अधिकार सम्बन्धी लॉस्की के विचारों की विवेचना करें।

अधिकार सम्बन्धी लॉस्की के विचारों की विवेचना करें।

प्रश्न- अधिकार सम्बन्धी लॉस्की के विचारों की विवेचना करें। मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मानव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। मानव समाज में ही पलकर विकसित होता है। मानव को समाज तथा राज्य द्वारा कार्य करने की मान्यता ही अधिकार कहलाती है।  मानव विकास के लिए अधिकार का होना आवश्यक है। … Read more

अधिकार और कर्तव्य एक ही वस्तु के दो पहलू हैं।” स्पष्ट करें। 

अधिकार और कर्तव्य एक ही वस्तु के दो पहलू हैं।" स्पष्ट करें। 

प्रश्न- अधिकार और कर्तव्य एक ही वस्तु के दो पहलू हैं।” स्पष्ट करें।  प्रत्येक सभ्य समाज में व्यक्ति को राज्य द्वारा कुछ अधिकार प्रदान किये जाते हैं। ये अधिकार उसे समाज और राज्य द्वारा दी गई वे सुविधाएँ होती हैं, जिनके अभाव में वह अपने व्यक्तित्त्व का विकास नहीं कर सकता। अधिकारों के साथ ही … Read more

मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं ? भारतीय संविधान एवं न्यायिक निर्णयों के सन्दर्भ में मानवाधिकार की स्थिति स्पष्ट करें। 

मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं ? भारतीय संविधान एवं न्यायिक निर्णयों के सन्दर्भ में मानवाधिकार की स्थिति स्पष्ट करें। 

प्रश्न- मानवाधिकार से आप क्या समझते हैं ? भारतीय संविधान एवं न्यायिक निर्णयों के सन्दर्भ में मानवाधिकार की स्थिति स्पष्ट करें।  मानवाधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम अमेरिका तथा फ्रांस की क्रान्तियों के पश्चात् हुई। उसके पश्चात् मानव के महत्त्वपूर्ण अधिकारों को विश्व समुदाय के द्वारा स्वीकार किया गया। 1941 ई० में अमेरिकी कांग्रेस में अमेरिका के … Read more

अधिकारों के कानूनी एवं आदर्शवादी (नैतिक) सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इनमें सर्वोत्तम सिद्धान्त कौन सा है ?

अधिकारों के कानूनी एवं आदर्शवादी (नैतिक) सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इनमें सर्वोत्तम सिद्धान्त कौन सा है ?

प्रश्न- अधिकारों के कानूनी एवं आदर्शवादी (नैतिक) सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। इनमें सर्वोत्तम सिद्धान्त कौन सा है ? अधिकारों का कानूनी सिद्धान्त  (Legal Theory of Rights)  अधिकारों के कानूनी सिद्धान्त के अनुसार, अधिकार राज्य द्वारा निर्मित कानून की देन हैं। ये राज्य की इच्छा तथा कानून का परिणाम होते हैं। उन्हीं अधिकारों का हम वास्तविक … Read more

प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें। 

प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें।

प्रश्न- प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या करें।  यह अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। इसके अनुसार व्यक्तियों के अधिकार प्राकृतिक और जन्मसिद्ध होते हैं। प्रो० आशीर्वादम के शब्दों में, “अधिकार उसी प्रकार मनुष्य की प्रकृति के अंग हैं, जिस प्रकार उसकी खाल का रंग। इनकी विस्तृत व्याख्या करने या औचित्य बताने की कोई आवश्यकता नहीं … Read more

अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें। 

अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें। 

प्रश्न- अधिकार की परिभाषा दें तथा इसके विभिन्न प्रकारों की समीक्षा करें।  आज के प्रजातंत्रात्मक युग में अधिकार और कर्तव्य को जीवन आधार के रूप में स्वीकार किया गया है। मानवीय विकास के लिए ये आज आवश्यक तत्व हो गए हैं। अधिकारों की सृष्टि समाज द्वारा होती है, राज्य द्वारा नहीं। राज्य तो सिर्फ अधिकारों … Read more

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