भारत पर सिकंदर के आक्रमण के कारण, स्वरूप एवं प्रभाव का वर्णन करें।PDF DOWNLOAD

सिकंदर 327 ईo पूर्व भारत पहुँचा। उसके भारत पर आक्रमण के पूर्व पश्चिमोत्तर भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। ये राज्य थे- अश्मक, गौर, पूर्वी अश्मक, नीसा, पश्चिमी गांधार, पूर्व गांधार, उरसा, अभिसार, पौरव, ग्लुचूकयन, अद्रिज, कठ, सौभूति, मंगल अगलेसाय, क्षुद्रक, मालवख, अम्बष्ठ, क्षत्रि, शूद्र, मूषिक, प्रोस्थ, शाम्ब और पटले। इनमें अधिकतर राज्य गणराज्य थे। तक्षशिला, पुरू और अभिसार राजतन्त्रीय राज्य थे। इन राज्यों के बीच अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते थे। 

आपसी फूट और ईर्ष्या के शिकार इन राज्यों में किसी भी विदेशी आक्रमणकारी के विरोध की क्षमता नहीं थी । ऐसी ही परिस्थिति में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया। 

आक्रमण का कारण 

1. सिकंदर की महत्वकांक्षा : सिकन्दर एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था । उसने संपूर्ण यूनान, अफ्रीका, और एशिया के एक बहुत बड़े भाग पर विजय हासिल की थी। वह विश्वविजय की लालसा रखता था तथा इसी क्रम में उसने जब अखमानी साम्राज्य पर कब्जा कर लिया तो भारतीय प्रदेशों को भी अपने अधीन करने की बात सोची। इस तरह साम्राज्य विस्तार की लालसा के वशीभूत होकर सिकंदर ने भारत के ऊपर आक्रमण किया। 

2. भौगोलिक खोजों की लालसा : सिकंदर स्काईलैक्स के खोजी प्रयासों से काफी प्रभावित हुआ था और इस क्षेत्र में और भी आगे जाना चाहता था। इसी क्रम में वह पूर्व की ओर बढ़ा तथा नये-नये प्रदेशों को अपने अधिकार क्षेत्र में लाया। 

3. भारत की राजनीतिक अवस्था : सिकंदर ने जिस समय साम्राज्य निर्माण का काम शुरू किया था, उस समय संपूर्ण उत्तर-पश्चिमी भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। उन राज्यों के आपसी सम्बन्ध भी अच्छे नही थे। राजनीतिक एकता का अभाव था। सिकंदर के पूर्व ईरानियों ने यहाँ अपने साम्राज्य की स्थापना भी की थी। इन सारी बातों से प्रेरित होकर सिकंदर ने चौथी शताब्दी ई० पूर्व के आठवें दशक में भारत पर आक्रमण किया। 

4. भारत की संपन्नता : सिकंदर ने जब ईरान के अखमानी साम्राज्य पर कब्जा किया तो उसे भारतीय प्रदेशों से होने वाली आय का पता चला और इससे भारत की संपन्नता की बात उजागर हुई। हेरोडोटस ने भारत की संपन्नता का विवरण प्रस्तुत किया था। इस सारी बातों की जानकारी सिकंदर को मिली और आर्थिक रूप से संपन्न भारतीय प्रदेशों पर विजय के लिए वह प्रेरित हुआ। 

5. आम्भी का आमंत्रण : आम्भी तक्षशिला का राजा था। उसका पड़ोसी राजा पोरस से मतभेद था। पोरस के प्रभाव को रोकने के लिए आम्भी ने सिकंदर को पोरस पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया। इससे भारतीयों के आपसी फूट का भंड़ाफोड़ हुआ और सिकंदर को भारत विजय का सपना पूरा होता नजर आया। सिकंदर ने भारतीयों के आपसी फूट का फायदा उठाने की बात सोची और इसी क्रम में उसने भारत पर आक्रमण किया। 

सिकंदर के आक्रमण का स्वरूप :

327 ईo पूर्व में सिकंदर ने खैबर के दर्रे को पार किया तथा भारत पहुँचा। उसने अपनी सेना को दो भागों में बाँट दिया। एक का नेतृत्व वह स्वयं कर रहा था दूसरे का नेतृत्व उसके सेनापति कर रहे थे। इस क्रम में सबसे पहले उसे अश्वक जाति के लोगों से लड़ाई लड़नी पड़ी। यहाँ की स्त्रियों ने भी युद्ध में भाग लिया। भीषण नरसंहार के फलस्वरूप सिकंदर को अश्वकों पर विजय मिली। इसके बाद निसा के राज्य ने आत्मसमर्पण किया। पुष्करावती के राज्य ने 30 दिनों तक भीषण संघर्ष किया और तब जाकर सिकंदर उस पर कब्जा कर सका। तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर का स्वागत किया और पोरस के खिलाफ सिकंदर की मदद की। झेलम नदी के किनारे पोरस और सिकंदर के बीच घमासान लड़ाई हुई। परिस्थितियाँ विपरीत होने के कारण पोरस को पराजय का सामना करना पड़ा। लेकिन उसकी वीरता से प्रभावित होकर सिकंदर ने उसके राज्य को लौटा दिया और उससे दोस्ती कर ली। इसी बीच सिंधु क्षेत्र में सिकंदर के विजित प्रदेशों में विद्रोह हुआ और उसे दबाने के लिए सिकंदर को वहाँ जाना पड़ा। 326 ई० पूर्व में उसने रावी नदी पारकर आद्रिज के मुख्य दुर्ग पिम्प्रभा पर अधिकार कर लिया। इसक बाद भीषण संघर्ष के पश्चात उसने कठों को पराजित किया। उससे भयभीत होकर फेगल और सौभूति राज्यों ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अब सिकंदर की सेना व्यास नदी के किनारे पहुँच गयी थी। लेकिन उसके सैनिकों ने यहाँ से आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। स्वदेश लौटने की इच्छा और लम्बे अरसे तक युद्ध-कार्य में लगे रहने से उसकी सेना का मन उब गया था। सिकंदर के प्रोत्साहन के बावजूद वे आगे नहीं बढ़े। इस तरह जो अपने शत्रुओं के सामने कभी नहीं झुका, उसे अपने ही सैनिकों की इच्छा के सामने झुकना पड़ा । उसने स्वदेश लौटने का फैसला किया। रावी नदी के तट पर 12 विशाल स्तंभ खड़े कर तथा देवताओं की पूजा कर वह लौट गया । यहाँ से वापस लौटते हुए उसे क्षुद्रक, मालव, अम्बष्ठ, मुचिकर्म, शम्भु आदि जातियों के गणराज्यों से कठोर संघर्ष करना पड़ा। इससे सिकंदर को काफी क्षति उठानी पड़ी। अंत में सिकंदर पट्टल नगर पहुँचा जहाँ का शासक डर से भाग गया। पट्टल से सिकंदर ने अपनी सेना की एक टुकड़ी को समुद्र मार्ग से वापस भेजा और स्वयं स्थल मार्ग से लौटा। सितम्बर 325 ई० पूर्व में वह भारत से बेबीलोन पहुँचा जहाँ दो वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गयी। इस तरह सिकंदर के विश्व विजय का सपना अधूरा रह गया। 

