BA 1st Semester Indian Ancient History MJC Unit 4 Short Question Answer PDF Download
Q.44. शुंग कौन थे ?
Ans. मौर्य साम्राज्य की कब्र पर शीघ्र ही शुंग वंश की स्थापना हो गई। मौर्य साम्राज्य का अंतिम सम्राट वृहद्रथ था। वह अपनी विलासिता के लिए प्रसिद्ध था और अकर्मण्यता उसकी चारित्रिक विशेषता थी । उसके इन दुर्गणों से लाभ उठा कर उसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसका एक दिन कत्ल कर मगध के राजसिंहासन पर बैठकर शुंग वंश की स्थापना कर दी। ये शुंग कौन थे ? यह विषय विवादास्पद है क्योंकि इतिहासकारों में एक मत नहीं है। विंध्यवदान नामक बौद्ध ग्रंथ के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग मौर्य वंश का था। कुछ इतिहासकारों ने उसको ईरान देश का निवासी बतलाकर उसको विदेशी सिद्ध करने की कोशिश की है। उसका कथन है कि ईरान में मित्र (सूर्य) की बहुत पूजा होती थी और शुंग वंश के सभी राजा अपने नाम में मित्र शब्द का भी प्रयोग करते थे। इसलिए कि इस वंश के लोग ईरानी थे। परन्तु यह मत सत्यता से बहुत ही दूर प्रतीत होता है। केवल नाम के आधार पर शुंगों को ईरानी कह देना उचित नहीं कहा जा सकता। वे लोग ब्राह्मण किस गोत्र के थे । कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्र के अनुसार शुंग लोग काश्यप गोत्र के थे। महर्षि पाणिनि के अनुसार उनका गोत्र भारद्वाज था। तारानाथ के अनुसार वे लोग स्पष्ट रुप से ब्राह्मण थे। इन सब तथ्यों से यह ज्ञात है कि शुरु में शुंग लोग मौर्य सम्राटों के पुरोहित थे लेकिन जब अशोक ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया तो उनकी पुरोहिती समाप्त हो गयी थी। लेकिन शुंग लोग मौर्य वंश से संबंध बनाये रखे और ब्राह्मण धर्म को त्याग कर छात्र धर्म को स्वीकार कर लिया जिसके फलस्वरुप सेना के ऊँचे- ऊँचे ओहदों पर वे लोग बहाल किये जाते थे । यही एकमात्र कारण है कि मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक वृहद्रथ का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था। जो एक दिन वृहद्रथ का कत्ल कर स्वयं सम्राट बन बैठा। इस तरह मगध की राजगद्दी पर शुंगवंश का श्रीगणेश हुआ।
Q.45. सातवाहन कौन थे ?
Ans. सातवाहन कौन थे और किस जाति के थे ? इतिहासकारों में इस विषय पर काफी मतभेद हैं। पुराणों में सातवाहनों को आन्ध्र जाति का कहा गया है। इसीलिए सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहा गया है। आन्ध्र एक जाति का नाम था, जो गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के बीच के भाग में निवास करती थी । आन्ध्र शासक पहले महाराष्ट्र में शासन करते थे। परन्तु कालान्तर में शकों के आक्रमणों के परिणामस्वरूप उन्हें महाराष्ट्र छोड़ना पड़ा और वे गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के बीच में आन्ध्र प्रदेश में आकर बस गए। आन्ध्र प्रदेश मैं रहने के कारण ही वे आन्ध्र कहलाये । अतः आन्ध्र नाम प्रादेशिक संज्ञा है, जातीय संज्ञा नहीं। आन्ध्र लोग आर्य थे या अनार्य, यह भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
सातवाहनों का उदयकाल : डॉ. स्मिथ, रैप्सन, जायसवाल आदि विद्वान सातवाहनों का उदयकाल ई. पूर्व तीसरी शताब्दी मानते हैं। परन्तु अधिकांश विद्वानों के अनुसार सातवाहन वंश का उदय ई. पूर्व प्रथम शताब्दी में हुआ था। इन विद्वानों के अनुसार सातवाहनों के शासन काल का प्रारम्भ लगभग 27 ई. पूर्व में हुआ था । इस मत की पुष्टि नानाघाट अभिलेख तथा हाथीगुम्फा अभिलेख से भी होती है। डॉ. राजबली पाण्डेय का मत है कि सातवाहन मूलत: दक्षिण भारत के थे और 28 ई. पूर्व में सिमुक ने मगध पर आक्रमण करके उत्तरी भारत में अपनी सत्ता स्थापित की थी।
