थाट क्या है? थाट के नियमों का वर्णन करें | PDF Notes Download

उत्तर- भारतीय संगीत, विशेष रूप से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में थाट एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है। थाट वह मूल ढाँचा है जिसके आधार पर रागों का निर्माण एवं वर्गीकरण किया जाता है। इसे स्वरों का ऐसा समूह कहा जा सकता है जिसमें सातों शुद्ध या विकृत स्वरों का क्रमबद्ध रूप से समावेश होता है। थाट की अवधारणा को संगीतज्ञ पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने व्यवस्थित किया, जिन्होंने रागों के अध्ययन को सरल और वैज्ञानिक बनाने के लिए 10 प्रमुख थाटों का निर्धारण किया। थाट स्वयं गाया नहीं जाता, बल्कि यह रागों को पहचानने और समझने का आधार प्रदान करता है।

प्राचीन काल में हजारों राग प्रचलित थे, जिससे विद्यार्थियों एवं विद्वानों के लिए उनका अध्ययन कठिन था। भातखंडे जी ने इन रागों को समरूप गुणों के आधार पर समूहों में बाँटा और प्रत्येक समूह को एक थाट का नाम दिया। थाट प्रणाली ने राग–विज्ञान को सरल, सुव्यवस्थित और शिक्षण–योग्य बनाया।




1. थाट में सात स्वर होना अनिवार्य है

थाट वह स्वर–समूह है जिसमें सातों स्वर – सा, रे, ग, म, प, ध, नि – किसी न किसी रूप में उपस्थित होते हैं। इसमें कोई स्वर छोड़ा नहीं जाता। स्वरों के रूप: शुद्ध, कोमल, तीव्र।

2. थाट आरोही रूप में प्रस्तुत किया जाता है

थाट को हमेशा आरोही क्रम में लिखा जाता है, जैसे:- सा रे ग म प ध नि सा| इसमें अवरोह नहीं माना जाता, जबकि राग में दोनों अनिवार्य होते हैं।

3. थाट में अलंकरण या चलन नहीं होता

थाट वास्तविक संगीत–रचना नहीं है; इसलिए इसमें मींड, गमक, खटका, मुर्की जैसे अलंकरणों का प्रयोग नहीं किया जाता। यह केवल स्वर–समूह का ढाँचा है।

4. थाट विशुद्ध रूप से सैद्धांतिक अवधारणा है

थाट स्वयं न गाया जाता है, न बजाया जाता है। यह केवल रागों को समझाने और वर्गीकृत करने का साधन है। राग का भाव, पकड़, वादी–संवादी, चलन आदि थाट में नहीं होते।

5. थाट में स्वतंत्र रूप से किसी विशेष राग के भाव या प्रकृति नहीं होती

थाट और राग में मुख्य अंतर यह है कि थाट में भाव, समय, प्रकृति या पकड़ नहीं होती। यह केवल स्वरों की उपस्थिति पर आधारित वर्गीकरण है।

6. एक राग केवल एक ही थाट से सम्बद्ध होता है

हर राग को उसके मुख्य स्वर–समूह के आधार पर किसी एक थाट में रखा जाता है। जैसे-

यमन → कल्याण थाट

भीमपलासी → काफी थाट

भैरव → भैरव थाट

7. थाट में वादी–संवादी का विचार नहीं होता

थाट में वादी या संवादी स्वर का निर्धारण नहीं किया जाता, जबकि राग में यह महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष: थाट हिंदुस्तानी संगीत की राग–व्यवस्था का मजबूत आधार है। यह रागों को समझने, सिखाने और वर्गीकृत करने का वैज्ञानिक ढांचा प्रदान करता है। भातखंडे द्वारा निर्धारित 10 थाट आज भी राग–विज्ञान की मूल प्रणाली मानी जाती है। थाट संगीत को व्यवस्थित और शिक्षण योग्य बनाते हैं, इसलिए इसका अध्ययन संगीत–विद्यार्थियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।





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