प्रश्न- मौर्य साम्राज्य (मौर्य वंश) के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए ?
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण (Causes of the fall of Maurya Empire) : अशोक की मृत्यु के बाद का मौर्य वंश का इतिहास अन्धकारपूर्ण है। पुराणों के अनुसार अशोक के बाद कुणाल, बन्धुपालित (कुणाल का पुत्र), इन्द्रपालित (बन्धुपालित का भाई), दशोन (बन्धुपालित का पौत्र), दशरथ (अशोक का पौत्र), सम्प्रति (दशरथ का पुत्र), शालिशूक, देवधर्मन, शतधनुष (देवधर्मन का पुत्र) तथा बृहप्रथ मौर्य वंश के राजा हुए। पुराणों के अनुसार दशरथ के कुल आठ वर्षो तक शासन किया। उसने जैन धर्म को संरक्षण दिया।
यद्यपि मौर्य साम्राज्य अशोक की मृत्यु के बाद भी विभिन्न राजाओं द्वारा चलाया जाता रहा, फिर भी जिस तेजी से अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य का उत्थान हुआ था, उसने कहीं अधिक गति से मौर्य साम्राज्य विघटित होने लगा । अन्तोगत्वा 184 ई०पू० के लगभग अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की उसके अपने ही सेनापति पुष्यमित्र द्वारा हत्या कर दिये जाने के साथ ही इस विशाल साम्राज्य का पतन हो गया।
मौर्य साम्राज्य के पतन के अग्रलिखित कारण माने जाते हैं :
(1) राष्ट्रीय चेतना का अभाव : मौर्य युग में राष्ट्र का सरकार के ऊपर अस्तित्व नहीं था। इस समय राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक तत्व, जैसे समान प्रथाएँ, समान भाषा तथा समान ऐतिहासिक परम्परा, पूरे मौर्य साम्राज्य में नहीं थीं। भौतिक दृष्टि से भी साम्राज्य के सभी भाग अविकसित थे। राज्य सरकार के ऊपर कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था । राष्ट्रीय एकता की भावना भी मौर्य युग में नहीं थी । राष्ट्रीय चेतना के अभाव में धीरे-धीरे मौर्य साम्राज्य की शक्ति कमजोर हो गयी और उसका पतन हो गया।
(2) आर्थिक तथा सांस्कृतिक असमानताएँ : मौर्य साम्राज्य में आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्तर की विषमता विद्यमान थी। गंगाघाटी का प्रदेश अधिक समृद्ध था, जबकि उत्तर-दक्षिण के प्रदेशों की आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत कम विकसित थी। इसी प्रकार समाज में सांस्कृतिक स्तर की विभिन्न भी थी। प्रमुख व्यावसायिक नगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में घोर विषमता व्याप्त थी। ये सभी कारण मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी रहे।
(3) प्रान्तीय शासकों के अत्याचार : मौर्य युग में साम्राज्य के दूरस्थ प्रदेशों में प्रान्तीय पदाधिकारियों द्वारा जनता पर अत्याचार किया जाता था। इससे जनता मौर्यों के शासन के विरूद्ध हो गयी। इसी प्रकार के अत्याचार अन्य प्रदेशों में भी हुए । कलिंग में भी प्रान्तीय पदाधिकारियों के दुर्व्यवहार से जनता दुःखी थी। अशोक ने भी अपने कलिंग लेख में न्यायधीशों को न्याय के मामले में निष्पक्ष तथा उदार रहने का आदेश किया है।
(4) साम्राज्य की विशालता : चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक के प्रयत्नों के फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य विशाल हो गया था। केन्द्र में इसकी राजधानी भी नहीं थी जिससे शासनकाल पर नियंत्रण करने में बहुत असुविधा होता थी, क्योंकि आवागमन के साधनों का विकास भी नहीं हुआ था दक्षिण भारत पर नियंत्रण रखने में अशोक के उत्तराधिकारियों को बहुत दिक्कत हो रही थी। अंत में, वे इसके पतन को रोकने में सफल नहीं हो सके।
