प्रश्न – अलफ्रेड वेबर के औद्योगिक स्थानीयकरण के सिद्धान्त का वर्णन करें।
अल्फ्रेड वेबर का औद्योगिक स्थानीयकरण का सिद्धान्त : जर्मन अर्थशास्त्री अल्फ्रेड वेबर (Alfred Weber) ने न्यूनतम लागत औद्योगिक स्थानीयकरण के सिद्धान्त का प्रतिपादन 1909 ई० में किया, जो जर्मन भाषा में उनकी पुस्तक Uber den standort der : Industrien में प्रकाशित हुआ था। यही सिद्धान्त 1929 ई० में अंग्रेजी भाषा में Theory of Localization of Industries के नाम से प्रकाशित हुआ। वेबर ने अपने सिद्धान्त को समझाने… के लिए कुछ परिकल्पनाएँ की हैं, जो निम्नलिखित हैं
(1) कच्चा माल (raw material) कुछ स्थानों में ही पाया जाता है।
(2) बाजार कुछ खास स्थितियों पर ही स्थित होता है।
(3) श्रमिकों की आपूर्ति स्थिर ( Gimmobile) होती है। श्रमिकों की उपलब्धता सभी जगह पर न होकर कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही रहती है। ये क्षेत्र विशिष्ट मजदूरी स्तर पर (specific wage level) असीमित श्रम की आपूर्ति करने में सक्षम होते हैं।
(4) जिस क्षेत्र में उद्योग की स्थापना करनी है, वह एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में होता जहाँ जलवायु, तकनीक तथा जनसंख्या की दशाएँ समान पाई जाती हैं।
(5) कुछ कच्चे माल कुछ स्थानों पर ही निर्मित होते हैं, उनको स्थानीय पदार्थ (localised material) तथा जो सभी जगह उपलब्ध होते हैं उनको सर्वत्र सुलभ (ubiquitous material) कहा जाता है।
(6) परिवहन का भाड़ा दूरी एवं भार के अनुपात में बढ़ता है।
न्यूनतम लागत स्थिति के निर्धारण हेतु वेबर ने उद्योगों को दो वर्गों में बाँट दिया। प्रथम वे उद्योग जिनमें निर्माण प्रक्रिया में वजन कम हो जाता है। ऐसे उद्योग को वजन घटानेवाले उद्योग कहा जाता है। एलुमिनियम उद्योग ऐसा ही उद्योग है, क्योंकि इसमें प्रयुक्त बॉक्साइट बहुत वजनी होता है। इस उद्योग में जो पदार्थ/कच्चा माल प्रयुक्त होता है, उसको सकल पदार्थ (gross material) कहा जाता है। द्वितीय वे उद्योग जिनमें उत्पादन प्रक्रिया में वजन कम नहीं हो, उनको वजन न घटानेवाले उद्योग का दर्जा दिया गया है। सूती वस्त्र उद्योग इसका उदाहरण है। इस प्रकार के उद्योग में प्रयुक्त कच्चे माल / पदार्थ को शुद्ध पदार्थ (pure material) कहा गया है। इसीतरह कुछ अन्य बातों का भी इन्होंने उल्लेख किया है जो निम्नांकित हैं :
(1) पदार्थ सूचकांक (material index) उत्पादित वस्तु एवं कच्ची सामग्री के वजन के अनुपात का द्योतक होता है। शुद्ध पदार्थ की दशा में यह सूचकांक एक होता है।
(2) प्रति इकाई उत्पादित वस्तु हेतु कच्चे पदार्थ एवं उत्पादित वस्तु, सबको मिलाकर जितने भार का परिवहन करना पड़ता है, उसको स्थानीयकरण भार कहते हैं।
(3) समान परिवहन लागत के बिन्दुपथ को दर्शानेवाली कल्पित रेखाओं को आइसोडापैन (isodapane) कहा गया है। एक ऐसी आइसोडापैन जिस पर उद्योग को स्थापित करने में न्यूनतम लागत आती है, उसको निर्णायक आइसोडापैन (critical isodapane) कहा जाता है।
- स्थानीयकरण की पहली दशा : जब एक कच्चा माल और एक बाजार हो ।
(1) उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल यदि सर्वत्र सुलभ है तो कारखाने की स्थिति बाजार क्षेत्र में स्थापित होनी चाहिए ताकि परिवहन खर्च न लगे। इसके लिए उन्होंने सीमेण्ट उद्योग का उदाहरण दिया है।
(2) यदि कच्चा माल स्थानीय (localised) है तथा शुद्ध है तो उद्योग की स्थिति कच्चे माल के स्रोत या बाजार के पास या इन दोनों के मध्य हो सकती है, क्योंकि हर हालत में परिवहन लागत बराबर लगना है।
