प्रश्न . प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए | अथवा प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों के सर्वेक्षण पर प्रकाश डालें |
उत्तर : प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन के स्रोत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है जिनसे हमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है | अध्ययन की सुविधा के लिए इसे हम दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं — (1) साहित्यिक स्रोत तथा (2) पुरातात्विक स्रोत ।
(1 ) साहित्यिक स्रोत ( प्रश्न. प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए | )
वह साहित्य जो हमें अतीत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है, साहित्यिक स्रोत कहलाता है । प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक साहित्यिक स्रोत हैं , अध्ययन के सुविधा हेतु इसे दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है— (1) धार्मिक ग्रंथ (2) धर्मनिरपेक्ष ।
(1 )धार्मिक ग्रंथ – ( प्रश्न. प्राचीन भारतीय इतिहास के धार्मिक ग्रंथ स्रोतों का वर्णन कीजिए | )
वे साहित्य जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से प्रभावित होते हैं, धार्मिक ग्रंथ स्रोत्र कहलाते हैं | प्राचीन भारत का अधिकांशत: साहित्य धार्मिक ही है । इसका कारण यह है कि प्राचीन भारत में धर्म का व्यापक प्रभाव था । अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन धार्मिक ग्रन्थों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है— ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ ।
(a) ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथ – प्राचीन भारत के ब्राह्मण ग्रंथों में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, पुराण, वेदांग, स्मृतियाँ और महाकाव्य सर्वप्रमुख हैं ।
- वेद – ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों में वेदों का प्रथम स्थान है । वेद की गणना विश्व साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ के रूप में की जाती है । वेद विश्व की प्रथम रचना हैं । ‘वेद’ शब्द का अर्थ है ‘ज्ञान’ । प्राचीन भारतीय ऋषियों का ज्ञान वेदों में समाहित है । वेद संख्या में चार हैं— ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद । इनमें ऋग्वेद प्राचीनतम है और इसका रचना काल 1500-1000 ईसा पूर्व माना जाता है ।
- उपनिषद् – ‘उपनिषद्’ शब्द का अर्थ है ‘समीप बैठना । इन ग्रन्थों में दर्शन तथा आध्यात्म का गम्भीर चिन्तन है । इनका मुख्य विषय ‘ज्ञान की जिज्ञासा’ और ‘परमब्रह्म’ की स्थापना है । उपनिषदों को ‘ब्रह्मविद्या’ भी कहा गया है ।
- वेदांग– वेदांग प्राचीन इतिहास के स्रोत हैं । जिनकी संख्या 6 है और ये वेदों से सम्बन्धित हैं । यही कारण है कि इन्हें वेदों का अंग या वेदांग कहा गया है ।
- स्मृति साहित्य – ब्राह्मण धर्म ग्रंथों में ‘धर्मशास्त्रों’ का, जिन्हें स्मृतियों के नाम से भी जाना जाता है, विशेष स्थान है । इनसे हिन्दू समाज के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं । उनके जीवन यापन और आर्थिक गतिविधियों को जानने में ये ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं ।
- महाकाव्य -वैदिक साहित्य के बाद महाकाव्यों का मुख्य स्थान है । महाकाव्यों के अन्तर्गत ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ आते हैं ।
(B) बौद्ध धर्म ग्रन्थ –( प्रश्न. प्राचीन भारतीय इतिहास के बौद्ध साहित्य का वर्णन कीजिए | )
बौद्धों के अनेक धर्म-ग्रन्थ पाली तथा संस्कृत भाषाओं में प्राप्त होते हैं । यद्यपि इन ग्रन्थों का प्रधान विषय धर्म का उपदेश है और इनमें धार्मिक सिद्धान्तों तथा धार्मिक कथाओं का वर्णन किया गया है फिर भी इनमें पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री समाहित हैं । बौद्ध विद्वानों ने लौकिक पक्ष को भी महत्व दिया है ।