(5) अशोक की अहिंसा की नीति : कुछ इतिहासज्ञों का यह मत है कि अशोक की अहिंसा की नीति से भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ क्योंकि इस नीति के फलस्वरूप साम्राज्य की सैनिक शक्ति नष्ट हो गयी। जब केन्द्रीय शक्ति कमजोर हो गई तब प्रान्तों के शासन स्वतंत्र होने लग गए। ऐसी परिस्थिति में ही पश्चिमोत्तर प्रदेश में वैक्ट्रिया के यवनों का भयंकर आक्रमण हुआ। इससे भी यह साम्राज्य पतनोन्मुख हुआ ।
(6) अत्यधिक दान देने की प्रवृत्ति : कहा जाता है कि अशोक की दान देने की नीति से भी मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ क्योंकि अत्धकि दान से शाही खजाना खाली पड़ गया था जिससे साम्राज्य की आर्थिक स्थिति नाजुक हो गयी थी। सैनिकों का वेतन समय पर नहीं दिया जा रहा था। इतना ही नहीं, एक जगह पर यह भी कहा गया है कि अशोक को दान देने की नीति के फलस्वरूप ही राज्य छोड़कर देना पड़ा था। इसके बाद मौर्य साम्राज्य का सम्राट अशोक का पोता हुआ था।
(7) अंत:पुर और राजदरवारियों का षडयंत्र : अंतःपुर और राजदरबारियों के षड्यंत्र से मौर्य साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा। स्वयं अशोक की अनेक रानियाँ तथा अनेक पुत्र दिन-रात षडयंत्र रचा करते थे। राजा बृहद्रथ के शासन काल में तो साम्राज्य की शक्ति दो दलों में बँट गयी थी। एक दल का प्रधान सेनापति का और दूसरा था प्रधान सचिव का। इन दलों में हमेशा टक्कर होती रहती थी। फलतः साम्राज्य की शक्ति बहुत कम हो गयी। राजा वृहद्रथ इसमें सुधार नहीं ला सका। मौका पाकर उसी के समय में पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट का कत्ल कर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।
(8) अशोक की धार्मिक नीति : अशोक की धार्मिक नीति के कारण हिन्दुओं में उसके विरुद्ध विद्रोह की भावनाएँ उठने लगी। क्योंकि वे लोग बौद्ध धम्र की उन्नति और हिन्दू धर्म की अवनति को नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उनमें बौद्ध धर्म के प्रति द्वेष हो गया । वे लोग मौर्य साम्राज्य को ही नष्ट कर देने की बात सोचने लगे और अंत में साम्राज्य को पतन के गड्डे में धकेल कर ही दम लिया।
(9) विदेशी आक्रमण : जब उपरोक्त कारणों से मौर्य साम्राजय कमजोर हो गया तो विदेशियों की दृष्टि इस पड़ी और इस पर बहुत से विदेशी आक्रमण हुए। मौर्य साम्राज्य के अंतिम दिनों में यूनानी और वैक्टिरियन राजाओं की चढ़ाई हुई जो मौर्य साम्राज्य के लिए हितकर न हुई ।
(10) करों की अधिकता : परवर्ती मौर्य युग में देश की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी। शासकों ने अत्तावश्यक उपायों द्वारा भारी कर लगाकर करों का संग्रह करना शुरू कर दिया। अभिनेताओं तथा गणिकाओं पर भी कर लगाये गये। शासन का कोष भरने के लिए जनता की धार्मिक भावनाएँ जागृत करके धन-संग्रह किया जाता था। करों के भार से बोझिल जनता ने मौर्य शासकों को निर्बल पाकर उनके विरूद्ध विद्रोह कर दिया और यह जन-असन्तोष साम्राज्य की एकता एवं स्थायित्व के लिए घातक सिद्ध हुआ।