(3) यदि कच्चा माल सकल पदार्थ अर्थात् उत्पादन के बाद वजन घटानेवाला है तो कारखाने की स्थिति सदैव कच्चे माल के स्रोत पर स्थापित होगी। यदि कच्चा माल जल्दी नष्ट होनेवाला है तो भी कच्चे माल का स्रोत उपयुक्त स्थान होता है। लकड़ी उद्योग, लुग्दी मिल, प्लाई मिल, कागज मिल, चावल मिल इत्यादि इसी प्रकार के उद्योग हैं।
(4) यदि कच्चा माल भारी होता है तथा उत्पादन प्रक्रिया के बाद वजन बढ़ जाता है तो ऐसी स्थिति में कारखाना बाजार केन्द्र पर स्थापित होता है। फर्नीचर, आटोमोबाइल, बीयर, ठण्डे पेय पदार्थ की बाटलिंग इत्यादि इसके उदाहरण हैं।
- स्थानीयकरण की दूसरी दशा : दो या दो से अधिक कच्चे माल एवं एक बाजार हो ।
(1) यदि दोनों कच्चे माल सर्वत्र सुलभ हैं तो कारखाने की स्थिति बाजार केन्द्र पर स्थापित होगी। यदि ये कच्चे माल शुद्ध पदार्थ हैं तो भी बाजार केन्द्र उद्योग स्थापना हेतु उपयुक्त होते हैं क्योंकि सिर्फ बाज़ार केन्द्र पर परिवहन लागत न्यूनतम होती है।
(2) यदि दोनों कच्चे माल सकल पदार्थ हैं अर्थात् उत्पादन में वजन घट जाता ऐसी दशा में कारखाने की स्थिति निर्धारित करना कठिन हो जाता है। इस समस्या के समाधान हेतु वेबर ने स्थानीयकरण त्रिभुज (Localizational triangle) का सहारा लिया। मान लीजिए कि कच्चे माल A और B बिन्दुओं पर तथा बाजार (माँग) C बिन्दु पर स्थापित हैं तो ऐसी दशा में कारखाने की स्थिति किसी भी बिन्दु पर उपयुक्त नहीं होगा, वरन् इसकी स्थिति ABC त्रिभुज के अन्दर कहीं होगी (चित्र 1.) । परन्तु, वास्तविक स्थिति अन्दर होते हुए भी उस बिन्दु की तरफ खींच जाएगी जिसपर स्थित कच्चा माल अत्यधिक वजनी है। इसी तरह दो से अधिक कच्चे माल एवं बाजार होने पर स्थानीयकरण की समस्या का समाधान चतुर्भुज, पट्कोण इत्यादि की सहायता से किया जाएगा।

उद्योग के स्थानीयकरण हेतु वेबर के स्थानीयकरण त्रिभुज की यह कहकर आलोचना की जाती है कि परिवहन लागत सदैव दूरी के अनुपात में नहीं बढ़ती है। साथ ही कच्चे माल एवं उत्पादित माल पर प्रति टन परिवहन लागत भी बराबर नहीं होती है।
वेबर ने उद्योग के स्थानीयकरण में श्रम और एकत्रीकरण प्रभाव (agglomeration effect) को भी सम्मिलित किया है। श्रम के प्रभाव को दर्शाने हेतु इन्होंने यह कहा है कि पहले से निर्धारित कारखाने की स्थिति को सस्ते श्रम उपलब्धता के क्षेत्र की तरफ खिसकाया जा सकता है। यह खिसकाव उसी बिन्दु तक सम्भव है जहाँ तक परिवहन में होती वृद्धि को सस्ते श्रम द्वारा पूरा किया जा सके। इस बिन्दु के निर्धारण हेतु आइसोडापैन का सहारा लिया गया।
श्रम का प्रभाव (Effect of Labour cost) : अल्फ्रेड वेबर के अनुसार जब किसी स्थान पर उद्योगों के स्थानीयकरण में परिवहन लागत की तुलना में श्रम लागत कम होती है, तो इस दशा में उद्योगों की स्थिति में परिवहन लागत का महत्त्व समाप्त हो जाता है और श्रम लागत ही उद्योगों की स्थिति की निर्धारक होती है। मान लीजिए, M और N दो बिन्दु हैं। M बिन्दु पर कच्चा माल उपलब्ध है तथा N बिन्दु पर बाजार, स्थित है अर्थात् उत्पादित पदार्थ की खपत N पर होना है और M पर उपलब्ध कच्चे माल का वजन प्रति इकाई उत्पादित वस्तु से दुगुना है, तो कारखाने की स्थिति M पर होगी क्योंकि यहाँ परिवहन लागत कम होगी। M स्थिति से कारखाने को सस्ते श्रम की तरफ खिसकाया जा सकता है। इस हेतु M बिन्दु से हटाने पर प्रति इकाई कच्चे माल की परिवहन लागत को दर्शाने हेतु वृत्ताकार रेखाएँ खींचिए। चूँकि बाजार N बिन्दु पर है, इसलिए उत्पादित माल को बाजार तक लाने हेतु प्रति इकाई उत्पादित वस्तु परिवहन लागत को दर्शाने हेतु वृत्ताकार रेखाएँ खींचिए। ये वृत्त उत्पादित वस्तु की परिवहन छागत को