प्रश्न- कुषाण कौन थे ? एक विजेता के रूप में कनिष्क की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें।
चीनी इतिहासकारों के अनुसार कुषाण लोग यू-ची जाति की शाखा के थे। यू-ची लोग उत्तर-पश्चिमी चीन के कानसू नामक प्रांत में रहते थे। 175-165 ई० पूर्व के लगभग हियुंग – नू (हूण) नामक जाति ने यू-ची जाति को पराजित करके वहाँ से खदेड़ दिया। चू-ची जाति ने सुरक्षा की खोज में पश्चिम की ओर प्रस्थान किया और वू-सून नामक एक अन्य जाति को पराजित कर दिया। इसके पश्चात यू-ची जाति ने सरदरिया के उत्तरी प्रदेशों में बसे. हुए शकों को परास्त कर दिया और उनके प्रदेश पर अधिकार कर लिया। शीघ्र ही 140 ई० पूर्व० के लगभग वू-सून तथा हियुंग – नू दोनों जातियों ने मिलकर चू-ची जाति के लोगों को परास्त कर दिया। परिणामस्वरूप यू-ची जाति के लोग आक्सस नदी को पार कर ताहिया अथवा बैक्ट्रिया में प्रविष्ट हुए । उन्होंने वहाँ बसे हुए शकों को परास्त किया तथा ताहियां (बैक्ट्रिया) में अपना राज्य स्थापित कर लिया।
यू-ची जाति की पाँच शाखाएँ : अब यू-ची जाति के लोगों ने अपने घुम्मकड़ जीवन का परित्याग करके स्थायी जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया। इस समय यू-ची जाति पाँच शाखाओं में विभक्त हो गई जिनके चीनी नाम इस प्रकार थे – ( 1 ) हियू- मी, (2) चुआंग – मी, (3) कुएई – चुआंग, (4) ही – तुन तथा (5) काओ – फू। प्रत्येक शाखा के ऊपर एक ही – हू (साहू अथवा साही) शासन करता था। ईसवी शताब्दी के प्रारम्भ में कुएई – चुआंग का राज्य कुषाण नामक साही या सरदार को मिला। उसने शेष चारों राज्यों को पराजित कर दिया और उनको अपने अधीन कर लिया। अब समस्त यू-ची जाति को कुषाण ही कहा जाने लगा।
कनिष्क : कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली सम्राट था। अपनी राजनीतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण कनिष्क ने प्राचीन भारत में अपना महत्वपूर्ण स्थाना बना लिया है।
कनिष्क के सिंहासनारोहण की तिथि : कनिष्क के सिंहासनारोहण की तिथि के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कनिंघम, फ्लीट तथा कैनेडी कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 58 ई० पूर्व मानते हैं जबकि मार्शल, स्टेनकोनोव स्मिथ आदि कनिष्क के सिंहासनारोहण की तिथि 125 ई० मानते हैं। डॉ० आर०डी बनर्जी, डॉ० हेमचन्द्र राय चौधरी, रैप्सन, ओल्डनबर्ग, फर्ग्यूसन आदि के अनुसार कनिष्क 78ई० में गद्दी पर बैठा था । अधिकांश विद्वान् कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78ई० मानते हैं। अधिकांश विद्वान कनिष्क संवत का समीकरण शक काल के साथ करते हैं। डॉ० डी०सी० सरकार का कथन है कि यदि कनिष्क संवत् का समीकरण शक- काल के साथ स्वीकार कर लिया जाए, तो कनिष्क ने 78ई० से लेकर 101 या 102 ई० तक शासन किया। डॉ० आर० एस० त्रिपाठी ने लिखा है कि “इस अनन्त वाद- विवाद के बावजूद भी हमें कनिष्क द्वारा 78 ई० के शक संवत् का संचालन सही जान पड़ता है । ”
कनिष्क की उपलब्धियाँ
(1) एक महान विजेता : कनिष्क एक महान विजेता और विख्यात सेनानी था। वह बौद्ध धर्म का कट्टर अनुयायी हो गया था। इसके बाद भी उसके युद्धों में जरा भी शिथिलता नहीं आई थी। उसने कश्मीर को तो बात की बात में हस्तगत कर लिया था और मगध तथा साकेत पर सफल आक्रमण किया था।