- पिटक साहित्य – बौद्ध धर्म के मुख्य ग्रंथ पिटक हैं । इनके अन्तर्गत विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक हैं । ‘पिटक’ का अर्थ होता है टोकरी । विनय पिटक में भिक्षु और भिक्षुणियों के लिये अनुशासन सम्बन्धी नियम हैं । सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेशों का सार दिया गया है । अभिधम्म पिटक में महात्मा बुद्ध के जीवन तथा विचारों का वर्णन है ।
- जातक – बौद्ध ग्रन्थों में ‘जातकों’ को प्राचीनतम माना जाता है । जातक कथाओं में गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों का वर्णन है जब वे ‘बोधिसत्व’ की स्थिति में थे । जातक कथाओं की संख्या 549 है । इन कथाओं मैं तत्कालीन समाज का वर्णन मिलता है ।
- मिलिन्दपन्हो – यह पाली भाषा में है । ये मिनेन्डर के काल की रचना है । इसमें तत्कालीन समाज के चित्रण के अलावा बौद्ध धर्म के विवादग्रस्त विषयों का वर्णन है ।
- अन्य ग्रन्थ- दीप वंश और महा वंश की रचना श्रीलंका में हुई थी । यद्यपि इन ग्रन्थों में अतिरंजित कल्पनायें हैं फिर भी इनमें महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री है ।
(c) जैन ग्रंथ –( प्रश्न. जैन साहित्य का वर्णन कीजिए | )
जैन धर्म-ग्रन्थों में प्राचीन भारतीय इतिहास की प्रचुर सामग्री समाहित है । राजबली पाण्डेय लिखते हैं, “एक दृष्टि से कहा जा सकता है कि बिना जैन ग्रन्थों के अध्ययन के भारतीय संस्कृति के इतिहास में पूर्णता नहीं आ सकती है क्योंकि इस साहित्य में हमें प्राचीन भारत के कुछ ऐसे पक्षों का परिचय मिलता है जिनकी ब्राह्मण या बौद्ध साहित्य में या तो चर्चा ही नहीं है या अगर है तो बहुत अल्प | जैन ग्रंथ ‘आगम’ साहित्य सर्वप्रमुख है । इनके अतिरिक्त भद्रबाहुचरित, परिशिष्टपर्वन, पुण्याश्रय कथाकोष आदि अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । अन्य जैन ग्रंथ हैं – वसुदेवहिण्डी, बृहत्कल्पसूत्र भाष्य, आचारंगसूत्र, आवश्यकचूर्णि, ज्ञाताकर्म, भगवती सूत्र आदि ।
( 2 ) धर्मनिरपेक्ष
वे साहित्य जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से प्रभावित नहीं होते हैं, धर्मनिरपेक्ष स्रोत्र कहलाते हैं | अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इनेह दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है— (1) लोक साहित्य तथा जीवन चरित्र (2) विदेशी साहित्य
(1)लोक साहित्य तथा जीवन चरित्र : इसके अन्तर्गत कौटिल्य का अर्थशाख , गार्गी संहिता , मुद्रा राक्षस , अष्टाध्यायी तथा महाभाष्य , कालिदास के ग्रंथ , गुजरात और सिंध के स्थानीय इतिहास , जीवन चरित्र आदि प्रमुख स्रोत हैं |
(2) विदेशी साहित्य : विदेशी साहित्य में मुख्य रूप से यूनानी लेखको में हेकाटियस, हेरोडोटस , टीसियस , मैगस्थनीज, स्ट्रेबो इत्यादि कि रचनाओ को लिया जा सकता हैं | चीनी लेखको में सुमाचीन , फाह्यान , ह्वेनसांग इत्यादि की रचना महत्वपूर्ण स्रोत हैं | इसी क्रम में अरब के लेखको में अलबरूनी की ‘तहकीकात – ए-हिन्द’ इस श्रेणी का सर्वप्रमुख स्रोत है । तथा तिब्बती यात्रियों में ‘लामा तारानाथ’ का रचना सर्वप्रमुख है ।
( 2 ) पुरातात्विक स्रोत – ( प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों का वर्णन कीजिए | )
पुरातात्विक सामग्री के अन्तर्गत अभिलेख, मुद्रायें और स्मारक आते हैं । इतिहास निर्माण के लिये पुरातात्विक सामग्री अत्यन्त विश्वसनीय तथा सर्वोत्तम साधन है ।
(1)अभिलेख : प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले स्रोतों में सर्वाधिक महत्व के एवं प्रामाणिक स्रोत अभिलेख हैं क्योंकि अभिलेख समकालीन होते हैं । जिस राजा अथवा राज्य के विषय में अभिलेख पर लिखा होता है, अभिलेख की रचना भी उसी राजा के शासनकाल के समय की गयी होती है । अतः उस तथ्य के सत्य होने की सम्भावना अधिक होती है । अभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति पर विशेष रूप से प्रकाश पड़ता है। इसके अतिरिक्त राज्य की सीमाओं का निर्धारण, राजाओं के चरित्र एवं व्यक्तित्व के विषय में भी ये जानकारी उपलब्ध कराते हैं। अभिलेख तत्कालीन कला को भी प्रदर्शित करते हैं ।
