजनीति विज्ञान में राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में कोई कल्पना मस्तिष्क में कर ली जाती है, तत्पश्चात् उस कल्पना को रचनात्मक रूप दिया जाता है।
(ii) अपरिष्कृत परम्परागत विधियाँ – परम्परागत राजनीति विज्ञान अध्ययन पद्धति की दृष्टि से इतिहासवादी दर्शन प्रधान और वर्णनात्मक रहा है । डॉ० वर्मा के अनुसार इसके विकास की चार अवस्थाएँ हैं— ऐतिहासिक, विश्लेषणात्मक, आदर्शात्मक उपदेशात्मक, तथा वर्णनात्मक परिभाषात्मक ।
(iii) नैतिकता और सामाजिक मूल्यों पर विशेष बल – परम्परागत राजनीति विज्ञान उपदेशात्मक हैं, जो नैतिकता और राजनीतिक मूल्यों पर बल देता है । इसका मुख्य सरोकार है- ‘क्या होना चाहिए’ और कार्य है — ‘नैतिक निर्णय देना’ ।
(iv) राज्य एक नैतिक संस्था है— परम्परागत दृष्टिकोण राज्य को नैतिक संस्था.. मानता है। यह राज्य को उच्चतम जीवन का साधन मानता है। अरस्तू के अनुसार, “राज्य का . अस्तित्व सद्जीवन के लिए है, मात्र जीवन के लिए नहीं । ‘
(v) कानूनी औपचारिक संस्थागत अध्ययन पर बल – परम्परागत राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन का बिम्ब राजनीतिक और सरकारी संस्थाओं का ही रहा और इसका अध्ययन भी कानूनी, औपचारिक और संस्थागत था ।
(vi) प्रधानतः संकुचित अध्ययन – परम्परागत राजनीति विज्ञान के लेखकों की विशेषता रही है इनके अध्ययन प्रमुखतः पाश्चात्य राज्यों की शासन व्यवस्था की संकीर्ण परिधि में बंधे रहे ।
B. आधुनिक दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान की प्रकृति — आधुनिक दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान की प्रकृति विज्ञान की प्रकृति की निम्न विशेषताएँ हैं—
(i) वैज्ञानिकता – आधुनिक राजनीतिशास्त्री अपने अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक बनाना चाहते हैं। वे राजनीतिक घटनाओं एवं तथ्यों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसकर उनकी जाँच करते हैं। वे प्राकृतिक विज्ञान और अन्य समाज विज्ञानों की नई-नई तकनीकों का प्रयोग करते हैं।
(ii) मूल्य मुक्त अध्ययन : आधुनिक दृष्टिकोण मूल्य मुक्त अध्ययन पर बल देता है । यह मानवीय मूल्यों नैतिकता, न्याय और स्वतन्त्रता पर कोई बल नहीं देता है।
(iii) अन्त:अनुशासनात्मक अध्ययन पर बल : आधुनिक दृष्टिकोण की प्रकृति अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन पर जोर देती है । आधुनिक विद्वानों ने समाज विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र इत्यादि विषयों पर काफी लिखा है।
(iv) पूर्णतया नई राजनीतिक शब्दावली का प्रयोग : आधुनिक राजनीति विज्ञानी पूर्णतया नई शब्दावली एवं अवधारणाओं का प्रयोग करने लगे हैं। अब राजनीति विज्ञान का अध्ययन राजनीतिक विकास, आधुनिकीकरण, राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक समाजीकरण जैसी अवधारणाओं के परिप्रेक्ष्य में होने लगा है।
(v) शोध एवं सिद्धान्त में घनिष्ठ सम्बन्ध : आधुनिक राजनीति विज्ञान का एकमात्र उद्देश्य राजनीति के सैद्धान्तिक प्रतिमानों को विकसित करना है। इसी आधार पर वे राजनीतिक तथ्यों एवं घटनाओं के सम्बन्ध में खोज करते हैं एवं उसका विश्लेषण करते हैं।
(vi) यथार्थवादी , व्यवहारपरक अध्ययनों पर बल – आधुनिक राजनीति विज्ञानी यथार्थवादी एवं तथ्यपरक अध्ययनों पर बल देते हैं। इसमें राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन के स्थान पर व्यक्तियों के राजनीतिक व्यवहार के विश्लेषण पर बल दिया जाने लगा है।
राजनीतिशास्त्र का विषय-क्षेत्र : ( प्रश्न : राजनीति विज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए | )
राजनीतिशास्त्र की परिभाषा की भांति इसके अध्ययन क्षेत्र से संबंधित भी दो दृष्टिकोण हैं- (1) परम्परागत दृष्टिकोण, तथा (II) आधुनिक दृष्टिकोण |
(I) परम्परागत दृष्टिकोण : परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र का विषय- क्षेत्र इस प्रकार है-
1. राज्य का अध्ययन (Study of State) : राजनीतिशास्त्र राज्य का विज्ञान है और इसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता हैं । गैटेल के मतानुसार राजनीतिशास्त्र राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करता है।
2. सरकार का अध्ययन (Study of Government) : सरकार राज्य का अभिन्न भाग है । सरकार के बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती । सरकार राज्य की ऐसी एजेंसी है जिसके द्वारा राज्य की इच्छा को प्रकट तथा कार्यान्वित किया जाता है । राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति सरकार द्वारा ही की जाती है । राजनीतिशास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है, इसके अंग कौन- से हैं, इसके कार्य क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?