(2) एक सफल शासक : विजेता के साथ-साथ कनिष्क एक महान शासक भी था। उसने सम्पूर्ण साम्राज्य में शांति और सुव्यवस्था थी क्योंकि वह अपराधियों और उपद्रवी तत्वों को कठोरता के साथ दबाया करता था। वास्तव में उसका दंड-विधान कठोर था। उसमें समय में व्यापार खूब होता था। उस समय भारत के व्यापारी दूर-दूर के देशों के साथ व्यापार करते थे जिसके फलस्वरूप देश धन-धान्य से परिपूर्ण था। राजकोष की स्थिति बहुत अच्छी थी। उसकी प्रजा खुशहाल थी ।
(3) बौद्धधर्म का एक महान सेवक : कनष्कि बौद्ध धर्म का एक महान सेवक था । उसने सम्राट अशोक के समान ही बौद्ध धर्म की सेवा की थी। उसी ने बौद्ध भिक्षुओं की चौथी संगति को बुलवाया था और उनके त्रिपटकों का प्रामणिक संस्करण भी करवाया था।
(4) कला और साहित्य का प्रेमी : कनिष्क कला और साहित्य का भी महान प्रेमी था। वह कलाकारों और साहित्यकारों को हमेशा सहायता दिया करता था। अतः वह उनका आश्रयदाता था । विद्वानों को भी वह श्रद्धा की दृष्टि से देखा करता था। प्रसिद्ध विद्वान पार्श्व, अश्वघोष और नागार्जुन इत्यादि उसके यहाँ आश्रय पाते थे । आयुर्वेद शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान चरक को उसने अपने दरबार में रखा था। उसने बुद्ध त्रिपटक भी भाष्य भी लिखवाया था। इस तरह से वह एक प्रशंनीय साहित्य प्रेमी था।
(5) एक महान निर्माता : इन सभी गुणों के साथ ही साथ कनिष्क के चरित्र में एक और भी गुण था वह था वह एक महान निर्माता का गुण । निर्माता के रूप में वह सम्राट अशोक के तुल्य था क्योंकि उसने भी बहुत से नगरों और स्तूपों का निर्माण करवाया था। उसने राजधानी पेशावर में एक लड़की का स्तम्भ और एक विहार का भी निर्माण करवाया था। उसने तक्षशिला के निकट एक अति मनोरम नगर को भी बसाया था।
कनिष्क की विजय : कनिष्क कुषाण वंश का सबसे महान शासक था। भारत के राजपरिवार में उसका स्थान ऊँचा था। वीरता और विजेता के रूप में वह अद्वितीय था।
चीन के साथ संघर्ष : चीन के साथ कनिष्क का भीषण संघर्ष हुआ। कनिष्क की सेना ने साहस से काम लिया जिसके फलस्वरूप अन्त में कनिष्क की यारकन्द, खोतन्न और काश्गर पर विजय हो गई और इन सब प्रदेशों पर उसका अधिकार हो गया।
चीन और तिब्बत की अनुश्रुतियों के अनुसार कनिष्क ने मगध और साकेत को भी जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था और वहाँ से अश्वघोष नाम के एक बौद्ध भिक्षु को भी अपने साथ ले आया था। इस तरह से कनिष्क एक उच्च कोटि का सेनानी और एक महान विजेता भी था। उसने अपने बाहुबल से अपने साम्राज्य का काफी विस्तार कर लिया था।
साम्राज्य का विस्तार : उसका साम्राज्य विस्तार था। उसके साम्राज्य में अफगानिस्तान, खोतन्न, कारगर, वैक्ट्रिया और यारकन्द आदि प्रवेश सम्मिलित थे। भारत के भीतर उसके साम्राज्य की सीमा को आँकना कठिन है लेकिन इसके बावजूद उसी के लेखों को पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि भारत के भीतर भी उसका साम्राज्य विस्तार था क्योंकि उसके ये सभी लेख मथुरा श्रावस्ती सारनाथ, कोशाम्बी, रावलपिंडी, बहावलपुर और पेशावर से प्राप्त हुए हैं। खुदाई में उसके सिक्के तो सम्पूर्ण उत्तरी भारत से प्राप्त हुए हैं, खासकर बंगाल और में बहुत मिले हैं। इस तरह से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत में उसके साम्राज्य के अधीन बहुत से प्रान्त थे, जैसे- सिध, पंजाब, कश्मीर, बिहार और उत्तर प्रदेश आदि । अतः उसके साम्राज्य का विस्तार खूब हुआ था।