अभिलेख विभिन्न रूपों में प्राप्त हुए हैं । उदाहरणार्थ, शिलाओं पर, स्तम्भों, धातु-पत्रों पर, प्रस्तर पट्टों पर, स्तूपों अथवा मन्दिरों की दीवारों, आदि पर । शिला पर लिखे अभिलेख को शिलालेख । इसी प्रकार अन्य को स्तम्भ लेख, ताम्र पत्र लेख, भोज पत्र लेख, मूर्ति – लेख आदि कहा जाता है । प्राचीन भारत पर प्रकाश डालने वाले अभिलेख मुख्यतया पाली, प्राकृत और संस्कृत में मिलते हैं । कुछ अभिलेख तमिल, मलयालम, कन्नड़ व तेलुगू भाषाओं में भी मिलते हैं । अधिकांश अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी है जो बायीं से दायीं ओर को लिखी जाती थी । कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए भी प्राप्त हुए हैं । कुछ विदेशी अभिलेखों से भी प्राचीन भारत पर प्रकाश पड़ता है ।
(2) स्मारक – प्राचीन भवनों, मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का भी भारतीय इतिहास में विशेष महत्व है । यद्यपि स्मारक राजनीतिक स्थिति पर तो विशेष प्रकाश नहीं डालते, किन्तु इनसे सांस्कृतिक क्षेत्र में अत्यधिक जानकारी प्राप्त होती है । मन्दिर, स्तूप व अन्य स्मारक तत्कालीन धर्म एवं आध्यात्मिक भावना के साथ-साथ कला की भी जानकारी देते हैं । मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में हुए उत्खननों से सम्भवतः विश्व की प्राचीनतम् सभ्यता ‘सिन्धु सभ्यता’ का पता चला । तक्षशिला में हुए उत्खननों से पता चला कि यह नगरी कम से कम तीन बार बनी व नष्ट हुई । पाटलिपुत्र में हुई खुदाई से मौर्यों के विषय में अनेक नवीन तथ्य प्रकाश में आये, आदि ।
(3)मुद्राएं – प्राचीन भारत पर प्रकाश डालने वाले पुरातात्विक स्रोतों में मुद्राओं का विशिष्ट स्थान है । मुद्राएं तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक स्थिति एवं कला पर विशेष रूप से प्रकाश डालती हैं । मुद्राओं से निम्नलिखित जानकारी मिलती है :
- आर्थिक स्थिति पर प्रकाश – मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । स्वर्ण, अथवा तांबे के सिक्के आर्थिक स्थिति के स्वयं ही मापदण्ड बन जाते हैं । प्रायः वैभवशाली राज्य में सोने के सिक्के ही ढलवाये जाते थे व आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर ही क्रमश: चांदी व तांबे अथवा मिश्रित धातु के सिक्कों का प्रचलन किया जाता था ।
- तिथिक्रम का निर्धारण – मुद्राओं पर अंकित तिथि में उन मुद्राओं को जारी करने वाले शासक की तिथि के विषय में पता चल जाता है ।
- धार्मिक स्थिति का ज्ञान – मुद्राओं पर उत्कीर्ण विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों से तत्कालीन धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।
- कला पर प्रकाश – मुद्राओं पर उत्कीर्ण विभिन्न चित्रों व संगीत वाद्यों से तत्कालीन कला एवं संगीत पर प्रकाश पड़ता है।
- शासकों की व्यक्तिगत रुचियों की जानकारी – मुद्राओं पर अंकित चित्रों से राजाओं की व्यक्तिगत रुचियों पर भी प्रकाश पड़ता है। समुद्रगुप्त की एक मुद्रा में उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है, जिससे समुद्रगुप्त की संगीत के प्रति रुचि प्रदर्शित होती है।
(4) कलाकृतियां एवं मिट्टी के बर्तन – विभिन्न स्थानों पर किये गये उत्खननों से मिट्टी की बनी हुई अनेक मूर्तियां व बर्तन प्राप्त होते हैं । इन बर्तनों व मूर्तियों का भी अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि इनसे तत्कालीन लोककला, धर्म एवं सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है ।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के लिए स्रोतों का अभाव नहीं है । विभिन्न साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों से भारतीय इतिहास पर व्यापक प्रकाश पड़ता है ।