(11) अन्य कारण : कुछ विद्वानों ने मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अशोक की नीतियों को भी उत्तरदायी ठहराया है। पं० हरप्रसाद शास्त्री का मानना है कि अशोक ने पशुबलि पर रोक लगाकर तथा न्याय प्रशासन के क्षेत्र में ‘दण्ड समता’ व ‘व्यवहार समता’ का सिद्धान्त लागू करके ब्राह्मणों की शक्ति व सम्मान को धक्का पहुँचाया। अशोक ने रूपनाथ के लघु शिलालेख में ब्राह्मणों को मिथ्या साबित कर दिया। परिणामस्वरूप ब्राह्मण ने पुष्यमित्र के नेतृत्व में संगठित होकर अन्तिम मौर्य शासक बृहद्रथ को समाप्त कर दिया।
हेमचन्द्र राय चौधरी के अनुसार, अशोक की शांतिवादी नीति मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है। क्योंकि अशोक की शांति व अहिंसा की नीति के कारण सैनिक शक्ति अत्यन्त कमजोर की गई और तत्कालीन शासक यवनों के आक्रामण का सामना नहीं कर सके।
कुछ विचारकों ने अशोक को मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी न ठहराते हुए कहा है कि मौर्य साम्राज्य का पतन स्वाभाविक कारणों का परिणाम था। अशोक ने तो अपने शासन काल को सुव्यवस्थित व न्यायकारी बनाने का प्रयत्न किया था। अशोक अपने पिता तथा पितामह के समान रक्त व लौह की नीति को अपनाया तो भी मौर्य साम्राज्य का पतन निश्चित था।
मौर्यो के पतन के लिए अशोक के उत्तरदायित्व के विषय में विभिन्न मत : मौर्यो के पतन के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत इस प्रकार है-
1. महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के मतानुसार, “मौर्य वंश के पतन का मुख्य कारण अशोक के वे शिलालेख है, जिसमें पशुवध को वर्जित ठहराया गया था। ब्राह्मण एक शूद्र राजा द्वारा इस प्रकार के दिये गये आदेश को सहन नहीं कर सकते थे। ब्राह्मण मौर्य सम्राटों को शूद्र समझते थे। इसके अतिरिक्त एक शिलालेख में अशोक ने यह उत्कीर्ण करवाया था कि ब्राह्मणों को पहले जैसा देवता नहीं समझा जायेगा । ”
2. डॉ राय चौधरी का मत है कि “महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री का विचार गलत है, क्योंकि अशोक के पहले भी पशुवध के विरुद्ध प्रचार होता रहा था। इसके अतिरिक्त अशोक को शूद्र कहना भी गलत है। अशोक ने ब्राह्मणों के प्रति कभी भी असहिष्णुता की नीति नहीं अपनाई ।
3. डॉ नीलकांत शास्त्री ने भी इस विचार की आलोचना की है कि “अशोक की बौद्ध धर्मपक्षीय नीति मौर्य वंश के पतन का एक प्रमुख कारण थी। उनके अनुसार अशोक ने विश्व-बंधुत्व और विभिन्न धर्मों में पारस्परिक मित्रता को प्रोत्साहन दिया। वह ब्राह्मणों के तनिक भी विरुद्ध न था । ”
4. आर डी बनर्जी ने लिखा है कि “मौर्यवंश के पतन के लिए अशोक स्वयं भी उत्तरदायी था। उसके आध्यात्मवाद और धार्मिक उत्साह ने सेना के अनुशासन को कड़ी चोट ‘पहुंचाई। ‘
निष्कर्ष : डॉ राधाकुमुद मुकर्जी ने अशोक को मौर्यवंश के पतन के लिए उत्तरदायी न ठहराते हुए लिखा है, “यह कारण सिद्धांततः तो ठीक और युक्तियुक्त लगता है, किन्तु मौर्य साम्राज्य के पतन का केवल यह कारण किस सीमा तक उत्तरदायी है, यह निश्चित करना कठिन है। ” डॉ नीलकांत शास्त्री ने भी लिखा है, “इसका कोई प्रमाण नहीं है कि अशोक ने सेना में कमी कर दी, या साम्राज्य के प्रतिरक्षा के साधनों को कम कर दिया । ” अतः अशोक को मौर्य वंश के पतन के लिए पूर्णतः उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।