3. शासन प्रबंध का अध्ययन (Study of Administration): कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश आदि सभी बातें जो लोक प्रशासन में आती है, राजनीतिशास्त्र से संबंधित होती हैं अतः इन सबके लिए राजनीतिशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।
4. मनुष्य का अध्ययन (Study of Man) : मनुष्यों को मिलाकर राज्य बनता है। राजनीतिशास्त्र, जिसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है, मनुष्य का अध्ययन भी करता है। इसमें मनुष्यों का राज्य के साथ क्या संबंध हैं, उनके अधिकार और कर्तव्य तथा नागरिकता की प्राप्ति एवं लोप इत्यादि बातों का अध्ययन किया जाता है।
5. समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन (Study of Associations and Institutions): राज्य के अन्दर कई प्रकार के समुदाय और संस्थाएँ होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है । राजनीतिशास्त्र इन विभिन्न समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन भी करता है। इसके अतिरित चुनाव प्रणाली, जनमत का संगठन, दबाव गुट, लोक-सम्पर्क की व्यवस्था, प्रसारण के साधन आदि के बारे में राजनीतिशास्त्र में अध्ययन किया जाता है।
6. राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन (Study of Political Thought ) : राज्य क्या है ? राज्य के पास कौन-कौन से अधिकार व शक्तियाँ हैं और उनकी क्या सीमाएँ हो सकती हैं? राज्य की आज्ञाओं को लोग क्यों मानें ? किन-किन व्यवस्थाओं में लोगों को राज्य की आज्ञाओं की अवहेलना करने का अधिकार होना चाहिए ? राज्य की शक्ति व लोगों के अधिकारों के मध्य कहां लकीर खींची जाए? ऐसे बहुत से महत्वपूर्ण और मौलिक प्रश्नों के उत्तर समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक विद्वानों व विचारकों ने दिये हैं। अत: इन सब बातों का अध्ययन हम राजनीतिशास्त्र में करते हैं। आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, उपयोगितावाद, फासिज्म, गाँधीवाद आदि का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में किया जाता है।
7. राजनीतिक दलों का अध्ययन (Study of Political Parties) : आज के लोकतंत्रात्मक युग में राजनीतिक दलों का महत्वपूर्ण स्थान है। राजनीतिशास्त्र में विभिन्न राजनीतिक दलों के संगठन, इनके कार्यों, गुणों तथा अवगुणों का अध्ययन किया जाता है।
8. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संगठन का अध्ययन ( Study of राजनीति International Politics and Organisation) : राजनीतिशास्त्र में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीतिशास्त्र में युद्ध, शांति तथा शक्ति- संतुलन की समस्याओं पर विचार किया जाता है। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ और द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। राजनीतिशास्त्र में राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन, कार्यों, सफलताओं एवं असफलताओं आदि का अध्ययन किया जाता है।
(II) राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में आधुनिक दृष्टिकोण (Scope of Political Science as Most Modern Point of View) :
आधुनिक दृष्टिकोण का राजनीतिक क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है । आधुनिक विद्वानों ने राजनीतिशास्त्र की नई दिशाएँ निर्धारित की हैं । डॉ. वीरकेश्वर प्रसाद सिंह के शब्दों में, “इसे वैज्ञानिकता प्रदान करने के दृष्टिकोण से रूढ़िवादी विषयों, जैसे- राज्य के लक्ष्य, सर्वश्रेष्ठ सरकार, औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन, ऐतिहासिक पद्धति आदि को इससे विलग कर दिया गया है। मूल्यों, राज्यों एवं उसकी संस्थाओं के बदले मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक गतिविधियों का अध्ययन राजनीतिशास्त्र के अन्तर्गत किया जाने लगा है।” 1967 में अमेरिकन पोलिटिकल साईस ऐसोसिएशन ने राजनीतिशास्त्र के विषय क्षेत्र का निर्धारण करते समय इसके 27 उपक्षेत्रों की चर्चा की है। इनमें मुख्य है— मनुष्य व उसका राजनीतिक व्यवहार, समूह, संस्थाएँ, प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, सिद्धांत, विचारवाद, मूल्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांख्यिकीय सर्वेक्षण, शोध पद्धतियाँ आदि ।
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में मुख्यतः अग्रलिखित का भी अध्ययन किया जाता है-
1. शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन (Study of Power and Authority) : आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र में शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन भी किया जाता है।
2. प्रभाव का अध्ययन (Study of Influence ) : शक्ति के साथ प्रभाव भी राजनीति का केन्द्रीय विषय है। अतः राजनीतिशास्त्र में प्रभाव का भी अध्ययन किया जाता है
3. नेतृत्व का अध्ययन ( Study of Leadership ) : राजनीतिशास्त्र में नेतृत्व का भी अध्ययन किया जाता है।
4. मूल्यों के सत्तात्मक निर्धारण का अध्ययन ( Study of Authoritative Allocation of Values ) : डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिशास्त्र सामाजिक मूल्यों के सत्तात्मक निर्धारण का अध्ययन है।
5. राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन ( Study of Political System) : राजनीतिशास्त्र सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन करता है।
6. राजनीतिक संस्कृति तथा राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन : राजनीतिशास्त्र में राजनीतिक संस्कृति तथा राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन किया जाता है।
7. नीति-निर्माण का अध्ययन : लॉसवैल के अनुसार राजनीतिशास्त्र में नीति निर्माण का अध्ययन किया जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion) : राजनीतिशास्त्र के विषय क्षेत्र के इस अध्ययन से पता चलता है कि इसका क्षेत्र बहुत विशाल है। इसमें राज्य सरकार, मनुष्य, समुदाय तथा संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें कानून तथा विश्व समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।