प्रश्न – विश्व में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण एवं स्थानीयकरण के कारणों का उदाहरण सहित वर्णन करें।
प्रस्तावना (Introduction) : मानव को अपनी शारीरिक क्षमता बनाये रखने के लिए एवं शारीरिक क्रियाओं के ठीक से संचालन के लिए भोजन के बाद दूसरी नितान्त आवश्यक वस्त्रों की है। वस्त्र का मनुष्य के सामाजिक जीवन में अपना विशिष्ट महत्व है। सभ्यता के आरम्भिक युग में मनुष्य वृक्षों के पत्तों या छालों से अपना शरीर ढकता था, लेकिन धीरे-धीरे उसने सभ्यता के विकास के साथ-साथ उसमें सुधार किया। लिनेन (Flux) वस्त्रों का प्रयोग ईसा पूर्व ( 5500-12000) वर्ष होता था, ऐसा मिस्र के पिरामिडों से स्पष्ट होता है, इसीतरह भारत में सूती वस्त्रों का प्रयोग आज से 5000 वर्ष पूर्व भी था जिसका प्रमाण मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त है।
सूती वस्त्र अपने आरम्भिक काल में घरेलू एवं कुटीर उद्योग के रूप में विकसित था। भारत और चीन में यह उद्योग आज से हजारों वर्ष पुराना है, किन्तु इस उद्योग का वास्तविक विकास 18 वीं शताब्दी में ब्रिटेन में हारमीब्ज आर्क राइट क्रोस्टल कोर्ट राइट आदि के द्वारा किये गये यांत्रिक करघों के आविष्कार के बाद आरम्भ होता है। सन् 1793 में हिटने महोदय ने कपास ओटने की कला (Cotton gin) का आविष्कार किया था। 19 वीं शताब्दी में इस उद्योग का विस्तार ब्रिटेन एवं यूरोप के अन्य देशों तथा संयुक्त राज्य एवं जापान आदि देशों में हुआ। 20 वीं शताब्दी में यह उद्योग विश्व के अधिकांश देशों में फैल गया। आजकल यह विश्व का सबसे बड़ा उद्योग है।
विश्व वितरण (World Distribution) : विश्व में सूती वस्त्र उद्योग अग्रलिखित देशों में पाया जात हैं—
चीन (China) : यह विश्व का वृहत्तम सूती वस्त्र उत्पादक देश है। यहाँ भी भारत की तरह आज से हजारों वर्ष पूर्व कुटीर उद्योग के रूप में यह विकसित था, किन्तु 1890 ई० में यहाँ पहला आधुनिक मशीनरी कारखाना लगाया गया। फिर भी यहाँ इस उद्योग का वास्तविक विकास सन् 1949 ई० में चीन-जापान युद्ध संधि के पश्चात् शुरू हुआ।
यहाँ के सूती वस्त्र उद्योग को अग्रलिखित भागों में बाँटा जाता है-
1. समुद्र तटीय क्षेत्र : मुख्य केंन्द्र – शंघाई, केण्टन, टीन्टीसीन, सिंगटाओं, डेअन्नि,
शान्तुंग आदि ।
2. यांग्टिसी का घाटी क्षेत्र : मुख्य केन्द्र – हैकाऊ, चुंगकिग, नानकिंग आदि।
3. ह्वांगहो का घाटी क्षेत्र : मुख्य केन्द्र – होनान, काइतेंन, टीन्टसिन आदि।
4. दक्षिणी मंचूरिया क्षेत्र : मुख्य केन्द्र – शेन्यास ।
5. अन्य क्षेत्र : चीन के आन्तरिक भागों में बिखरे हुए केन्द्रों को इस श्रेणी में रखा जाता है।
सोवियत संघ (U.S.S.R.) : यह देश विश्व का तीसरा वृहत्तम वस्त्रोत्पादक है। यहाँ यह उद्योग 18वीं शताब्दी के मध्य में शुरू किया गया था । यहाँ के सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्रों को 10 भागों में बाँटा जा सकता है तथा इनके प्रमुख केन्द्र निम्नांकित हैं-
1. इवानोव क्षेत्र : इवानोव नगर के चारों ओर कोस्त्रोओव, किनेशमा, शुया, ओरे खोवो, कोवरोव आदि मुख्य केन्द्र हैं।
2. मास्को क्षेत्र : मास्को, नोगिन्सक, योगोरयेवस्क, शेरपुखोव आदि ।
3. लेनिनग्राद : लेनिनग्राद, नाव, तल्लिन ।
4. कालिनिन : कालिनिन, वोलोचेक एवं विशनीय ।
5. यूक्राइन: खेरसन, खारकोव एवं किएय ।
6. यूराल : चेल्याबिन्स्क।
7. वोल्गा : चेवोकेशरी तथा ताम्बोव ।
