प्रश्न – प्राथमिक, गौण एवं तृतीय उत्पादन-संबंधी अर्थव्यवस्था पर नोट लिखें।
आर्थिक भूगोल का विषय-क्षेत्र उतना ही व्यापक है जितना कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का विस्तार है । आर्थिक क्रियाओं से आशय मनुष्य के उन कार्यों से है जिनसे विविध वस्तुओं के मूल्य या स्वरूप में वृद्धि होती है तथा उनमें मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता बढ़ जाती है। वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि उनके रूप परिवर्तन (Form) स्थान परिवर्तन (Place) और अधिकार परिवर्त्तन ( Ownership) से होती है।
मनुष्य की तीन आधारभूत शारीरिक अथवा जैविक आवश्यकताएँ मानी गयी हैं, जिनके अभाव में उसका जीवन दुष्कर हो जाता है। वायु और जल के अतिरिक्त ये तीन अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं- भोजन (Food), वस्त्र (Clothing) और आश्रय (Shelter ) ।
इन आवश्कयताओं की पूर्ति के लिए मानव को स्वयं के या दूसरों के श्रम पर निर्भर रहना पड़ता है जो आवश्यकता की इन वस्तुओं को निर्मित कर सकें । ये वस्तुएँ या तो स्वतः पृथ्वी के धरातल पर अथवा भूगर्भ में पायी जाती हैं अथवा इन्हें निकालकर इनके परिवर्द्धन, संशोधन, अथवा परिष्कार करके मानव उपभोग के लिए इन्हें तैयार किया जाता है । जैसे, रोटी ” बनाने के लिए गेहूँ का उपयोग किया जाता है, कृषि द्वारा गेहूँ उत्पन्न किया जाता है, उसे उपयोग हेतु बनाने के लिए उसे आटे में परिवर्तित किया जाता है। फर्नीचर का निर्माण बनों से प्राप्त होने वालीलकड़ियों से तथा ऊनी वस्त्रों का निर्माण भेड़ों से प्राप्त ऊन से और औजारों का निर्माण कच्चे लोहे का से किया जाता है।
मानव के व्यवसायों का वर्गीकरण (Classifications of Man’s Occupation) : उत्पादन संबंधी आर्थिक क्रियाओं को निम्नांकित तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है-
प्राथमिक उत्पादन-संबंधी व्यवसाय (Primary Occupations) : प्राथमिक अथवा प्रारम्भिक व्यवसाय वे व्यवसाय हैं जिनके द्वारा मानव प्राकृतिक संसाधनों का प्रत्यक्ष उपयोग करता है। कृषि कार्य में मिट्टी का प्रत्यक्ष उपयोग फसल उगाने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना, खानों से खनिज निकालना, वनों से लकड़ियाँ काटना, फल एकत्रित करना, पशुओं से ऊन, चमड़ा, बाल, खालें, हड्डियाँ आदि प्राप्त करना प्राथमिक उत्पादन व्यवसाय हैं। इनसे संबंधित उद्योगों को प्राथमिक व्यवसाय’ (Primary Occupations) कहा जाता है, जैसे – कृषि करना, खानें खोदना, मछली पकड़ना, आखेट करना, वस्तुओं का संचय करना, वन-संबंधी अन्य उद्योग आदि।
मानव प्राचीन काल से ही इन वस्तुओं को प्रकृति से प्राप्त करता चला आ रहा है तथा प्रकृति में उन वस्तुओं को बढ़ाने और उत्पन्न करने में सहयोग करता है।
गौण उत्पादन – संबंधी व्यवसाय (Secondary Occupations) : इन व्यवसायों के अन्तर्गत प्रकृतिदत्त संसाधनों का प्रत्यक्ष उपयोग नहीं किया जाता वरन् उनको साफ, परिष्कृत अथवा उनका रूप परिवर्तित कर उपयोग के योग्य बनाया जाता है। इससे इनके मूल्य में वृद्धि हो जाती है। जैसे- लोहे को गलाकर इस्पात के यन्त्र अथवा अन्य वस्तुओं का निर्माण करना, गेहूं से आटा अथवा मैदा तैयार करना, कपास अथवा ऊन अथवा रेशम से कपड़ा तैयार करना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना, कागज बनाना आदि। इन वस्तुओं को तैयार करनेवाले उद्योगों को ‘गौण व्यवसाय’ (Secondary Occupations) कहा जाता है। इनके अन्तर्गत सभी प्रकार के निर्माणात्मक उद्योग (Manufacturing Industries) सम्मिलित होते हैं।
विश्व के समस्त देशों में अनेक प्रकार के गौण उद्योगों का विकास किया गया है जिनमें लोहा-इस्पात, वस्त्र, रसायन, रबड़ उद्योग आदि हैं जिनका विकास प्राथमिक वस्तुओं के परिष्कृत किये जाने तथा उनको अधिक उपयोगी बनाने के लिए किया जाता है।
गौण व्यवसायों की विशेषताएँ (Characteristics of Secondary Occupations ) : गौण व्यवसायों की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. इस प्रकार के व्यवसायों में कच्चा माल प्राथमिक उद्योगों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
अत:, यह क्रिया प्राथमिक व्यवसाय से संबंधित है।
2. इस कच्चे माल को परिष्कृत, संशोधित करने के लिए शक्ति का उपयोग किया जाता है।
3. मानव क्रिया तथा मस्तिष्क का उपयोग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के निर्माण के लिए किया जाता है।
4. गौण उत्पादन व्यवसायों के लिए आवश्यक पूँजी की भी आवश्यकता होती है। साथ ही बड़े-बड़े कारखानों तथा मनुष्यों के रूप में श्रमिकों की भी आवश्यकता होती है। गौण उत्पादन व्यवसायों द्वारा उत्पादित वस्तु का उपभोग अधिक समय तक किया जा सकता है तथा उसका उपयोग दूसरे स्थानों पर भी किया जा सकता है।
तृतीय उत्पादन व्यवसाय (Tertiary Occupations ) : इस प्रकार के व्यवसायों के अन्तर्गत वे सभी व्यवसाय सम्मिलित किए जाते हैं जो प्राथमिक अथवा गौण उत्पादन की वस्तुओं को उपभोक्ता, उद्योगपतियों तक पहुँचाने से संबंधित होते हैं। इस प्रकार के व्यवसायों के अन्तर्गत वस्तुओं का स्थानान्तरण, संचार और संवादवाहन सेवाएँ, वितरण एवं संस्थाओं और व्यक्तियों की सेवाएँ जैसे – व्यापारी (merchants), दलाल (brokers), पूँजीपति (bankers) आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
प्रो० जीन गौटमैन केवल प्रत्यक्ष सेवाओं को ही तृतीयक व्यवसायों में सम्मिलित करते हैं। उनके अनुसार अप्रत्यक्ष सेवाएँ चतुर्थक व्यवसायों (Quartemary Production Occupations) के अन्तर्गत आती हैं। इस दृष्टि से शिक्षण, नेतागिरी, अनुसन्धान आदि कार्य चतुर्थक व्यवसाय हैं।
इसी प्रकार विनिमय के भी दो स्वरूप होते हैं— स्थानान्तरण अथवा वितरण जिनके अनुसार वस्तुएँ या सेवाएँ एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जायी जाती हैं जिससे उनके मूल्य में वृद्धि होती है। परिवहन इसी प्रकार की क्रिया है । वितरण के अन्तर्गत वस्तु या सेवाओं का स्वामित्व अथवा अधिकार परिवर्तन होता है। व्यापार या वाणिज्य इस प्रकार की मुख्य क्रिया है ।