सिकंदर के आक्रमण के परिणाम / प्रभाव :

कुछ इतिहासकारों ने सिकंदर के आक्रमण के परिणामों की चर्चा करते हुए कहा है कि सिकंदर का आक्रमण एक हवा के झोंके की तरह आया और चला गया। हालाँकि सिकंदर दो वर्षों से भी कम अवधि तक भारत में रहा फिर भी उसका आक्रमण कोई ऐसी घटना नहीं थी जो बिना प्रभाव छोड़े ही लुप्त हो गई। नीलकंठ शास्त्री ने ठीक लिखा है- “…..the invasion itself, though it lasted less than two years, was too great an occurance to leave things as they were. सिकंदर के आक्रमण के प्रभावों को निम्नलिखित शीर्षकों में बाँटा जा सकता है– 

1. यवन बस्तियों की स्थापना : सिकंदर के आक्रमण के फलस्वरूप उत्तरी भारत में यवन बस्तियों की स्थापना हुई। काबुल के क्षेत्र में सिकंदरिया नामक बस्ती बसी । झेलम के पूर्वी तट पर वूकफेल नामक बस्ती बसी। सिकंदर और पोरस के युद्ध-स्थल पर निकाइया नामक बस्ती बसी। सोद्रई और मस्नोई के उत्तर-पूर्व में चेनाव और सिंधु नदी पर सिकंदरिया नामक बस्ती की स्थापना हुई। पंजाब की नदियों के संगम पर सोडियम अलेकजेण्ड्रिया नामक बस्ती की स्थापना हुई। 

2. भारतीय एकता पर प्रभाव : सिकंदर के आक्रमण से उत्तरी भारत के छोटे-छोटे राज्य समाप्त हो गये और इससे भारतीय एकता को बल मिला। जिस प्रकार डेन्स के आक्रमण से नार्थम्ब्रिया और मर्सिया की स्वतंत्रता खत्म हुई और वेसेक्स के नेतृत्व में इंग्लैण्ड संगठित हुआ उसी तरह सिकंदर के आक्रमण से उत्तरी-पश्चिमी भारत में एकता की भावना का विकास हुआ। 

3. आक्रमण का ऐतिहासिक महत्व : सिकंदर के आक्रमण की तिथि (326 ई० पूर्व) ने प्राचीन भारतीय इतिहास के तिथि निर्धारण की समस्या हल कर दी। इससे अनेक गुत्थियाँ सुलझ गयी और भारत के क्रमागत इतिहास लेखन में काफी सहायता मिली। इतना ही नहीं सिकंदर के साथ आये इतिहासकारों की रचनाएँ हमें सिंधु और पंजाब की तत्कालीन स्थितियाँ की जानकारी प्रदान करती हैं। इस तरह सिकंदर के आक्रमण का ऐतिहासिक महत्व काफी बढ़ जाता है। 

4. व्यापार पर प्रभाव : सिकंदर स्काइलैक्स के प्रयासों से काफी प्रभावित हुआ था और अपने मित्र नियार्कस को सिंधु नदी के मुहाने से फुरात नदी के मुहाने तक समुद्र तट और बंदरगाहों का पता लगाने का काम सौंपा था। उसके समय भारत और यूनान के बीच एक जलमार्ग और तीन स्थल मार्ग का पता लगाया गया था। इन मार्गों का पता लगने से व्यापार का विकास हुआ और इसके अनुकूल आर्थिक असर हुए। 

5. सांस्कृतिक प्रभाव : सिकंदर के आक्रमण का सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़ा। दो भिन्न जातियों के सम्पर्क ने एक-दूसरे को प्रभावित किया। मौर्यकालीन सिक्कों और स्थापत्य को इसने प्रभावित किया। मौर्यकालीन सिक्कों और स्थापत्य कला पर यूनानी प्रभाव की झलक महसूस होती है। 

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि सिकंदर का भारत आक्रमण प्रभावहीन घटना नहीं थी । इसके फलस्वरूप भारत की एकता और संस्कृति प्रभावित हुई। इसने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया और प्राचीन भारतीय इतिहास की तिथि निर्धारण की समस्या को हल करने का अनूठा काम पूरा किया। 


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