- सिन्धु सरस्वती सभ्यता का सामाजिक जीवन
उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से सिन्धु सभ्यता की सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है कि यहाँ मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी । अवशेषों से प्राप्त भवनों के विभिन्न प्रकार यह दर्शाते हैं कि सिन्धुकालीन समाज में पुरोहित, व्यापारी, शिल्पकार और श्रमिक महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते थे । इस सभ्यता की सामाजिक जीवन सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
- आहार ( Diet) – सिन्धुकालीन समाज के नागरिकों में शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनों ही प्रकार के भोज्य पदार्थों का प्रचलन था । मुख्य आहार गेहूँ, जौ, चावल, दूध, सब्जियाँ एवं फलों के अतिरिक्त गाय, भेड़, मछली, कछुए, मुर्गे आदि जन्तुओं का माँस था ।
- वेशभूषा एवं आभूषण (Costumes and Jewellary) – उत्खनन के द्वारा वस्त्र एवं आभूषणों के विभिन्न साक्ष्य मिलने से यह ज्ञात होता है कि सिन्धु सभ्यता के निवासी वस्त्र एवं आभूषण पहनने के बहुत शौकीन थे । वस्त्र सूती एवं ऊनी दोनों ही प्रकार के होते थे । सोने, चाँदी, ताँबा तथा हाथी दाँत के आभूषण प्राप्त हुए हैं । मनके, सीप एवं मृत्तिका आभूषणों का भी उपयोग प्रचलित था । स्त्री-पुरुष दोनों ही अंगूठी, कड़े-कंगन एवं कुण्डल आदि पहनते थे। स्त्रियाँ चूड़ियाँ, कर्णफूल, हंसली, भुजबन्द इत्यादि पहनती थीं। निर्धन व्यक्ति ताँबे, मिट्टी, सीप आदि के आभूषण पहनते थे ।
- गृहस्थी के उपकरण — सिन्धु घाटी के निवासियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली गृहस्थी सम्बन्धी अनेक वस्तुओं के विषय में उत्खनन से ज्ञान प्राप्त हुआ है । वे लोग घड़े, कलश, थाली, गिलास, चम्मच, मिट्टी के कुल्हड़ तथा प्रचलित धातुओं के बर्तनों का प्रचलन था । प्रमुखतया मिट्टी के बने बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता था जो लाल, काले, कत्थई अथवा पीले होते थे तथा इनकी पालिश अत्यन्त चमकदार होती थी । इसके अतिरिक्त चाकू, छुरी, तकली, सूई, मछली पकड़ने के काँटे, कुल्हाड़ी, इत्यादि भी धातु के बने होते थे ।
- आमोद-प्रमोद के साधन — सिन्धु सभ्यता के निवासियों के आमोद-प्रमोद के प्रमुख साधनों में शिकार खेलना, नाचना, गाना, बजाना तथा मुर्गों की लड़ाई देखना था । जुआ खेलना भी मनोरंजन के प्रमुख साधनों में से एक था, विभिन्न प्रकार के पासों का मिलना इस बात की पुष्टि करता है।’ बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौनों का निर्माण किया जाता था ।
- प्रसाधन सामग्री – ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक युग के समान सिन्धु सभ्यताकालीन स्त्रियाँ भी प्रसाधन को अत्यन्त पसन्द करती थीं। इस बात की पुष्टि उत्खनन से प्राप्त सामग्री से होती है । तत्कालीन स्त्रियाँ दर्पण, कंघी, काजल, सुरमा, सिन्दूर, बालों की पिन, इत्र तथा पाउडर का प्रयोग करती थीं। अत्यन्त उल्लेखनीय बात यह है कि वे लिपस्टिक का प्रयोग भी करती थीं। दर्पण उस समय काँसे तथा कंघे हाथी- दाँत से बनाये जाते थे। दर्पण साधारणतया अण्डाकार होते थे । काँसे के बने हुए रेजर भी पुरुषों द्वारा प्रयोग में लाये जाते थे । मिट्टी, हाथी- दाँत एवं धातु के शृंगारदान भी बनाये जाते थे।
- मृतक संस्कार प्रणालियां – मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त सामग्री से ज्ञात होता है कि सिन्धु निवासी धार्मिक विश्वासों के आधार पर तीन प्रकार से मृतक व्यक्ति का अन्तिम संस्कार करते थे-
- पूर्ण शवाधान (अधिकांश प्रयोग इसी का था ) – इसके अन्तर्गत मृतक को जमीन के अन्दर दफनाया जाता था।
- आंशिक शवाधान- इसमें मृतक व्यक्ति के शरीर को खुले स्थान पर पशु – का आहार बनने के लिए छोड़ दिया जाता था । बाद में अस्थियों को पात्र में रखकर भूमि में गाड़ दिया जाता था ।
- दाह संस्कार – इसमें शव को जलाकर उसकी राख तथा अस्थियों को कलश रखकर भूमि में गाड़ दिया जाता था ।