8. ट्रांस- काकेशिया : गोरी, तविलिसी, किरोवाबाद एवं बाकू आदि ।
9. मध्य एशिया फरगना, ताशकन्द, बुखारा, आश्काबाद, लेनिनग्राद
10.साइबेरिया : ओमस्क, टोमस्क, आल्गा-आता, कुस्तानाय, कान्स्क, बरनोल, नोवोसिविर्स्क एवं केमोरोवो आदि।
संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) : इसका वस्त्रोत्पादन की दृष्टि से विश्व में चौथा स्थान है किन्तु मिलों द्वारा वस्त्रोत्पादन में पहला स्थान है। यहाँ इस समय लगभग 2500 मिलें हैं। लगभग 10 लाख श्रमिक कार्य करते हैं । यहाँ के सूती वस्त्र उद्योग के तीन मुख्य क्षेत्र हैं-

1. न्यू इंगलैण्ड राज्य (New England) : संयुक्त राज्य अमेरिका में यह क्षेत्र सूती वस्त्र उद्योग में अगुआ माना जाता है, क्योंकि यहीं सूती वस्त्र उद्योग का शुभारम्भ हुआ था। यहाँ सूती वस्त्र निर्माण का केन्द्र द्वीप, कनेक्टीकट, मैसाचुसेट्स तथा न्यू-हेम्पशायर क्षेत्रों में है। इस क्षेत्र के अन्य क्षेत्र न्यू वेडफोर्ड, लारेन्स, मानचेन्टसर, फालरिवर, प्राविङेन्स, लावेल, बोस्टन आदि है।
2. मध्य एटलाण्टिक राज्य (Middle Atlantic State) : इस क्षेत्र के उल्लेखनीय केन्द्र–न्यूयार्क, विलमिंगटन, जर्मन टाउन, हेरिसवर्ग, पेटरशन, वाल्टीमोर, ट्रेन्टन, डेनविले, रिचमोण्ड, रैले आदि है।
3. दक्षिणी अप्लेशियन राज्य (Southern States ) : यह क्षेत्र वर्त्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे महत्त्वपूर्ण सूती वस्त्र उत्पादक क्षेत्र है। इसमें उत्तर एवं दक्षिणी कैरोलिना, जोर्जिया, डेनेसी, अलबामा राज्य मुख्य हैं।
ग्रेट ब्रिटेन (U.K.) : यहाँ औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात सूती वस्त्र उद्योग से ही हुआ इस उद्योग का ग्रेट ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान है । इस देश में सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य क्षेत्र निम्नांकित है – लंकाशायर क्षेत्र, स्कॉटलैण्ड की कलाइण्ड घाटी में ‘ग्लासगा क्षेत्र’, वेस्ट राइडिंग का ‘ब्रेडफोड क्षेत्र’ एवं डर्बीशायर, यार्कशायर तथा नाटिंघम क्षेत्र ।

जापान (Japan) : सूती वस्त्र के उत्पादन में इसका विश्व में पाँचवाँ स्थान है, किन्तु सूती वस्त्र के निर्यात में इसका प्रथम स्थान है। यहाँ इस उद्योग के प्रधान क्षेत्र ओसाका, कोवो, टोकियो तथा नागोया है। इनमें से ओसाका क्षेत्र सूत के उत्पादन में अग्रगण्य है। यहाँ वस्त्र बुनने का उद्योग वर्कशाप व्यवस्था पर कार्यरत है। इन क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर टोयडा (Toyada) करघे पर सूती वस्त्र बुना जाता है ।
इस देश में इस उद्योग की उन्नति के निम्नांकित कारण हैं-
1. सस्ती जल विद्युत की सुविधा ।
2. संस्ते श्रमिक की उपलब्धता : ये श्रमिक मेहनती होने के साथ-साथ कार्यकुशल भी होते हैं।
3. आयात -निर्यात की अच्छी सुविधा प्राप्त है क्योंकि यहाँ उत्तम बन्दरगाह हैं।
4. यहाँ चीन, भारत, संयुक्त राज्य आदि देशों की कपास का आयात किया जाता है।
5. यहाँ कोयला चीन एवं मंचूरिया से सस्ते जल यातायात द्वारा उपलब्ध है।
6. निकट के एशिया तथा अफ्रीका में वृहद् बाजारों का होना।
फ्रांस (France) : यह देश सूती वस्त्र उद्योग के लिए विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ इस उद्योग के तीन मुख्य क्षेत्र हैं-
1. वासजेज क्षेत्र : मुख्य केन्द्र – बेलफोर्ट, कोलमार, एपीनाल तथा नान्सी आदि ।
2. नार्मण्डी क्षेत्र : इस क्षेत्र का सूती वस्त्र उद्योग में प्रमुख स्थान है।
3. उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र : इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्र लीले तथा आमीन्स हैं।
जर्मनी (Germany) : इस देश का सूती वस्त्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ एक विशेष प्रकार का वस्त्र तैयार किया जाता है जो निम्न कोटि की रूई तथा ऊन के मिश्रण से तैयार किया जाता है। इस वस्त्र का उपयोग स्त्रियों के पहनने के वस्त्र तथा बनियान आदि बनाने में किया जाता है। इस देश में इस उद्योग के अनेक मुख्य क्षेत्र हैं-
1. रूर क्षेत्र : यह क्षेत्र वैस्टफैलिया प्रदेश के नाम से भी प्रसिद्ध है तथा इसका सूती वस्त्र निर्माण में विशेष महत्त्व है। इस क्षेत्र के सूती वस्त्र के केन्द्र ब्रिमिन, ग्लाँड, बाक, केफील्ड, ग्रोनाऊ, मुन्टीन, एबरफील्ड तथा रेन मूखेन आदि हैं।
2. दक्षिणी-पश्चिमी जर्मनी क्षेत्र : इसके मुख्य केन्द्र स्टुटगार्ड, मूलहाउस, आग्सवर्ग आदि उल्लेखनीय हैं।
3. सैक्सोनी क्षेत्र : इस क्षेत्र में सूती वस्त्र का पर्याप्त विकास हुआ है। इस क्षेत्र के मुख्य केन्द्र राइसनवाड, चिमनिज, लीपजिंग, म्युनिख, ड्रेस्डन एवं स्विचान आदि हैं। इसके अलावा अन्य अनेक छोटे-छोटे केन्द्र हैं।
अन्य प्रदेश (Other State) : सूती वस्त्र निर्माण के अन्य राज्य पाकिस्तान, मिस्र, दक्षिणी अफ्रीका, टर्की, ईरान, रोमानिया, इटली, थाईलैण्ड, ब्राजील आदि हैं।
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारण (Causes of Localization of Cotton- Textile Industry) : सूती वस्त्र एक दैनिक (Daily) उपयोग की वस्तु है तथा इसका इस्तेमाल विश्व के अधिकांश निवासियों द्वारा किया जाता है। इस उद्योग के स्थानीयकरण के निम्नलिखित कारण हैं, जो इसप्रकार हैं-
1. अनुकूल जलवायु (Favourable Climarath) सूती वस्त्र उद्योग के लिए सबसे बढ़िया आर्द्र जलवायु (Moist climate) अपेक्षित है क्योंकि शुष्क जलवायु (Dry climate) में धागे टूटने की सम्भावनाएँ अधिक बढ़ जाती हैं। यही कारण है कि विश्व के अधिकांश सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्र समुद्रतटीय भागों में अवस्थित हैं। इसका अच्छा उदाहरण बम्बई है तथा दूसरी ओर कराँची में कच्ची सामग्री की अच्छी उपलब्धता होने पर भी अनुकूल जलवायु के अभाव में यह केवल कपास निर्यातक क्षेत्र. बनकर ही रह गया है। अनुकूल जलवायु श्रमिक (Worker) को कार्यक्षमता को भी प्रभावित करती है तथा मानव श्रम के लिए आदर्श तापमान 600F माना गया है। संयुक्त राज्य, जापान तथा उत्तरी-पूर्वी यूरोप के राष्ट्र अनुकूल जलवायु के कारण ही विश्व के सबसे बढ़िया औद्योगिक क्षेत्र बन गये हैं।
2. कच्ची सामग्री की उपलब्धता (Availability of Raw-materials) : किसी भी उद्योग के स्थानीयकरण में कच्ची सामग्री (Raw materials) की उपलब्धता एक प्रधान घटक माना जाता है। सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास का मिलना आवश्यक है ताकि शीघ्र एवं सस्ते मूल्य पर उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त हो सके। यही कारण है कि बम्बई एवं अहमदाबाद में सूती वस्त्र उद्योग इतना विकसित हुआ है। रूस में भी यह उद्योग कपास क्षेत्रों के समीप स्थित है।
