प्रश्न- श्रुति एवं स्वर में अंतर स्पष्ट कीजिये ?
उत्तर- भारतीय शास्त्रीय संगीत में श्रुति और स्वर दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं, लेकिन दोनों की प्रकृति, उपयोग और भूमिका एक–दूसरे से भिन्न है। संगीत की वैज्ञानिक समझ के लिए इन दोनों के अंतर को स्पष्ट रूप से जानना आवश्यक है।
श्रुति क्या है?
श्रुति भारतीय संगीत की सबसे सूक्ष्म ध्वनि–इकाई है। यह वह सूक्ष्म अंतर या कंपन है जिसे प्रशिक्षित कान पहचान सकता है। प्राचीन संगीत–शास्त्र में एक सप्तक को 22 श्रुतियों में विभाजित किया गया है। इसका अर्थ है कि सा से लेकर उच्च सा तक की ध्वनि–सीमा में 22 अत्यंत सूक्ष्म ध्वनि–स्तर मौजूद होते हैं।
श्रुति को स्वर की “मूल इकाई” कहा जा सकता है। यह स्वर का वह आंतरिक, सूक्ष्म रूप है, जिसके आधार पर स्वर की शुद्धता बनी रहती है। सही श्रुति पकड़ने पर ही स्वर शुद्ध और मधुर बनता है।
स्वर क्या है?
स्वर संगीत में वह ध्वनि है जिसे स्पष्ट रूप से गाया या बजाया जा सकता है। भारतीय संगीत में सात मुख्य स्वर माने जाते हैं—
सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
ये स्वर श्रुतियों के समूह से बनते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्वर, श्रुतियों का व्यावहारिक रूप है। स्वर संगीत में प्रयुक्त होते हैं, राग बनाते हैं और धुन, आलाप, बंदिश आदि की रचना में उपयोग किए जाते हैं।
श्रुति और स्वर में मुख्य अंतर
1. परिभाषा का अंतर
श्रुति: ध्वनि की सबसे सूक्ष्म इकाई।
स्वर: श्रुतियों के समूह से बना स्पष्ट संगीत–ध्वनि।
2. संख्या
एक सप्तक में 22 श्रुतियाँ होती हैं।
एक सप्तक में 7 स्वर होते हैं।
3. प्रयोज्यता
श्रुति अधिकतर सैद्धांतिक है और सूक्ष्म अंतर को दर्शाती है।
स्वर व्यवहारिक है, जिसे गाया–बजाया जाता है।
4. परिवर्तनशीलता
श्रुति में अत्यंत सूक्ष्म परिवर्तन संभव है।
स्वर निश्चित होते हैं—शुद्ध, कोमल, तीव्र।
5. भूमिका
श्रुति स्वरों की शुद्धता निर्धारित करती है।
स्वर राग और संगीत–रचना का आधार बनते हैं।
6. सुनने की क्षमता
श्रुति को पहचानना प्रशिक्षित कान के लिए आसान है।
स्वर आम व्यक्ति भी पहचान सकता है।
7. स्थान–निर्धारण
श्रुति का कोई निश्चित “स्थान” नहीं, यह सूक्ष्म रूप में फैली होती है।
स्वर का स्थान वाद्यों पर स्पष्ट रूप से निश्चित होता है।
निष्कर्ष:- संक्षेप में, श्रुति संगीत की मूल ध्वनि–इकाई है, जबकि स्वर उसका व्यावहारिक रूपहै। श्रुति स्वरों में गहराई, शुद्धता और सौंदर्य लाती है, जबकि स्वर संगीत की रूपरेखा और रागों की संरचना का आधार बनते हैं। दोनों एक–दूसरे पर निर्भर हैं और भारतीय संगीत की वैज्ञानिक तथा सौंदर्यपूर्ण परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
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