भारत में कुषाण शासकों के सांस्कृतिक योगदानों की समीक्षा कीजिए ।PDF DOWNLOAD

भारत के प्राचीन इतिहास में कुषाण वंश का काल एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस युग में भारतीय सभ्यता-संस्कृति की निम्नलिखित उपलब्धियाँ हुई— 

साहित्य का उत्कर्ष : इस काल में साहित्य की पर्याप्त उन्नति हुई । कनिष्क के शासन- काल में वसुमित्र पार्श्व, अश्वघोष और नागार्जुन जैसे धुरन्धर विद्वान हुए । उन्होंने बौद्ध साहित्य की वृद्धि की। वसुमित्र ने महाविभाष नामक ग्रंथ की रचना करके उसमें बौद्ध दर्शन के सम्पूर्ण उपलब्ध ज्ञान को संचित किया। अश्वघोष ने त्रिपिटक की टीकाओं को व्यवस्थित किया तथा अनेक बौद्ध विद्वानों की मण्डली में त्रिपटिक की एक प्रामाणिक टीका तैयार की। उस टीका को सम्राट् कनिष्क ने ताम्रपत्रों पर खुदवा कर स्थायित्व प्रदान किया। आयुर्वेदाचार्य चरक ने वैद्यक का उच्चकोटि का ग्रन्थ ‘चरक संहिता’ तैयार किया । चरक सम्राट् कनिष्क के राजवैद्य थे। उन्होंने वैद्यक के इस अमूल्य ग्रन्थ द्वारा देश की अमूल्य सेवा की। संस्कृत भाषा का इस काल में अत्यधिक उन्नति और विकास हुआ। 

मुद्रा : कुषाण युग के सिक्के बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं। कनिष्क प्रथम हविष्क तथा वासिष्क ने सोने तथा ताँबे के सिक्के चलाये । उन्होंने चांदी के सिक्के नहीं चलाये । परवर्ती कुषाणों ने केवल सोने के सिक्के चलाये। मालव, यौधेय, अर्जुनायन, औडुम्बर, कूणिन्द आदि स्वायत्त जातियों ने चाँदी और ताँबे के सिक्के चलाये । सोने के रोमन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं जो रोम को भारतीय माल खरीदने के कारण भेजने पड़े। कुषाण सिक्कों का एक रुचिकर लक्षण यह है कि कुषाण साम्राज्य के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों के देवताओं को कुपाण सिक्कों पर अंकित किया गया है। 

कला का विकास : कुषाण काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश में मूर्तिकला की एक नवीन शैली का उदय हुआ। यह शैली उस प्रदेश के नाम पर गान्धार शैली कहलाती है। यह हिन्दू-यूनानी और बौद्ध-यूनानी शैली के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस शैली मे भारतीय यूनानी शैलियों का मिश्रण पाया जाता है। इसीलिए इसे हिन्दू-यूनानी शैली कहा जाता है। इस शैली पर यूनानी प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। इस शैली में महात्मा बुद्ध और बोधिसत्वों की सबसे पहली मूर्तियाँ बनायी गयी थी। इसीलिए इस शैली को बौद्ध यूनानी शैली कहा जाता है। सर जॉन मार्शल व विन्सेण्ट स्मिथ का मत है कि गान्धार शैली में ही महात्मा बुद्ध की सबसे पहली मूर्ति बनायी गयी थी । उससे पहले महात्मा बुद्ध की साक्षात् प्रतिमा न बनाकर केवल संकेतों और चिह्नों से ही काम लिया जाता था। भारतीय कलाविद् कुमारस्वामी, प्रसिद्ध इतिहासकार जायसवाल और हैवेल आदि का मत है कि भारतीय शिल्पकारों ने ही गान्धार कलाकृतियों का निर्माण किया था। वे इस मत के विरुद्ध हैं कि यूनानी कलाकारों ने ही सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्ति बनायी थी । 

बुद्ध की मूर्तियाँ यूनानी ढंग की हैं। उनकी आकृति भारतीय न होकर यूनानी देवता एपोलो से मिलती-जुलती है। इसी प्रकार यक्ष, कुबेर आदि देवताओं की मूर्तियाँ यूनानी ढंग की हैं। वस्त्राभूषण आदि भी यूनानी शैली के हैं। कहीं-कहीं उन्हें सांसारिक पुरुषों की भाँति मूँछें तथा आभूषण धारण किये हुए दिखाया गया है। चूँकि कला के मूल में प्रेरणा पूर्णतः पाश्चात्य है, इसलिए कुछ विद्वानों का अनुमान है कि कलाकार सीरिया अथवा सिकन्दरिया के विदेशी रहे होंगे। जिस विषय-वस्तु को उन कलाकारों ने अपनाया वह उनकी अपनी नहीं थी, इसलिए वे उसकी आत्मा में प्रवेश न कर सके। परिणामस्वरूप कला में यांत्रिकता अधिक है। भारतीय आदर्शो को स्वाभाविक आध्यात्मिकता का उसमें सर्वथा अभाव है । उसमें अनुभूति की गहराई और तन्मयता देखने को नहीं मिलती, बासीपन-सा अधिक दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि मूर्तियाँ किसी की नकल हैं। कहीं-कहीं कुछ मूर्तियों में ओज और शक्ति अवश्य देखने को मिल जाती है। यह शैली चौथी शताब्दी ई० के अन्त तक चलती रही। भारतीय शैलियों पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। 

इस काल में मथुरा कला का महत्वपूर्ण केन्द्र था। प्रथम शताब्दी ई० पू० के लगभग मथुरा में मूर्तिकला की एक विशेष शैली का जन्म हुआ था जिसका आगे की शताब्दियों में देश का अन्य भागों की कला पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। मथुरा के कलाकार रेतीले लाल पत्थर का प्रयोग करते थे। प्रारम्भ में उन्हें जैनधर्म से विशेष प्रेरणा मिली थी। उन्होंने पद्मसन की मुद्रा में ध्यानमग्न बैठे हुए दिगम्बर तीर्थकरों की सुन्दर मूर्तियाँ बनायीं । किन्तु मथुरा-शैली का सबसे अच्छा नमूना यक्षियों की मूर्तियाँ हैं जो एक स्तूप की वेष्टणी पर खुदी हुई थीं। इन मूर्तियों की कामुकतापूर्ण भावभंगी सिन्धु में उपलब्ध नर्तकी की प्रतिमा से बहुत कुछ मिलती- जुलती है। 

मथुरा जिले के माट नामक गाँव में कुषाण राजाओं की मूर्तियाँ मिली हैं जो भारतीय कला विद्यार्थी के लिए विशेष दिलचस्पी की चीज हैं। माट में सम्भवतः कुषाण राजाओं का प्रासाद था, और उसी के एक कक्ष में राजाओं की स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए उनकी मूर्तियाँ रखी जाती थीं, लगभग सभी मूर्तियाँ बाद में तोड़ डाली गयीं। इनमें कनिष्क की मूर्ति विशेष आकर्षण की चीज है। उसका भी सिर लुप्त हो गया है केवल धड़ शेष है। 



About The Author

Spread the love

Leave a Comment

error: Content is protected !!