3. शक्ति की पूर्ति (Supply of Power) : शक्ति के साधनों का समीप होना भी उद्योग के स्थानीयकरण में मुख्य घटक रहता है। कोयला एक महत्त्वपूर्ण शक्ति संसाधन (Power resource) है। यदि उद्योग दूर स्थापित किये जायेंगे तो लागत बढ़ जायेगी। उद्योगों की स्थापना कोयला क्षेत्रों के निकट करने पर सस्ती शक्ति प्राप्त होगी, जैसाकि ग्रेट ब्रिटेन के लंकाशायर सूती वस्त्र उद्योगों में होता है । मुम्बई के सूती वस्त्र उद्योग अफ्रीका से प्राप्त कोयले से शक्ति प्राप्त करते हैं। आजकल पन – बिजली (Hydro-electricity) ने इस समस्या को हल कर दिया है। पश्चिमी घाटी में उत्पादित पन – बिजली मुम्बई के सूती वस्त्र उद्योगों तथा पाइकारा पन- बिजली योजना कोयम्बटुर जिले के सूती वस्त्र उद्योगों को शक्ति प्रदान करती है । जापान, स्विटजरलैण्ड, इटली के अधिकांश उद्योग पन- बिजली से चलते हैं।
4. बाजार की निकटता (Nearest of Market) : उद्योगों के स्थानीयकरण में बाजार की निकटता एक प्रधान घटक है। यों तो सूती वस्त्र उद्योग का बाजार अन्तर्राष्ट्रीय है, किन्तु स्थानीय खपत उद्योग को अधिक उन्नत बनाती है। उदाहरणार्थ, भारत में पश्चिम बंगाल में सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्रीयकरण बाजार की निकटता है। जापान को सूती वस्त्र खपाने का एशियाई बाजार निकट ही प्राप्त है। रूस में वस्त्र उद्योग स्थानीय खपत क्षेत्रों के समीप है। ब्रिटेन का अधिकांश वस्त्र देश में ही खपत होता है।
5. योग्य एवं दक्ष श्रम शक्ति(Skilled and Efficient Labour Power): किसी भी उद्योग के केन्द्रीयकरण के लिए योग्य एवं कुशल श्रमिक प्रधान घटक हैं। उदाहरणार्थ, लंकाशायर में कुशल श्रमिक उपलब्ध होने से उसे अन्य औद्योगिक केन्द्रों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त है तथा इसी वजह से यह सूती वस्त्र उत्पादन में अग्रणी है। भारत में कानपुर में सूती वस्त्र उद्योग के आरम्भिक काल में जुलाहे एवं कोरी लोगों की विद्यमानता ने श्रम की आवश्यक पूर्ति की।
6. सरकारी सहायता (State Aid) : यह आवश्यक हो गया है कि उद्योग को आवश्यकतानुसार सरकारी सहायता प्रदान होती रहे, क्योंकि इसके अभाव में उद्योग का विकसित होना सम्भव नहीं है। ब्रिटेन में तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साधन के रूप में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना हुई। अंग्रेजी सरकार ने अपने उपनिवेशों में अपनी व्यापार उन्नति-नीति द्वारा सूती ‘वस्त्रो को बाजार प्रदान कर उद्योग की प्रगति में विशेष भाग लिया था। रूस के सूती वस्त्र व्यवसाय का तो आधार ही सरकार है।
7. वित्तीय सुविधाएँ (Financial Facilities) : किसी भी बड़े उद्योग की स्थापना में भारी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य यूरोपीय देशों में सूती वस्त्र उद्योग का विकास वहाँ पर उपलब्ध पूँजीगत साधनों के परिणामस्वरूप ही सम्भव हुआ। भारत में इन उद्योगों का विकास विदेशी पूँजी से हुआ था, लेकिन वर्त्तमान में इन उद्योगों की स्थापना पूर्णतया भारतीय पूँजी से, जिसमें टाटा, बिरला, डाबर, मोदी, डालमिया आदि बड़े उद्योगपतियों का हाथ है, हुई।
8. सस्ती भूमि एवं अन्य सुविधाएँ (Cheap land and other facilities) : भूमि का सस्ता होना तथा जन उपयोगी सेवाओं अर्थात् गैस, विद्युत, डाक, तार, जल आदि की उपलब्धता उद्योगों को आकर्षित करती है। इसी कारण से सूती वस्त्र उद्योग देश के उप-क्षेत्रों में विकसित हुआ है।
9. अन्य तत्त्व ( Other Elements) : इनमें परिवहन सुविधाएँ, जलापूर्ति, स्थानीय अधिकारी की नीति, सुरक्षात्मक कारण, राजनैतिक स्थिरता, सामाजिक कारण, व्यक्तिगत कारण एवं सहायक उद्योगों की स्थापना आदि प्रमुख है।