उसकी राजधानी : कनिष्क की राजधानी पुरूषपुर अर्थात् पेशावर में थी जिसको उसने आलिशान भवनों से सजाया था, बौद्ध विहारों और सार्वजनिक शालाओं से अलंकृत करवाया था। उसके बौद्ध विहारों की अमर कृति 9वीं सदी तक बनी हुई थी । हाल की पेशावर की खुदाई में उसकी राजधानी की प्राचीन वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। अतः उसकी राजधानी की शान निराली थी ।
उसका शासन प्रबंध : कनिष्क का शासन प्रबंध कैसा था और किस प्रणाली से शासन होता था इसका ज्ञान लोगों को बहुत कम है, क्योंकि अभी तक इतिहासकारों ने खोज नहीं की हैं। केवल सारनाथ के अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि कनिष्क ने क्षत्रप प्रणाली के आधार पर अपना शासन प्रबंध किया था और उसका शासन प्रबंध बहुत ही ठोस और सुव्यवस्थित था।
उसके सिक्के : सम्राट कनिष्क के सिक्कों पर ईरानी, ग्रीक और हिन्दू देवताओं के बहुत से चित्र तथा ग्रीक भाषा में उनके नाम इत्यादि खुदे हुए प्राप्त हुए हैं। उदाहरणार्थ, सेरापिज, हैरेक्लिज, शिव, अग्नि और चन्द्र आदि । उसने अपने सिक्कों पर ऐसा इसलिए करवाया था कि उसके साम्राज्य में कई धर्म के लोग रहते थे। उन सबों को संतुष्ट करने ‘के लिए शायद कनिष्क ने अपने सिक्कों पर ऐसा करवाया था। उसके सिक्के ठोस और आकर्षक भी थे।
उसका धर्म : कनिष्क धर्म के क्षेत्र में बड़ा उदार था। उसने अपनी प्रजा को धार्मिक स्वतंत्रता दे रखी थी। बौद्ध लोग कनिष्क को बौद्ध धर्म का कट्टर अनुयायी मानते हैं। उसने अनेक सिक्कों पर महात्मा बुद्ध के चित्र भी मिले हैं। कुछ अनुश्रुतियों के अनुसार कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तूप और बौद्ध विहार बनवाये थे। पेशावर के स्तूप में ही बौद्ध अस्थियाँ रखी गई थी, जैसा कि चीनी यात्री अलबेरूनी का मत है। कनिष्क के द्वारा चौथी संगीति को बुलवाया जाना भी इस बात की पुष्टि करता है कि कनिष्क बौद्ध था। यह ठीक है कि उसके पूर्वज लोग शिव और महान शक्ति सूर्य के पक्के उपासक थे। कनिष्क जन्म से तो विदेशी था परन्तु भारत में रहकर बौद्ध धर्म का पक्का प्रेमी हो गया था और उसी को अपना धर्म स्वीकार कर लिया था।
बौद्ध संगीति को बुलाना : कनिष्क बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सम्राट अशोक के चरण – चिह्नों पर चला। महायान ग्रंथों में कनिष्क को वही स्थान दिया गया है जैसा कि हीनयान ग्रंथों में सम्राट अशोक को दिया गया है। बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार कनिष्क ने कश्मीर के कुंडलवन विहार में 500 भिक्षुकों की एक महान बौद्ध संगीति बुलाई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म के ग्रंथों का संकलन और मीमांसा करवाना था। वसुमित्र, अश्वघोष और पाश्र्व इसके प्रधान स्थाविर थे। वसुमित्र इसके प्रधान और अश्वघोष उपप्रधान थे। इस संगीति में मुख्य कार्य किये गये-पहला बौद्ध धर्म ग्रंथों को नये ढंग से संस्कृति भाषा में लिखवाया गया और दूसरा यह कि महायान शाखा को राजधर्म का स्थान दिया गया और स्वयं कनिष्क संरक्षक बना। विभाषा शास्त्र तथा भाष्यों को ताँबे पर लिखवाकर उन स्तूपों को सुरक्षित करवा दिया गया।