Q.46. सातवाहन राज्य के बारे में टिप्पणी लिखिए।
Ans. लगभग 60 ई. पू. में सातवाहन राज्य की नींव सिमुक ने रखी थी। यह गोदावरी तथा कृष्णा नदी के बीच का क्षेत्र था, जिसको अब आंध्र कहा जाता है। शातकर्णि प्रथम सातवाहन वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसने अश्वमेघ यज्ञ किया और पूरे दक्कन पर अपनी प्रभुसत्ता की घोषणा की। इस वंश का एक और प्रसिद्ध राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी था, जिसने दूसरी शताब्दी ई. के आरंभिक काल में शासन किया। सातवाहन शासक अपने आपको ब्राह्मण कहते थे और विष्णुमत के अनुयायी थे । वे ब्राह्मणों को खुले दिल से दान देते थे। उन्होंने बौद्धमत को भी संरक्षण दिया। अमरावती के स्तूप तथा कार्ले के चैत्य इसी काल में बनवाये गये। साहित्यक दृष्टि से इस काल में प्राकृत भाषा का उदय हुआ । इस काल के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में है।
Q.47. सातवाहन काल में साहित्य का उल्लेख करें ।
साहित्यिक दृष्टि से यह काल प्राकृत भाषा व उसके साहित्य के विकास का काल था । सातवाहन शासकों के समस्त अभिलेख इसी भाषा में प्राप्त हुए हैं। इस वंश का हाल नामक राजा उच्च कोटि का कवि और साहित्यकार था । उसने प्राकृत भाषा में “गाथा सप्तशती” नामक एक काव्य ग्रन्थ की रचना की थी, जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता है। राजदरबार द्वारा लेखकों, कवियों और विद्वानों को संरक्षण दिया जाता था। इसी युग में गुणाढ्य ने ‘वृहत् कथा’ की रचना की। ‘सर्व- वर्मन’ नामक एक विद्वान् के द्वारा एक व्याकरण ग्रन्थ ‘कातन्त्र’ की रचना भी इस युग में हुई । महाभारत के कुछ अंश और व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक आदि के कुछ ग्रन्थ इसी युग में लिखे गये।
इस प्रकार हम देखते हैं कि सातवाहन युग में सभ्यता और संस्कृति का पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के बारे में अधिक ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी प्राप्त प्रमाणों के आधार पर इसे एक उन्नत युग कहा जायेगा।
Q.48. चेदि वंशीय कलिंग के राजा खारवेल का परिचय दें।
Ans. अशोक के मरने के बाद आन्ध्र देश की तरह ही कलिंग भी एक स्वतंत्र राज्य हो गया था इसका पुराना राजवंश तो बहुत पहले ही समाप्त हो गया था। इसके बाद वहाँ पुरा चेत अथवा चेदि नामक ब्राह्मण वंश का राज्य कायम हुआ । प्रसिद्ध राजा खारवेल इसी चेदि वंश का शासक था । उदय गिरी की पहाड़ी हाथी – गुफा अभिलेखों के प्राप्त हो जाने से उस काल की बहुत सी बातों की जानकारी इतिहासकारों को हो गयी है।
खारवेल का प्रारम्भिक जीवन : अभिलेखों के अनुसार खारवेल चेदिवंश का तीसरा सम्राट था। वह व्यायाम का बहुत बड़ा प्रेमी था । इसलिए उसने 15 साल तक लगातार व्यायाम किया था। जिसके फलस्वरूप उसका शरीर बहुत गठीला, विद्या से भी उसको प्रेम था। युवराजों को जिन-जिन विद्याओं की जरूरत पड़ती है उन सभी विद्याओं में वह पारंगत था। लेख, गणित और शास्त्र में तो उसका ज्ञान बेजोड़ था । 11 वर्ष की उम्र में उसने युवराज का पद प्राप्त किया था और 24 वर्ष की अवस्था में उसका राज्याभिषेक हुआ था। थोड़े ही दिनों में उसकी शक्ति की ध्वजा अबाधगति से फहराने लगी । अतः वह एक ख्याति प्राप्त राजा था।