दर्शाएँगे। ऊपर बताया गया है कि कच्ची सामग्री उत्पादित वस्तु से वजन में दुगनी . ‘है, अत: कच्चे माल की परिवहन लागत हेतु खींचे गए संकेन्द्रीय वृत्त उत्पादित बस्तु के परिवहन लागत वृत्त से दुगुने अन्तर पर होंगे। इन वृत्तों को आइसोडापैन कहा जाता है। श्रम को विचार में न लेने पर कारखाने की स्थिति M पर होगी। मान लीजिए, सस्ते श्रम की उपलब्धता बढ़ती परिवहन लागत को पूरा कर रही है, तो कारखाने की स्थिति को M से हटाकर कहीं और किया जा सकता है। यदि कारखाने को B बिन्दु पर ले जाएँ तो कच्चे माल की परिवहन लागत 8 इकाई तथा B से उत्पादित वस्तु को N बाजार केन्द्र तक पहुँचाने की परिवहन लागत 4 इकाई खर्च होती है अर्थात् कुल खर्च 12 इकाई का हुआ, परन्तु कारखाने को M बिन्दु पर स्थापित करने में सिर्फ 8 इकाई परिवहन लागत उत्पादित | वस्तु को बाजार (N) तक ले जाने में लग रही है अर्थात् B बिन्दु पर कारखाने को स्थापित । करने में 4 इकाई परिवहन खर्च अतिरिक्त है। A, B, C, D, E, F, G, H, I, J, K, L सभी ऐसे बिन्दु हैं जहाँ कारखाने को स्थापित करने में सिर्फ 4 इकाई अधिक परिवहन खर्च देना होगा। इन बिन्दुओं को मिलानेवाली रेखा को निर्णायक आइसोडापैन (critical isodapane) कहा गया है। अब इनमें से किसी भी बिन्दु पर कारखाने की स्थिति हो सकती है, बशर्ते कि 4 इकाई अतिरिक्त लागत को सस्ते श्रम द्वारा पूरा कर लिया जाए।

एकत्रीकरण का प्रभाव : वेबर ने एकत्रीकरण प्रभाव को तीन तरह से प्रदर्शित किया है.
प्रथम, कारखाने के उत्पादन – विस्तार से उत्पादनजन्य लाभ मिलता है।
द्वितीय, यदि एक स्थान पर एक ही उद्योग के कई कारखाने स्थित हों तो तकनीकी एवं विक्रय-सम्बन्धी सुविधाएँ पाई जाती हैं।
तृतीय, विभिन्न प्रकार के उद्योगों के एक स्थान पर स्थित होने से परिवहन सम्बन्धी एवं अन्य लाभ प्राप्त होते हैं। इन्होंने मान लिया कि यदि श्रम लागत सभी स्थानों पर समान हो तो न्यूनतम परिवहन लागत द्वारा निर्धारित कारखाने की स्थिति एकत्रीकरण प्रभाव से उत्पन्न लाभ के कारण अपने निर्धारित स्थान से उस स्थान तक खिसक सकती है, जहाँ तक यह लाभ परिवहन लागत से अधिक रहे या बराबर हो जाए।
निम्नांकित चित्र में तीन स्थानीयकरण त्रिभुज दर्शाएँ गए हैं, जिनमें तीन न्यूनतम लागत के सर्वोत्तम बिन्दु हैं। इन्हीं बिन्दुओं को केन्द्र मानकर परिवहन लागत हेतु तीन आइसोडापैन खींचे गए हैं। इन आइसोडापैन का मान 5 है। उपर्युक्त आइसोडापैनों के मध्य एक क्षेत्र ABC का पड़ता है जिसमें न्यूनतम परिवहनं लागतवाला उद्योग केन्द्र खिसक कर स्थापित हो सकता है, बर्शते कि एकत्रीकरण से उत्पन्न लाभ 5 इकाई से अधिक या बराबर हो। एकत्रीकरण से सतत वृद्धि इससे उत्पन्न लाभ को बढ़ा सकती है या एक सीमा के बाद स्थिर होकर लाभ को भी स्थिर कर देगी ।

वेबर के सिद्धान्त की यह आलोचना की जाती है कि इन्होंने उत्पादन की अवस्था, अन्तिम उत्पाद, स्थानान्तरण खर्च तथा वास्तविक परिस्थितियों पर ध्यान नहीं दिया है, परन्तु इनका स्थानीयकरण प्रयास एक क्रमबद्ध विश्लेषण है, जिसने अन्य विद्वानों हेतु मार्गदर्शन का काम किया।
वेबर के सिद्धान्त में हूवर (E. Hoover, 1989 ) ने महत्त्वपूर्ण परिमार्जन किया है। इसी तरह इसाई (W. Isard, 1956), लाश (A. Losch, 1954), स्मिथ (D. M. Smith, 1979), होटेलिंग (H. Hotelling, 1979), स्टैफोर्ड (H. A. Stafford, 1979) इत्यादि विद्वानों ने औद्योगिक स्थानीयकरण के नए सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, जिसमें व्यवहारात्मक उपागम (behavioural approach) एवं संरचनात्मक उपागम (structural approach) आधुनिक सिद्धान्त हैं।