महायान मत : कनिष्क महायान मत को मानने वाला था । महायान मत बुद्ध की भक्ति द्वारा निर्वाण में विश्वास करता था । इसलिए जनता द्वारा इसकी खूब उपासना होने लगी। फलतः बौद्ध धर्म में एक जागृति आ गई थी जिससे इसका विदेशों में खूब प्रचार हुआ। यह भी कनिष्क की ही एक देन थी ।
गांधार कला का विकास : महायान मत के इस आंदोलन ने उस समय की कला में एक नया मोड़ दिया। फलतः कला में गांधार शैली का खूब व्यवहार हुआ। चूँकि इस शैली की शुरूआत गांधार प्रांत में हुई थी, इसलिए इसका नाम गांधार शैली पड़ा। जिसके सर्वप्रथम फलने-फूलने का केन्द्र पेशावर था। इस शैली के मुख्य जन्मदाता मीक के कलाकार थे। हिन्दू ग्रीक काल में बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ इसी शैली में बनी थी। यह शैली बहुत दिनों तक चलती रही। कनिष्क ने भी इस शैली में बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ बनवाई। इन सभी मूर्तियों में चुन्नट, वस्त्र और केश पीक पद्धति के अनुसार ही हैं। लेकिन बाद में यह बिल्कुल भारतीय हो गई।
कनिष्क के निर्माण कार्य : कनिष्क चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह विजेता ही नहीं और हर्षवर्द्धन की भाँति धर्म का प्रचारक ही नहीं बल्कि वह सम्राट अशोक के समान एक निर्माता भी था। जिसका जवलन्त उदाहरण बौद्ध धर्म की अनुश्रुतियाँ हैं, क्योंकि उनके अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि कनिष्क ने अनेक निर्माण कार्य भी किए थे। उसके द्वारा निर्माता बहुत से स्तूपों और नगरों का अवशेष आज भी देखने को मिलता है।
साहित्य की उन्नति : कला के अतिरिक्त कनिष्क के शासनकाल में साहित्य की भी खूब उन्नति हुई थी वह एक महान साहित्य प्रेमी और विद्वानों का आश्रयदाता था। बड़े-बड़े विद्वानों का जमघट उसके दरबार में लगा रहता था। आयुर्वेदाचार्य चरक, वसुचित्र, नागार्जुन और अश्वघोष आदि प्रसिद्ध विद्वानों की वह पूरी मदद करता था। वे सब प्रायः उसके राजदरबार की शोभा बढ़ाया करते थे|
अतः प्राचीन भारत के इतिहास में कनिष्क का महत्वपूर्ण स्थान है। एक ओर उसकी सैन्य सफलताएँ हमें चन्द्रगुप्त मौर्य की याद दिलाती हैं, तो दूसरी ओर उसकी बौद्ध धर्म के प्रति की गई सेवाएँ हमें महान् अशोक की याद दिलाती हैं। डॉ० आर०एस० त्रिपाठी का कथन है कि “कनिष्क एक महान् विजेता तथा बौद्ध धर्म का आश्रयदाता था । उसने चन्द्रगुप्त मौर्य की सामरिक योग्यता तथा अशोक के धार्मिक उत्साह का समन्वय था । ”
डॉ० पी०एल० भार्गव ने लिखा है कि “कनिष्क एक महान् विजेता और धर्म- प्रचारक ही नहीं, एक महान निर्माता तथा विद्या और कला का आश्रयदाता भी था । कनिष्क की गणना भारत के सर्व महान् सम्राटों में है । विदेशी होते हुए भी उसने अकबर की भाँति भारत को ही अपना देश बना लिया था और उसका आश्रय पाकर बौद्ध धर्म की नहीं, भारतीय संस्कृति की भी सर्वांगीण उन्नति हुई ।