प्रश्न : प्राचीन भारत में कृषि के विकास की चर्चा करें |
उत्तर :प्राचीन भारत में कृषि का विकास भारतीय सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही हुआ था और यह भारतीय समाज की आर्थिक और सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा बन गया। कृषि ने न केवल खाद्यान्न का उत्पादन किया, बल्कि समाज में श्रमिकों, शिल्पकारों, और व्यापारियों के लिए भी अवसर उत्पन्न किए। वैदिक काल से लेकर मौर्य, गुप्त और अन्य प्राचीन साम्राज्य तक कृषि के विकास ने भारतीय समाज की स्थिरता और समृद्धि को आकार दिया।
प्राचीन भारत में कृषि का प्रारंभिक विकास
1. वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व)
- वैदिक काल में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था।
- कृषि के लिए खेतों की जुताई बैलों से होती थी।
- प्रमुख फसलें जैसे जौ, गेहूँ, धान, तिल, और दालों का उत्पादन किया जाता था।
- वर्षा पर आधारित कृषि प्रचलित थी, लेकिन सिंचाई के उपायों का उल्लेख सीमित था।
- कृषि में वर्षा आधारित और नदी घाटी आधारित दोनों प्रकार की तकनीकों का प्रयोग होता था।
2. महाजनपद काल (600-300 ईसा पूर्व)
- महाजनपद काल में कृषि में सुधार हुआ और बड़े पैमाने पर उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
- सिंचाई के लिए जलाशयों और नहरों का निर्माण हुआ, जिससे जलवायु पर निर्भरता कम हुई।
- खेतों की जुताई के लिए बैल और हाथियों का इस्तेमाल बढ़ा।
3. मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व)
- मौर्य साम्राज्य के समय में कृषि को बढ़ावा देने के लिए राज्य द्वारा कई कदम उठाए गए।
- सम्राट अशोक के शासन में जलवायु की अनुकूलता के लिए सिंचाई के उपायों का विशेष ध्यान रखा गया।
- मौर्य काल में कृषि भूमि के सर्वेक्षण, भूमि कर की व्यवस्था, और राज्य द्वारा कृषि को प्रोत्साहन देने की प्रक्रिया में सुधार हुआ।
गुप्त काल (320-550 ईस्वी)
गुप्त काल भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल माना जाता है, और इस समय कृषि में कई सुधार हुए थे:
- गुप्त काल में सिंचाई व्यवस्था में सुधार हुआ और जलाशयों तथा नहरों का निर्माण हुआ।
- कृषक वर्ग को भूमि कर से कुछ राहत दी गई और उन्हें कृषि के लिए अधिक स्वतंत्रता मिली।
- उन्नत कृषि उपकरणों का उपयोग किया गया, जैसे हल, कुदाल और पानी निकालने के लिए नदियों के किनारे से बनी नहरें।
- गेहूँ, चावल, जौ, और विभिन्न प्रकार की फलियाँ जैसी प्रमुख फसलों का उत्पादन बढ़ा।
कृषि में तकनीकी सुधार
- सिंचाई के उपाय: नदियों के किनारे और जलाशयों से सिंचाई की जाती थी। गुप्त और मौर्य काल में नहरों का निर्माण किया गया।
- कृषि उपकरण: हल और बैल का उपयोग खेतों की जुताई में किया जाता था। यह तकनीकी सुधार कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण थे।
- फसल चक्र और कृषि विधियाँ: मुख्य रूप से धान, गेहूँ, जौ, और तिल की फसलें उगाई जाती थीं। कुछ क्षेत्रों में दोहरी फसल प्रणाली (रबी और खरीफ) का प्रचलन था।
कृषि और समाज
- कृषि ने प्राचीन भारतीय समाज के श्रमिक वर्ग को स्थिरता प्रदान की और कृषि समुदाय (किसान) समाज का एक महत्वपूर्ण अंग बन गए।
- सामाजिक संरचना में कृषक वर्ग का विशेष स्थान था, और उनकी स्थिति राजा और सामंतों से जुड़ी रहती थी।
- भूमि कर (जज़िया) का निर्धारण किया जाता था, जो किसानों द्वारा सम्राट या राज्य को चुकाया जाता था।
कृषि का आर्थिक प्रभाव
- कृषि से उत्पादित खाद्यान्न ने भारतीय समाज की भूख को शांत किया और इसके अतिरिक्त, यह व्यापार और उद्योग के लिए कच्चे माल का स्रोत भी बन गया।
- कृषि के विस्तार ने सामाजिक असमानता को भी बढ़ाया, क्योंकि भूमि पर नियंत्रण रखने वाले संपन्न वर्गों ने अपने फायदे के लिए किसानों से अधिक कर वसूलने की कोशिश की।
- कृषि उत्पादों का व्यापार दूर-दराज क्षेत्रों में किया जाता था, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ और भारत के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंध मजबूत हुए।
निष्कर्ष
प्राचीन भारत में कृषि का विकास केवल आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। कृषि ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया और इसके विकास से न केवल समाज की संरचना को आकार मिला, बल्कि यह देश की समृद्धि का भी प्रमुख कारण बना ।