प्रश्न – निर्वाहन खेती से आप क्या समझते हैं? इसके वितरण एवं विशेषताओं का वर्णन करें।
प्रस्तावना (Introduction) : निर्वाहन खेती एक प्रकार की खेती की पद्धति है जिसमें स्थानीय उपभोग के लिए खाद्य फसलों (Food grains) का उत्पादन किया जाता है। इस खेती से संसार की 1/3 जनसंख्या अपना जीवन निर्वाह करती है। यह खेती प्रधानत: मानसून एशिया के क्षेत्र में केन्द्रित है।
परिभाषा ( Definition) : निर्वाहन खेती उस प्रकार की खेती करने की पद्धति है जिसमें प्रधानतः स्थानीय उपयोग (use) के लिए खाद्य फसलों का उत्पादन किया जाता है। वितरण (Distribution) : निर्वाहन खेती भारत, चीन, जापान, इन्डोनेशिया, वर्मा एवं बंगलादेश आदि देशों में होती है। …
खाद्यान्न फसलें (Food grains) : निर्वाहन खेती में उपर्युक्त देशों में चावल, गेहूँ की खेती होती है।
विशेषताएँ (Characteristics) : निर्वाहन खेती की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
1. इस खेती में खाद्य फसलों की प्रधानता होती है जिसमें चावल की खेती का प्रधान महत्त्व है। जहाँ वर्षा अधिक होती है, वहाँ चावल की खेती होती है। शुष्क भागों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि की खेती होती हैं।
2. इस खेती में पशुपालन की अपेक्षा फसलों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
3. निर्वाहन खेती में पशुओं का उपयोग (use) होता है तथा इनका स्थान द्वितीयक है। इसमें खेती के लिए अनुपयुक्त जमीन का चारागाह में काम लिया जाता है तथा पशुओं के मुख्य भोजन के रूप में डंठल एवं भूसे का उपयोग होता है। वजन के लिए घोड़े, ऊँट, खच्चर आदि पाले जाते हैं तथा भेड़ एवं बकरियाँ भी पाली जाती हैं। इन पशुओं से खेती में सहायता के अलाबे गोबर प्राप्त होता है जिससे खाद भी प्राप्त होती हैं।
4. निर्वाहन खेती करनेवाले प्रदेशों में खेत अत्यन्त छोटे-छोटे तथा बिखरे हुए होते हैं। इस कारण उत्पादन काफी कम होता है।
5. यह प्राचीन कृषि प्रणाली है, जिसमें प्राचीन काल से प्रचलित साधारण लकड़ी अथवा लोहे के हल – कुदाल से जुताई- कुड़ाई की जाती है जिससे लागत कम होती है।
6. इस खेती में मशीनों का उपयोग नगण्य होता है।
7. रासायनिक खादों का काफी कम मात्रा में उपयोग होता है।
8. इसकी खेती पद्धति पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचित ज्ञान पर आधारित होती है।
9. इस खेती में किसानों की दशा काफी दयनीय होती है क्योंकि किसान वही अन्न खाते हैं जो उत्पन्न करते हैं।
10. इस खेती में गहन निर्वाहन खेती प्रदेश दो भागों में विभक्त होती है— पहला चावल प्रधान गहन निर्वाहन खेती- प्रदेश तथा दूसरा चावल-विहीन गहन निर्वाहन खेती- प्रदेश । पहले खेती-प्रदेश में प्रमुख फसल चावल होती है तथा इसे मुख्य खेती भी कहते हैं एवं दूसरी खेती में चावल के साथ अन्य फसलों की भी प्रमुखता होती है, जैसे- शुष्क खेती प्रदेशों में नगदी फसलें- गन्ना, कपास, तिलहन आदि उपजाई जाती है।
11. इस खेती में मानसून का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसमें ऋतु के अनुरूप भिन्नता पाई जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion) :उपर्युक्त अध्ययन से यह पता चलता है कि निर्वाहन खेती पद्धति पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचित ज्ञान पर आधारित होती है। इसमें मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए खेती करता है।